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डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

उर्वरकों द्वारा प्रदूषण

  • 05 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

फाॅस्फेटिक उर्वरक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, द यूनाइटेड नेशंस साइंटिफिक कमेटी ऑन द इफेक्ट ऑफ एटॉमिक रेडिएशन

मेन्स के लिये:

उर्वरकों से पर्यावरण एवं मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

फॉस्फेटिक उर्वरकों (Phosphatic Fertilizers) के अत्यधिक प्रयोग से पंजाब के मालवा प्रांत में कैंसर से लोगों की मृत्यु का मामला सामने आया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2013 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre-BARC) ने मालवा क्षेत्र से उर्वरक और मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया था तथा भारी मात्रा में यूरेनियम की सांद्रता पाई गई।
  • आलू एवं धान के लिये फाॅस्फेटिक उर्वरकों की राष्ट्रीय औसत खपत क्रमशः 15-20 किलोग्राम प्रति एकड़ और 10 किलोग्राम प्रति एकड़ है वही पंजाब में आलू एवं धान के लिये इनकी खपत क्रमशः 200 किलोग्राम प्रति एकड़ और 75-100 किलोग्राम प्रति एकड़ है।

फाॅस्फेटिक उर्वरक:

  • फाॅस्फेटिक उर्वरकों को फॉस्फोरस पेंटाॅक्साइड (Phosphorus Pentoxide) (P2O5) के प्रतिशत के संदर्भ में व्यक्त किया जाता है तथा ये फाॅस्फोरस के मुख्य स्रोत हैं।
  • फाॅस्फोरस की गतिशीलता बहुत धीमी होती है।
  • उर्वरकों में भी विशेषतः फाॅस्फेटिक उर्वरक (DAP or Diammonium Phosphate) में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई।
  • BARC की रिपोर्ट के अनुसार, DAP में यूरेनियम की सांद्रता 91.77 प्रति मिलियन (ppm) के आसपास थी जो निर्धारित मानक से काफी ऊपर है।
  • कुल उर्वरक खपत 27 मिलियन टन है जिसमें से लगभग 20-25 प्रतिशत फॉस्फोरस और नाइट्रोजन आधारित पोषक तत्व अमेरिका, जॉर्डन, ईरान, ओमान, चीन, मोरक्को, इज़राइल, लिथौनिया और मिस्र के आयात पर निर्भर हैं।

यूरेनियम संबंधित मुद्दे:

  • ‘द यूनाइटेड नेशंस साइंटिफिक कमेटी ऑन द इफेक्ट ऑफ एटॉमिक रेडिएशन’ (The United Nations Scientific Committee on the Effects of Atomic Radiation-UNSCEAR) के अनुसार, मिट्टी में सामान्य सांद्रता 300 mg/kg से 11.7mg/kg के बीच होनी चाहिये।
  • कुछ प्रकार की मिट्टी और चट्टानों में यूरेनियम की उच्च सान्द्रता मौजूद है, खासकर ग्रेनाइट में। यूरेनियम के सभी तीन समस्थानिकों (U-234, U-235, U-238) का अर्द्ध-जीवन काल 0.25 मिलियन वर्ष से 4.47 बिलियन वर्ष के बीच है जो उनकी सापेक्ष स्थिरता को भी दर्शाता है।
  • भारत में उर्वरक उद्योगों में यूरेनियम से संबंधित आयातित फॉस्फेटिक रॉक के परिशोधन हेतु सभी आवश्यक प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉल का पालन नहीं होता है वहीं दूसरी ओर अमेरिका और इज़राइल में उर्वरक उद्योग से संबंधित कच्चा माल को उपयोग से पहले पूरी तरह परिशोधित करते हैं। अतः इससे स्पष्ट है कि प्रक्रिया के महंगी होने के कारण उर्वरक उधोगों में इसका पालन नही किया जाता है।
  • वर्ष 2000 की शुरुआत से ही पंजाब के भू-जल में यूरेनियम का सम्मिश्रण एवं उपजाऊ मालवा क्षेत्र में औद्योगिक अपशिष्टों के साथ पाए जाने वाले यूरेनियम का उच्च स्तर एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है, क्योंकि यह भू-जल को प्रदूषित करता है।

द यूनाइटेड नेशंस साइंटिफिक कमेटी ऑन द इफेक्ट ऑफ एटॉमिक रेडिएशन (UNSCEAR):

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1955 में UNSCEAR की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में इसका मुख्य कार्य आयनीकरण विकिरण के संपर्क के स्तर और प्रभावों का आकलन करके रिपोर्ट तैयार करना है। दुनिया भर की सरकारें और संगठन विकिरण जोखिम का मूल्यांकन तथा सुरक्षात्मक उपायों हेतु वैज्ञानिक आधार के रूप में इस समिति के अनुमानों पर भरोसा करते हैं।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र:

  • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भारत की प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र है एवं इसकी स्थापना 19 दिसंबर,1945 को की गई थी।
  • यह एक बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान केंद्र है जिसमें उन्नत अनुसंधान और विकास के लिये व्यापक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के माध्यम से विदयुत उत्पादन करना है।
  • 15 अप्रैल, 1948 को परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया गया तथा 10 अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई।

आगे की राह:

  • भारत में उत्पादित उर्वरकों में यूरेनियम की मात्रा के बारे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा दिशा-निर्देश या स्वीकार्य मानक स्थापित करने चाहिये एवं भू-जल में यूरेनियम की स्वीकार्य सीमा को निर्धारित करना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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