वन (संरक्षण) नियम 2022 | 03 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:वन और अधिकार क्षेत्र, 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976, मौलिक कर्त्तव्य, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत। मेन्स के लिये:वन और संबंधित कानून। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) के अध्यक्ष ने कहा कि वन (संरक्षण) नियम 2022 में वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उल्लंघन को लेकर NCST का दृष्टिकोण पहले जैसा ही रहेगा, भले ही पर्यावरण मंत्रालय ने इन चिंताओं को खारिज़ कर दिया है।
संबंधित मुद्दे:
- वन भूमि के परिवर्तन हेतु सहमति उपखंड:
- सितंबर 2022 में अन्य उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन हेतु सहमति उपखंड को हटाने का प्रस्ताव करने वाले नए नियमों के प्रावधान पर चिंता जताते हुए आयोग ने सिफारिश की थी कि इन नियमों को तुरंत रोक दिया जाना चाहिये।
- जवाब में मंत्रालय ने ज़ोर देकर कहा है कि नियम वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत बनाए गए थे और NCST की इन नियमों के वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के उल्लंघन की आशंका "कानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं" थी।
- मंत्री ने कहा कि दो वैधानिक प्रक्रियाएँ समानांतर थीं और एक-दूसरे पर निर्भर नहीं थीं।
- सितंबर 2022 में अन्य उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन हेतु सहमति उपखंड को हटाने का प्रस्ताव करने वाले नए नियमों के प्रावधान पर चिंता जताते हुए आयोग ने सिफारिश की थी कि इन नियमों को तुरंत रोक दिया जाना चाहिये।
- ग्राम सभाओं की सहमति:
- NCST ने बताया था कि FCR 2022 ने चरण 1 की मंज़ूरी से पहले अनिवार्य रूप से ग्राम सभाओं की सहमति लेने के प्रावधानों को खत्म कर दिया है, इस प्रक्रिया को चरण 2 की मंज़ूरी के बाद पूरा करने के लिये छोड़ दिया है।
- सरकार के अनुसार, FCR 2022 में पहले से ही वन भूमि के परिवर्तन का प्रावधान है , "केवल वन अधिकार अधिनियम के तहत अधिकारों के निपटान सहित सभी प्रावधानों को पूरा करने एवं अनुपालन के बाद" और ग्राम सभाओं की सहमति को अनिवार्य करने वाले अन्य कानूनों के संचालन पर भी रोक नहीं लगाता है।
- NCST ने बताया था कि FCR 2022 ने चरण 1 की मंज़ूरी से पहले अनिवार्य रूप से ग्राम सभाओं की सहमति लेने के प्रावधानों को खत्म कर दिया है, इस प्रक्रिया को चरण 2 की मंज़ूरी के बाद पूरा करने के लिये छोड़ दिया है।
वन (संरक्षण) नियम, 2022 के प्रावधान:
- समितियों का गठन:
- इसने सलाहकार समिति, प्रत्येक एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालयों में एक क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (UT) सरकार के स्तर पर एक स्क्रीनिंग समिति का गठन किया।
- क्षतिपूरक वनीकरण:
- पर्वतीय या पहाड़ी राज्य वन भूमि को अपने भौगोलिक क्षेत्र के दो-तिहाई से अधिक कवर करने वाले हरित आवरण के साथ या राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश अपने भौगोलिक क्षेत्र के एक-तिहाई से अधिक को कवर करने वाले वन भूमि केअंतरण में सक्षम होंगे, इसके अलावा अन्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, जहांँ कवर 20% से कम है, में प्रतिपूरक वनरोपण करना।
- निजी वृक्षारोपण की अनुमति:
- यह नियम निजी पार्टियों के लिये वृक्षारोपण करने और उस भूमि को उन कंपनियों को बेचने का प्रावधान करता है जो आवश्यक प्रतिपूरक वनीकरण लक्ष्यों से प्रेरित हैं।
- नवीन नियमों से पहले, राज्य निकाय FAC को दस्तावेज़ अग्रेषित करते थे जिसमें इस स्थिति की जानकारी भी शामिल होती थी कि क्या संबद्ध क्षेत्र में स्थानीय लोगों के वन अधिकारों का निपटान किया गया था।
- यह नियम निजी पार्टियों के लिये वृक्षारोपण करने और उस भूमि को उन कंपनियों को बेचने का प्रावधान करता है जो आवश्यक प्रतिपूरक वनीकरण लक्ष्यों से प्रेरित हैं।
- ग्राम सभा की सहमति की आवश्यकता नहीं:
- नए नियमों के अनुसार, एक परियोजना जिसे एक बार FC द्वारा अनुमोदित कर राज्य के अधिकारियों को सौंप दी जाएगी, प्रतिपूरक निधि और भूमि एकत्र करेंगे एवं इसे अंतिम अनुमोदन के लिये संसाधित करेंगे।
- पहले ग्राम सभा या क्षेत्र के गाँवों में शासी निकाय की सहमति के लिये वन भूमि के परिवर्तन हेतु लिखित सहमति की आवश्यकता होती थी।
- नए नियमों के अनुसार, एक परियोजना जिसे एक बार FC द्वारा अनुमोदित कर राज्य के अधिकारियों को सौंप दी जाएगी, प्रतिपूरक निधि और भूमि एकत्र करेंगे एवं इसे अंतिम अनुमोदन के लिये संसाधित करेंगे।
- वनों में निर्माण कार्य की अनुमति:
- वन सुरक्षा उपायों और आवासीय इकाइयों (एकमुश्त छूट के रूप में 250 वर्ग मीटर के क्षेत्र तक) सहित वास्तविक उद्देश्यों के लिये संरचनाओं के निर्माण/निर्माण कार्य के अधिकार की अनुमति है।
भारत में वनों की स्थिति:
- परिचय:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, कुल वन और वृक्ष आवरण अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, यह वर्ष 2019 के 21.67% की तुलना में अधिक है।
- वनावरण (क्षेत्रवार): मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र।
- श्रेणी:
- आरक्षित वन:
- आरक्षित वन सबसे अधिक प्रतिबंधित वन होते हैं और राज्य सरकार द्वारा उन वन भूमि या बंजर भूमि पर निर्धारित किये जाते हैं जो सरकार की संपत्ति है।
- स्थानीय लोगों को आरक्षित वनों में तब तक जाने की अनुमति नहीं है जब तक कि कोई वन अधिकारी बंदोबस्त प्रक्रिया के दौरान उन्हें आधिकारिक तौर पर अनुमति नहीं देता।
- संरक्षित वन:
- राज्य सरकार को आरक्षित वनों के अलावा ऐसी किसी भी भूमि को संरक्षित वनों के रूप में गठित करने का अधिकार है, जिस पर सरकार का स्वामित्त्व है और ऐसे वनों के उपयोग के संबंध में नियम जारी करने की शक्ति है।
- इस शक्ति का उपयोग ऐसे वृक्षों जिनकी लकड़ी, फल या अन्य गैर-लकड़ी उत्पादों में राजस्व बढ़ाने की क्षमता है, पर राज्य का नियंत्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है।
- ग्राम वन:
- ग्राम वन वे हैं जिनके संबंध में राज्य सरकार “किसी भी ग्राम समुदाय को किसी भूमि या आरक्षित वन के रूप में सूचीबद्ध भूमि संबंधी अधिकार सरकार को सौंप सकती है।”
- सुरक्षा का स्तर:
- आरक्षित वन > संरक्षित वन > ग्राम वन।
- आरक्षित वन:
- संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, वन, वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा तथा देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद 51A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
संबंधित पहल
- भारतीय वन नीति, 1952
- यह औपनिवेशिक वन नीति का सरल विस्तार था। इस अधिनियम में समग्र वन क्षेत्र को कुल भूमि क्षेत्र के एक- तिहाई तक बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980:
- इसने निर्धारित किया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि-वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। उल्लंघन या परमिट की कमी को एक आपराधिक कृत्य माना गया।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988:
- राष्ट्रीय वन नीति का अंतिम उद्देश्य प्राकृतिक विरासत के रूप में वनों के संरक्षण के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना था।
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम:
- इसे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये वर्ष 2000 में लागू किया गया है। इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- अन्य संबंधित अधिनियम:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972; पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और जैव विविधता अधिनियम, 2002
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006:
- यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD) जो पीढ़ियों से जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न 1. भारत में एक विशेष राज्य में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: (वर्ष 2012)
निम्नलिखित में से किस राज्य में उपरोक्त सभी विशेषताएँ हैं? (A) अरुणाचल प्रदेश उत्तर: (A) प्रश्न 2. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (वर्ष 2021) (A) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (D) |
स्रोत: द हिंदू
वन (संरक्षण) नियम, 2022 | 02 Jul 2022
प्रिलिम्स के लिये:वनीकरण, भारत राज्य वन रिपोर्ट, 2019, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006। मेन्स के लिये:वन के प्रावधान (संरक्षण) नियम, 2022, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय वन नीति, 1988, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वन (संरक्षण) नियम, 2022 जारी किया है।
- यह वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 4 और वन (संरक्षण) नियम, 2003 के अधिक्रमण (Supersession) में प्रदान किया गया है।
वन (संरक्षण) नियम, 2022 के प्रावधान:
- समितियों का गठन:
- इसने एक सलाहकार समिति, प्रत्येक एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालयों में एक क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (UT) सरकार के स्तर पर एक स्क्रीनिंग समिति का गठन किया।
- सलाहकार समिति:
- सलाहकार समिति की भूमिका इसके लिये संदर्भित प्रस्तावों और केंद्र सरकार द्वारा संदर्भित वनों के संरक्षण से जुड़े किसी भी मामले के संबंध में संबंधित धाराओं के तहत अनुमोदन प्रदान करने के संबंध में सलाह देने या सिफारिश करने तक सीमित है।
- परियोजना स्क्रीनिंग समिति:
- MoEFCC ने वन भूमि के अंतरण से जुड़े प्रस्तावों की प्रारंभिक समीक्षा के लिये प्रत्येक राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश में एक परियोजना स्क्रीनिंग समिति के गठन का निर्देश दिया है।
- पांँच सदस्यीय समिति प्रत्येक महीने कम-से-कम दो बार बैठक करेगी और राज्य सरकारों को समयबद्ध तरीके से परियोजनाओं पर सलाह देगी।
- 5-40 हेक्टेयर के बीच की सभी गैर-खनन परियोजनाओं की समीक्षा 60 दिनों की अवधि के भीतर की जानी चाहिये और ऐसी सभी खनन परियोजनाओं की समीक्षा 75 दिनों के भीतर की जानी चाहिये।
- बड़े क्षेत्र वाली परियोजनाओं के लिये समिति को कुछ और समय मिलता है, जिसमें 100 हेक्टेयर से अधिक की गैर-खनन परियोजनाओं के लिये 120 दिन और खनन परियोजनाओं के लिये 150 दिन शामिल है।
- क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समितियाँ:
- सभी रैखिक परियोजनाओं (सड़कों, राजमार्गों आदि), 40 हेक्टेयर तक की वन भूमि से जुड़ी परियोजनाएंँ और जिन्होंने सर्वेक्षण के प्रयोजन के लिये उनकी सीमा के बावजूद 0.7 तक कैनोपी घनत्व वाली वन भूमि के उपयोग का अनुमान लगाया है, उनकी एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय में जांँच की जाएगी।
- प्रतिपूरक वनीकरण:
- पर्वतीय या पहाड़ी राज्य वन भूमि को अपने भौगोलिक क्षेत्र के दो-तिहाई से अधिक कवर करने वाले हरित आवरण के साथ, या राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश अपने भौगोलिक क्षेत्र के एक-तिहाई से अधिक को कवर करने वाले वन भूमि केअंतरण में सक्षम होंगे, इसके अलावा अन्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, जहांँ कवर 20% से कम है, में प्रतिपूरक वनरोपण करना।
वन संरक्षण के लिये अन्य पहलें:
- भारतीय वन नीति, 1952:
- यह औपनिवेशिक वन नीति का एक सरल विस्तार था। हालांकि इसमें कुल भूमि क्षेत्र का एक- तिहाई तक वन आवरण बढ़ाने का प्रावधान शामिल था।
- उस समय जंगलों से प्राप्त अधिकतम वार्षिक राजस्व राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता थी। दो विश्व युद्धों, रक्षा की आवश्यकता, विकासात्मक परियोजनाएँ जैसे- नदी घाटी परियोजनाएँ, लुगदी, कागज़ और प्लाईवुड जैसे उद्योग तथा राष्ट्रीय हित की वन उपज पर बहुत अधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप जंगलों के विशाल क्षेत्रों से राजस्व जुटाने के लिये राज्यों को मंज़ूरी दे दी गई।
- यह औपनिवेशिक वन नीति का एक सरल विस्तार था। हालांकि इसमें कुल भूमि क्षेत्र का एक- तिहाई तक वन आवरण बढ़ाने का प्रावधान शामिल था।
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980:
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने निर्धारित किया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। इसके अलावा उल्लंघन या परमिट की कमी को एक अपराध माना गया।
- इसने वनों की कटाई को सीमित करने, जैवविविधता के संरक्षण और वन्यजीवों को बचाने का लक्ष्य रखा। हालांँकि हाँंकि यह अधिनियम वन संरक्षण के प्रति अधिक आशा प्रदान करता है लेकिन यह अपने लक्ष्य में सफल नहीं था।
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने निर्धारित किया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। इसके अलावा उल्लंघन या परमिट की कमी को एक अपराध माना गया।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988:
- राष्ट्रीय वन नीति का अंतिम उद्देश्य एक प्राकृतिक विरासत के रूप में वनों के संरक्षण के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखना था।
- इसने वाणिज्यिक सरोकारों से वनों की पारिस्थितिक भूमिका और भागीदारी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और स्पष्ट बदलाव किया।
- इसमें देश के भौगोलिक क्षेत्र के 33% हिस्से को वन और वृक्षों से आच्छादित करने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है।
- राष्ट्रीय वन नीति का अंतिम उद्देश्य एक प्राकृतिक विरासत के रूप में वनों के संरक्षण के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखना था।
- राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम:
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2000 से निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये लागू किया गया है।
- अन्य संबंधित अधिनियम:
- 1972 का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और 2002 का जैवविविधत अधिनियम।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम, 2006:
- यह वन-निवासी अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन अधिकारों एवं वन भूमि पर कब्ज़ेको पहचानने के लिये बनाया गया है जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में रह रहे हैं।
भारत में वन:
- परिचय:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार, भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जो 2019 के 21.67% से अधिक है।
- वनावरण (क्षेत्रफल में): मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र।
- वर्गीकरण:
- आरक्षित वन:
- आरक्षित वन: आरक्षित वन सबसे अधिक प्रतिबंधित वन हैं और किसी भी वन भूमि या बंजर भूमि जो कि सरकार की संपत्ति है, राज्य सरकार द्वारा आरक्षित होती है।
- आरक्षित वनों में किसी वन अधिकारी द्वारा विशेष रूप से अनुमति के बिना स्थानीय लोगों की आवाजाही निषिद्ध है।
- आरक्षित वन:
संरक्षित वन:
- राज्य सरकार को आरक्षित भूमि के अलावा अन्य किसी भी भूमि को, जो कि सरकार की संपत्ति है, संरक्षित करने का अधिकार है।
- इस शक्ति का उपयोग ऐसे वृक्षों जिनकी लकड़ी, फल या अन्य गैर-लकड़ी उत्पादों में राजस्व बढ़ाने की क्षमता है, पर राज्य का नियंत्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है।
ग्राम वन:
- ग्राम वन वे हैं जिनके संबंध में राज्य सरकार “किसी भी ग्राम समुदाय को किसी भूमि या आरक्षित वन के रूप में सूचीबद्ध भूमि के संबंध में सरकार के अधिकार सौंप सकती है।”
- सुरक्षा का स्तर:
- आरक्षित वन > संरक्षित वन > ग्राम वन।
- संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, वन, वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- संविधान के अनुच्छेद 51A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा और देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त हैः
निम्नलिखित राज्यों में से किसमें उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हैं? A. अरुणाचल प्रदेश उत्तर: A
अतः विकल्प A सही उत्तर है। |