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डेली न्यूज़


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और खाड़ी देश

  • 04 Nov 2020
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये

खाड़ी सहयोग परिषद, प्रवासी भारतीय बीमा योजना, भारतीय सामुदायिक कल्याण कोष

मेन्स के लिये

भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंध, भारत के लिये खाड़ी देशों का महत्त्व, खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों की कार्य स्थिति

चर्चा में क्यों?

भारत ने खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council-GCC) के सदस्य देशों से उन भारतीयों को वापसी की सुविधा प्रदान करने का आग्रह किया है, जो महामारी से संबंधित प्रतिबंधों में छूट मिलने के पश्चात् अब पुनः कार्य शुरू करना चाहते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों के साथ आयोजित एक रणनीतिक वार्ता को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उल्लेख किया कि बड़ी संख्या में भारतीय कामगार और पेशेवर अपना कार्य पुनः शुरू करने के लिये खाड़ी देशों में लौटने के इच्छुक हैं।
  • इस दौरान भारत ने खाड़ी देशों को खाद्य पदार्थों, दवाओं और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखने का आश्वासन भी दिया।
    • कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत के बाद से बीते कुछ महीनों में कई भारतीय नागरिक खाड़ी देशों से वापस भारत लौट आए हैं।

खाड़ी देश और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)

  • सामान्यतः जिन देशों की सीमा फारस की खाड़ी के साथ मिलती है, उन्हें खाड़ी देश के रूप में संबोधित किया जाता है। जब खाड़ी देशों की बात की जाती है तो इसमें मुख्यतः कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन को शामिल किया जाता है।
  • ज्ञात हो कि ये 6 देश खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के संस्थापक सदस्य हैं।
  • यद्यपि ईरान व इराक भी फारस की खाड़ी के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं, किंतु वे इस परिषद के सदस्य देश नहीं बन पाए हैं।

Gulf-Cooperation-Council

खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासी

  • आँकड़ों की मानें तो भारत, अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की उत्पत्ति का सबसे बड़ा स्रोत है, साथ ही भारत द्वारा प्रेषण (Remittances) के माध्यम से भी सबसे अधिक धनराशि प्राप्त की जाती है।
  • विदेश मंत्रालय के मुताबिक, लगभग आठ मिलियन से अधिक भारतीय पश्चिम एशिया में रहते और कार्य करते हैं, जिनमें से अधिकांश भारतीय, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों जैसे-, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई में रहते हैं, और 40 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि प्रेषण के माध्यम से भारत को भेजते हैं।
  • खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में भारतीय कामगारों की महत्ता का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन देशों में प्रवासी कामगारों का 30 प्रतिशत हिस्सा अकेले भारतीय कामगारों का है। इस तरह ये प्रवासी कामगार न केवल प्रेषण के माध्यम से भारत के लिये आय के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि ये खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारतीय प्रवासियों से संबंधित चिंता

  • यद्यपि खाड़ी देश भारतीय कामगारों और पेशेवरों के लिये एक प्रमुख स्थान है, किंतु इन देशों की रोज़गार प्रणाली के कारण यहाँ प्रवासी श्रमिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे शोषण के प्रति काफी संवेदनशील हो जाते हैं।
    • खाड़ी देशों में प्रचलित ‘कफाला प्रणाली’ (Kafala System) के तहत प्रवासी श्रमिकों के आव्रजन और रोज़गार की स्थिति के संबंध में पूरा अधिकार निजी नियोक्ता को दिया गया है, जिसके कारण कई बार निजी नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों के शोषण की खबरें सामने आती हैं।
  • कई खाड़ी देशों ने अपने यहाँ रोज़गार की स्थिति में सुधार करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें वर्ष 2019 में मज़दूरी संरक्षण प्रणाली को लागू करना और विभिन्न भेदभाव-रोधी नियमों को जारी करना शामिल है।

भारत के लिये खाड़ी क्षेत्र का महत्त्व

  • भारत के लिये सदैव ही खाड़ी क्षेत्र का एक विशिष्ट राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक महत्त्व रहा है। खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देश अपने आर्थिक एकीकरण प्रयासों के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जिससे भारत के लिये व्यापार, निवेश, ऊर्जा, श्रमशक्ति जैसे क्षेत्रों में सहयोग के महत्त्वपूर्ण अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध पिछले कुछ वर्षों में काफी मज़बूत हुए हैं। भारत ने वर्ष 2019 में सऊदी अरब के साथ एक रणनीतिक परिषद के गठन हेतु समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये थे।
    • भारतीय कंपनियों की प्रौद्योगिकी, निर्माण, आतिथ्य और वित्त समेत विभिन्न क्षेत्रों में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों में सक्रिय उपस्थिति है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) वित्तीय वर्ष 2018-19 में लगभग 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, जिसमें तेल आयात की हिस्सेदारी काफी अधिक है।
    • GCC के सदस्य देश, भारत की तेल संबंधी आवश्यकताओं के लगभग 34 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति करते हैं, हालाँकि बीते कुछ वर्षों में भारत की तेल संबंधी आवश्यकताओं के लिये खाड़ी देशों पर निर्भरता काफी कम हुई है, क्योंकि भारत ने नाइजीरिया, अमेरिका और इराक जैसे अन्य आपूर्तिकर्त्ताओं का ओर रुख किया है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब भारत के दो प्रमुख व्यापारिक भागीदार देश हैं, जिनका वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार क्रमशः 60 बिलियन डॉलर और 34 बिलियन डॉलर के आस-पास है।
  • इसके अलावा खाड़ी क्षेत्र भारत के विकास की अहम ज़रूरतों जैसे- ऊर्जा संसाधन, कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिये निवेश के मौके और लाखों लोगों को नौकरी के भरपूर अवसर देता है।
  • जहाँ एक ओर ईरान भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक पहुँचने का रास्ता उपलब्ध कराता है, तो वहीं ओमान पश्चिम हिंद महासागर तक पहुँचने का मार्ग प्रदान करता है।     

महामारी और भारत-खाड़ी देशों के संबंध

  • भारत के लिये खाड़ी देशों की महत्ता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन देशों में कोरोना वायरस महामारी का प्रसार भारत के लिये एक गंभीर चिंता का विषय है।
  • इस वर्ष की शुरुआत से ही खाड़ी देश कोरोना वायरस महामारी और तेल की कीमतों में गिरावट की दोहरी मार झेल रहे हैं तथा कुछ ही समय पहले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत बीते 17 वर्ष के अपने निचले स्तर पर पहुँच गई थी। इससे उन खाड़ी देशों की राजकोषीय स्थिति पर काफी प्रभाव पड़ा है, जो अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिये मुख्यतः तेल राजस्व पर निर्भर हैं।
  • ऐसी स्थिति में कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस महामारी के कारण खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हो सकती है और यहाँ मंदी जैसी स्थिति देखी जा सकती है तथा यदि ऐसा होता है तो इससे इन देशों में कार्य कर रहे प्रवासी श्रमिकों पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा।
    • इस परिस्थिति में भारतीय प्रवासी श्रमिक कोरोना वायरस से संक्रमित होने के जोखिम के अलावा अपने रोज़गार को लेकर भी खतरे का सामना कर रहे हैं।
  • महामारी और आर्थिक मंदी के कारण भारत वापस लौटने वाले लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था में समाहित करना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।
    • जो लोग वापस भारत लौट रहे हैं उनसे संक्रमण की दर में बढ़ोतरी की संभावना भी काफी बढ़ गई है, जिसका मुख्य उदाहरण केरल में देखा जा सकता है, जहाँ महामारी के शुरुआती दौर में संक्रमण को रोकने में काफी सफलता मिली थी, किंतु जब प्रवासी श्रमिक केरल वापस लौटने लगे, तो संक्रमण की दर में भी बढ़ोतरी होने लगी।
  • भारत विश्व में प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है और वर्ष 2018 में भारत ने प्रेषण के रूप में तकरीबन 79 बिलियन डॉलर की राशि प्राप्त थी, जिसमें आधे से अधिक धन खाड़ी देशों से आया था। इस तरह इन देशों में आर्थिक गतिविधियों के प्रभावित होने से भारत को प्रेषण से मिलने वाली आय में भी कमी आएगी।
  • यदि महामारी की स्थिति लंबे समय तक जारी रहती है तो यह खाड़ी देशों को अपने कार्यबल की राष्ट्रीयकरण की नीति को सख्ती से लागू करने के लिये प्रेरित करेगा और भविष्य में भारतीय श्रमिकों के लिये इन देशों में काम खोजना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • वैश्विक महामारी के कारण कच्चे तेल की आपूर्ति भी बाधित हो सकती है तथा इसका सबसे बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि भारत सबसे ज़्यादा कच्चे तेल का आयात सऊदी अरब से ही करता है।

आगे की राह

  • खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीय श्रमिकों के रोज़गार के खतरे को देखते हुए भारत को कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये अपने उपायों के समर्थन में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों को पूर्ण सहयोग का आश्वासन देना होगा। 
  • विदेशों में खासतौर पर खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीय प्रवासी श्रमिकों की सहायता और स्वच्छता, भोजन एवं स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं जैसे- प्रवासी भारतीय बीमा योजना और भारतीय सामुदायिक कल्याण कोष आदि का उपयोग किया जा सकता है।
  • भारत को इस संकट से बाहर निकलने के बाद अपनी ‘एक्ट वेस्ट नीति’ को विस्तार देना चाहिये।   

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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