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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ग्लोबल बायो-इंडिया-2021

  • 04 Mar 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने वर्चुअल माध्यम से नई दिल्ली में 'ग्लोबल बायो-इंडिया-2021' के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया।

  • यह राष्ट्रीय स्तर पर और वैश्विक समुदाय के लिये भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता और इस क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों को दर्शाता है।
  • केंद्रीय मंत्री ने इस अवसर पर "राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी रणनीति" या ‘नेशनल बायोटेक स्ट्रेटजी’ (National Biotech Strategy) का अनावरण किया और 'ग्लोबल बायो-इंडिया' की आभासी प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया।

प्रमुख बिंदु:

  • संक्षिप्त परिचय:
    • यह जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय निकाय, नियामक निकाय, केंद्रीय और राज्य मंत्रालयों, एसएमई, बड़े उद्योगों, जैव प्रौद्योगिकी, अनुसंधान संस्थानों, निवेशकों तथा स्टार्टअप पारिस्थितिकीतंत्र सहित अन्य हितधारक शामिल हैं।
  • लक्ष्य:
    • इसका लक्ष्य भारत को विश्व में एक उभरते हुए नवोन्मेष केंद्र और जैव विनिर्माण केंद्र के रूप में मान्यता प्रदान करना है।
  • उद्देश्य:
    • जैव- साझेदारी, नीतिगत चर्चा, भारत के लिये कंपनियों के अधिकारियों की योजनाएँ और भारतीय बायोटेक पारिस्थितिक तंत्र को अंतर्राष्ट्रीय पारिस्थितिक तंत्र के साथ जोड़ना तथा नए विचार मूल्यांकन एवं निवेश के लिये मंच तैयार करना।
    • राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों, स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थानों के प्रमुख जैव प्रौद्योगिकी नवाचारों, उत्पादों, सेवाओं, प्रौद्योगिकियों की पहचान तथा उनका प्रदर्शन करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की बड़ी अनुबंध परियोजनाओं के साथ-साथ प्रमुख वैश्विक उद्यमों से भारत में वित्तपोषण को आकर्षित करना।
    • विश्व बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत वर्ष 2014 की 6वीं रैंक के विपरीत वर्तमान में दक्षिण-एशियाई देशों में प्रथम स्थान पर है।
  • आयोजक:

जैव प्रौद्योगिकी:

  • जैव प्रौद्योगिकी वह तकनीक है जो विभिन्न उत्पादों को विकसित करने या बनाने के लिये जैविक प्रणालियों, जीवित जीवों या इसके कुछ हिस्सों का उपयोग करती है।
  • जैव प्रौद्योगिकी के तहत बायोफार्मास्यूटिकल्स का औद्योगिक पैमाने पर उत्पादन करने हेतु आनुवंशिक रूप से संशोधित रोगाणुओं, कवक, पौधों और जानवरों का उपयोग किया जाता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों में रोग की चिकित्सा, निदान, कृषि के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, प्रसंस्कृत खाद्य, बायोरेमेडिएशन, अपशिष्ट उपचार और ऊर्जा उत्पादन आदि शामिल हैं।
लाभ चुनौतियाँ
  • उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन।
  • कम खरपतवार नाशक और कीटनाशक का उपयोग।
  • अधिक प्रभावी कृषि।
  • उच्च उत्पादन स्तर।
  • प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रयोग।
  • विटामिन और पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने में सहायक।
  • उत्पादों की शेल्फ लाइफ में वृद्धि।
  • भुखमरी की समस्या से निपटने हेतु उपाय।
  • कठिन/चरम मौसम की स्थिति वाले क्षेत्रों के लिये विशेष रूप से उपयुक्त।
  • महत्त्वपूर्ण औषधियों का बड़े पैमाने पर उत्पादन।
  • रोग संबंधी आनुवंशिक विकारों का अधिक कुशलता से इलाज किया जा सकता है।
  • अन्य देशों पर निर्भरता में कमी।
  • औद्योगिक प्रक्रियाओं की दक्षता में वृद्धि।
  • इसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीएमओ (GMOs) का उपयोग शामिल है।
  • GMP के गुण को अनजाने में अन्य पौधों द्वारा अपनाया जा सकता है।
  • मृदा की उर्वरता में गिरावट हो सकती है।
  • क्रॉस प्लांटेशन के कारण संकर प्रजातियों से जुड़ी समस्याएँ।
  • छोटे और सीमांत किसान जो GMO का प्रयोग नहीं करते हैं, वे पिछड़ सकते हैं।
  • स्थनीय बेरोज़गारी के स्तर में वृद्धि।
  • कुछ गरीब देशों की गरीबी में और वृद्धि हो सकती है।
  • अधिक उत्पादन एक बड़ी समस्या बन सकती है।
  • खाद्य निर्यात में गिरावट आ सकती है।
  • जैव-विविधता का ह्रास।
  • GMO से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ।
  • भोजन में कृत्रिम स्वाद की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि।
  • संक्रामक रोग और महामारी।
  • पादप-रोगों का प्रसार।

भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र:

  • परिचय:
    • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वर्ष 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान देने वाले प्रमुख चालकों में से एक माना जाता है।
    • भारत सरकार की नीतिगत पहल जैसे- मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को एक विश्व स्तरीय जैव प्रौद्योगिकी और जैव-विनिर्माण हब के रूप में विकसित करना है।
    • वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ भारत विश्व में जैव प्रौद्योगिकी के लिये प्राथमिकता वाले शीर्ष -12 देशों में से एक है।
    • वर्ष 2020 में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की हिस्सेदारी 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी और इसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
  • जैव प्रौद्योगिकी पार्क:
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने आवश्यक अवसंरचना सहायता प्रदान करते हुए जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों को उत्पादों और सेवाओं में बदलने के लिये देश भर में जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ इन्क्यूबेटरों की स्थापना की है।
    • ये जैव प्रौद्योगिकी पार्क जैव प्रौद्योगिकी के त्वरित वाणिज्यिक विकास हेतु टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और पायलट संयंत्र अध्ययन के लिये वैज्ञानिकों तथा 'लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों' (SMEs) को सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति मसौदा 2020-24:

    • संक्षिप्त परिचय:
      • इसके तहत वर्ष 2025 तक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने के लिये स्टार्टअप के साथ अधिक जुड़ाव और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल का लाभ उठाने पर ज़ोर दिया गया है।
    • लक्ष्य:
      • शिक्षा और उद्योग को जोड़ते हुए एक जीवंत स्टार्टअप, उद्यमी और औद्योगिक आधार का निर्माण तथा विकास करना।
    • फोकस:
      • स्टार्टअप्स, लघु उद्योग और बड़े उद्योगों के पूर्ण जुड़ाव के साथ अनुसंधान संस्थानों एवं प्रयोगशालाओं (सार्वजनिक और निजी दोनों) में एक मज़बूत बुनियादी अनुसंधान एवं नवाचार संचालित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण तथा इसका विकास करना।

स्रोत: पीआईबी

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