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डेली न्यूज़


शासन व्यवस्था

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था

  • 19 Aug 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सामुदायिक पुलिसिंग

मेन्स के लिये:

'उम्मीद' कार्यक्रम के लाभ एवं चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में दिल्ली पुलिस आयुक्त ने एक सामुदायिक पुलिसिंग कार्यक्रम 'उम्मीद' (Ummeed) का उद्घाटन किया।

प्रमुख बिंदु

उम्मीद (Ummeed) के बारे में:

  • सामुदायिक पुलिसिंग का मूल सिद्धांत यह है कि 'एक पुलिसकर्मी वर्दी वाला नागरिक होता है और एक नागरिक बिना वर्दी वाला पुलिसकर्मी होता है'।
    • सामुदायिक पुलिसिंग का सार पुलिसकर्मियों और नागरिकों के बीच की दूरी को इस हद तक कम करना है कि पुलिसकर्मी उस समुदाय का एक एकीकृत हिस्सा बन जाए जिसकी वे सेवा करते हैं।
  • इसे कानून को लागू करने वाले दर्शन के रूप में परिभाषित किया गया है जो पुलिस को उस क्षेत्र में रहने और कार्य करने वाले नागरिकों के साथ एक मज़बूत संबंध स्थापित  करने के लिये दोनों को  एक ही क्षेत्र में लगातार कार्य करने की अनुमति देता है।
  • यह पुलिस और जनता के बीच विश्वास की कमी को कम करने में मदद करता है क्योंकि इसके लिये पुलिस को अपराध की रोकथाम और अपराध का पता लगाने, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने तथा स्थानीय संघर्षों को हल करने हेतु समुदाय के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता होती है, जिसका उद्देश्य जीवन और सुरक्षा की भावना की बेहतर गुणवत्ता प्रदान करना है।

लाभ:

  • किसी सरकारी वित्त सहायता की आवश्यता नहीं। 
  • अपराध और अव्यवस्था के  विरुद्ध प्रतिरक्षा में वृद्धि।
  • पारंपरिक पुलिसिंग में मददगार।
  • लोगों के बीच विश्वास कायम करना।  
  • सामाजिक संपर्क को प्रोत्साहित करने में मददगार।
  • पुलिस और जनता दोनों के मध्य प्रोत्साहन एवं आलोचना को  साझा करना। 
  • अपने कार्य क्षेत्र के प्रति पुलिस अधिकारियों में सुरक्षा का भाव होना।
  • विश्वसनीय और आवश्यक सूचनाओं की उपलब्धता। 
  • लोगों के मध्य ज़िम्मेदारी की भावना पैदा करना।
  • पुलिस एवं जनता दोनों की एक-दूसरे के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना। 
  • समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना। 

चुनौतियाँ:

  • पुलिस बल की खराब सार्वजनिक छवि।
  • पुलिस बल की खराब लोक सेवा पद्धति।
  • इससे भीड़ न्याय (Mob Justice) को बढ़ावा मिल सकता है।
  • निवासियों में यह विश्वास कि अपराध कुछ लोगों के लिये आजीविका का स्रोत है।

अन्य उदाहरण:

  • जनमैत्री सुरक्षा परियोजना: केरल
  • संयुक्त गश्त समितियाँ: राजस्थान
  • मीरा पैबी (Meira Paibi): मणिपुर
  • सामुदायिक पुलिस परियोजना: पश्चिम बंगाल
  • मैत्री (Maithri): आंध्र प्रदेश
  • मोहल्ला समितियाँ: महाराष्ट्र
  • पुलिस मित्र: तमिलनाडु

आगे की राह 

  • सामुदायिक पुलिसिंग के अंतर्गत किसी भी स्वयंसेवक को पुलिस की मदद करने की अनुमति दी जानी चाहिये, लेकिन पुलिस की भूमिका निभाने की नहीं। स्वयंसेवकों की तैनाती से पहले उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि की जाँच की जानी चाहिये।
  • सामुदायिक पुलिसिंग एक दर्शन है, कार्यक्रम नहीं। यदि सामुदायिक पुलिसिंग के दर्शन को इसमें शामिल सभी लोग नहीं समझते हैं तो कार्यक्रम सफल नहीं होंगे।
  • सामुदायिक पुलिसिंग और समुदाय आधारित कार्यक्रमों के सामने सबसे बड़ी बाधा परिवर्तन का विचार है। अधिकारियों को पुलिसिंग की अवधारणा को बदलना होगा तथा नागरिकों को इस बदलाव को स्वीकार करने के लिये तैयार रहना होगा।

स्रोत: द हिंदू

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