आंतरिक सुरक्षा
पुलिस सुधारों पर संसदीय पैनल की रिपोर्ट
- 12 Feb 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय स्थायी समिति, पुलिस सुधार समिति। मेन्स के लिये:पुलिस सुधार, पुलिस बलों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति द्वारा पुलिस-प्रशिक्षण, आधुनिकीकरण और सुधारों पर एक रिपोर्ट पेश की गई है। रिपोर्ट में आवश्यक सुधार और पुलिस बलों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
प्रमुख बिंदु
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व: पुलिस बल में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रिपोर्ट में केंद्र को सुझाव दिया गया है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महिलाओं का 33% प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु एक रोडमैप तैयार किया जाए।
- पुलिस में महिलाओं की नियुक्ति पुरुषों के रिक्त पदों को परिवर्तित करने के स्थान पर अतिरिक्त पद सृजित करके की जा सकती है।
- पुलिस बल में उच्च महिला प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से पुरुष-महिला पुलिस संख्या अनुपात में सुधार करने में भी मदद मिलेगी।
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को महिलाओं को महत्त्वपूर्ण चुनौती वाले कार्य सौंपने चाहिये। साथ ही रिपोर्ट में प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम एक महिला पुलिस थाने की सिफारिश की गई है।
- पुलिसकर्मियों में तनाव प्रबंधन: रिपोर्ट में योग, व्यायाम, परामर्श और उपचार के माध्यम से पुलिसकर्मियों को तनाव मुक्त करने में मदद हेतु ऑफलाइन और ऑनलाइन मॉड्यूल की सिफारिश की है।
- कानून प्रवर्तन और इन्वेस्टीगेशन विंग का पृथक्करण: इसने जवाबदेही सुनिश्चित करने और अपराधों की जांँच में पुलिस की स्वायत्तता बढ़ाने हेतु जांँच को कानून और व्यवस्था से अलग करने का आह्वान किया।
- इससे विशेषज्ञता और व्यावसायिकता को बढ़ावा मिलेगा, जांँच में तेज़ी आएगी और दोष सिद्ध करना आसान होगा।
- वर्चुअल ट्रायल: विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले समूहों के संदर्भ में पैनल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वर्चुअल ट्रायल का समर्थन किया।
- इससे विचाराधीन कैदियों को न्यायालय तक ले जाने के लिये पुलिस बल की कम आवश्यकता होगी और संसाधनों की भी बचत होगी।
- पुलिस की खराब स्थिति को संबोधित करते हुए समिति ने पुलिसकर्मियों के लिये खराब आवास पर निराशा व्यक्त की और आवास के लिये धन के आवंटन की सिफारिश की है।
- 21वीं सदी में भी भारत में विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और पंजाब जैसे संवेदनशील राज्यों में कई पुलिस स्टेशनों में टेलीफोन सुविधा या उचित वायरलेस कनेक्टिविटी नहीं है।
- लोगों के अनुकूल पुलिस व्यवस्था: पुलिस व्यवस्था पारदर्शी, स्वतंत्र, जवाबदेह और लोगों के अनुकूल होनी चाहिये।
- कानून का ढिलाई से कार्यान्वयन: समिति द्वारा चिंता व्यक्त की गई है कि 15 वर्षों के बाद भी केवल 17 राज्यों ने या तो मॉडल पुलिस अधिनियम, 2006 को ही अपनाया है, या मौजूदा अधिनियम में संशोधन किया है।
- पुलिस सुधारों की प्रगति धीमी रही है।
- यह सिफारिश की गई है कि जो राज्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में अग्रणी हैं या पिछड़ रहे हैं, गृह मंत्रालय उन राज्यों के बारे में जानकारी सार्वजनिक डोमेन में डाल सकता है
- सामुदायिक पुलिस: सामुदायिक पुलिस को बढ़ावा दिया जाना चाहिये क्योंकि इसमें पुलिस और समुदायों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास शामिल होता है जहाँ अपराध व अपराध से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिये दोनों मिलकर कार्य कर सकते हैं।
- सीमा पुलिस प्रशिक्षण: राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को घुसपैठ, ड्रोन के इस्तेमाल और मादक पदार्थों की तस्करी पर खुफिया जानकारी जुटाने के लिये सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के साथ प्रशिक्षण और संपर्क करने की सलाह देनी चाहिये।
- एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी का पूल: ड्रोन हेतु पैनल ने गृह मंत्रालय को "जल्द-से-जल्द" एंटी-ड्रोन तकनीक का एक केंद्रीय पूल बनाने और सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों तक इसकी पहुँच प्रदान करने का निर्देश दिया है।
- वित्त के उपयोग में कमी : समिति ने पाया कि पुलिस आधुनिकीकरण के लिये राज्यों द्वारा वित्त के उपयोग में कमी की पहचान की जानी चाहिये।
- समिति ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय को एक समिति के गठन पर विचार करना चाहिये जो खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों का दौरा कर योजनाबद्ध तरीके से वित्त का उपयोग करने में उनकी सहायता कर सके।
पुलिस सुधार का अर्थ:
- पुलिस सुधारों का उद्देश्य पुलिस संगठनों के मूल्यों, संस्कृति, नीतियों और प्रथाओं को बदलना है।
- यह पुलिस को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और कानून के शासन के सम्मान के साथ कर्तव्यों का पालन करने की परिकल्पना करता है।
- इसका उद्देश्य पुलिस सुरक्षा क्षेत्र के अन्य हिस्सों, जैसे कि अदालतों और संबंधित विभागों, कार्यकारी, संसदीय या स्वतंत्र अधिकारियों के साथ प्रबंधन या निरीक्षण ज़िम्मेदारियों में सुधार करना भी है।
- पुलिस व्यवस्था भारतीय संविधान की अनुसूची 7 की राज्य सूची के अंतर्गत आती है।
पुलिस सुधार पर समितियाँ/आयोग
पुलिस बलों से संबंधित मुद्दे:
- औपनिवेशिक विरासत: देश में पुलिस प्रशासन की व्यवस्था और भविष्य में किसी भी विद्रोह की स्थिति को रोकने के लिये वर्ष 1857 के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेज़ों द्वारा वर्ष 1861 का पुलिस अधिनियम लागू किया गया था।
- राजनीतिक अधिकारियों के प्रति जवाबदेही बनाम परिचालन स्वतंत्रता: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) ने उल्लेख किया है कि राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा अतीत में राजनीतिक नियंत्रण का दुरुपयोग पुलिसकर्मियों को अनुचित रूप से प्रभावित करने और व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों की सेवा करने के लिये किया गया है।
- मनोवैज्ञानिक दबाव: भारतीय पुलिस बल में प्रायः निचली रैंक के पुलिसकर्मियों को अक्सर उनके वरिष्ठों द्वारा मौखिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है या वे अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं।
- जनधारणा: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के मुताबिक, वर्तमान में पुलिस-जनसंपर्क के प्रति एक असंतोषजनक स्थिति है, क्योंकि लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण और अनुत्तरदायी मानते हैं।
- अतिभारित बल: वर्ष 2016 में स्वीकृत पुलिस बल अनुपात प्रति लाख व्यक्तियों पर 181 पुलिसकर्मी था, जबकि वास्तविक संख्या 137 थी।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रति लाख व्यक्तियों पर 222 पुलिस के अनुशंसित मानक की तुलना में यह बहुत कम है।
- कांस्टेबुलरी से संबंधित मुद्दे: राज्य पुलिस बलों में कांस्टेबुलरी का गठन 86% है और इसकी व्यापक ज़िम्मेदारियाँ हैं।
- अवसंरचनात्मक मुद्दे: आधुनिक पुलिस व्यवस्था के लिये मज़बूत संचार सहायता, अत्याधुनिक या आधुनिक हथियारों और उच्च स्तर की गतिशीलता आवश्यक है।
- हालाँकि वर्ष 2015-16 की CAG ऑडिट रिपोर्ट में राज्य पुलिस बलों में हथियारों की कमी पाई गई है।
- साथ ही ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ ने भी राज्य बलों के पास आवश्यक वाहनों के स्टॉक में 30.5% की कमी का उल्लेख किया है।
- सुझाव:
- पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) की योजना 1969-70 में शुरू की गई थी और पिछले कुछ वर्षों में इसमें कई संशोधन हुए हैं।
- हालाँकि सरकार द्वारा स्वीकृत वित्त का पूरी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है।
- MPF योजना की परिकल्पना में शामिल हैं:
- आधुनिक हथियारों की खरीद
- पुलिस बलों की गतिशीलता
- लॉजिस्टिक समर्थन, पुलिस वायरलेस का उन्नयन आदि
- एक राष्ट्रीय उपग्रह नेटवर्क
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक प्रकाश सिंह मामले (2006) में सात निर्देश दिये जहाँ पुलिस सुधारों के मामले में अभी भी काफी काम करने की ज़रूरत है।
- हालाँकि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इन निर्देशों को कई राज्यों में अक्षरश: लागू नहीं किया गया।
- पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) की योजना 1969-70 में शुरू की गई थी और पिछले कुछ वर्षों में इसमें कई संशोधन हुए हैं।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: पुलिस सुधारों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मेनन और मलीमथ समितियों (Menon and Malimath Committees) की सिफारिशों को लागू किया जा सकता है। कुछ प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:
- दोषियों के दबाव के कारण मुकर जाने वाले पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये एक कोष का निर्माण करना।
- देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधियों से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर अलग प्राधिकरण की स्थापना।
- संपूर्ण आपराधिक प्रक्रिया प्रणाली में पूर्ण सुधार।