सतलज-यमुना लिंक (SYL) नहर पर विवाद | 06 Apr 2022
प्रिलिम्स के लिये:सिंधु जल संधि, रावी और ब्यास, अनुच्छेद 143, सतलज नदी, यमुना नदी। मेन्स के लिये:सतलज यमुना लिंक नहर, अंतर्राज्यीय नदी जल से संबंधित मुद्दों पर विवाद। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा विधानसभा द्वारा सतलज-यमुना लिंक (Sutlej Yamuna Link- SYL) नहर को पूरा करने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया है।
- इसके पूरा हो जाने के बाद यह नहर हरियाणा और पंजाब के बीच रावी और ब्यास नदियों के पानी को साझा करने में सक्षम होगी।
- प्रस्तावित सतलज-यमुना लिंक नहर 214 किलोमीटर लंबी नहर है जो सतलज और यमुना नदियों को जोड़ती है।
- जल संसाधन राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं, जबकि संसद को संघ सूची के तहत अंतर्राज्यीय नदियों के संबंध में कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1960: विवाद की उत्पत्ति भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल संधि में देखी जा सकती है, जिसमें रावी, ब्यास और सतलज के पूर्व में 'मुक्त और अप्रतिबंधित उपयोग' (Free And Unrestricted Use) की अनुमति दी गई थी।
- वर्ष 1966: पुराने (अविभाजित) पंजाब से निर्मित हरियाणा को नदी के पानी का हिस्सा देने की समस्या उभरकर सामने आई।
- सतलज और उसकी सहायक ब्यास नदी के जल का हिस्सा हरियाणा को देने के लिये सतलज को यमुना से जोड़ने वाली एक नहर (एसवाईएल नहर) की योजना बनाई गई थी।
- पंजाब ने यह कहते हुए हरियाणा के साथ पानी साझा करने से इनकार कर दिया कि यह रिपेरियन सिद्धांत (Riparian Principle) के खिलाफ है जिसके अनुसार, नदी के पानी पर केवल उस राज्य और देश या राज्यों और देशों का अधिकार होता है जहांँ से नदी बहती है।
- वर्ष 1981: दोनों राज्य पानी के पुन: आवंटन हेतु परस्पर सहमत हुए।
- वर्ष 1982: पंजाब के कपूरी गांँव में 214 किलोमीटर लंबी सतलज-यमुना लिंक नहर (SYL) का निर्माण शुरू किया गया।
- राज्य में आतंकवाद का माहौल बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाने के विरोध में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन हुए तथा हत्याएंँ की गईं।
- वर्ष 1885:
- प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन अकाली दल के प्रमुख संत ने पानी का आकलन करने हेतु एक नए न्यायाधिकरण के लिये सहमति व्यक्त की।
- पानी की उपलब्धता और बंँटवारे के पुनर्मूल्यांकन हेतु सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी (V Balakrishna Eradi) की अध्यक्षता में ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई थी।
- वर्ष 1987 में ट्रिब्यूनल ने पंजाब और हरियाणा को आवंटित पानी में क्रमशः 5 एमएएफ और 3.83 एमएएफ तक की वृद्धि की सिफारिश की।
- वर्ष 1996: हरियाणा ने SYL का काम पूरा करने के लिये पंजाब को निर्देश देने हेतु सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
- वर्ष 2002 और वर्ष 2004: सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब को अपने क्षेत्र में SYL के काम को पूरा करने का निर्देश दिया।
- वर्ष 2004: पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स अधिनियम पारित किया, इसके माध्यम से जल-साझाकरण समझौतों को समाप्त कर दिया गया और इस तरह पंजाब में SYL का निर्माण अधर में रह गया।
- वर्ष 2016: सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 के अधिनियम की वैधता पर निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सुनवाई शुरू की और यह माना कि पंजाब नदियों के जल को साझा करने के अपने वादे से पीछे हट गया है। इस प्रकार अधिनियम को संवैधानिक रूप से अमान्य घोषित कर दिया गया था।
- वर्ष 2020:
- सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को SYL नहर के मुद्दे पर उच्चतम राजनीतिक स्तर पर केंद्र सरकार की मध्यस्थता के माध्यम से बातचीत करने और मामले को निपटाने का निर्देश दिया।
- पंजाब ने जल की उपलब्धता के नए समयबद्ध आकलन हेतु एक न्यायाधिकरण की मांग की है।
- पंजाब का मानना है कि आज तक राज्य में नदी जल का कोई अधिनिर्णय या वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं हुआ है।
- रावी-ब्यास जल की उपलब्धता भी 1981 के अनुमानित 17.17 MAF (मिलियन एकड़ फुट) से घटकर 2013 में 13.38 MAF हो गई है। एक नया न्यायाधिकरण इन सभी की जाँच सुनिश्चित करेगा।
पंजाब और हरियाणा राज्यों के तर्क:
- पंजाब:
- वर्ष 2029 के बाद पंजाब के कई क्षेत्रों में जल समाप्त हो सकता है और सिंचाई के लिये राज्य पहले ही अपने भूजल का अत्यधिक दोहन कर चुका है क्योंकि गेहूंँ और धान की खेती करके यह केंद्र सरकार को हर साल लगभग 70,000 करोड़ रुपए मूल्य का अन्न भंडार उपलब्ध कराता है।
- राज्य के लगभग 79% क्षेत्र में पानी का अत्यधिक दोहन है और ऐसे में सरकार का कहना है कि किसी अन्य राज्य के साथ पानी साझा करना असंभव है।
- वर्ष 2029 के बाद पंजाब के कई क्षेत्रों में जल समाप्त हो सकता है और सिंचाई के लिये राज्य पहले ही अपने भूजल का अत्यधिक दोहन कर चुका है क्योंकि गेहूंँ और धान की खेती करके यह केंद्र सरकार को हर साल लगभग 70,000 करोड़ रुपए मूल्य का अन्न भंडार उपलब्ध कराता है।
- हरियाणा:
- हरियाणा का तर्क है कि राज्य में सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराना कठिन है और हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों में पीने के पानी की समस्या है जहांँ भूजल 1,700 फीट तक कम हो गया है।
- हरियाणा केंद्रीय खाद्य पूल (Central Food Pool) में अपने योगदान का हवाला देता रहा है और तर्क दे रहा है कि एक न्यायाधिकरण द्वारा किये गए मूल्यांकन के अनुसार उसे पानी में उसके उचित हिस्से से वंचित किया जा रहा है।
सतलज और यमुना नदी की मुख्य विशेषताएँ:
- सतलज:
- सतलज नदी का प्राचीन नाम जराद्रोस (प्राचीन यूनानी) शुतुद्री या शतद्रु (संस्कृत) है।
- यह सिंधु नदी की पाँच सहायक नदियों में सबसे लंबी है, जो पंजाब (जिसका अर्थ है "पाँच नदियाँ") को अपना नाम देती है।
- झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज, सिंधु की मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
- इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत की ‘लंगा झील’ में हिमालय के उत्तरी ढलान पर होता है।
- सर्वप्रथम यह हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है और फिर हिमालय की घाटियों के माध्यम से उत्तर-पश्चिम की ओर तथा बाद में पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम की ओर बहते हुए, यह नंगल के पास पंजाब के मैदान के माध्यम से प्रवाहित होती है।
- एक विस्तृत चैनल के माध्यम से दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ते हुए यह ब्यास नदी में मिलती है और पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले भारत-पाकिस्तान सीमा पर 65 मील तक प्रवाहित होती है, इस प्रकार अंततः बहावलपुर के पश्चिम में चिनाब नदी में शामिल होने के साथ 220 मील की दूरी तय करती है।
- सतलज नदी पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले फिरोज़पुर ज़िले के हरिके में ब्यास नदी में मिलती है।
- संयुक्त नदियाँ तब पंजनाद बनाती हैं, जो पाँच नदियों और सिंधु के बीच की कड़ी है।
- लुहरी चरण-I जल विद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश के शिमला और कुल्लू ज़िलों में सतलज नदी पर स्थित है।
- यमुना:
- उद्गम: यह गंगा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में समुद्र तल से लगभग 6387 मीटर की ऊंँचाई पर निम्न हिमालय की मसूरी रेंज से बंदरपूंँछ चोटियों (Bandarpoonch Peaks) के पास यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
- बेसिन: यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली होकर बहने के बाद प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में संगम (जहांँ कुंभ मेला आयोजित किया जाता है) में गंगा नदी से मिलती है।
- लंबाई: 1376 किमी.
- महत्त्वपूर्ण बाँध: लखवाड़-व्यासी बाँध (उत्तराखंड), ताज़ेवाला बैराज बाँध (हरियाणा) आदि।
- महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ: चंबल, सिंध, बेतवा और केन।
आगे की राह
- न्यायाधिकरण के निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के साथ एक स्थायी न्यायाधिकरण स्थापित करके जल विवादों को हल या संतुलित किया जा सकता है।
- किसी भी संवैधानिक सरकार का तात्कालिक लक्ष्य अनुच्छेद-262 में संशोधन (अंतर-राज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों का न्यायनिर्णयन) और अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम में संशोधन एवं समान रूप से इसका कार्यान्वयन होना चाहिये।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन उनमें से एक में मिलती हैं, जो अंततः सीधे सिंधु में मिलती हैं। निम्नलिखित में से कौन सी ऐसी नदी है जो सीधे सिंधु से मिलती है? (a) चिनाब उत्तर: (d)
प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014) आर्द्रभूमि नदियों का संगम
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a)
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