आर्कटिक में घटती बर्फ और उसका प्रभाव | 20 Oct 2021
प्रीलिम्स के लिये:आर्कटिक और उसकी भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लिये:आर्कटिक पारिस्थितिक तंत्र पर कार्बन उत्सर्जन का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, यदि कार्बन उत्सर्जन मौजूदा स्तरों पर जारी रहा तो आर्कटिक में वर्ष 2100 तक सारी बर्फ गायब हो जाएगी और इसके साथ ही सील एवं ध्रुवीय भालू जैसे जीव भी विलुप्त हो जाएंगे।
- आर्कटिक समुद्री बर्फ 4.72 मिलियन वर्ग मील के अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2012 में आर्कटिक बर्फ के पिघलने का सबसे अधिक रिकॉर्ड दर्ज किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के विषय में:
- कवरेज:
- अध्ययन में ग्रीनलैंड के उत्तर में 1 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्र और कनाडाई द्वीप समूह के तटों को शामिल किया गया है, जहाँ समुद्री बर्फ वर्षभर सबसे मोटी परतों के रूप में मौजूद रहती है।
- दो परिदृश्य
- आशावादी/कम उत्सर्जन (यदि कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रण में लाया जाता है): इस परिदृश्य के तहत कुछ ग्रीष्मकालीन बर्फ अनिश्चित काल तक बनी रह सकती है।
- निराशावादी/उच्च उत्सर्जन (यदि उत्सर्जन इसी प्रकार जारी रहता है): इस परिदृश्य के तहत सदी के अंत तक गर्मियों में पाई जाने वाली बर्फ गायब हो जाएगी।
- मध्य आर्कटिक की बर्फ भी मध्य शताब्दी तक कम हो जाएगी और वर्षभर मौजूद नहीं रहेगी।
- स्थानीय रूप से पाई जाने वाली ग्रीष्मकालीन बर्फ ‘अंतिम बर्फ क्षेत्र’ में पाई जाएगी, लेकिन यह केवल एक मीटर ही मोटी होगी।
- कवरेज:
- निहितार्थ
- कम उत्सर्जन परिदृश्य:
- कुछ सील, भालू और अन्य जीव जीवित रह सकते हैं।
- ये प्रजातियाँ वर्तमान में पश्चिमी अलास्का और हडसन की खाड़ी के कुछ हिस्सों में मौजूद हैं।
- कुछ सील, भालू और अन्य जीव जीवित रह सकते हैं।
- उच्च उत्सर्जन परिदृश्य:
- वर्ष 2100 तक गर्मियों में स्थानीय रूप से मौजूद बर्फ भी गायब हो जाएगी।
- गर्मियों के दौरान बर्फ पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र भी समाप्त हो जाएगा।
- कम उत्सर्जन परिदृश्य:
आर्कटिक (Arctic) के बारे में:
- आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है। आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसमी रूप से भिन्न बर्फ का आवरण है।
- आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है।
- वर्ष 2013 से भारत को आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है जो आर्कटिक के पर्यावरण और विकास पहलुओं पर सहयोग के लिये प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।
समुद्री बर्फ
- परिचय:
- समुद्री बर्फ जमा हुआ समुद्री जल है, यह बर्फ समुद्र की सतह पर तैरती है। यह पृथ्वी की सतह का लगभग 7% और विश्व के लगभग 12% महासागरों को कवर करती है।
- इस तैरती बर्फ का ध्रुवीय वातावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जो समुद्र के संचलन, मौसम और क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित करता है।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- परिचय:
- पेंगुइन अंटार्कटिका (दक्षिण में) में रहते हैं और ध्रुवीय भालू आर्कटिक (उत्तर में) में रहते हैं।
- जबकि वे अधिकांशत: हिम और बर्फ के समान ध्रुवीय आवासों में रहते हैं, वे कभी भी एक साथ नहीं रहते हैं।
- अंटार्कटिक में ध्रुवीय भालू नहीं पाए जाने का कारण:
- अंटार्कटिक में ध्रुवीय भालू नहीं होने के मुख्य कारण विकासक्रम, स्थान और जलवायु हैं।
- अन्य महाद्वीपों से अंटार्कटिक (प्लेट टेक्टोनिक्स) के अलग होने के बाद पृथ्वी पर भालू की उत्पत्ति हुई और इसके बाद उनके पास अंटार्कटिक में पहुँचने का कोई आसान तरीका नहीं था।
- अंटार्कटिक में ध्रुवीय भालू नहीं होने के मुख्य कारण विकासक्रम, स्थान और जलवायु हैं।
- आर्कटिक में पेंगुइन नहीं पाए जाने का कारण:
- उत्तरी ध्रुव में ध्रुवीय भालू और आर्कटिक लोमड़ी जैसे शिकारी इनके अस्तित्व को सीमित कर देंगे।
- उत्तरी ध्रुव में पानी की कमी है क्योंकि वहाँ की बर्फ अधिक मोटी है।
- पेंगुइन मुख्य रूप से तटीय पक्षी है और इस प्रकार यह समुद्र में दूर तक नहीं जा सकते हैं।
- इसके अलावा उत्तरी गोलार्द्ध तक पहुँचने के लिये गर्म/ऊष्ण जल से पलायन करना पेंगुइन के लिये लगभग असंभव है और घातक साबित हो सकता है।