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भारतीय इतिहास

मोपला विद्रोह

  • 20 Aug 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

मोपला विद्रोह, संथाल विद्रोह, नील विद्रोह, पबना विद्रोह, दक्कन विद्रोह, पगड़ी संभाल आंदोलन, अवध में किसान आंदोलन, चंपारण आंदोलन, बारदोली सत्याग्रह 

मेन्स के लिये

मोपला विद्रोह का महत्त्व और भूमिका

चर्चा में क्यों

हाल ही में एक राजनीतिक नेता ने दावा किया कि मोपला विद्रोह, जिसे 1921 के मप्पिला दंगों के रूप में भी जाना जाता है, भारत में तालिबान मानसिकता की पहली अभिव्यक्तियों में से एक था।

प्रमुख बिंदु

मोपला/मप्पिलास:

  • मप्पिला नाम मलयाली भाषी मुसलमानों को दिया गया है जो उत्तरी केरल के मालाबार तट पर निवास करते हैं।
  • वर्ष 1921 तक मोपला ने मालाबार में सबसे बड़े और सबसे तेज़ी से बढ़ते समुदाय का गठन किया। मालाबार की एक मिलियन की कुल आबादी में मोपला 32% के साथ दक्षिण मालाबार क्षेत्र में केंद्रित थे।

पृष्ठभूमि:

  • सोलहवीं शताब्दी में जब पुर्तगाली व्यापारी मालाबार तट पर पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि मप्पिला एक व्यापारिक समुदाय है जो शहरी केंद्रों में केंद्रित है और स्थानीय हिंदू आबादी से काफी अलग है।
  • हालाँकि पुर्तगाली वाणिज्यिक शक्ति में वृद्धि के साथ मप्पिलास ने खुद को एक प्रतियोगी पाया और नए आर्थिक अवसरों की तलाश में तेज़ी से देश के आंतरिक भागों की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
  • मप्पिलास के स्थानांतरण से स्थानीय हिंदू आबादी और पुर्तगालियों के बीच धार्मिक पहचान के लिये टकराव उत्पन्न हुआ।

विद्रोह: 

  • मुस्लिम धर्मगुरुओं के उग्र भाषणों और ब्रिटिश विरोधी भावनाओं से प्रेरित होकर मप्पिलास ने एक हिंसक विद्रोह शुरू किया। साथ ही कई हिंसक घटनाओं की सूचना दी गई तथा ब्रिटिश एवं हिंदू ज़मींदारों दोनों के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत की गई थी।
  • कुछ लोग इसे धार्मिक कट्टरता का मामला बताते हैं, वहीं कुछ अन्य लोग इसे ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष के उदाहरण के रूप में देखते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो मालाबार विद्रोह को ज़मींदारों की अनुचित प्रथाओं के खिलाफ एक किसान विद्रोह मानते हैं। .
  • जबकि इतिहासकार इस मामले पर बहस जारी रखते हैं, इस प्रकरण पर व्यापक सहमति से पता चलता है कि यह राजनीतिक शक्ति के खिलाफ संघर्ष के रूप में शुरू हुआ था जिसने बाद में सांप्रदायिक रंग ले लिया।
    • अधिकांश ज़मींदार नंबूदिरी ब्राह्मण थे, जबकि अधिकांश काश्तकार मापिल्लाह मुसलमान थे।
    • दंगों में 10,000 से अधिक हिंदुओं की सामूहिक हत्याएँ, महिलाओं के साथ बलात्कार, ज़बरन धर्म परिवर्तन, लगभग 300 मंदिरों का विध्वंस या उन्हें क्षति पहुँचाई गई, करोड़ों रुपए की संपत्ति की लूट और आगजनी तथा हिंदुओं के घरों को जला दिया गया।

    कारण:

    • असहयोग और खिलाफत आंदोलन:
      • विद्रोह का ट्रिगर का कारण 1920 में कॉन्ग्रेस द्वारा खिलाफत आंदोलन के साथ शुरू किये गए असहयोग आंदोलन था।
      • इन आंदोलनों से प्रेरित ब्रिटिश विरोधी भावना ने मुस्लिम मप्पिलास को प्रभावित किया।
    • नए काश्तकार कानून:
      • 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद मालाबार मद्रास प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में ब्रिटिश अधिकार में आ गया था।
      • अंग्रेज़ोंन ने नए काश्तकारी कानून पेश किये थे, जो ज़मींदारों के नाम से पहचाने जाने वाले ज़मींदारों के पक्ष में थे और किसानों के लिये पहले की तुलना में कहीं अधिक शोषणकारी व्यवस्था थी।
      • नए कानूनों ने किसानों को भूमि के सभी गारंटीकृत अधिकारों से वंचित कर उन्हें भूमिहीन बना दिया।
    • समर्थन
      • प्रारंभिक चरणों में आंदोलन को महात्मा गांधी और अन्य भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं का समर्थन प्राप्त था लेकिन जैसे ही यह हिंसक हो गया उन्होंने खुद को इससे दूर कर लिया।

    पतन

    • वर्ष 1921 के अंत तक अंग्रेज़ों ने विद्रोह को कुचल दिया था, जिन्होंने दंगा रोकने के लिये एक विशेष बटालियन, मालाबार स्पेशल फोर्स का गठन किया था।

    वैगन ट्रैज़डी (Wagon Tragedy):

    • नवंबर 1921 में 67 मोपला कैदी मारे गए थे, जब उन्हें तिरूर से पोदनूर की केंद्रीय जेल में एक बंद माल डिब्बे में ले जाया जा रहा था जिसमें दम घुटने से इनकी मौत हो गई। इस घटना को वैगन ट्रैज़डी कहा जाता है।

    स्वतंत्रता पूर्व प्रमुख किसान आंदोलन

    (Major Pre-Independence Agrarian Revolts)

    • संथाल विद्रोह (1855-56)- संथाल विद्रोह पर संथालों को वैश्विक गौरव (Global Pride) प्राप्त है जिसमें 1,000 से अधिक संथाल और सिद्धो व कान्हो मुर्मू (Sidho and Kanho Murmu) के नेताओं ने वर्चस्व को लेकर विशाल ईस्ट इंडिया कंपनी (अंग्रेज़ों) के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
    • नील विद्रोह (1859-60)- यह ब्रिटिश बागान मालिकों के खिलाफ किसानों द्वारा किया गया विद्रोह था, क्योंकि उन्हें उन शर्तों के तहत नील उगाने हेतु मजबूर किया गया था जो कि किसानों के लिये प्रतिकूल थे।
    • पबना विद्रोह (1872-1875) - यह ज़मींदारों के उत्पीड़न के खिलाफ एक प्रतिरोध आंदोलन था। इसकी उत्पत्ति युसुफशाही परगना में हुई थी, जो अब बृहत्तर पबना, बांग्लादेश में सिराजगंज ज़िला है।
    • दक्कन विद्रोह (1875) - दक्कन के किसान विद्रोह मुख्य रूप से मारवाड़ी और गुजराती साहूकारों की ज्यादतियों के खिलाफ थे। रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत रैयतों को भारी कराधान का सामना करना पड़ा। वर्ष 1867 में भू-राजस्व में भी 50% की वृद्धि की गई।
    • पगड़ी संभाल आंदोलन (1907)- यह एक सफल कृषि आंदोलन था जिसने ब्रिटिश सरकार को कृषि से संबंधित तीन कानूनों को निरस्त करने के लिये मज़बूर किया। इस आंदोलन के पीछे भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह थे।
    • अवध में किसान आंदोलन (1918-1922)- इसका नेतृत्व एक संन्यासी बाबा रामचंद्र ने किया था, जो पहले एक गिरमिटिया मज़दूर के रूप में फिजी गए थे। उन्होंने अवध में तालुकदारों और ज़मींदारों के खिलाफ एक किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने लगान कम करने, बेगार को समाप्त करने और ज़मींदारों के बहिष्कार की मांग की।
    • चंपारण आंदोलन (1917-18)- बिहार के चंपारण ज़िले के नील के बागानों में यूरोपीय बागान मालिकों द्वारा किसानों का अत्यधिक उत्पीड़न किया गया और उन्हें अपनी ज़मीन के कम-से-कम 3/20वें हिस्से पर नील उगाने तथा बागान मालिकों द्वारा निर्धारित कीमतों पर बेचने के लिये मज़बूर किया गया था। वर्ष 1917 में महात्मा गांधी चंपारण पहुँचे और चंपारण छोड़ने हेतु ज़िला अधिकारी द्वारा दिये गए आदेशों की अवहेलना की।
    • खेड़ा में किसान आंदोलन (1918) - यह मुख्य रूप से सरकार के खिलाफ निर्देशित था। 1918 में गुजरात के खेड़ा ज़िले में फसलें विफल हो गईं, लेकिन सरकार ने भू-राजस्व में छूट देने से इनकार कर दिया और राजस्व के पूर्ण संग्रह पर ज़ोर दिया। गांधीजी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ किसानों का समर्थन किया और उन्हें सलाह दी कि जब तक उनकी छूट की मांग पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे राजस्व का भुगतान रोक दें।
    • मोपला विद्रोह (1921) - मोपला मुस्लिम काश्तकार थे जो मालाबार क्षेत्र में निवास करते थे जहाँ अधिकांश ज़मींदार हिंदू थे। उनकी शिकायतें कार्यकाल की सुरक्षा की कमी, उच्च किराया, नवीनीकरण शुल्क और अन्य दमनकारी वसूली पर केंद्रित थीं। बाद में मोपला आंदोलन का विलय खिलाफत आंदोलन में हो गया।
    • बारदोली सत्याग्रह (1928) - यह स्वतंत्रता संग्राम में बारदोली के किसानों के लिये अन्यायपूर्ण करों के खिलाफ सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में एक आंदोलन था।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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