'बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार' | 04 Sep 2021
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य, नोबेल पुरस्कार, सुंदरबन, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय जीवविज्ञानी शैलेंद्र सिंह को तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) कछुए की प्रजातियों को उनके विलुप्त होने की स्थिति से बाहर लाने हेतु बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार (Behler Turtle Conservation Award) से सम्मानित किया गया है।
- देश में मीठे पानी के कछुओं और अन्य प्रकार के कछुओं की 29 प्रजातियांँ पाई जाती हैं।
प्रमुख बिंदु
- बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार के बारे में:
- वर्ष 2006 में स्थापित यह पुरस्कार कछुओं के संरक्षण एवं जैविकी तथा चेलोनियन कंज़र्वेशन एंड बायोलॉजी कम्युनिटी में नेतृत्व क्षमता को सम्मानित करने हेतु दिया जाने वाला एक प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है।
- इसे कछुआ संरक्षण के "नोबेल पुरस्कार" के रूप में भी जाना जाता है।
- ‘बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार’ कछुआ संरक्षण में शामिल कई वैश्विक निकायों जैसे ‘टर्टल सर्वाइवल एलायंस (TSA), IUCN/SSC कच्छप और मीठे पानी के कछुआ विशेषज्ञ समूह, कछुआ संरक्षण तथा ‘कछुआ संरक्षण कोष’ द्वारा प्रदान किया जाता है।
- वर्तमान संदर्भ में तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय कछुओं को देश के विभिन्न हिस्सों में टीएसए इंडिया के अनुसंधान, संरक्षण प्रजनन और शिक्षा कार्यक्रम के एक भाग के रूप में संरक्षित किया जा रहा है।
- नॉर्दन रिवर टेरापिन (Batagur kachuga) को सुंदरबन में संरक्षित किया जा रहा है।
- चंबल में रेड - क्राउन रूफ टर्टल (बाटागुर बास्का)।
- असम के विभिन्न मंदिरों में ब्लैक सॉफ्टशेल टर्टल (निल्सोनिया नाइग्रिकन्स (Nilssonia Nigricans)।
- नॉर्दन रिवर टेरापिन :
- पर्यावास :
- सुंदरबन पारिस्थितिकी क्षेत्र उनका प्राकृतिक आवास है।
- संरक्षण की स्थिति :
- IUCN की रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES : परिशिष्ट- I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अनुसूची- I
- संकट :
- 19वीं और 20वीं सदी में कलकत्ता के बाज़ारों में आपूर्ति सहित स्थानीय जीवन निर्वाह और कर्मकांडी उपभोग के साथ-साथ कुछ क्षेत्रीय व्यापार के लिये इनका दुरूपयोग किया गया।
- पर्यावास :
- रेड - क्राउन रूफ टर्टल:
- पर्यावास :
- ऐतिहासिक रूप से यह प्रजाति भारत और बांग्लादेश दोनों में गंगा नदी में पाई जाती थी। यह ब्रह्मपुत्र बेसिन में भी पाया जाता है।
- वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य इस प्रजाति की पर्याप्त आबादी वाला एकमात्र क्षेत्र है।
- संरक्षण की स्थिति :
- IUCN की रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES: परिशिष्ट- II
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अनुसूची- I
- संकट :
- प्रदूषण और बड़े पैमाने पर विकास गतिविधियों जैसे- मानव उपभोग और सिंचाई के लिये जल की निकासी तथा अपस्ट्रीम बाँधों एवं जलाशयों से अनियमित प्रवाह के कारण आवास की हानि या गिरावट होती है।
- पर्यावास :
- ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ :
- पर्यावास :
- वे पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में पाए जाते हैं।
- इसकी वितरण सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियाँ भी शामिल हैं।
- संरक्षण की स्थिति :
- IUCN रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES : परिशिष्ट- I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : कोई कानूनी संरक्षण नहीं
- संकट :
- कछुए के मांस और अंडे का सेवन, रेत खनन (Silt Mining), आर्द्रभूमि का अतिक्रमण एवं बाढ़ के पैटर्न में बदलाव।
- पर्यावास :
भारतीय जल क्षेत्र के समुद्री कछुए :
- समुद्री कछुए , टेरेपिन (ताज़े जल के कछुए) और अन्य कछुओं की तुलना में आकार में बड़े होते हैं।
- भारतीय जल में कछुए की पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं अर्थात् ओलिव रिडले, ग्रीन टर्टल्स, लॉगरहेड, हॉक्सबिल, लेदरबैक।
- ओलिव रिडले, लेदरबैक और लॉगरहेड को IUCN रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज़ (IUCN Red List of Threatened Species) में 'सुभेद्य' (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- हॉक्सबिल कछुए को 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered)' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और ग्रीन टर्टल को IUCN की खतरनाक प्रजातियों की रेड लिस्ट में 'लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- वे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, अनुसूची- I के तहत संरक्षित हैं।