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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 12 Apr, 2022
  • 18 min read
प्रारंभिक परीक्षा

असम के मेगालिथ

हाल ही में पुरातत्वविदों ने 65 बड़े बलुआ पत्थर के कलशों (मेगालिथ) की पहचान की है, जिनके बारे में माना जा रहा है कि इनका इस्तेमाल असम के हसाओ ज़िले में चार स्थलों पर अनुष्ठान के लिये किया जाता है।

असम के मेगालिथ:

  • कुछ कलश (Jars) लंबे और बेलनाकार हैं, जबकि अन्य आंशिक रूप से या पूरी तरह से ज़मीन में दबे हुए हैं।
  • उनमें से कुछ तीन मीटर तक ऊंँचे और दो मीटर चौड़े थे। कुछ कलशों में सजावट के लिये नक्काशी की गई है, जबकि अन्य सादे हैं।

Megaliths

असम में मेगालिथ का इतिहास:

  • वर्ष 1929 में असम में पहली बार ब्रिटिश सिविल सेवकों जेम्स फिलिप मिल्स और जॉन हेनरी हटन द्वारा  दीमा हसाओ में छह साइट्स डेरेबोर (अब होजई डोबोंगलिंग), कोबाक, कार्तोंग, मोलोंगपा (अब मेलांगे पुरम), नडुंगलो और बोलासन (अब नुचुबंग्लो) पर कलश को देखा गया।
  • वर्ष 2016 में दो और स्थलों की खोज की गई थी। वर्ष  2020 में इतिहास व पुरातत्त्व विभाग द्वारा उत्तर-पूर्वी पहाड़ी विश्वविद्यालय, शिलांग, मेघालय में चार और स्थलों की खोज की गई थी।
    • एक स्थल नुचुबंग्लो में 546 कलश पाए गए जो विश्व में इस तरह की सबसे बड़ी साइट थी।

निष्कर्षों का महत्त्व:

  • यद्यपि ‘कलश’ (Jars) को वैज्ञानिक रूप से दिनांकित किया जाना अभी बाकी है, शोधकर्त्ताओं ने कहा कि लाओस और इंडोनेशिया में पाए जाने वाले पत्थर के ‘कलश’ को एक साथ जोड़कर देखा जा सकता है।
    • तीनों स्थलों पर पाए जाने वाले ‘कलश’ के बीच टाइपोलॉजिकल और रूपात्मक समानताएँ हैं।
  • पूर्वोत्तर के अलावा भारत में और कहीं भी इसे नहीं देखा गया है, यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि एक समय में समान प्रकार की सांस्कृतिक प्रथा वाले लोगों के एक समूह ने लाओस और पूर्वोत्तर भारत के बीच एक ही भौगोलिक क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित किया था।
    • लाओस साइट पर किये गए विश्लेषण से पता चलता है कि ‘कलश’ साइटों पर दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के अंत में स्थित थे।
    • लाओस में शोधकर्त्ताओं ने कहा था कि पत्थर के ‘कलश’ और मुर्दाघर प्रथाओं के बीच एक "मज़बूत संबंध" था, जिसमें मानव कंकाल के अवशेष पाए गए, जो कि ‘कलश’ के आसपास दबे हुए थे।
    • इंडोनेशिया में ‘कलश’ का कार्य अस्पष्ट है, हालाँकि कुछ विद्वान इसी तरह की मुर्दाघर की भूमिका का सुझाव देते हैं।
  • असम और लाओस एवं इंडोनेशिया के बीच ‘संभावित सांस्कृतिक संबंध’ को समझने के लिये और अधिक शोध किये जाने की आवश्यकता है।

मेगालिथ/महापाषाण:

  • मेगालिथ या ‘महापाषाण’ एक बड़ा प्रागैतिहासिक पत्थर है जिसका उपयोग या तो अकेले या अन्य पत्थरों के साथ संरचना या स्मारक बनाने के लिये किया गया है।
  • मेगालिथ का निर्माण शवों को दफन किये जाने वाले स्थलों या स्मारक स्थलों  के रूप में किया जाता था।
  • पूर्व में वास्तविक दफन अवशेषों वाले स्थल जैसे- डोलमेनोइड सिस्ट (बॉक्स के आकार के पत्थर के दफन कक्ष), केयर्न सर्कल (परिभाषित परिधि वाले पत्थर के घेरे) और कैपस्टोन (मुख्य रूप से केरल में पाए जाने वाले विशिष्ट मशरूम के आकार के दफन कक्ष) है।
  • नश्वर अवशेषों से युक्त कलश या ताबूत आमतौर पर टेराकोटा से बना होता था तथा मेगालिथ में मेन्हीर जैसे स्मारक स्थल शामिल हैं।
  • भारत में पुरातत्त्वविदों ने लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में अधिकांश मेगालिथ का पता लगाया है, हालाँकि कुछ स्थल लौह युग से पहले 2000 ईसा पूर्व तक के हैं।
  • मेगालिथ भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। अधिकांश महापाषाण स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ में), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।

Major Megalithic Sites in India

Meghelitic-Sites

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

5G वर्टिकल एंगेजमेंट एंड पार्टनरशिप प्रोग्राम

दूरसंचार विभाग (DoT) ने 5G यूज-केस इकोसिस्टम हितधारकों के बीच मज़बूत सहयोग साझेदारी बनाने के लिये "5G वर्टिकल एंगेजमेंट एंड पार्टनरशिप प्रोग्राम (VEPP)" पहल के लिये रुचि की अभिव्यक्ति (EoI) आमंत्रित की है।

5जी तकनीक

  • 5G 5वीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है। यह 1G, 2G, 3G और 4G नेटवर्क के बाद एक नया वैश्विक वायरलेस मानक है।
  • यह एक नए प्रकार के नेटवर्क को सक्षम बनाता है जिसे मशीनों, वस्तुओं और उपकरणों सहित लगभग सभी को सब कुछ एक साथ जोड़ने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • 5G के हाई-बैंड स्पेक्ट्रम में इंटरनेट की गति का परीक्षण 20 Gbps के रूप में किया गया है, जबकि अधिकांश मामलों में 4G में अधिकतम इंटरनेट डेटा गति 1 Gbps दर्ज की गई है।

5जी वीईपीपी:

  • 5जी वीईपीपी के बारे में:
    • यह एक पहल है, जहांँ DoT "उपयोगकर्त्ता या ऊर्ध्वाधर उद्योग परिसर में उपयोग के मामले के प्रोटोटाइप, पायलट, डेमो, परीक्षण को सक्षम करने के लिये आवश्यक अनुमोदन, नियामक मंज़ूरी की सुविधा प्रदान करेगा"।
    • DoT प्रायोगिक स्पेक्ट्रम तक पहुंँच, टेस्टबेड तक पहुंँच और शिक्षाविदों के साथ जुड़ाव, अन्य मंत्रालयों हेतु आवश्यक नियामक नीतियों एवं पायलेट प्रोजेक्ट जहांँ भी संभव हो, सुविधा प्रदान करेगा।
    • प्रौद्योगिकी हितधारक, जो साझेदारी का हिस्सा बनने हेतु सहमत हैं, संबंधित मंत्रालयों या उद्योग वर्टिकल की ज़रूरतों के अनुसार 5G उपयोग के मामलों में प्रोटोटाइप और पायलट विकसित करने, तैनाती के लिये काम करेंगे ताकि उद्यमों द्वारा व्यावसायिक उपयोग और  उन्हें तेज़ी से अपनाने में मदद मिल सके।
  • उद्देश्य:
    • यह उपयोगकर्त्ता उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के साथ 5जी पारिस्थितिकी तंत्र हितधारकों के बीच मज़बूत सहयोग साझेदारी का निर्माण करना चाहता है।
  • महत्त्व:
    • यह उपयोगकर्त्ताओं एवं 5G टेक हितधारकों (सर्विस प्रोवाइडर्स, सॉल्यूशन प्रोवाइडर्स और पार्टनर ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स) के बीच घनिष्ठ सहयोग को सक्षम करेगा, जो 5G डिजिटल समाधानों को आज़माने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

हेलिना: एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल

हाल ही में भारत द्वारा पोखरण में एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (Anti-Tank Guided Missile- ATGM) हेलिना का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।

  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के अनुसार, यह विश्व के सबसे उन्नत एंटी-टैंक हथियारों में से एक है।
  • यह परीक्षण डीआरडीओ द्वारा विकसित तीसरी पीढ़ी की 'फायर एंड फॉरगेट' (‘Fire And Forget) श्रेणी की मिसाइलों के सत्यापन परीक्षणों का हिस्सा था।

प्रमुख बिंदु 

हेलिना:

  • हेलिना के बारे में: हेलिना को रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (DRDL), हैदराबाद द्वारा DRDO के मिसाइल और सामरिक प्रणाली (Missiles and Strategic Systems- MSS) क्लस्टर के तहत विकसित किया गया है।
    • वर्ष 2018 से मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।
  • विशेषताएंँ: इसकी अधिकतम सीमा सात किलोमीटर है और इसे एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (Advanced Light Helicopter-HAL) के हथियारयुक्त संस्करण के एकीकरण हेतु डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
    • इस मिसाइल प्रणाली का प्रक्षेपण दिन और रात किसी भी समय किया जा सकता है तथा यह पारंपरिक कवच तथा विस्फोटक प्रतिक्रियाशील कवच के साथ युद्धक टैंक को भेदने में सक्षम है।
    • इसे सेना एवं वायु सेना दोनों में हेलिकॉप्टरों के साथ एकीकरण के लिये विकसित किया गया है।
      • हेलिना के वायु सेना संस्करण को ‘ध्रुवस्त्र’ के रूप में भी जाना जाता है।
    • हेलिना डायरेक्ट हिट मोड (Hit Mode) के साथ-साथ टॉप अटैक मोड (Top Attack Mode) दोनों को लक्ष्य बना सकती है।
      • टॉप अटैक मोड: इसमें मिसाइल लॉन्च होने के बाद तीव्र गति के साथ एक निश्चित ऊँचाई तक जाती है तथा फिर नीचे की तरफ मुड़कर निर्धारित लक्ष्य को भेदती है।
      • डायरेक्ट हिट मोड: इसमें मिसाइल कम ऊँचाई पर जाकर सीधे लक्ष्य को भेदती है।
  • अन्य टैंक रोधी मिसाइलें: DRDO ने टैंक रोधी मिसाइल प्रौद्योगिकियों की एक शृंखला को डिज़ाइन और विकसित किया है जिसमें शामिल हैं:
    • नाग: यह तीसरी पीढ़ी की ‘दागो और भूल जाओ’ (Fire-and-Forget) के सिद्धांत पर आधारित एक एंटी टेंक मिसाइल है, जिसे दुश्मन के टैंकों पर हमला करने हेतु विकसित किया गया है।
    • MPATGM: यह मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल है जिसमें पैदल सेना के उपयोग के लिये फायर-एंड-फॉरगेट और शीर्ष हमले की क्षमता के साथ इसकी रेंज 2.5 किलोमीटर है।
    • SANT: यह एक स्मार्ट स्टैंड-ऑफ एंटी-टैंक मिसाइल है जिसे वायु सेना के टैंक-रोधी अभियान हेतु Mi-35 हेलीकॉप्टर से लॉन्च करने के लिये विकसित किया जा रहा है।
    • अर्जुन मेन बैटल टैंक’ (MBT) ‘MK-1A’: अर्जुन मेन बैटल टैंक एक लेज़र-निर्देशित, सटीक-निर्देशित युद्ध सामग्री है। जिसमे स्वदेशी रूप से विकसित 120mm राइफल और आर्मर पियर्सिंग फिन-स्टैबिलाइज़्ड डिस्करिंग सबोट (FSAPDS) युद्धोपकरण शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 अप्रैल, 2022

मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

प्रत्येक वर्ष 12 अप्रैल को ‘मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ (International Day of Human Space Flight) मनाया जाता है। यह दिन वर्ष 1961 में यूरी गागरिन (Yuri Gagarin) की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा की वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 अप्रैल, 2011 को मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने के लिये एक प्रस्ताव पारित किया था। इसका उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में अंतरिक्ष के योगदान की फिर से पुष्टि करना है। बाहरी अंतरिक्ष मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOOSA) वह कार्यालय है जो बाहरी अंतरिक्ष में शांतिपूर्ण उपयोग हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है। संयुक्त राष्ट्र के इस दिवस के कार्यक्रम UNOOSA द्वारा आयोजित किये जाते हैं। वर्ष 1957 में पहले मानव निर्मित पृथ्वी उपग्रह स्पुतनिक I को बाहरी अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था। 12 अप्रैल, 1961 को यूरी गागरिन पृथ्वी की सफलतापूर्वक रिक्रमा करने वाले पहले व्यक्ति बने थे। 

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस

गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर अवधि के दौरान पर्याप्त देखभाल विषय पर जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 11 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये गर्भवती माताओं को बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने की दिशा में काम करना है। गौरतलब है कि भारत, प्रसव के दौरान मृत्यु जोखिम के प्रति सबसे सुभेद्य देशों में से एक है। भारत में प्रतिवर्ष 35,000 से अधिक महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उचित देखभाल न होने के कारण अपनी जान गँवानी पड़ती है। इस विषय के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2003 में ‘व्हाइट रिबन एलायंस’ (WRAI) के अनुरोध पर 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में घोषित किया था। गौरतलब है कि ‘व्हाइट रिबन एलायंस’ (WRAI) 1800 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का एक गठबंधन है, जो मातृ मृत्यु दर को समाप्त करने और मातृ एवं नवजात शिशु के स्वास्थ्य में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दिवस कस्तूरबा गांधी की जयंती के साथ भी मेल खाता है। 

अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ‘व्यूपॉइंट’ 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में गुजरात के बनासकांठा ज़िले के नडाबेट में सीमा पर्यटन के लिये सीमा सुरक्षा को बढ़ाने में सहायता हेतु भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ‘व्यूपॉइंट’ का उद्घाटन किया है। जो भारत-पाकिस्तान सीमा से मात्र 20 से 25 किलोमीटर पहले बनाया गया है यह सीमादर्शन परियोजना नागरिकों को सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवानों से जोड़ेगी तथा उनके प्रति सम्मान का भाव पैदा करेगी यह गुजरात का पहला बॉर्डर प्वाइंट है, जहाँ बॉर्डर की फोटो गैलरी तथा हथियारों समेत टैंकों का प्रदर्शन किया जाएगानडाबेट व्यूपॉइंट के माध्यम से हमें जवानों की कहानियों को जानने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही इस परियोजना से राज्य में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा पंजाब में वाघा अटारी सीमा पर होने वाले ‘बीटिंग रिट्रीट’ की तर्ज पर सीमादर्शन में भी इसे शामिल किया गया है।


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