वायु प्रदूषण और गर्भावस्था का नुकसान: लैंसेट रिपोर्ट | 07 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, खराब वायु गुणवत्ता भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में गर्भावस्था के नुकसान यानी प्रेगनेंसी लॉस (Pregnancy Loss) के मामलों से प्रत्यक्ष तौर पर संबंद्ध है।

  • यह संपूर्ण क्षेत्र में गर्भावस्था के नुकसान पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का अनुमान लगाने वाला अपनी तरह का पहला अध्ययन है।

प्रमुख बिंदु

अध्ययन

  • इस अध्ययन के अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा यह जाँचने के लिये एक मॉडल बनाया गया कि PM2.5 का जोखिम गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को किस प्रकार बढ़ाता है। इस मॉडल के तहत मातृ आयु, तापमान तथा आर्द्रता, मौसमी भिन्नता और गर्भावस्था के नुकसान में दीर्घकालिक रुझानों के समायोजन के बाद PM2.5 में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के कारण गर्भावस्था पर पड़ने वाले जोखिम की गणना की गई।
  • अध्ययन के अनुसार, PM2.5 में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के कारण गर्भावस्था के नुकसान की संभावना 3 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
    • शहरी क्षेत्रों की माताओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की माताओं या वे जिनकी गर्भावस्था के दौरान आयु अधिक हो, में जोखिम की संभावना अधिक पाई गई।
  • क्षेत्र विशिष्ट रिपोर्ट
    • गर्भावस्था के नुकसान के कुल मामलों में से 77 प्रतिशत भारत में, 12 प्रतिशत पाकिस्तान में और 11 प्रतिशत बांग्लादेश में दर्ज किये गए थे।
  • सीमाएँ 
    • यह अध्ययन प्राकृतिक गर्भावस्था के नुकसान और गर्भपात के बीच अंतर करने में असमर्थ था, जिसके कारण यह संभव है कि प्राकृतिक गर्भावस्था के नुकसान पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करके आँका गया हो।
    • कई बार गर्भावस्था से जुड़ी भ्रांतियों और डर के कारण इसके मामले ही दर्ज नहीं होते हैं, जिसके कारण आँकड़ों की गुणवत्ता पर प्रश्न उठाया जा सकता है।

वायु प्रदुषण

  • वायु प्रदूषण हवा में किसी भी भौतिक, रासायनिक या जैविक परिवर्तन को संदर्भित करता है। इसका आशय हानिकारक गैसों, धूल और धुएँ आदि के कारण हवा के संदूषण से है, जो कि पौधों, जानवरों और मनुष्यों को प्रभावित करता है।

वायु प्रदूषक: प्रदूषक वे पदार्थ होते हैं जो प्रदूषण का कारण बनते हैं। 

  • प्राथमिक: वे प्रदूषक जो प्रत्यक्ष तौर पर वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं या किसी विशिष्ट स्रोत से सीधे उत्सर्जित होते हैं, उन्हें प्राथमिक प्रदूषक कहा जाता है। उदाहरण- कणिक तत्त्वों, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड आदि।
  • द्वितीयक: प्राथमिक प्रदूषकों की परस्पर क्रिया और प्रतिक्रिया द्वारा निर्मित प्रदूषकों को द्वितीयक प्रदूषक के रूप में जाना जाता है। उदाहरण- ओज़ोन और माध्यमिक कार्बनिक एरोसोल आदि।

वायु प्रदूषक के कारण

  • खाना बनाने, ऊर्जा और घरों में प्रकाश करने आदि उद्देश्यों हेतु जीवाश्म ईंधन और लकड़ी आदि जलाना।
  • उद्योगों से निकालने वाला धुआँ, जिसमें बिजली उत्पादन करने वाले कोयला-आधारित संयंत्र और डीज़ल जनरेटर संयंत्र भी शामिल हैं।
  • परिवहन क्षेत्र, विशेष रूप से डीज़ल इंजन वाले वाहन।
  • कृषि, जिसमें पशुधन, जो मीथेन और अमोनिया का उत्पादन करता है, धान, जिससे मीथेन का उत्पादन होता है और कृषि अपशिष्ट को जलाना आदि शामिल हैं।
  • खुले में अपशिष्ट को जलाना।

मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव

  • स्वास्थ्य प्रभाव संस्थान (HEI) द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020’ (SoGA 2020) रिपोर्ट के अनुसार-
    • PM2.5 और PM10 के उच्च स्तर के कारण 1,16,000 से अधिक भारतीय शिशुओं की मृत्यु हुई।
    • इनमें से आधे से अधिक मौतें PM2.5 से जुड़ी थीं, जबकि अन्य ‘इंडोर प्रदूषण’ जैसे- खाना पकाने के लिये कोयला, लकड़ी और गोबर आदि के उपयोग से होने वाले प्रदूषण से जुड़ी हुई थीं।
  • लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल द्वारा प्रकाशित ‘2017 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़’ रिपोर्ट की मानें तो- 
    • भारत, जहाँ वैश्विक आबादी का तकरीबन 18 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है, में वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल असामयिक मौतों में से 26 प्रतिशत मौतों के मामले दर्ज किये जाते हैं।
    • वर्ष 2017 में भारत में प्रत्येक आठ मौतों में से एक मौत के लिये वायु प्रदूषण प्रत्यक्ष तौर पर उत्तरदायी था और अब वायु प्रदूषण देश में धूम्रपान से भी अधिक लोगों की जान लेता है।
  • घरेलू वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 3.8 मिलियन लोगों की असामयिक मृत्यु होती है।
  • वायु गुणवत्ता अब एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गई है, क्योंकि प्रदूषक काफी तीव्र गति से लोगों के फेफड़ों को प्रभावित करते हैं और रक्त को शुद्ध करने की फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है, जिससे व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि, मानसिक क्षमता और विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा बुजुर्ग लोगों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
    • वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में प्रायः जन्म के समय कम वज़न, अस्थमा, कैंसर, मोटापा, फेफड़ों की समस्या और ऑटिज़्म की समस्या देखी जाती है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये भारतीय पहल:

अंतर्राष्ट्रीय पहलें:

  • जलवायु और स्वच्छ वायु संघ (CCAC):
    • इसकी शुरुआत वर्ष 2019 में हुई थी।
    • CCAC विश्व के 65 देशों (भारत सहित), 17 अंतर-सरकारी संगठनों, 55 व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थाओं और कई नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है।
    • इस संघ का प्राथमिक उद्देश्य मीथेन, ब्लैक कार्बन और हाइड्रो फ्लोरोकार्बन जैसे पर्यावरणीय प्रदूषकों को कम करना है।
    • CCAC की 11 प्रमुख पहलें (Initiatives) हैं जो जागरूकता बढ़ाने, संसाधनों को एकत्रित करने और प्रमुख क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्यों का नेतृत्व करने के लिये कार्य कर रही हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र स्वच्छ वायु पहल: यह राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों से वायु की गुणवत्ता के स्तर को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है जो नागरिकों के लिये सुरक्षित है तथा इसका कार्य वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन एवं वायु प्रदूषण नीतियों को संरेखित करना है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 4 स्तंभ रणनीति: WHO ने वायु प्रदूषण के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों के समाधान के लिये एक संकल्प (वर्ष 2015) को अपनाया।

PM (पर्टिकुलेट मैटर) 2.5

  • PM2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का एक वायुमंडलीय कण होता है, जो कि मानव बाल के व्यास का लगभग 3 प्रतिशत होता है।
  • यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है और हमारे देखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। साथ ही यह डायबिटीज़ का भी एक कारण होता है।
  • यह इतना छोटा होता है कि इसे केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है।
  • सभी प्रकार की दहन गतिविधियाँ (मोटर वाहन, बिजली संयंत्र, लकड़ी जलाना आदि) और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाएँ इन कणों का मुख्य स्रोत होती हैं।

आगे की राह

  • वायु प्रदूषण का तत्काल समाधान खोजने और स्वास्थ्य प्रणालियों को जल्द-से-जल्द मज़बूत करने की आवश्यकता है। ज्ञात हो कि विश्व भर में कोरोना वायरस के कारण लागू किये गए लॉकडाउन से वायु प्रदूषण से अल्पावधि राहत देखने को मिली थी, हालाँकि इस समस्या को स्थायी रूप से अभी भी हल किया जाना शेष है।
  • साथ ही वायु प्रदूषण पर जन-जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिये आम लोगों को शिक्षित और सूचित किया जा सकता है। सार्वजनिक व्यवहार को बदलने में मदद के लिये मेट्रो, बसों, होर्डिंग और रेडियो के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य संदेश प्रसारित किये जा सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस