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निमोनिया एवं डायरिया प्रगति रिपोर्ट

  • 23 Nov 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

निमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट 

मेन्स के लिये:

निमोनिया तथा डायरिया उन्मूलन में निहित समस्याएँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ‘इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर’ (International Vaccine Access Centre) द्वारा जारी ‘निमोनिया एवं  डायरिया प्रगति रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत ने निमोनिया और डायरिया के कारण बच्चों की मृत्यु के मामलों की रोकथाम हेतु अपने टीकाकरण कवरेज में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

प्रमुख बिंदु: 

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में COVID-19 के कारण विश्व भर में स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव के बावजूद भारत इस रिपोर्ट में शामिल 5 में से 3 वैक्सीन के वैश्विक लक्ष्य को 90% तक पूरा करने में सफल रहा है।
  • गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में डिप्थीरिया, काली खांसी और टिटनेस (डीपीटी) वैक्सीन, खसरा-नियंत्रण-वैक्सीन की पहली खुराक, हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी, न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) और रोटावायरस वैक्सीन को शामिल किया जाता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में रोटावायरस वैक्सीन के कवरेज में 18% की वृद्धि और  न्यूमोकोकल निमोनिया के खिलाफ वैक्सीन कवरेज में 9% की वृद्धि देखने को मिली है।
  • गौरतलब है कि प्रत्येक वर्ष 12 नवंबर को ‘विश्व निमोनिया दिवस’ मनाया जाता है।

निमोनिया एवं डायरिया प्रगति रिपोर्ट:

  • निमोनिया तथा डायरिया प्रगति रिपोर्ट को ‘जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ’ (Johns Hopkins Bloomberg School of Public Health) की संस्था इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (International Vaccine Access Center- IVAC) द्वारा वार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है। 

सरकार के प्रयास:

  • 100 डे एजेंडा:  वर्ष 2019 में भारत ने रोटावायरस वैक्सीन से संबंधित राष्ट्रीय स्तर पर चलाए गये अभियान को पूरा किया। वैक्सीन की पहुँच में विस्तार के चलते प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले 26 मिलियन बच्चों को रोटावायरस डायरिया के खतरे से बचाने में सहायता प्राप्त होगी।
    • गौरतलब है कि अगस्त 2019 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने सरकार के 100 दिन के एजेंडे के तहत देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बच्चों के लिये रोटावायरस वैक्सीन उपलब्ध कराने की बात कही थी।
  • इस रिपोर्ट में 10 संकेतकों पर निमोनिया और डायरिया से होने वाली मौतों को रोकने के लिये सरकारों के प्रयास का मूल्यांकन किया गया, इन संकेतकों में स्तनपान, टीकाकरण, एंटीबायोटिक, ओआरएस (Oral Rehydration Solution-ORS), जिंक सप्लीमेंट आदि शामिल हैं।
  • इस रिपोर्ट में शामिल 15 देशों में सिर्फ 4 देश (भारत सहित) ही ऐसे थे, जो अनन्य स्तनपान (58%) के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे।   
  • हालाँकि इस रिपोर्ट में शामिल लगभग सभी देश निमोनिया और डायरिया का उपचार सुनिश्चित कराने की दिशा में पिछड़ते दिखाई दिये, जबकि भारत उपचार के सभी चार लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा। 

कारण: 

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के दौरान भारत में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली थी, परंतु COVID-19 महामारी के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर बढ़ रहे दबाव के कारण टीकाकरण और चिकित्सीय ऑक्सीजन की पहुँच प्रभावित हुई है।    

चुनौतियाँ: 

  • भारत को किसी भी अन्य देश की तुलना में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में निमोनिया और डायरिया से होने वाली मौतों का अधिक भार सहना पड़ता है।
  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में  निमोनिया और डायरिया के कारण प्रतिवर्ष पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 2,33,240 बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
  •  रिपोर्ट के अनुसार, भारत में डायरिया के उपचार की कवरेज सबसे कम रही, इसके साथ ही मात्र 51% बच्चों को ओआरएस और 20% बच्चों को ही जिंक सप्लीमेंट उपलब्ध हो पाता है। 
    • रिपोर्ट के अनुसार, जिंक और ओआरएस को एक साथ देने पर यह डायरिया से होने वाली मौतों को कम करने में काफी प्रभावी सिद्ध होता है। 
  • IVAC के एक वरिष्ठ सलाहकार के अनुसार, निमोनिया और डायरिया के कारण प्रतिवर्ष होने वाली मौतों को टीके और सरल सिद्ध उपचारों के माध्यम से रोका जा सकता है जो हमारे पास पहले से ही उपलब्ध हैं, ऐसे में COVID-19 महामारी के उपचार की खोज के बीच इन बीमारियों से निपटने के प्रयासों से ध्यान नहीं हटाया जाना चाहिये। 

COVID-19 वैक्सीन और भारत:  

  • हाल में बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनी फाईज़र के साथ अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने COVID-19 के लिये अपनी-अपनी वैक्सीन के 90% से अधिक प्रभावी होने की घोषणा की है, जबकि बहुत से अन्य वैक्सीन के परीक्षण अपने अंतिम चरण में हैं। 
  • इन परिणामों के बाद विश्व में इस महामारी से लड़ने की एक नई उम्मीद जगी है, हालाँकि भारत में सीरम इंस्टीट्यूट या भारत बायोटेक द्वारा विकसित वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण अभी व्यापक रूप से नहीं संचालित हुए हैं।
  • सरकार द्वारा फाईज़र वैक्सीन की कुछ खुराक प्राप्त करने के संदर्भ में उसके प्रतिनिधियों से भी बातचीत की जा रही है।  
  • हालाँकि इस वैक्सीन को लगभग -70°C तापमान पर रखा जाना अनिवार्य बताया गया है, ऐसे में इस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे का अभाव भारत के लिये एक चुनौती बन सकता है। 
  • इस वैक्सीन की सफलता से वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना वायरस के स्पाइक्ड प्रोटीन को लक्षित करने की रणनीति सही सिद्ध हुई है। गौरतलब है कि अधिकांश वैक्सीन निर्माताओं द्वारा इसी पद्धति का उपयोग किया जा रहा है ऐसे में भविष्य में वैक्सीन के विकास में कई अन्य सकारात्मक परिणामों की संभावनाएँ मज़बूत हुई हैं। 
  • साथ ही यह भी संभव है कि इस प्रकार की तकनीक भविष्य में अन्य बीमारियों के लिये वैक्सीन निर्माण में सहायक हो सकती है।

आगे की राह:  

  • भारत को ऐसी तकनीकों पर पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थानीय स्तर पर इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता विकसित करने का प्रयास करना चाहिये।    
  • साथ ही भारत को अपनी कोल्ड चेन अवसंरचना को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान देना होगा, जो वर्तमान में साधारण वैक्सीन के लिये ही उपयुक्त है। 

स्रोत: द हिंदू

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