स्थायी सिंधु आयोग | 25 Mar 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के मध्य स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission- PIC) की 116वीं बैठक नई दिल्ली में संपन्न हुई।
- पहले दिन की बैठक पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस (23 मार्च, 1940 के लाहौर संकल्प की स्मृति में ) के साथ संपन्न की गई।
प्रमुख बिंदु:
हाल में संपन्न बैठक के बारे में:
- यह बैठक ढाई साल से अधिक अंतराल के बाद आयोजित की गई है, इस अंतराल के निम्नलिखित कारण हैं:
- पुलवामा हमला (14 फरवरी, 2019), बालाकोट हवाई हमला (26 फरवरी, 2019)।
- अनुच्छेद 370 के तहत विशेष प्रावधानों का निरसन जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया था।
- सिंधु जल संधि 1960 के प्रावधानों के अनुसार, भारत की पाकल दुल और लोअर कलनई परियोजनाओं के तकनीकी पक्ष अर्थात् डिज़ाइन पर चर्चा की गई।
- भारत चेनाब की सहायक नदी मरुसुदर पर 1,000 मेगावाट की पाकल डल जल-विद्युत परियोजना (Pakal Dul Hydro Electric Project) का निर्माण कर रहा है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में स्थित है।
- दूसरी परियोजना लोअर कलनई (Lower Kalnai Project) है जिसे चिनाब नदी पर विकसित किया जा रहा है।
- दोनों देशों के मध्य संपन्न इस बैठक को पिछले महीने "नियंत्रण रेखा और अन्य सभी क्षेत्रों से संबंधित सभी समझौतों और युद्धविराम के सख्त पालन" पर सहमति के बाद एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
स्थायी सिंधु आयोग के बारे में:
- यह भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों का एक द्विपक्षीय आयोग है, जिसे सिंधु जल संधि (वर्ष 1960 ) के कार्यान्वयन और लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु बनाया गया था।
- सिंधु जल संधि के अनुसार, आयोग वर्ष में कम-से-कम एक बार नियमित तौर पर भारत और पाकिस्तान में बैठक करेगा।
- आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं:
- नदियों के जल के विकास से संबंधित दोनों देशों की सरकारों की किसी भी समस्या का अध्ययन करना और रिपोर्ट देना।
- जल बँटवारे को लेकर उत्पन्न विवादों का समाधान करना।
- प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार नदियों का निरीक्षण करने हेतु एक सामान्य दौरा करना।
- संधि के प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक कदम उठाना।
- PIC की 115वीं बैठक का आयोजन अगस्त 2018 में लाहौर में किया गया था।
सिंधु जल संधि, 1960:
- 19 सितंबर, 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस संधि में सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल का उपयोग दोनों देशों में किस प्रकार किया जाना है, इस बात का निर्धारण किया है।
- संधि के अनुसार, पूर्वी नदियों (रावी, व्यास, सतलज) का जल भारत के लिये तथा पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का जल पाकिस्तान के लिये निर्धारित किया गया।
- संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘रन ऑफ द रिवर’ (Run of the River- RoR) प्रोजेक्ट के तहत पनबिजली उत्पादन का अधिकार भी दिया गया है। इनके डिज़ाइन और संचालन हेतु भारत को विशिष्ट मानदंडों का पालन करना आवश्यक है।
- भारत ने लद्दाख में कई जल-विद्युत परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है जो इस प्रकार हैं:
- दुरबुक श्योक (19 मेगावाट)
- शंकू (18.5 मेगावाट),
- निमू चिलिंग (24 मेगावाट)
- रोंगडो (12 मेगावाट)
- लेह में रतन नाग (10.5 मेगावाट)
- कारगिल में मैंगडुम सांगरा (19 मेगावाट), कारगिल हुंडरमैन (25 मेगावाट) और तमाशा (12 मेगावाट)।
- यह पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर भारतीय पनबिजली परियोजनाओं के डिज़ाइन को लेकर चिंता व्यक्त करने का अधिकार भी देता है।
- यह संधि विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने हेतु एक मध्यस्थता तंत्र भी प्रदान करती है।
- बांँधों को लेकर भारत और पाकिस्तान के मध्य मतभेद रहे हैं। उदाहरण के लिये वर्ष 2010 में पाकिस्तान द्वारा सिंधु की एक छोटी सहायक नदी किशनगंगा (पाकिस्तान में नीलम के रूप में जाना जाता है) पर स्थापित भारत की 330 मेगावाट जल-विद्युत परियोजना को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही (International Arbitration Proceedings) शुरू की गई थी।
- हालांँकि सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है, लेकिन चीन को इस संधि से बाहर रखा गया है। अगर चीन नदी के प्रवाह को रोकने या बदलने का फैसला करता है, तो यह भारत और पाकिस्तान दोनों को प्रभावित करेगा।
- जलवायु परिवर्तन तिब्बत के पठार पर बर्फ पिघलने का कारण बन रहा है, अत: वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भविष्य में नदी को प्रभावित करेगा।
लाहौर संकल्प:
- मार्च 1940 में लाहौर में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के एक ऐतिहासिक सत्र का आयोजन किया गया।
- मोहम्मद अली जिन्ना ने बताया था कि हिंदू और मुसलमान किस प्रकार एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में शांति के साथ नहीं रह सकते हैं।
- 23 मार्च को उस सत्र में एक युगांतरकारी संकल्प लाया गया, जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों की मांग की गई थी और कहा गया कि उत्तर-पश्चिमी एवं पूर्वी क्षेत्रों में स्वतंत्र राज्यों का गठन किया जाना चाहिये।
- इन स्वतंत्र राज्यों को गोद लेने के स्थान के संबंध में संकल्प को मूल रूप से लाहौर संकल्प के रूप में संदर्भित किया गया था। हालाँकि हिंदू प्रेस ने इसे पाकिस्तान प्रस्ताव के रूप में परिभाषित किया।
- लाहौर संकल्प पूरे उप महाद्वीप की प्रशासनिक एकता के अंत की शुरुआत थी, जिसे मुस्लिम शासकों ने बनाया था और अंग्रेज़ों द्वारा जारी रखा गया था; इन क्षेत्रों को गोद लेने के आठ साल के भीतर उपमहाद्वीप का विभाजन हो गया और भारतीय नक्शे पर पाकिस्तान एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में दिखाई दिया।