प्रिलिम्स फैक्ट्स (15 Jun, 2021)



प्रिलिम्स फैक्ट: 15 जून, 2021

रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार

Innovations for Defence Excellence 

हाल ही में रक्षा मंत्री ने अगले पाँच वर्षों के लिये रक्षा नवाचार संगठन (Defence Innovation Organisation- DIO) के तहत रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (Innovations for Defence Excellence- iDEX) चुनौती हेतु 498.8 करोड़ रुपए के बजटीय समर्थन को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार के बारे में:

  • iDEX पहल अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई थी।
  • iDEX का उद्देश्य रक्षा एवं एयरोस्पेस से संबंधित समस्याओं का हल निकालने, प्रौद्योगिकी विकसित करने और नवाचार के लिये स्टार्टअप को बढ़ावा देना है। यह MSME, स्टार्ट-अप्स, व्यक्तिगत इनोवेटर, शोध एवं विकास संस्थानों और अकादमियों को अनुसंधान एवं विकास के लिये अनुदान प्रदान करता है।
  • iDEX को DIO द्वारा वित्तपोषित तथा प्रबंधित किया जाता है और यह DIO की कार्यकारी शाखा के रूप में कार्य करता है।
    • DIO कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 8 के तहत पंजीकृत एक 'गैर-लाभकारी' कंपनी है।
    • इसके दो संस्थापक सदस्य हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSU) हैं। HAL और BEL नवरत्न कंपनियाँ हैं।
    • अनुसंधान एवं विकास कार्य को पूरा करने के लिये आकर्षक उद्योगों को वित्तपोषण और अन्य सहायता प्रदान करना।
    • भारत की सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिये रक्षा उपकरणों के निर्माण में आत्मनिर्भरता एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2011-15 और 2016-20 के बीच भारत के हथियारों का आयात 33 फीसदी गिर गया।
  • iDEX चुनौतियों से निपटने हेतु भागीदारों को हैंड होल्डिंग, तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये  iDEX ने देश में अग्रणी इन्क्यूबेटरों के साथ भागीदारी की है।

अन्य संबंधित पहलें:

  • रक्षा औद्योगिक गलियारे:
    • रक्षा क्षेत्र में विकास और विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के लिये भारत में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किये जा रहे हैं, एक उत्तर प्रदेश में और दूसरा तमिलनाडु में।
  • सामरिक भागीदारी (SP) मॉडल:
    • SP मॉडल कुछ भारतीय निजी कंपनियों को चिह्नित करता है जो शुरू में वैश्विक मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) के साथ गठजोड़ कर घरेलू विनिर्माण बुनियादी ढाँचे और आपूर्ति शृंखलाओं को स्थापित करने के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की मांग करेंगे। यह रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 का एक हिस्सा है।
  • रक्षा क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता:
    • वर्ष 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा क्षेत्र में AI के प्रभावों का अध्ययन करने के लिये एन चंद्रशेखरन टास्क फोर्स की स्थापना की गई थी।
    • इसके अलावा मार्च 2019 में डिफेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोजेक्ट एजेंसी (DAIPA)  स्थापित की गई थी।
    • DAIPA का लक्ष्य रक्षा क्षेत्र में कृत्रिम बुधिमत्ता (AI) के उपयोग पर अधिक ज़ोर देना, AI-सक्षम उत्पादों को विकसित करने के लिये प्रत्येक रक्षा पीएसयू और आयुध निर्माणी बोर्ड के लिये AI रोडमैप तैयार करना है।

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 जून, 2021

‘एक्सटेंशन ऑफ हॉस्पिटल’ परियोजना

कोविड-19 के विरुद्ध भारत की लड़ाई में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी अवसंरचना की एक बड़ी कमी को दूर करने के लिये भारत ने विभिन्न राज्यों में ‘एक्सटेंशन ऑफ हॉस्पिटल’ नाम से एक परियोजना की शुरुआत की है। इस परियोजना के तहत स्वास्थ्य अवसंरचना के विस्तार के रूप में मौजूदा अस्पतालों के निकट ही मॉड्यूलर अस्पतालों का निर्माण किया जाएगा। जैसे-जैसे देश के विभिन्न हिस्सों में कोविड-19 के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, अस्पतालों की बुनियादी अवसंरचना पर भी भारी दबाव पड़ रहा है। ऐसे में इनोवेटिव मॉड्यूलर अस्पताल संकट के बीच एक बड़ी राहत के रूप में कार्य कर सकते हैं। इस परियोजना के तहत मॉड्यूलर अस्पतालों के निर्माण के लिये विभिन्न हितधारकों जैसे- निजी क्षेत्र की कंपनियों, प्रदाता संगठनों और निजी व्यक्तियों आदि को भी आमंत्रित किया जाएगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- मद्रास (IIT-M) में ‘मॉड्यूलस हाउसिंग’ नामक एक स्टार्ट-अप ने ‘मेडिकैब अस्पतालों’ का विकास किया है। यह 3 सप्ताह के समय अंतराल में 100 बिस्तरों वाली विस्तार सुविधा का निर्माण करने में सक्षम बनाता है। ‘मेडिकैब अस्पतालों’ को गहन देखभाल इकाइयों (ICU) के एक समर्पित क्षेत्र के साथ डिज़ाइन किया गया है, जिनमें विभिन्न जीवन-समर्थक चिकित्सा उपकरणों को समायोजित किया जा सकता है। ये अस्पताल लगभग 25 वर्ष तक कार्य करने में सक्षम हैं और इन्हें भविष्य में एक सप्ताह से भी कम समय में किसी भी आपदा प्रतिक्रिया के लिये स्थानांतरित किया जा सकता है। 

‘युवा शक्ति कोरोना मुक्ति’ अभियान

मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के लोगों को कोविड-19 महामारी के बारे में जागरूक करने के लिये 'युवा शक्ति कोरोना मुक्ति अभियान' शुरू किया है। इस अभियान का प्राथमिक उद्देश्य युवा शक्ति के माध्यम से कोरोना से मुक्ति का लक्ष्य निर्धारित करना है। इस अभियान के तहत राजकीय उच्च एवं तकनीकी शिक्षा महाविद्यालयों के शिक्षकों एवं लगभग 16 लाख विद्यार्थियों को 'कोविड अनुकूल व्यवहार एवं टीकाकरण' संबंधी प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। इसके तहत छोटे-छोटे समूहों में कॉलेजों में छात्रों को कोविड के अनुकूल व्यवहार और टीकाकरण के महत्त्व के बारे में जानकारी दी जाएगी और आवश्यक सामग्री का वितरण किया जाएगा। ये प्रशिक्षित छात्र आगे अपने परिवारों और आसपास के क्षेत्रों के लोगों को टीकाकरण के लाभों और कोरोना की रोकथाम के बारे में जानकारी का प्रसार करेंगे। अभियान की प्रभावी रियल-टाइम निगरानी के लिये एक मोबाइल एप भी विकसित किया गया है। एप के माध्यम से 'युवा शक्ति कोरोना मुक्ति' अभियान की दैनिक गतिविधियों और प्रगति की समीक्षा की जाएगी। 

‘वायरसाइड्स’ मास्क

पुणे स्थित एक स्टार्ट-अप कंपनी ने 3डी प्रिंटिंग और फार्मास्यूटिकल्स को एकीकृत करते हुए एक ऐसा मास्क विकसित किया है, जो अपने संपर्क में आने वाले वायरल के कणों को निष्क्रिय कर देता है। ‘थिंकर टेक्नोलॉजीज़ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ द्वारा विकसित ये मास्क ‘वायरसाइड्स’ नामक एंटी-वायरल एजेंटों के साथ लेपित हैं। इस कोटिंग ने परीक्षण के दौरान ‘SARS-CoV-2’ को निष्क्रिय करने में अपनी क्षमता को सिद्ध किया है। इस मास्क के निर्माण में सामग्री के तौर पर सोडियम ओलेफिन सल्फोनेट-आधारित मिश्रण का प्रयोग किया गया है, जो कि साबुन बनाने वाला एजेंट है। विषाणुओं के संपर्क में आने पर यह विषाणु के बाहरी हिस्से को बाधित कर देता है। इस मास्क के निर्माण में प्रयोग की गई सामग्री प्रायः कमरे के तापमान पर स्थिर रहती है और व्यापक रूप से सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोग की जाती है। ज्ञात हो कि प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (TDB), जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक सांविधिक निकाय है, ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ने के लिये और नए समाधान खोजने हेतु केंद्र सरकार की पहल के हिस्से के रूप में इस परियोजना को वित्तपोषित किया था। यह व्यावसायीकरण के लिये ‘प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड’ द्वारा चयनित प्रारंभिक परियोजनाओं में से एक है। 

अंतर्राष्ट्रीय ऐल्बिनिज़्म जागरूकता दिवस

संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिवर्ष 13 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय ऐल्बिनिज़्म जागरूकता दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य ऐल्बिनिज़्म अथवा रंगहीनता के बारे में लोगों को जागरूक करना तथा रंगहीनता से पीड़ित लोगों के मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर, 2014 को ऐल्बिनिज़्म से पीड़ित लोगों के साथ विश्व में होने वाले भेदभाव के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 13 जून को अंतर्राष्ट्रीय ऐल्बिनिज़्म जागरूकता दिवस मनाने की घोषणा की थी। ऐल्बिनिज़्म जन्म के समय से ही मौजूद एक दुर्लभ और आनुवंशिक रूप से विकसित रोग होता है। यह गैर-संक्रामक रोग भी है। यह मानव शरीर में मेलेनिन (Melanin) के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव में त्वचा, बाल एवं आँखों में रंजक या रंग के संपूर्ण या आंशिक अभाव द्वारा चिह्नित किया जाने वाला एक जन्मजात विकार है। ऐल्बिनिज़्म से पीड़ित लगभग सभी लोग दृष्टिबाधित होते हैं और उनमें त्वचा कैंसर होने का खतरा होता है। भारत में वर्तमान में ऐल्बिनिज़्म से पीड़ित लोगों की संख्या लगभग 1,00,000 है।