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वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स 2022: ILO

  • 19 Jan 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड 2022

मेन्स के लिये:

महामारी के बाद से बेरोज़गारी, विभिन्न क्षेत्रों पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स’ (WESO Trends) 2022 शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट के मुताबिक, रोज़गार स्थिति काफी नाज़ुक बनी हुई है, क्योंकि भविष्य में महामारी को लेकर अनिश्चित स्थिति बनी हुई है।
  • वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स में वर्ष 2022 और वर्ष 2023 के लिये व्यापक श्रम बाज़ार अनुमान भी शामिल हैं। यह आकलन बताता है कि दुनिया भर में श्रम बाज़ार में किस प्रकार सुधार हुआ है और जो महामारी से उबरने के लिये विभिन्न राष्ट्रीय दृष्टिकोणों को दर्शाता है और श्रमिकों तथा आर्थिक क्षेत्रों के विभिन्न समूहों पर प्रभावों का विश्लेषण करता है।

प्रमुख बिंदु

  • रोज़गार
    • वैश्विक बेरोज़गारी वर्ष 2023 तक पूर्व-कोविड-19 स्तरों से ऊपर रहने की आशंका है।
    • वर्ष 2019 के 186 मिलियन की तुलना में वर्ष 2022 में यह 207 मिलियन होने का अनुमान है।
  • वैश्विक कार्य घंटे: 
    • वर्ष 2022 में यह उनके पूर्व-महामारी स्तर से लगभग 2% कम होगा, जो कि 52 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के नुकसान के बराबर है। यह घाटा वर्ष 2021 में ILO के पूर्वानुमान से दोगुना है।
  • वैश्विक श्रम बल भागीदारी:
    • अनुमान है कि वर्ष 2022 में लगभग 40 मिलियन लोग वैश्विक श्रम शक्ति में भाग नहीं लेंगे।
  • क्षेत्रीय अंतर:
    • यह प्रभाव विकासशील देशों के लिये विशेष रूप से गंभीर रहा है, जिन्होंने महामारी से पहले भी उच्च स्तर की असमानता और अधिक भिन्न कार्य परिस्थितियों तथा कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा दायित्त्वों का अनुभव किया था।
    • कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों के पास टीकों की पहुँच कम है और संकट को दूर करने के लिये सरकारी बजट का विस्तार करने की सीमित गुंज़ाइश है।
  • स्पष्ट रूप से अन्य प्रभाव:
    • रिपोर्ट में श्रमिकों और देशों के समूहों के बीच होने वाले संकट के प्रभाव में भारी अंतर की चेतावनी दी गई है, जबकि विकास की स्थिति की परवाह किये बिना यह लगभग हर राज्य के आर्थिक वित्तीय एवं सामाजिक बनावट को कमज़ोर कर रहा है।
    • श्रम बलों की घरेलू आय और सामाजिक तथा राजनीतिक सामंजस्य के लिये संभावित दीर्घकालिक परिणामों के साथ क्षतिपूर्ति हेतु अधिक समय की आवश्यकता है।
  • विभिन्न क्षेत्र:
    • कुछ क्षेत्र, जैसे यात्रा और पर्यटन विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जबकि अन्य क्षेत्र जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्र फले-फूले हैं।
  • महिलाओं और युवा जनसंख्या पर प्रभाव:
    • श्रम बाज़ार संकट से महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित हुई हैं और यह जारी रहने की संभावना है।
    • शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के बंद होने से युवाओं, खासकर उन लोगों के लिये जिनके पास इंटरनेट नहीं है, दीर्घकालीन प्रभाव पड़ेगा।
  • अपेक्षित रिकवरी:
    • व्यापक श्रम बाज़ार में सुधार के बिना इस महामारी से कोई वास्तविक रिकवरी नहीं हो सकती है।
    • सतत् रिकवरी संभव है लेकिन यह अच्छे काम के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिये, जिसमें स्वास्थ्य और सुरक्षा, समानता, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक संवाद शामिल हैं।
      • नए श्रम बाज़ार का पूर्वानुमान भारत जैसे देश के लिये नीति नियोजन हेतु महत्त्वपूर्ण हो सकता है, जहाँ अधिकांश काम अनौपचारिक है, ताकि आगे रोज़गार संबंधी नुकसान और काम के घंटों में कटौती को रोका जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

  • परिचय
    • इस संगठन को वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, जो कि इस विश्वास के साथ गठित किया गया था कि सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
    • यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
  • सदस्य
  • मुख्यालय
    • जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड)
  • पुरस्कार
    • वर्ष 1969 में ILO को राष्ट्रों के बीच भाईचारे और शांति के संदेश को बढ़ावा देने, श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य एवं न्याय प्रणाली स्थापित करने और अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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