प्रारंभिक परीक्षा
शनि के रहस्यमय वलय और चरम झुकाव
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, शनि के चमकीले वलय और चरम झुकाव की संभावना पहले से मौजूद चंद्रमा क्रिसलिस के कारण है।
प्रमुख बिंदु
- पर्याप्त झुकाव: शनि का झुकाव 26.73 डिग्री है और इसके निर्माण के चरणों के दौरान झुकाव होने की संभावना नहीं थी।
- वर्तमान में गैस जायंट नेपच्यून, यूरेनस और शनि में पर्याप्त रूप से झुकाव हुआ है, जो यह दर्शाते है कि यह विशेषता निर्माण चरणों के दौरान उत्पन्न नहीं हुई थी।
- झुकाव का कारण: विभिन्न सिद्धांतों का सुझाव है कि शनि अपने पड़ोसी नेपच्यून के साथ गुरुत्वाकर्षण अंत:क्रिया के कारण झुका हुआ है।
- लेकिन नए अध्ययन का तर्क है कि शनि अब नेपच्यून के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव में नहीं है।
- वर्ष 2004 से 2017 तक शनि की परिक्रमा करने वाले नासा के कैसिनी अंतरिक्षयान के अवलोकन के आधार पर शनि के सबसे बड़े उपग्रह टाइटन के प्रभाव में हैं।
- टाइटन का पलायन: टाइटन शनि से प्रतिवर्ष लगभग 11 सेंटीमीटर की गति से पलायन कर रहा है, जो पिछले अनुमानों की तुलना में 100 गुना तेज़ है।
- टाइटन के तेज़ी से पलायन ने ग्रह को और अधिक झुका दिया, जिससे शनि पर नेपच्यून का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव कम हो गया।
- पूर्व चंद्रमा (क्रिसलिस) की भूमिका: वैज्ञानिकों ने ग्रह के घूमने की धुरी का अनुकरण किया कि यह समय के साथ कैसे बदल गया है, इसमें पूर्व चंद्रमा के प्रभाव का पता चला है, क्योंकि मॉडल के अनुसार, चंद्रमा/उपग्रह के हटने से शनि का झुकाव होता है।
- क्रिसलिस ने कई अरब वर्षों तक शनि की परिक्रमा की, लगभग 160 मिलियन वर्ष पहले, क्रिसलिस अस्थिर हो गया और अपने ग्रह के बहुत करीब आ गया जिसने संभवतः चंद्रमा/उपग्रह को दूर धकेल दिया या नष्ट कर दिया।
शनि ग्रह:
- शनि सूर्य से छठा ग्रह है और हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
- हज़ारों सुंदर वलयों से सुशोभित शनि ग्रहों में अद्वितीय है।
- यह एकमात्र ऐसा ग्रह नहीं है जिसके छल्ले हैं जो बर्फ और चट्टान के टुकड़ों से बने हैं लेकिन अन्य कोई भी ग्रह उतना शानदार या उतना जटिल नहीं है जितना कि शनि।
- 82 उपग्रहों के साथ सौरमंडल में शनि के सबसे अधिक उपग्रह अथवा चंद्रमा हैं।
- साथी ग्रह गैस से बने विशाल बृहस्पति की तरह शनि एक विशाल गेंद की भाँति है जो ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम से बना है।
- कुछ मिशन में शनि का दौरा किया गया है: पायनियर 11 और वॉयजर 1 एवं 2 ने उड़ान भरी, लेकिन कैसिनी ने 2004 से 2017 तक 294 बार शनि की परिक्रमा की।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्र. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b)
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स्रोत: डाउन टू अर्थ
प्रारंभिक परीक्षा
निज़ाम की तलवार की वापसी
14वीं सदी की औपचारिक तलवार जो 20वीं सदी की शुरुआत में हैदराबाद में एक ब्रिटिश जनरल को बेची गई थी, को भारत में वापस लाने की तैयारी की जा रही है।
- यह तलवार उन सात वस्तुओं में शामिल है जिन्हें ग्लासगो लाइफ (जो ग्लासगो के संग्रहालयों का प्रबंधन करती है) द्वारा स्वदेश भेजा जा रहा है।
तलवार:
- तलवार का इतिहास:
- तलवार का प्रदर्शन हैदराबाद के निज़ाम महबूब अली खान, आसफ जाह VI (वर्ष 1896-1911) द्वारा दिल्ली या इंपीरियल दरबार में वर्ष 1903 में किया गया था, जो भारत के सम्राट और महारानी के रूप में राजा एडवर्ड सप्तम और रानी एलेक्जेंड्रा के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में आयोजित एक औपचारिक स्वागत समारोह था।
- तलवार को वर्ष 1905 में बॉम्बे कमांड के कमांडर-इन-चीफ, जनरल सर आर्चीबाल्ड हंटर द्वारा (1903-1907) महाराजा किशन प्रसाद जो हैदराबाद के बहादुर यामीन उस-सुल्तान के प्रधानमंत्री थे, से खरीदा गया था।
- किशन प्रसाद महाराजा चंदू लाल के परिवार से थे, जो दो बार निजाम सिकंदर जाह के प्रधानमंत्री रहे।
- किशन प्रसाद को उनकी उदारता के लिये जाना जाता था, वहीँ उन्हें अपनी मोटरकार का पीछा करने वाले लोगों के लिये सिक्के लुटाने हेतु भी जाना जाता था।
- तलवार को सर हंटर के भतीजे, मिस्टर आर्चीबाल्ड हंटर सर्विस ने वर्ष 1978 में ग्लासगो लाइफ- संग्रहालय के लिये दान कर दिया था।
- विशेषताएँ:
- साँप के आकार की तलवार में दाँतेदार किनारे और दमिश्क पैटर्न है, जिसमें हाथी-बाघ की सोने की नक्काशी हुई है।
- ग्लासगो में अन्य भारतीय वस्तुएँ:
- छह वस्तुओं में 14वीं शताब्दी की कई नक्काशी और 11वीं शताब्दी के पत्थर के दरवाजे शामिल हैं। उन्हें 19वीं सदी में पूजास्थलों और मंदिरों से चुरा लिया गया था।
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
ब्रह्मोस मिसाइल
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिये अतिरिक्त दोहरी भूमिका वाली ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने हेतु ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के साथ 1700 करोड़ रुपए के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं।
- दोहरी भूमिका क्षमता का तात्पर्य भूमि के साथ-साथ जहाज़-रोधी हमलों के लिये ब्रह्मोस मिसाइलों के उपयोग से है। उन्हें स्थल, वायु एवं समुद्र से लॉन्च किया जा सकता है और तीनों वेरिएंट भारतीय सशस्त्र बलों के तहत सेवा में हैं।
समझौते का महत्त्व:
- इन दोहरी भूमिका वाली आधुनिक मिसाइलों के भारतीय नौसेना में शामिल होने से बेड़े की मारक क्षमता और परिचालन गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी।
- इस प्रकार की महत्त्वपूर्ण संचार हथियार प्रणाली से स्वदेशी उत्पादन को एक बढ़ावा मिलेगा।
- ब्रह्मोस मिसाइलों से स्वदेशी उद्योग की सक्रिय भागीदारी के साथ गोला-बारूद में भी वृद्धि की उम्मीद है।
ब्रह्मोस मिसाइल:
- भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
- यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट) मिसाइल है।
- यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है जिसे स्थल, वायु एवं समुद्र में बहुक्षमता वाली मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है जो खराब मौसम के बावजूद दिन और रात में काम कर सकती है।
- यह "फायर एंड फॉरगेट/दागो और भूल जाओ" सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
हालिया विकासक्रम:
- अप्रैल 2022 में भारतीय नौसेना तथा अंडमान और निकोबार कमांड द्वारा संयुक्त रूप से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के एक एंटी-शिप संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
- जनवरी 2022 में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के एक विस्तारित रेंज के समुद्र-से-समुद्र संस्करण का परीक्षण स्टील्थ गाइडेड मिसाइल विध्वंसक INS विशाखापत्तनम से किया गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. कभी-कभी समाचार में उल्लिखित टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)’ क्या है? (a) इज़रायल की एक रडार प्रणाली उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न. S-400 वायु रक्षा प्रणाली तकनीकी रूप से विश्व में वर्तमान में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली से कैसे बेहतर है? (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 सितंबर, 2022
हाइफा दिवस
प्रत्येक वर्ष 23 सितंबर को भारतीय सेना द्वारा हाइफा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हाइफा दिवस का मुख्य उद्देश्य हाइफा के युद्ध में लड़ने वाले भारतीय सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करना है। हाइफा का युद्ध 23 सितंबर, 1918 को हुआ था, जिसमें जोधपुर, मैसूर तथा हैदराबाद के सैनिकों, जो कि 15 इंपीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड का हिस्सा थे, ने मित्र राष्ट्रों की ओर से प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लेकर जर्मनी व तुर्की के आधिपत्य वाले इज़रायल के ‘हाइफा शहर’ को मुक्त करवाया था। इस युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने दिल्ली स्थित विख्यात तीन मूर्ति मेमोरियल को तीन मूर्ति हाइफा मेमोरियल के रूप में पुनः नामित किया था।
अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस
बधिर लोगों के मानवाधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में सांकेतिक भाषा के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु प्रतिवर्ष 23 सितंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ का आयोजन किया जाता है। ‘अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ का प्रस्ताव बधिर लोगों के 135 राष्ट्रीय संघों के संघ- ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ’ (WFD) ने रखा। इस प्रस्ताव को 19 दिसंबर, 2017 को सर्वसम्मति से अपनाया गया। इस प्रकार वैश्विक स्तर पर पहला ‘अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ का आयोजन वर्ष 2018 में किया गया था। वर्ष 1951 की 23 सितंबर की तारीख ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ’ की स्थापना का प्रतीक है। अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस, 2022 की थीम “सांकेतिक भाषाएँ हमें एकजुट करती हैं”(‘Sign Languages Unite Us’) है। ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ’ के आँकड़ों की मानें तो दुनिया भर में 70 मिलियन से अधिक बधिर व्यक्ति हैं। ज्ञात हो कि सांकेतिक भाषा संप्रेषण का एक माध्यम है, जहाँ हाथ के इशारों और शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार सांकेतिक भाषाएँ बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से अलग होती हैं और इनका प्रयोग अधिकांशतः श्रवण बाधित लोगों द्वारा किया जाता है।
राज्य पर्यावरण मंत्रियों का राष्ट्रीय सम्मेलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 सितंबर, 2022 को गुजरात के एकता नगर में पर्यावरण मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन का वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से उद्घाटन किया। सहकारी संघवाद की अवधारणा मज़बूत करते हुए इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से पर्यावरण अनुकूल जीवन-शैली पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। साथ ही जलवायु परिवर्तन से प्रभावशाली तरीके से निपटने और प्लासटिक कचरे के उन्मूलन के लिये नीतियों को उचित तरीके से लागू करने में केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करने पर विचार किया जाएगा। वन्यजीव संरक्षण, भूमि की गुणवत्ता बनाए रखने और वन क्षेत्र बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। दो दिन के इस सम्मेलन में पर्यावरण से जुड़े विभिन्न विषयों पर छह सत्र आयोजित होंगे। इनमें पर्यावरण अनुकूल जीवन-शैली, जलवायु परिवर्तन नियंत्रण, विकास परियोजनाओं की एक ही स्थान पर मंज़ूरी, वानिकी प्रबंधन, प्रदूषण की रोकथाम, वन्यजीव प्रबंधन तथा प्लास्टिक कचरा प्रबंधन आदि विषय शामिल हैं।