प्रारंभिक परीक्षा
पशुधन पर प्रतिजैविक का उपयोग
भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम के अनुसार, जंगली शाकाहारी जानवरों की तुलना में पालतू पशुओं की चराई से मृदा में कार्बन भंडारण में कमी आती है।
- पशुधन में पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले बड़े स्तनधारी शामिल हैं। यदि पशुधन द्वारा मृदा में संग्रहीत कार्बन को थोड़ी मात्रा में भी बढ़ाया जाता है, तो इसका जलवायु शमन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
- पिछले अध्ययन में यह देखा गया था कि शाकाहारी जानवर मृदा में कार्बन की मात्रा को स्थिर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जबकि हाल के अध्ययन में यह पाया गया है कि जंगली शाकाहारी जानवरों जैसे- याक और आइबेक्स की तुलना में भेड़ एवं मवेशी जैसे- पालतू पशु मृदा के कार्बन भंडारण को कैसे प्रभावित करते हैं।
- प्रतिजैविक/एंटीबायोटिक्स दवाओं का प्रभाव: मवेशियों पर पशु चिकित्सा संबंधी प्रतिजैविक जैसे टेट्रासाइक्लिन का उपयोग अन्य शाकाहारी जीवों की तुलना में मृदा में कार्बन भंडारण को कम कर रहा है।
- ये प्रतिजैविक, जब गोबर और मूत्र के माध्यम से मृदा में निष्कर्षित होते हैं, तो मृदा में सूक्ष्म जीवों को ऐसे तरीकों से परिवर्तित कर देते हैं जो कार्बन पृथक्करण के लिये हानिकारक सिद्ध होते हैं।
- टेट्रासाइक्लिन जैसे प्रतिजैविक लंबे समय तक जीवित रहते हैं और दशकों तक मृदा में रह सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- कार्बन उपयोग दक्षता में अंतर: यद्यपि वन्यजीव और मवेशी क्षेत्रों की मृदा में कई समानताएँ थीं, वे कार्बन उपयोग दक्षता (CUE) नामक एक प्रमुख पैमाने पर भिन्न थीं, जो मृदा में कार्बन को संग्रहीत करने के लिये रोगाणुओं की क्षमता निर्धारित करती है।
- CUE को एक अवधि के दौरान सकल कार्बन अधिग्रहण करने के लिये शुद्ध कार्बन लाभ के अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है।
- मवेशी क्षेत्रों में मृदा में 19% कम कार्बन उपयोग दक्षता (CUE) पाई गई।
प्रतिजैविक (Antibiotics):
- एंटीबायोटिक्स/प्रतिजैविक उल्लेखनीय दवाएँ हैं जो शरीर को नुकसान पहुँचाए बिना किसी के शरीर में जैविक जीवों को मारने में सक्षम हैं।
- इनका उपयोग सर्जरी के दौरान संक्रमण को रोकने से लेकर कीमोथेरेपी के दौर से गुज़र रहे कैंसर रोगियों की सुरक्षा तक के लिये किया जाता है।
- भारत एंटीबायोटिक दवाओं का विश्व में सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत द्वारा अत्यधिक एंटीबायोटिक उपयोग बैक्टीरिया में एक शक्तिशाली उत्परिवर्तन उत्पन्न कर रहा है जिसे पहले कभी नहीं देखा गया।
स्रोत : द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
खेती हेतु गोबर आधारित सूत्रीकरण
हाल ही में नीति आयोग ने “गौशालाओं की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर विशेष ध्यान देने के साथ जैविक और जैव उर्वरकों का उत्पादन तथा संवर्द्धन” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कृषि के लिये गोबर आधारित उर्वरकों को बढ़ावा देने हेतु गौशालाओं को पूंजीगत सहायता की सिफारिश की गई है, इस प्रकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- गोबर आधारित फार्मूलेशन को प्रोत्साहन की आवश्यकता:
- भारत में कृषि जैविक उर्वरकों के एकीकृत दृष्टिकोण पर आधारित थी लेकिन हरित क्रांति के बाद भारत इस संतुलन को बनाए नहीं रख सका और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी के पोषक तत्त्वों में असंतुलन देखा गया।
- गौशालाएँ देश के कई हिस्सों में आवारा पशुओं की समस्या का समाधान कर सकती हैं जो फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- यह प्रस्तावित किया गया था कि इस तरह के पशु धन की क्षमता को जैविक और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिये क्योंकि आवारा और परित्यक्त मवेशियों की संख्या उनके रखरखाव तथा भरण-पोषण के लिये मौजूद गौशालाओं की अपेक्षा उपलब्ध संसाधनों से परे एक सीमा तक बढ़ गई थी।
- सिफारिश:
- सरकार, पूंजी सहायता के माध्यम से गौशालाओं की मदद कर सकती है ताकि वे कृषि में उपयोग के लिये गाय के गोबर और गोमूत्र-आधारित फॉर्मूलेशन का विपणन कर सकें।
- प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु गौशालाएँ बहुत मददगार हो सकती हैं। इस प्रकार गौशालाओं एवं जैविक खेती को साथ में बढ़ावा दिया जा सकता है।
- महत्त्व:
- अनुच्छेद 48 के तहत राज्य मवेशियों की नस्लों के संरक्षण और सुधार हेतु उपाय करता है, साथ ही गायों तथा बछड़ों के सहित अन्य दुधारू व वाहक मवेशियों के वध को प्रतिबंधित करता है, अर्थात् इस संदर्भ में गाय के गोबर से बने जैविक उर्वरकों के उपयोग से बहुत सहायता प्राप्त होगी।
प्राकृतिक खेती:
- प्राकृतिक खेती कृषि का एक तरीका है जो संतुलित और आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की कोशिश करती है जिसमें कृत्रिम रसायनों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के उपयोग के बिना फसलें संवर्द्धित हो सकती हैं।
- कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे कृत्रिम आदानों पर निर्भर रहने के बजाय, प्राकृतिक खेती करने वाले किसान मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ाने और फसल के विकास को संवर्द्धित करने के लिये फसल चक्र (Crop Rotation), अंतर-फसल (Intercropping) और कंपोस्टिंग (Composting) जैसी तकनीकों पर भरोसा करते हैं।
- प्राकृतिक कृषि की विधियाँ प्रायः पारंपरिक ज्ञान एवं अभ्यासों पर आधारित होती हैं और इन्हें स्थानीय परिस्थितियों एवं संसाधनों के अनुकूल बनाया जा सकता है।
- प्राकृतिक खेती का लक्ष्य स्वस्थ एवं पौष्टिक खाद्य का उत्पादन इस प्रकार से करना है जो संवहनीय और पर्यावरण के अनुकूल हो।
सतत् कृषि से संबंधित पहल क्या हैं?
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 मार्च, 2023
ओडिशा में भीषण वनाग्नि
भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) के आँकड़ों के अनुसार, ओडिशा राज्य में मार्च 2023 में 642 घटनाओं के साथ देश में आग की भीषण घटनाएँ देखी गईं, साथ ही वर्तमान में भी वनाग्नि की घटनाएँ हो रही हैं। पूरे ओडिशा में आग की घटनाओं की संख्या में अचानक वृद्धि के कारण राज्य के वनों में वनस्पतियों और जीवों का व्यापक नुकसान हुआ है। ओडिशा में नवंबर 2022 से लेकर अब तक 871 बड़ी वनाग्नि की घटनाएँ दर्ज की गई हैं। आधिकारिक आँकड़ों अनुसार, यह राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी है। ओडिशा के बाद आंध्र प्रदेश (754), कर्नाटक (642), तेलंगाना (447) और मध्य प्रदेश (316) का स्थान रहा। वर्ष 2021 में राज्य में 51,968 वनाग्नि की घटनाएँ हुईं। मयूरभंज ज़िले के सिमिलीपाल राष्ट्रीय उद्यान में भीषण आग लग गई थी, जो एशिया के प्रमुख जीवमंडलों में से एक है। वनाग्नि को झाड़ी या वनस्पति की आग या जंगल की आग भी कहा जाता है, इसे जंगल, चरागाह, ब्रशलैंड या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक स्थल में किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या पौधों को जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है एवं पर्यावरणीय कारकों (जैसे- हवा, स्थलाकृति) के आधार पर फैलता है।
और पढ़ें… वनाग्नि: कारण, वर्गीकरण, भारत में घटनाएँ और उपाय
CISF का 54वाँ स्थापना दिवस
प्रत्येक वर्ष 10 मार्च को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) का स्थापना दिवस मनाया जाता है जिसकी स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन की गई थी। CISF, भारत की सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस इकाइयों में से एक है, जो विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, हवाई अड्डों और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को सुरक्षा प्रदान करता है। CISF का गठन ‘केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 1968’ के तहत 10 मार्च, 1969 को किया गया था। तभी से प्रत्येक वर्ष 10 मार्च को CISF के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि वर्ष 2023 में इसे संशोधित कर 12 मार्च किया गया है।
और पढ़ें… केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल(CAPF)
MIDH के तहत उत्कृष्टता केंद्र
एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत विभिन्न राज्यों में द्विपक्षीय सहयोग या अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित किये जा रहे हैं। ये उत्कृष्टता केंद्र बागवानी के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन और प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं। स्वीकृत किये गए 3 उत्कृष्टता केंद्रों में शामिल हैं:
- बंगलूरू, कर्नाटक में कमलम् (ड्रैगन फ्रूट) के लिये उत्कृष्टता केंद्र
- जाजपुर, ओडिशा में आम और सब्जियों के लिये उत्कृष्टता केंद्र
- पोंडा, गोवा में सब्जियों और फूलों के लिये उत्कृष्टता केंद्र
MIDH फलों, सब्जियों और अन्य क्षेत्रों को शामिल करने वाले बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना है। MIDH के तहत सरकार सभी राज्यों में विकासात्मक कार्यक्रमों के लिये कुल परिव्यय का 60% योगदान करती है (पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर जहाँ भारत सरकार 90% योगदान करती है) तथा 40% का योगदान राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है।
और पढ़ें… भारत में बागवानी क्षेत्र की स्थिति
चीन सीमा (लद्दाख) पर सेना इकाई का नेतृत्त्व करने वाली पहली महिला
हाल ही में एक महिला अधिकारी, कर्नल गीता राणा ने पहली बार संवेदनशील लद्दाख क्षेत्र में एक स्वतंत्र इकाई की कमान संभाली हैं, जहाँ भारत और चीन लंबे समय से सीमा विवाद में उलझे हुए हैं। जनवरी 2023 में सेना ने पहली बार विश्व के सबसे ऊँचे और सबसे ठंडे युद्ध मैदान सियाचिन में एक महिला अधिकारी, कैप्टन शिवा चौहान को तैनात किया। इसने 27 महिला शांति सैनिकों की अपनी सबसे बड़ी टुकड़ी को सूडान के अबेई के विवादित क्षेत्र में तैनात किया, जहाँ वे संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल (UNISFA) के हिस्से के रूप में एक चुनौतीपूर्ण मिशन में सुरक्षा संबंधी कार्य कर रही हैं। सेना में महिलाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ वर्ष 2015 में तब आया जब भारतीय वायु सेना (IAF) ने उन्हें पहली बार लड़ाकू स्ट्रीम में शामिल करने का निर्णय लिया।
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