प्रदूषित नदी विस्तार | 22 Jul 2021
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड मेन्स के लिये:जल प्रदूषण का निवारण एवं संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने वर्ष 2018 में भारत में 351 प्रदूषित नदियों की पहचान की थी।
- सीपीसीबी के अध्ययन से पता चलता है कि अनुपचारित अपशिष्ट जल का निर्वहन नदी प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है।
- पानी की गुणवत्ता के आकलन में पाया गया कि 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की नदियों के पानी की गुणवत्ता मानदंडों को पूरा नहीं कर रही थी।
प्रमुख बिंदु
सीपीसीबी के निष्कर्ष:
- प्रदूषित नदियों का फैलाव: लगभग 60% प्रदूषित नदियों के हिस्से आठ राज्यों (महाराष्ट्र, असम, मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक) में मौजूद हैं।
- देश में सबसे अधिक प्रदूषित नदियों के भाग महाराष्ट्र में हैं।
- असंगत सीवेज उपचार: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने वर्ष 2019 में निर्देश दिया कि 31 मार्च, 2020 से पहले सीवेज का 100% उपचार सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- हालाँकि इन राज्यों में सीवेज उपचार क्षमता एकसमान नहीं है।
- सीपीसीबी की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की राष्ट्रीय सूची के अनुसार, वर्ष 2021 में प्रतिदिन लगभग 72,368 ML/D (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज उत्पन्न हुआ, जिसकी तुलना में सीवेज उपचार क्षमता केवल 26,869 ML/D थी।
- बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड में वृद्धि: सीवेज की इस बड़ी मात्रा को अनुपचारित/आंशिक रूप से उपचारित रूप में सीधे नदियों में छोड़ दिया जाता है जो बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड को बढ़ाकर नदियों को प्रदूषित कर देता है।
बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD):
- बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड सूक्ष्मजीवों द्वारा एरोबिक प्रतिक्रिया (ऑक्सीजन की उपस्थिति में) के तहत ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो जल में कार्बनिक पदार्थों (अपशिष्ट या प्रदूषक) के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है।
- किसी विशिष्ट जल निकाय (सीवेज और पानी के प्रदूषित निकाय) में जितना अधिक कार्बनिक पदार्थ होता है , उसमें उतनी ही अधिक BOD पाई जाती है।
- अधिक BOD के कारण मछलियों जैसे उच्च जीवों के लिये उपलब्ध घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।
- इसलिये BOD एक जल निकाय के जैविक प्रदूषण का एक विश्वसनीय माप है।
- जल संसाधन में छोड़े जाने से पूर्व अपशिष्ट जल के उपचार के मुख्य कारणों में से एक इसका BOD कम करना है यानी ऑक्सीजन की आवश्यकता को कम करना तथा उन स्थानों से इसकी विस्तारित या मांग की मात्रा को कम करना जहाँ इसे प्रवाहित किया जाता है, जैसे- अपवाह तंत्र, झीलों, नदियों या नदियों के मुहानों में।
विघटित ऑक्सीजन
- यह जल में घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen) की वह मात्रा है जो जलीय जीवों के श्वसन या जीवित रहने के लिये आवश्यक होती है। घुलित ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि के साथ पानी की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
- किसी नदी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर 5 मिलीग्राम/लीटर या उससे अधिक होता है तो वह नहाने/स्नान योग्य होगा ।
प्रदूषित नदियों के अन्य कारण:
- शहरीकरण: हाल के दशकों के दौरान भारत में तेज़ी से शहरीकरण ने कई पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है, जैसे कि जल आपूर्ति, अपशिष्ट जल उत्पादन और इसका संग्रह, उपचार और निपटान।
- नदियों के किनारे बसे कई कस्बों और शहरों ने गंदे पानी, सीवरेज आदि की समस्या पर उचित ध्यान नहीं दिया है।
- उद्योग: नदियों में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के अप्रतिबंधित प्रवाह ने उनकी शुद्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ये सभी औद्योगिक अपशिष्ट उन जीवों के जीवन के लिये विषाक्त हैं जो इस पानी का उपभोग करते हैं।
- कृषि अपवाह और अनुचित कृषि प्रथाएँ: मानसून की शुरुआत में या जब भी भारी वर्षा होती है उस दौरान खेतों में प्रयुक्त उर्वरक और कीटनाशक जल के साथ प्रवाहित होकर निकटतम जल-निकायों तक पहुँच जाते हैं।
- नदियों के प्रवाह की मात्रा: उपचारित या अनुपचारित अपशिष्ट जल को नदी में छोड़े जाने के परिणामस्वरूप नदी के जल की गुणवत्ता नदी में जल के प्रवाह की मात्रा पर निर्भर करती है।
- धार्मिक और सामाजिक प्रथाएँ: धार्मिक आस्था और सामाजिक प्रथाएँ भी नदियों, विशेष रूप से गंगा के प्रदूषण को बढ़ाती हैं।
- शवों का अंतिम संस्कार नदी किनारे किया जाता है। आंशिक रूप से जले हुए शवों को भी नदी में बहा दिया जाता है।
- धार्मिक त्योहारों के दौरान नदी में सामूहिक स्नान पर्यावरण के लिये एक और हानिकारक प्रथा है।
जल प्रदूषण से निपटने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास:
- हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने जल शक्ति मंत्रालय को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये उठाए गए कदमों की प्रभावी निगरानी और देश भर में सभी प्रदूषित नदियों के कायाकल्प हेतु एक उपयुक्त ‘राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र’ तैयार करने का निर्देश दिया है।
- राष्ट्रीय जल नीति (2012): इसका उद्देश्य मौजूदा स्थिति का संज्ञान लेना, कानूनों एवं संस्थानों की प्रणाली के निर्माण हेतु रूपरेखा प्रस्तावित करना और एक एकीकृत राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के साथ कार्ययोजना का निर्माण करना है।
- यह नीति मानव अस्तित्व के साथ-साथ आर्थिक विकास संबंधी गतिविधियों के लिये जल के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
- यह इष्टतम, किफायती, सतत् और न्यायसंगत साधनों के माध्यम से जल संसाधनों के संरक्षण हेतु रूपरेखा का सुझाव देती है।
- राष्ट्रीय जल मिशन (2010): यह मिशन एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करता है, ताकि जल संरक्षण, जल के कम अपव्यय और समान वितरण के साथ बेहतर नीतियों का निर्माण हो सके।
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG): यह गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के उपाय के लिये राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर एक पाँच-स्तरीय संरचना की परिकल्पना करता है।
- इसका उद्देश्य पानी के निरंतर पर्याप्त प्रवाह को सुनिश्चित करना है, ताकि गंगा नदी को फिर से जीवंत किया जा सके।
- नमामि गंगे परियोजना: यह गंगा नदी को व्यापक रूप से स्वच्छ और संरक्षित करने के प्रयासों को एकीकृत करती है।
आगे की राह
- नदी के न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना: नदी की स्वस्थता (जलीय पारिस्थितिकी तंत्र) को बनाए रखने और बहाल करने के लिये उसके न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना काफी आवश्यक है।
- उपचारित सीवेज के निर्वहन के लिये भी नदी का न्यूनतम प्रवाह महत्त्वपूर्ण होता है।
- व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन नीति: देश को एक व्यापक कचरा प्रबंधन नीति की आवश्यकता है, जो विकेंद्रिकृत कचरा निपटान प्रथाओं की आवश्यकता पर ज़ोर देती हो, क्योंकि इससे निजी भागीदारों को भी हिस्सा लेने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
- बायोरेमेडिएशन: यह महत्त्वपूर्ण है कि बायोरेमेडिएशन (अर्थात दूषित मिट्टी और पानी को साफ करने के लिये रोगाणुओं का उपयोग) उन क्षेत्रों के लिये अनिवार्य कर दिया जाए जहाँ इसका प्रयोग संभव है।
- व्यवहार परिवर्तन: कचरा प्रबंधन क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन लाने और आवश्यक व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित करने के लिये नागरिकों की भागीदारी व जुड़ाव सुनिश्चित करना काफी महत्त्वपूर्ण है।