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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नई एचआईवी वैक्सीन के लिये मानव परीक्षण

  • 24 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एचआईवी, mRNA वैक्सीन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, mRNA-1644 

मेन्स के लिये:

एचआईवी, रोकथाम और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

मैसाचुसेट्स स्थित अमेरिकी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी मॉडर्ना, एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) के लिये mRNA वैक्सीन (mRNA-1644) हेतु मानव परीक्षण शुरू करेगी।

  • कोविड-19 के साथ mRNA वैक्सीन की सफलता के बाद एचआईवी के लिये एमआरएनए वैक्सीन का यह पहला परीक्षण है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार, वर्ष 2020 तक लगभग 37.7 मिलियन लोग एचआईवी पॉज़िटिव थे।

प्रमुख बिंदु

mRNA वैक्सीन बनाम पारंपरिक टीके:

  • टीके रोग पैदा करने वाले कारकों जैसे- वायरस या बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित प्रोटीन को पहचानने और प्रतिक्रिया करने के लिये शरीर को प्रशिक्षित करने का काम करते हैं।
  • पारंपरिक टीके रोग पैदा करने वाले कारक या उसके द्वारा पैदा होने वाले प्रोटीन की छोटी या निष्क्रिय खुराक से बने होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रतिक्रिया देने के लिये उत्तेजित करने हेतु शरीर में डाले जाते हैं।
  • mRNA टीके शरीर को कुछ वायरल प्रोटीनों (Viral Protein) का उत्पादन करने के लिये प्रेरित करते हैं।
    • ये mRNA या मैसेंजर आरएनए का उपयोग करके काम करते हैं, जो अणु हैं  और डीएनए निर्देशों को क्रियाशील बनाते हैं । एक सेल के अंदर mRNA का उपयोग प्रोटीन बनाने के लिये नमूना के रूप में किया जाता है।

एचआईवी के लिये mRNA वैक्सीन:

  • इस वैक्सीन को शरीर की कोशिकाओं को एचआईवी वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करके कोविड-19 वैक्सीन के समान काम करने की उम्मीद है।
  • बी कोशिकाओं (B Cell) को उत्तेजित करने का बड़ा उद्देश्य व्यापक रूप से बेअसर करने वाले एंटीबॉडी (bnAbs) को उत्पन्न करना है जो विशेष रक्त प्रोटीन होते हैं और एचआईवी के सतही प्रोटीन से जुड़ते हैं तथा इन्हें निष्क्रिय कर देते हैं।
    • बी कोशिकाएँ एंटीबॉडी नामक वाई-आकार के प्रोटीन बनाकर बैक्टीरिया और वायरस से लड़ती हैं, जो प्रत्येक रोगजनक के लिये विशिष्ट होते हैं और हमलावर कोशिका को रोकने में सक्षम होते हैं तथा इसे अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा विनाश के लिये चिह्नित करते हैं।
  • पिछले दशक में एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों से नए bnAbs की पहचान करने में प्रगति हुई है जिन्हें एचआईवी के बाहरी आवरण में विशिष्ट जगहों को लक्षित करने के लिये देखा गया था।
  • लैब-आधारित विश्लेषण और जानवरों पर परीक्षणों ने इस समझ में सुधार किया है कि इन जगहों के ज्ञान का उपयोग इम्युनोजेन्स बनाने के लिये कैसे किया जा सकता है।
    • इम्युनोजेन ऐसे अणु को संदर्भित करता है जो जीव की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम होता है, जबकि एंटीजन उस अणु को संदर्भित करता है जो उस प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के उत्पाद के लिये बाध्य करने में सक्षम होता है।
    • अतः एक प्रतिरक्षी (Antigen) अनिवार्य रूप से एक प्रतिजन (Immunogen) है, लेकिन एक प्रतिजन आवश्यक रूप से एक प्रतिरक्षी नहीं हो सकता है।

अपेक्षित लाभ:

  • आरएनए-आधारित टीकाकरण को एक महत्त्वपूर्ण विकल्प माना जाता है, क्योंकि उनमें एक जीवित वायरस का उपयोग शामिल नहीं होता है और इसे अपेक्षाकृत आसानी से विकसित किया जा सकता है तथा इसे प्रयोग करना भी काफी आसान व सुरक्षित होता है।

चुनौतियाँ

  • पहुँच संबंधी मुद्दे
    • ‘मॉडर्ना’ और ‘फाइज़र’ के टीकों के अनुभव से पता चलता है कि जिन क्षेत्रों में उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है, वहाँ उनकी उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है।
      • एचआईवी से संक्रमित दो-तिहाई से अधिक लोग अफ्रीका में मौजूद हैं। एचआईवी महामारी को नियंत्रित करने में किसी भी सफलता के लिये यह आवश्यक है कि वहाँ संचरण की दरों में भारी कटौती की जाए।
  • तापमान के प्रति संवेदनशील
    • mRNA टीके भंडारण के दौरान तापमान के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं और इस प्रकार की सुविधाएँ विकसित करना विकासशील देशों के लिये एक चुनौती है।
  • एचआईवी का उत्परिवर्तन:
    • एचआईवी कई रूपों में उत्परिवर्तित हो गया है, ऐसे में mRNA दृष्टिकोण की सफलता के निश्चित प्रमाण प्राप्त करने में कई वर्ष लग सकते हैं।

ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV)

  • एचआईवी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में CD-4, जो कि एक प्रकार का व्हाइट ब्लड सेल (T-Cells) होता है, पर हमला करता है। 
    • टी-कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ होती हैं जो कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाने के लिये शरीर में घूमती रहती हैं।
  • शरीर में प्रवेश करने के बाद एचआईवी वायरस की संख्या में तीव्रता से वृद्धि होती है और यह CD-4 कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, इस प्रकार यह मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। एक बार जब यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है तो इसे कभी नहीं हटाया जा सकता है।
  • एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति की CD-4 की संख्या में काफी कमी आ जाती है। एक स्वस्थ शरीर में CD-4 की संख्या 500-1600 के बीच होती है, लेकिन एक संक्रमित शरीर में यह संख्या 200 तक कम हो सकती है।
  • कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एक व्यक्ति में संक्रमण और कैंसर की संभावना अधिक रहती है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के लिये मामूली चोट या बीमारी से भी उबरना मुश्किल हो जाता है।
  • समुचित उपचार से एचआईवी के गंभीर प्रभाव को रोका जा सकता है।
  • संबंधित पहलें: एचआईवी एवं एड्स रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, 2017’, ‘प्रोजेक्ट सनराइज़’, ‘90-90-90’, ‘द रेड रिबन’, ‘ग्लोबल फंड टू फाइट एड्स, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया’ (GFATM)।

स्रोत: द हिंदू

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