उत्तर-पूर्वी मानसून | 19 Oct 2019
प्रीलिम्स के लिये:
उत्तर-पूर्वी मानसून, दक्षिण-पश्चिम मानसून, अल नीनो, ITCZ
मेन्स के लिये:
उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित करने वाले कारक; भारत के मानसून पर अल नीनो का प्रभाव; भारत के मानसून मॉडल, उनके विश्लेषण मानक तथा उनमें विद्यमान सीमाएँ; ITCZ और व्यापारिक पवनों का भारतीय जलवायु पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
भारत में इस बार मानसून वर्ष 1961 के पश्चात् सबसे देरी से लौटा है लेकिन इसका उत्तर-पूर्वी (North-East) मानसूनी वर्षा की मात्रा और अवधि पर कोई प्रभाव नहीं देखा गया है।
प्रमुख बिंदु:
- उत्तर-पूर्वी मानसून की वर्षा भारत की वार्षिक वर्षा में अक्तूबर से दिसंबर के बीच लगभग 20% योगदान करती है। दक्षिण- पश्चिम मानसून की अपेक्षा उत्तर-पूर्वी मानसून कम वर्षा करता है लेकिन यह वर्षा दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून की सक्रियता अक्तूबर, नवंबर और दिसंबर के महीनों में होती है, हालाँकि इस मानसून की शुरुआत की सामान्य तिथि 20 अक्तूबर के आसपास होती है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून देश के 36 मौसम प्रभागों में से केवल 5 प्रभागों- तमिलनाडु (जिसमें पुद्दुचेरी भी शामिल है), केरल, तटीय आंध्र प्रदेश, रायलसीमा और दक्षिण कर्नाटक में ही वर्षा करता है।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित करने वाले कई मानकों जैसे- मध्य प्रशांत में तापमान, उत्तरी-पश्चिमी यूरोप में भूमि की सतह के तापमान के साथ भारत में मानसूनी वर्षा की मात्रा और वितरण का काफी समय से अवलोकन किया गया है लेकिन इसके विपरीत उत्तर-पूर्वी मानसून से संबंधित कोई मानक नहीं बनाए गए हैं।
- इस वर्ष उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण दक्षिण भारत में वर्षा सामान्य से 15% अधिक हो रही है। इसलिये केंद्रीय जल आयोग आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में 30 से अधिक जलाशयों की निगरानी कर रहा है। इस प्रकार वर्षा की बढ़ती मात्रा दक्षिण भारत में बाढ़ का एक कारण बन जाएगी।
- इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन (Inter Tropical Convergence Zone- ITCZ) भूमध्य रेखा के पास एक गतिशील क्षेत्र है जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध से आने वाली व्यापारिक हवाएँ मिलती हैं। गर्मियों में ITCZ भूमध्य रेखा से उत्तरी गोलार्द्ध की तरफ सरक (Shift) जाता है जिसका भारत के दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- देश के कई अन्य भागों जैसे- गंगा के मैदान और उत्तरी राज्यों में भी नवंबर-दिसंबर में कुछ वर्षा होती है लेकिन ऐसा उत्तर-पूर्वी मानसून की बजाय पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के कारण होता है। पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर से चलने वाली नम हवाएँ हैं जो ईरान एवं अफगानिस्तान से होते हुए भारत में आकर वर्षा करती हैं।
उत्तर-पूर्वी मानसून का नामकरण:
- उत्तर-पूर्वी मानसून का देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, हालाँकि इस मानसून प्रणाली का एक हिस्सा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के ऊपर उत्पन्न होता है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून का नामकरण इसके उत्तर-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम की ओर जाने के कारण किया गया है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून की दिशा के विपरीत दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रवेश भारत में अरब सागर के मार्ग से होता है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की एक शाखा बंगाल की खाड़ी के माध्यम से उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत में वर्षा करती है।
भारत की वर्षा पर अल नीनो का प्रभाव:
- अल नीनो के प्रभाव वाले वर्षों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा की मात्रा कम हो जाती है, हालांँकि शोधकर्त्ताओं ने वर्षों से यह अवलोकन किया है कि इसके विपरीत उत्तर-पूर्वी मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और सर्दियों में विशेष रूप से दक्षिण भारत में अधिक वर्षा हुई।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने विश्व की अन्य मौसम संबंधी एजेंसियों के साथ मिलकर यह संभावना व्यक्त की थी कि अल नीनो के प्रभावों की वज़ह से इस वर्ष वर्षा कम होगी।
- अलनीनो के प्रभावों के बावज़ूद भी हिंद महासागर में स्थितियाँ अनुकूल हो जाने के कारण इस वर्ष मानसून की अत्यधिक सक्रियता देखी गई। इससे पता चलता है कि मौसम विभाग हिंद महासागर के व्यवहार और मानसून पर इसके प्रभाव को अब तक ठीक से नहीं विश्लेषित कर पाया है।
आगे की राह:
- भारत को इन पूर्वानुमान मॉडलों के प्रदर्शन को सुधारने के लिये अनुसंधान को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के आसपास के तापमान में उल्लेखनीय रूप से परिवर्तन होता है। इस प्रकार की घटनाओं के विश्लेषण के पश्चात् उत्तर-पूर्वी मानसून की प्रवृत्ति को समझने में सहायता मिलेगी, अतः इस प्रकार के अनुसंधान कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।