प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 25 फरवरी, 2020
क्रास्पेडोट्रोपिस ग्रेटाथनबर्ग
Craspedotropis Gretathunbergae
हाल ही में वैज्ञानिकों के एक समूह ने ब्रुनेई में घोंघे की एक नई प्रजाति की खोज की है।
मुख्य बिंदु:
- इस प्रजाति का नाम जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करने वाली स्वीडन की एक कार्यकर्त्ता ग्रेटाथनबर्ग के सम्मान में क्रास्पेडोट्रोपिस ग्रेटाथनबर्ग (Craspedotropis Gretathunbergae) रखा गया है।
- यह नई प्रजाति उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में निवास करती हैं और सूखे एवं अत्यधिक तापमान के प्रति संवेदनशील है।
- हाल ही में बीटल की एक छोटी प्रजाति का नाम भी उनके नाम पर नेलोप्टोडे ग्रेटे (Nelloptodes Gretae) रखा गया था।
- वर्ष 2018 में बीटल की एक नई प्रजाति (ग्रोवेल्लिनस लियोनार्डोडिकैप्रियो-Grouvellinus Leonardodicaprioi) का नाम लियोनार्डो डिकैप्रियो (एक अमेरिकी अभिनेता, निर्माता और पर्यावरणविद्) के नाम पर रखा गया था।
बभनियाव: पुरातात्त्विक स्थल
Babhaniyav: Archaeological Site
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University- BHU) के सर्वेक्षणकर्त्ताओं की एक टीम ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 13 किमी. दूर बभनियाव (Babhaniyav) गाँव में लगभग 4,000 वर्ष पुरानी शहरी बस्ती का पता लगाया गया है।
मुख्य बिंदु:
- अनुमान लगाया गया है कि यह प्राचीन ग्रंथों में वर्णित शिल्प ग्रामों में से एक हो सकता है।
- बुद्ध के काल में वाराणसी के आसपास कई उपनगरीय शिल्प ग्राम थे। जैसे- बढ़ई का गाँव या रथ बनाने वाला गाँव।
- उत्तर प्रदेश में शिल्प ग्राम सारनाथ, तिलमापुर और रामनगर जिन्हें पहले खोजा जा चुका हैं।
- बभनियाव गाँव में पुरातात्त्विक स्थल के प्रारंभिक सर्वेक्षण में 8वीं शताब्दी ईस्वी से 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच एक मंदिर का पता चला है। यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तन लगभग 4000 वर्ष पुराने हैं, जबकि मंदिर की दीवारें 2000 वर्ष पुरानी हैं।
- सर्वेक्षणकर्त्ताओं ने एक स्तंभ का भी पता लगाया है। जिसमें कुषाण-ब्राह्मी लिपि में दो-पंक्तियाँ लिखी हैं।
- कुषाण वंश ने पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर में, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
- कुषाण शासकों द्वारा जारी किये गए शिलालेख या उनके शासन क्षेत्रों में ग्रंथ बैक्ट्रियन भाषा (ग्रीक लिपि) में एवं प्राकृत भाषा (ब्राह्मी या खरोष्ठी लिपि) में लिखे गए हैं।
- इस स्थल की वाराणसी से निकटता के कारण इसका महत्त्व अधिक है जिसे 5,000 वर्ष पुराना माना जाता है, हालाँकि आधुनिक विद्वानों का मानना है कि यह लगभग 3,000 वर्ष पुराना है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, यह स्थल वाराणसी का एक छोटा उप-केंद्र हो सकता है जो एक नगरीय कस्बे के रूप में विकसित हुआ होगा। बभनियाव एक अनुषंगी शहर और वाराणसी-सारनाथ क्षेत्र के लिये एक निर्यातक केंद्र हो सकता है।
वाराणसी:
- वाराणसी उत्तर प्रदेश राज्य के दक्षिण-पूर्व में गंगा नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है और हिंदू धर्म के सात पवित्र शहरों में से एक है।
- यह विश्व के सबसे पुराने शहरों में से एक है। इसका प्रारंभिक इतिहास मध्य गंगा घाटी में पहली आर्य बस्ती से शुरू होता है।
- बुद्ध के समय (6वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में वाराणसी, काशी राज्य की राजधानी थी। गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था।
- प्रसिद्ध चीनी बौद्ध तीर्थयात्री जुआनज़ांग (Xuanzang) जिसने लगभग 635 ईस्वी में इस शहर का दौरा किया था, ने इस शहर को धार्मिक, शैक्षिक और कलात्मक गतिविधियों का केंद्र बताया।
- वर्ष 1194 में जब इस उपमहाद्वीप पर मुस्लिम आक्रमण हुए तब से वाराणसी के शहरीकरण में गिरावट आनी शुरू हुई।
- 18वीं शताब्दी में वाराणसी एक स्वतंत्र राज्य बना और बाद के ब्रिटिश शासन के तहत यह एक वाणिज्यिक और धार्मिक केंद्र बना रहा।
- वर्ष 1910 में अंग्रेज़ों ने वाराणसी को एक नया भारतीय राज्य बनाया जिसमें रामनगर (गंगा के विपरीत तट पर स्थित है ) को मुख्यालय बनाया गया था।
- वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद वाराणसी राज्य उत्तर प्रदेश का हिस्सा बन गया।
ओलिव रिडले कछुआ
Olive Ridleys Turtle
ओडिशा के समुद्री तट के पास रुशिकुल्या नदी के मुहाने पर सारी तैयारियाँ कर ली गई हैं जहाँ विश्व के सबसे छोटे समुद्री कछुए ओलिव रिडले (Olive Ridleys) प्रत्येक वर्ष अंडे देने के लिये आते हैं।
मुख्य बिंदु:
- ओलिव रिडले समुद्री कछुओं (Lepidochelys olivacea) को ‘प्रशांत ओलिव रिडले समुद्री कछुओं’ के नाम से भी जाना जाता है।
- ये मुख्य रूप से प्रशांत, हिंद और अटलांटिक महासागरों के गर्म जल में पाए जाने वाले समुद्री कछुओं की एक मध्यम आकार की प्रजाति है। ये मांसाहारी होते हैं।
आईयूसीएन स्थिति:
- पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले विश्व के सबसे पुराने और सबसे बड़े संगठन आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा जारी रेड लिस्ट में इसे अतिसंवेदनशील (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है।
- ओलिव रिडले कछुए हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर ओडिशा के गंजम तट पर अंडे देने आते हैं और फिर इन अंडों से निकले बच्चे समुद्री मार्ग से वापस हज़ारों किलोमीटर दूर अपने निवास-स्थान पर चले जाते हैं।
- उल्लेखनीय है कि लगभग 30 साल बाद यही कछुए जब प्रजनन के योग्य होते हैं, तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने आते हैं, जहाँ उनका जन्म हुआ था।
- दरअसल अपनी यात्रा के दौरान वे भारत में गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुज़रते हैं, किंतु प्रजनन करने और घर बनाने के लिये ओडिशा के समुद्री तटों की रेत को ही चुनते हैं।
विट्टल मंदिर
Vittala Temple
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने हम्पी (Hampi) के विट्टल मंदिर (Vittala Temple) परिसर के अंदर स्थित पत्थर के रथ को सुरक्षित करने के लिये इसके चारों ओर एक लकड़ी का बाड़ा स्थापित करने का निर्णय लिया है। गौरतलब है कि विट्टल मंदिर हम्पी में सबसे अधिक देखे जाने वाले संरक्षित स्मारकों में से एक है।
विट्टल मंदिर के बारे में:
- हम्पी में विट्टल मंदिर एक प्राचीन स्मारक है जो अपनी असाधारण वास्तुकला और बेजोड़ शिल्प कौशल के लिये जाना जाता है। इसे हम्पी में सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध संरचना में से एक माना जाता है।
अवस्थिति:
- विट्टल मंदिर हम्पी के उत्तर-पूर्वी भाग में तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है।
मुख्य आकर्षक:
- इस मंदिर में अद्भुत पत्थर की संरचनाएँ हैं जैसे- पत्थरों से निर्मित रथ व संगीतमय स्तंभ।
निर्माण कार्य:
- विट्टल मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में कराया गया था। यह विजयनगर साम्राज्य के शासकों में एक प्रमुख राजा देवराय द्वितीय (1422 - 1446 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान बनवाया गया था।
- विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेवराय (1509-1529 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान इस मंदिर के कई हिस्सों का विस्तार किया गया। उन्होंने स्मारक को उसका वर्तमान स्वरूप देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विट्ठल मंदिर समर्पित है:
- विट्टल मंदिर को ‘श्री विजया विठ्ठला मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान विष्णु के एक अवतार ‘भगवान विठ्ठल’ को समर्पित है। इस मंदिर में विठ्ठल-विष्णु की एक मूर्ति विराजमान है।
मंदिर की वास्तुकला शैली:
- विट्टल मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली में निर्मित है।
पत्थर का रथ:
- विट्टल मंदिर परिसर में स्थित पत्थर के रथ को विजयनगर साम्राज्य का सबसे आश्चर्यजनक वास्तुकला माना जाता है।
- यह भारत के तीन प्रसिद्ध पत्थर के रथों में से एक है। अन्य दो पत्थर के रथ कोणार्क (ओडिशा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में स्थित हैं।
- विट्टल मंदिर में स्थित पत्थर का रथ वास्तव में एक मंदिर है जिसे एक सजावटी रथ के आकार में डिज़ाइन किया गया है।
- यह मंदिर गरुड़ पक्षी को समर्पित है और गरुड़ की एक आकृति इस मंदिर के गर्भगृह में है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन है।
रंगा मंडप के संगीतमय स्तंभ
(Musical Pillars):
- रंगा मंडप विट्टल मंदिर के मुख्य आकर्षणों में से एक है। यह विशाल मंडप अपने 56 संगीतमय स्तंभों के लिये प्रसिद्ध है।
- इन संगीतमय स्तंभों को सा, रे, गा, मा (SAREGAMA) स्तंभों के रूप में भी जाना जाता है जिनसे संगीत सुरों की ध्वनि प्रवाहित होती हैं।
- मंडप के अंदर मुख्य स्तंभों और छोटे स्तंभों के कई सेट मौजूद हैं। प्रत्येक मुख्य स्तंभ रंगा मंडप की छत को सहारा देता है। मुख्य स्तंभों को संगीत वाद्ययंत्र के रूप में डिज़ाइन किया गया है।
- प्रत्येक मुख्य स्तंभ 7 छोटे स्तंभों से घिरा हुआ है। ये 7 स्तंभ प्रतिनिधि संगीत वाद्ययंत्रों से 7 अलग-अलग संगीत की ध्वनि निकलती है।