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डेली न्यूज़


सामाजिक न्याय

सामुदायिक वन संसाधन

  • 04 Jun 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सामुदायिक वन संसाधन, आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान। 

मेन्स के लिये:

वन अधिकार अधिनियम और संबंधित मामले, सामुदायिक वन संसाधन अधिकार एवं मान्यता का महत्त्व, अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों से संबंधित मुद्दे, सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं का प्रबंधन। 

चर्चा में क्यों? 

छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बन गया है जिसने कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर एक गांँव के सामुदायिक वन संसाधन (CFR) अधिकारों को मान्यता दी है। 

  • जबकि CFR अधिकार जो कि महत्त्वपूर्ण सशक्तीकरण उपकरण हैं, पर विभिन्न गांँवों के बीच उनकी पारंपरिक सीमाओं के बारे में सहमति प्राप्त करना अक्सर चुनौती साबित होता है। 
  • वर्ष 2016 में ओडिशा सरकार सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान के अंदर सामुदायिक वन संसाधन (सीएफआर) को मान्यता देने वाली पहली सरकार थी। 

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान की मुख्य विशेषताएंँ:  

  • कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले (जगदलपुर के पास) में स्थित है। 
  • कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान को कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में भी जाना जाता है। 
  • इसे वर्ष 1982 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था। पार्क का कुल क्षेत्रफल लगभग 200 वर्ग किलोमीटर है। 
  • राष्ट्रीय उद्यान कांगेर नदी की घाटी पर स्थित है। पार्क का नाम कांगेर नदी के नाम पर रखा गया है, जो इस संपूर्ण घाटी मेंं प्रवाहित होती है। 
  • पार्क एक विशिष्ट मिश्रित आर्द्र पर्णपाती प्रकार का वन है, जिसमें साल, सागौन और बांँस के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। 
  • इस क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय पक्षी प्रजाति बस्तर मैना है जो अपनी मानव जैसी आवाज़ से सभी को मंत्रमुग्ध कर देती है। 

National-Parks-Chhattisgarh

सामुदायिक वन संसाधन (CFR) क्या हैं? 

  • परिचय: 
    • यह सामान्य वन भूमि है जिसे किसी विशेष समुदाय द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से सुरक्षित और संरक्षित किया जाता है। 
    • समुदाय द्वारा इसका उपयोग गाँव की पारंपरिक और प्रथागत सीमा के भीतर उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच एवं ग्रामीण समुदायों के मामले में परिदृश्य के मौसमी उपयोग के लिये किया जाता है। 
    • प्रत्येक CRF क्षेत्र में समुदाय और उसके पड़ोसी गांँवों द्वारा मान्यता प्राप्त पहचान योग्य स्थलों की एक प्रथागत सीमा होती है। 
  • श्रेणियाँ: 
    • इसमें किसी भी श्रेणी के वन शामिल हो सकते हैं- राजस्व वन, वर्गीकृत और अवर्गीकृत वन, डीम्ड वन, ज़िला समिति भूमि (DLC), आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान आदि। 

सामुदायिक वन संसाधन अधिकार: 

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम या FRA के रूप में संदर्भित), 2006 की धारा 3 (1)(आई) के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार सामुदायिक वन संसाधनों को "संरक्षण, पुन: उत्पन्न या संरक्षित या प्रबंधित" करने के अधिकार की मान्यता प्रदान करते हैं। 
  • ये अधिकार समुदाय को वनों के उपयोग के लिये स्वयं और दूसरों के लिये नियम बनाने की अनुमति देते हैं तथा इस तरह FRA की धारा 5 के तहत अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं। 
  • CFR अधिकार, धारा 3 (1) (बी) और 3 (1) (सी) के तहत सामुदायिक अधिकारों (CR) के साथ, जिसमें निस्तार अधिकार (रियासतों या ज़मींदारी आदि में पूर्व उपयोग किये जाने वाले) और गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर अधिकार शामिल हैं, समुदाय की स्थायी आजीविका सुनिश्चित करते हैं। 
  • ये अधिकार ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन सीमा के भीतर वन संरक्षण और प्रबंधन की स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं को अपनाने का अधिकार देते हैं। 

CFR अधिकार मान्यता का लाभ: 

  • वन समुदायों हेतु न्याय: 
    • इसका उद्देश्य वनों पर उनके प्रथागत अधिकारों की कटौती के परिणामस्वरूप वन-आश्रित समुदायों के साथ हुए "ऐतिहासिक अन्याय" की भरपाई करना है। 
    • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समुदाय के वन संसाधनों के उपयोग, प्रबंधन और संरक्षण के अधिकार के साथ-साथ खेती व निवास के लिये उपयोग की जाने वाली वन भूमि को कानूनी रूप से धारण करने के अधिकार को मान्यता देता है। 
  • वनवासियों की भूमिका : 
    • यह वनों की स्थिरता और जैवविविधता के संरक्षण में वनवासियों की अभिन्न भूमिका को भी रेखांकित करता है। 
    • राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और बाघ अभयारण्यों जैसे संरक्षित वनों के लिये इसका अधिक महत्त्व है क्योंकि पारंपरिक निवासी अपने पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके संरक्षित वनों के प्रबंधन का हिस्सा बन जाते हैं। 

वन अधिकार अधिनियम: 

  • वर्ष 2006 में अधिनियमित FRA वन में निवास करने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है, जिन पर ये समुदाय आजीविका, निवास व अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक ज़रूरतों सहित विभिन्न आवश्यकताओं के लिये निर्भर थे। 
  • यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD) जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है। 
  • यह FDST और OTFD की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण की व्यवस्था को मज़बूती प्रदान  करता है। 
  • ग्राम सभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो कि FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है। 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. "संकटपूर्ण वन्यजीव पर्यावास" की परिभाषा वन अधिकार अधिनियम, 2006 में समाविष्ट है। 
  2. भारत में पहली बार बैगा (जनजाति) को पर्यावास का अधिकार दिया गया है।
  3. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत के किसी भी भाग में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के लिये पर्यावास अधिकार पर आधिकारिक रूप से निर्णय लेता है तथा इसकी घोषणा करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: A 

व्याख्या:  

  • "संकटपूर्ण वन्यजीव पर्यावास" को वन अधिकार अधिनियम, 2006 में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के ऐसे क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिन्हें वन्यजीव संरक्षण के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित एवं अधिसूचित किया जाना आवश्यक है। अत: कथन 1 सही है। 
  • बैगा समुदाय (मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में) भारत में 75 विशेष रूप से कमोज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) में से एक है, जो वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत पर्यावास अधिकार प्राप्त करने के पात्र हैं। वर्षों से वनों पर राज्य के बढ़ते नियंत्रण और वन भूमि स्वरूप में परिवर्तन, विकास एवं संरक्षण से इन वन समुदायों को गंभीर रूप से खतरा है। अतः वर्ष 2015 में मध्य प्रदेश सरकार ने बैगा जनजाति के पर्यावास अधिकारों को मान्यता प्रदान की, यह जनजाति भारत में पर्यावास का अधिकार प्राप्त करने वाला पहला समुदाय बन गया है। अत: कथन 2 सही है। 
  • PVTGs के पर्यावास अधिकारों को राज्यों में ज़िला स्तरीय समिति द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। जनजातीय मामलों का मंत्रालय PVTGs के संदर्भ में आवास अधिकारों की परिभाषा के दायरे और सीमा को स्पष्ट करता है। अतः  कथन 3 सही नहीं है। 

 अतः विकल्प A सही है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

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