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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 10 Aug, 2022
  • 29 min read
प्रारंभिक परीक्षा

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV)

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-02 और विद्यार्थियों द्वारा निर्मित उपग्रह आज़ादीसैट (AzaadiSAT) को लेकर लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की पहली उड़ान शुरू की थी।

  • हालाँकि यह मिशन उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने में विफल रहा और उपग्रह जो कि पहले से ही प्रक्षेपण यान से अलग हो चुके थे, उनके मध्य संपर्क टूट गया।

SSLV

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान:

  • परिचय:
    • लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) एक तीन चरण का प्रक्षेपण यान है जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक तरल प्रणोदन-आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) के साथ टर्मिनल चरण के रूप में कॉन्फ़िगर किया गया है।
      • SSLV का व्यास 2 मीटर और लंबाई 34 मीटर है, जिसका भार लगभग 120 टन है।
      • SSLV सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से 500 किमी. की ऊँचाई की समतल कक्षीय तल में 500 किलोग्राम उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • निम्न लागत
    • कम टर्न-अराउंड समय
    • अनेक उपग्रहों को समायोजित करने में सक्षम
    • लॉन्च मांग व्यवहार्यता
    • न्यूनतम लॉन्च बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता
  • महत्त्व:
    • लघु उपग्रहों का युग:
      • पूर्व में बड़े उपग्रह पेलोड को महत्त्व दिया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे इस क्षेत्र में विकास हुआ, इसमें कई निजी हितधारक जैसे- व्यवसाय क्षेत्र, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय और विभिन्न प्रयोगशालाएँ अपने उपग्रह भेजने लगे।
        • ये सभी अधिकतर लघु उपग्रहों की श्रेणी में आते हैं।
    • मांग में वृद्धि:
      • अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, निगरानी और वाणिज्य की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण पिछले आठ से दस वर्षों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
    • लागत में कमी:
      • उपग्रह निर्माताओं और संचालकों को अब महीनों इंतजार करने या अत्यधिक यात्रा शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।
        • इसलिये ये संगठन तेज़ी से अंतरिक्ष में उपग्रहों का एक समूह विकसित कर रहे हैं।
        • स्पेसएक्स के स्टारलिंक और वन वेब जैसी परियोजनाएँ सैकड़ों उपग्रहों के एक समूह को जोड़ने का कार्य कर रही हैं।
    • व्यवसाय के अवसर:
      • मांग में वृद्धि के साथ रॉकेट को वहनीय लागत के साथ कई बार लॉन्च किया जा सकता है, यह इसरो जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों को इस क्षेत्र की क्षमता का दोहन करने हेतु एक व्यावसायिक अवसर प्रदान करता है क्योंकि इससे संबंधित अधिकांश मांग उन कंपनियों द्वारा की जाती है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये उपग्रह लॉन्च करते हैं।

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान- D1/EOS -02 मिशन:

  • इसका उद्देश्य लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान के बाज़ार में एक बड़ी भागीदारी हासिल करना था, क्योंकि यह उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित कर सकता था।
  • इस मिशन के तहत दो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की योजना थी-
    • पहला EOS-2 पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह, यह एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है जिसे इसरो द्वारा डिज़ाइन और कार्यान्वित किया गया है।
      • यह माइक्रोसैट उपग्रह शृंखला उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन के साथ इन्फ्रा-रेड बैंड में संचालित उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग प्रदान करती है।
    • दूसरा, आज़ादीसैट छात्र उपग्रह, यह 8U क्यूबसैट है जिसका वज़न लगभग 8 किलोग्राम है।
      • यह लगभग 50 ग्राम वज़न के 75 अलग-अलग पेलोड वहन करता है और फेमटो-एक्सपेरिमेंट करता है।
        • इसने छोटे-छोटे प्रयोग किये जो अपनी कक्षा में आयनकारी विकिरण को माप सकते थे और ट्रांसपोंडर जो ऑपरेटरों को इसे पहुँच प्रदान करने में सक्षम बनाने हेतु हैम रेडियो फ्रीक्वेंसी में काम करता था।
      • देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन पेलोड के निर्माण के लिये मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
        • पेलोड को "स्पेस किड्ज़ इंडिया" के विद्यार्थियों की टीम द्वारा एकीकृत किया गया है।

चुनौतियाँ:

  • SSLV के टर्मिनल चरण में समस्या प्रतीत होती है, जिसे वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) कहा जाता है।
    • लॉन्च प्रोफाइल के अनुसार, VTM को लॉन्च के बाद 653 सेकंड में से 20 सेकंड के लिये जलना चाहिये।
      • हालाँकि यह केवल 0.1 सेकंड के लिये जला और रॉकेट को अपेक्षित ऊँचाई पर ले जाने में असफल हो गया।
  • VTM के जलने के बाद दो उपग्रह वाहन से अलग हो गए, सेंसर की खराबी के परिणामस्वरूप उपग्रहों को वृत्ताकार कक्षा के बजाय दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया गया था।
  • इसरो के अनुसार, सभी चरणों में सामान्य रूप से प्रदर्शन किया गया, दोनों उपग्रहों को इंज़ेक्ट किया गया लेकिन प्राप्त कक्षा अपेक्षा से कम थी, जो इसे अस्थिर बनाती है।

वृत्ताकार और दीर्घ वृत्ताकार कक्षाओं में अंतर:

  • दीर्घ वृत्ताकार कक्षाएँ:
    • ज़्यादातर वस्तुएँ जैसे उपग्रह और अंतरिक्ष यान केवल अस्थायी रूप से दीर्घ वृत्ताकार कक्षाओं में रखे जाते हैं।
    • फिर उन्हें या तो अधिक ऊँचाई पर गोलाकार कक्षाओं में भेज दिया जाता है या त्वरण तब तक बढ़ा दिया जाता है जब तक कि प्रक्षेपवक्र दीर्घवृत्त से अतिपरवलय में परिवर्तित नहीं हो जाता है और अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में आगे बढ़ने के लिये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से निकल जाता है - उदाहरण के लिये चंद्रमा या मंगल या उससे अधिक दूर।
  • वृत्ताकार कक्षाएँ
    • पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को अधिकतर वृत्ताकार कक्षाओं में रखा जाता है।
    • एक कारण यह है कि यदि उपग्रह का उपयोग पृथ्वी की इमेजिंग के लिये किया जाता है, तो पृथ्वी से एक निश्चित दूरी होने के कारण यह आसान हो जाता है।
    • यदि दूरी एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा की तरह बदलती रहती है, तो कैमरों को केंद्रित करना जटिल हो सकता है।

विगत  वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLVs पृथ्वी संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी उपग्रहों को लॉन्च करते हैं, जबकि GSLVs को मुख्य रूप से संचार उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  2. PSLVs द्वारा प्रक्षेपित उपग्रह पृथ्वी पर किसी विशेष स्थान से देखने पर आकाश में उसी स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं।
  3. GSLV Mk-III एक चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसमें पहले और तीसरे चरण में ठोस रॉकेट मोटर्स का उपयोग तथा दूसरे व चौथे चरण में तरल रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल  2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • PSLV भारत की तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। PSLV पहला लॉन्च वाहन है जो तरल चरण (Liquid Stages) से सुसज्जित है। इसका उपयोग मुख्य रूप से निम्न पृथ्वी की कक्षाओं में विभिन्न उपग्रहों विशेष रूप से भारतीय उपग्रहों की रिमोट सेंसिंग शृंखला को स्थापित करने के लिये किया जाता है। यह 600 किमी. की ऊँचाई पर सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षाओं में 1,750 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता है।
  • GSLV को मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इनसैट) को स्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, यह दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज एवं बचाव कार्यों जैसी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसरो द्वारा प्रक्षेपित बहुउद्देशीय भू-स्थिर उपग्रहों की एक शृंखला है। यह उपग्रहों को अत्यधिक दीर्घवृत्तीय भू-तुल्यकालिक कक्षा (जीटीओ) में स्थापित करता है। अत: कथन 1 सही है।
  • भू-तुल्यकालिक कक्षाओं में उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • GSLV Mk-III चौथी पीढ़ी तथा तीन चरण का प्रक्षेपण यान है जिसमें चार तरल स्ट्रैप-ऑन हैं। स्वदेशी रूप से विकसित सीयूएस जो कि उड़ने में सक्षम है, GSLV Mk-III के तीसरे चरण का निर्माण करता है। रॉकेट में दो ठोस मोटर स्ट्रैप-ऑन (S200) के साथ एक तरल प्रणोदक कोर चरण (L110) और एक क्रायोजेनिक चरण (C-25) के साथ तीन चरण शामिल हैं। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।


प्रश्न. भारत  का अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगा? ( मुख्य परीक्षा 2019)

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

विद्युत चुंबकीय क्षेत्र (ईएमएफ) उत्सर्जन

हाल ही में राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में संचार राज्य मंत्री ने कहा कि भारत में विद्युत चुंबकीय क्षेत्र  स्तर के कारण पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

विद्युत चुंबकीय क्षेत्र (EMF) उत्सर्जन:

  • परिचय:
    • विद्युत चुंबकीय क्षेत्र अदृश्य विद्युत और चुंबकीय बल के क्षेत्रों का एक संयोजन है।
      • विद्युत क्षेत्र वोल्टेज में अंतर से निर्मित होते हैं: वोल्टेज जितना अधिक होगा परिणामी क्षेत्र उतना ही मज़बूत होगा।
      • जब विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो चुंबकीय क्षेत्र बनते हैं: जितना अधिक विद्युत धारा होगी उतनी ही मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र होगा।
    • EMF के प्राकृतिक स्रोत:
      • विद्युत चुंबकीय क्षेत्र हमारे पर्यावरण में हर जगह मौज़ूद हैं लेकिन मानव आँखों के लिये अदृश्य हैं।
      • वातावरण में विद्युत आवेशों के गरज-चमक से स्थानीय रूप से विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होते हैं।
    • EMF के मानव निर्मित स्रोत:
      • प्राकृतिक स्रोतों के अलावा विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में मानव निर्मित स्रोतों द्वारा उत्पन्न क्षेत्र भी शामिल हैं: दुर्घटना के बाद टूटे हुए अंग का निदान करने के लिये एक्स-रे का उपयोग किया जाता है।
      • प्रत्येक पावर सॉकेट से निकलने वाली विद्युत कम आवृत्ति वाले विद्युत चुंबकीय क्षेत्रों से जुड़ी होती है।
      • टीवी एंटेना, रेडियो स्टेशनों या मोबाइल फोन बेस स्टेशनों के माध्यम से सूचना प्रसारित करने के लिए विभिन्न प्रकार की उच्च आवृत्ति रेडियो तरंगों का उपयोग किया जाता है।
  • मुद्दे:
    • मानव पर प्रभाव:
      • कई विश्वव्यापी अध्ययन ईएमएफ को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे ल्यूकेमिया, गर्भपात, पुरानी थकान, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, विस्मृति, अवसाद, मतली और कामेच्छा में कमी इत्यादि से जोड़ते हैं।
    • पर्यावरण पर प्रभाव:
      • रडारों का उपयोग मौसम की भविष्यवाणी करने के लिये किया जाता है जो स्पंदित माइक्रोवेव संकेतों का उत्सर्जन करता है जो इन राडार के आसपास मौज़ूद वनस्पतियों और जीवों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं।

EMF उत्सर्जन पर अंकुश लगाने हेतु सरकार द्वारा की गई पहल:

  • सरकार के अनुसार, मोबाइल टावरों से EMF उत्सर्जन गैर-आयनीकरण रेडियो फ्रीक्वेंसी हैं जिनमें बहुत कम शक्ति होती है और ये किसी भी प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव को पैदा करने में असमर्थ होते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अंतर्राष्ट्रीय EMF परियोजना ने पशुओं, कीड़ों, वनस्पतियों और जलीय जीवन पर EMF उत्सर्जन के प्रभाव पर वर्ष 2005 में एक सूचना पत्र प्रकाशित किया और निष्कर्ष निकाला है कि गैर-आयनीकरण विकिरण संरक्षण (ICNIRP) में जोखिम सीमा मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा दिशा-निर्देश भी पर्यावरण के लिये सुरक्षात्मक हैं।
    • भारत में मोबाइल टावरों से विद्युत चुंबकीय क्षेत्र (EMF) उत्सर्जन के मौजूदा मानदंड पहले से ही ICNIRP द्वारा निर्धारित और WHO द्वारा अनुशंसित सुरक्षित सीमा से दस गुना अधिक कठोर (यहाँ तक कि कम) हैं।
  • सरकार ने किसी भी उल्लंघन की निगरानी के लिये एक अच्छी तरह से संरचित प्रक्रिया और तंत्र स्थापित किया है ताकि दूरसंचार सेवा प्रदाता (TSP) बेस ट्रांसीवर स्टेशन (BTS) साइट की व्यावसायिक शुरुआत से पहले एक स्व-प्रमाण पत्र जमा करने सहित निर्धारित मानदंडों का पालन करते हैं।
  • दूरसंचार विभाग (DoT) की क्षेत्रीय इकाइयाँ नियमित रूप से यादृच्छिक आधार पर वार्षिक 10% तक BTS साइटों का EMF ऑडिट करती हैं।
    • DoT उन TSPs पर वित्तीय जुर्माना भी लगाता है जिनके BTS निर्धारित EMF उत्सर्जन सीमा से अधिक पाए जाते हैं।
  • इसके अलावा यदि ऐसे गैर-अनुपालन वाले BTS के उत्सर्जन स्तर 30 दिनों के भीतर निर्धारित सीमा के भीतर नहीं लाए जाते हैं, तो इसे निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार बंद किया जा सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

Q दृश्यमान प्रकाश संचार (VLC) तकनीक के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2020)

  1. दृश्यमान प्रकाश संचार विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम तरंग दैर्ध्य 375 से 780 nm का उपयोग करता है।
  2. दृश्यमान प्रकाश संचार को लंबी दूरी के ऑप्टिकल वायरलेस संचार के रूप में जाना जाता है।
  3. दृश्यमान प्रकाश संचार ब्लूटूथ की तुलना में बड़ी मात्रा में डेटा को तेज़ी से प्रसारित कर सकता है।
  4. दृश्यमान प्रकाश संचार में कोई विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप नहींं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • दृश्यमान प्रकाश संचार (VLC) प्रणाली संचार के लिये दृश्य प्रकाश को नियोजित करती हैं जो 375 nm से 780 nm तक विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का उपयोग करती हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • VLC को कम दूरी के ऑप्टिकल वायरलेस संचार के रूप में जाना जाता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • Li-Fi, एक प्रकार का VLC है, जिसकी सीमा लगभग 10 मीटर है और यह दीवारों या किसी ठोस वस्तु से नहीं गुज़र सकता है।
  • VLC ब्लूटूथ की तुलना में बड़ी मात्रा में डेटा को तेज़ी से प्रसारित कर सकता है। VLC संचार के लिये 10 जीबी/सेकेंड तक की उच्च गति इंटरनेट प्रदान करने के लिये दृश्य प्रकाश का उपयोग करता है, जबकि ब्लूटूथ 4.0,  25 एमबी/सेकेंड तक की गति से डेटा भेज सकता है। अत: कथन 3 सही है।
  • VLC में कोई विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप नहीं है। रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) आधारित संकेतों में अन्य RF संकेतों के साथ हस्तक्षेप की समस्या होती है जैसे कि विमान में पायलट नौवहन उपकरण संकेतों के साथ इसका हस्तक्षेप। इसलिये विद्युत चुंबकीय विकिरण (जैसे वायुयान) के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में VLC  एक बेहतर समाधान हो सकता है। अत: कथन 4 सही है। अतः  विकल्प (c) सही है।

Q. कथन (A): रेडियो तरंगें चुंबकीय क्षेत्र में झुकती हैं।

कारण (R): रेडियो तरंगें विद्युत चुंबकीय प्रकृति की होती हैं। (2008)

उत्तर: A

व्याख्या:

  • विद्युत चुंबकीय (EM) स्पेक्ट्रम सभी प्रकार के EM विकिरण की रेंज है। विकिरण ऊर्जा है जो यात्रा करती है और फैलती है। घरों में दीपक से आने वाले दृश्य प्रकाश और रेडियो स्टेशन से आने वाली रेडियो तरंगें दो प्रकार के विद्युत चुंबकीय विकिरण हैं। विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम बनाने वाले अन्य प्रकार के EM विकिरण माइक्रोवेव, अवरक्त प्रकाश, पराबैंगनी प्रकाश, एक्स-रे और गामा-किरणें हैं।
  • वर्ष 1873 में स्कॉटिश भौतिक विज्ञानी जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने विद्युत चुंबकत्व का एकीकृत सिद्धांत विकसित किया, जो एक-दूसरे के साथ और चुंबकीय क्षेत्रों के साथ अंतःक्रिया करने वाले विद्युत आवेशित कण से आदान-प्रदान करते है। उन्होंने साबित किया कि चुंबकीय ध्रुव युग्म में होते हैं जो एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं और एक-दूसरे को पीछे हटाते हैं (जैसे कि मैक्सवेल समीकरणों के माध्यम से विद्युत आवेश)।
  • विद्युत चुंबकीय तरंगें तब बनती हैं जब किसी विद्युत क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र के साथ जोड़ा जाता है। विद्युत चुंबकीय तरंग के चुंबकीय विद्युत क्षेत्र एक-दूसरे के लंबवत और तरंग की दिशा में होते हैं।
  • रेडियो तरंगें EM स्पेक्ट्रम की सबसे निचली सीमा पर होती हैं, जिनकी आवृत्ति लगभग 30 GHz तक होती है, और तरंग दैर्ध्य लगभग 10 मिलीमीटर (0.4 इंच) से अधिक होते हैं।
  • रेडियो तरंगें विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम की तरंगें हैं (प्रकृति में विद्युत चुंबकीय), इस प्रकार ये तरंगें चुंबकीय और विद्युत दोनों क्षेत्रों में झुकती हैं। अतः अभिकथन (A) सही है और कारण (R) अभिकथन (A) की सही व्याख्या है। अतः विकल्प (A) सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10-अगस्त, 2022

22वें राष्ट्रमंडल खेल संपन्न  

राष्‍ट्रमंडल खेलों के अंतिम दिन 08 अगस्त को भारत ने चार स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता। 22वें राष्‍ट्रमंडल खेलों का आयोजन 28 जुलाई से 8 अगस्त, 2022 तक बर्मिंघम (इंग्लैंड) में किया गया और 08 अगस्त, 2022 को भव्‍य समारोह के साथ समापन हुआ। 11 दिन तक चले इस आयोजन में 72 देशों के पाँच हज़ार से अधिक खिलाडि़यों ने भाग लिया। समापन समारोह की शुरुआत सोहिल ओशन कलर सीन की संगीतमय प्रस्‍तुति के साथ हुई। राष्‍ट्रीय ध्‍वज के साथ भारतीय दल का नेतृत्‍व मुक्‍केबाज़ निकहत ज़रीन और टेबिल टेनिस खिलाडी अचंता शरत कमल ने किया। बैडमिंटन में पीवी सिंधु ने महिला एकल का खिताब अपने नाम किया, जबकि लक्ष्‍यसेन ने पुरुष एकल में विजय प्राप्‍त की। पुरुष युगल मुकाबले में चिराग शेट्टी तथा सात्विकसाईराज रनकीरेड्डी ने तीसरा स्‍वर्ण पदक दिलाया। टेबल टेनिस में अचंता शरत कमल ने स्‍वर्ण पदक हासिल किया, जबकि जी. साथियान ने पुरुष एकल का कांस्‍य पदक जीता। पुरुष हॉकी में भारतीय टीम को रजत पदक मिला। समापन के बाद राष्‍ट्रमंडल खेल संघ का ध्‍वज ऑस्‍ट्रेलिया के विक्‍टोरिया प्रांत को सौंप दिया गया। विक्‍टोरिया प्रांत वर्ष 2026 में अगले राष्‍ट्रमंडल खेलों की मेज़बानी करेगा। भारत 22 स्‍वर्ण, 16 रजत और 23 कांस्‍य पदक समेत कुल 61 पदक जीतकर चौथे स्‍थान पर रहा। भारत की पदक तालिका में कुश्‍ती का सर्वाधिक योगदान रहा। भारतीय पहलवानों ने 6 स्‍वर्ण पदक सहित 12 पदक जीते, भारोत्‍तोलन में 10 पदक मिले। ऑस्‍ट्रेलिया 67 स्‍वर्ण, 57 रजत और 54 कांस्‍य पदक सहित कुल 178 पदक जीतकर पदक तालिका में सबसे ऊपर रहा, जबकि मेज़बान इंग्‍लैंड 175 पदक के साथ दूसरे स्‍थान पर रहा।

75वाँ राष्‍ट्रीय स्‍थल: पादांग 

सिंगापुर में 9 अगस्त, 2022 को नेताजी सुभाषचन्‍द्र बोस से जुड़े स्‍थल पादांग को 75वाँ राष्‍ट्रीय स्‍थल घोषित किया गया। पादांग से नेताजी सुभाषचन्‍द्र बोस ने जुलाई 1943 में ‘दिल्ली चलो' का नारा दिया था। सिंगापुर 9 अगस्त, 2022 को अपना 57वाँ राष्‍ट्रीय दिवस मना रहा है। सिंगापुर के राष्‍ट्रीय धरोहर बोर्ड ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि सुदृढ़ राष्‍ट्रीय, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्त्व के कारण पादांग को स्‍थल संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उच्‍च स्‍तर का संरक्षण प्रदान किया जाएगा। इसके लिये अधिसूचना जारी कर दी गई है। पादांग का सिंगापुर में रह रहे भारतीय समुदाय के लिये विशेष महत्त्व है। यहाँ पर भारतीय सिपाहियों ने अपना पहला शिविर स्‍थापित किया था। इस स्‍थल से नेताजी ने आज़ाद हिन्‍द फौज के हज़ारों सिपाहियों को कई बार संबोधित किया। युद्ध के बाद नेताजी ने पादांग के दक्षिण में आज़ाद हिन्‍द फौज स्‍मारक स्‍थल स्‍थापित किया था। रास बिहारी बोस के निमंत्रण पर सुभाष चंद्र बोस 13 जून, 1943 को पूर्वी एशिया आए। उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का अध्यक्ष पद तथा इंडियन नेशनल आर्मी (INA) जिसे लोकप्रिय रूप से 'आज़ाद हिंद फौज' कहा जाता है, की कमान सौंपी गई। INA का गठन पहली बार मोहन सिंह और जापानी मेजर इवाइची फुजिवारा द्वारा किया गया था, इसमें मलय (वर्तमान मलेशिया) अभियान एवं सिंगापुर में जापान द्वारा बंदी बनाए गए ब्रिटिश-भारतीय सेना के सैनिक शामिल थे।

इथेनॉल संयंत्र  

10 अगस्त, 2022 को प्रधानमंत्री हरियाणा के पानीपत में दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल संयंत्र का वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्‍यम से लोकार्पण करेंगे। यह संयंत्र देश में जैव ईंधन के उत्‍पादन और उपयोग को बढ़ावा देने के सरकार के विभिन्न उपायों के अनुकूल है जो ऊर्जा क्षेत्र को अधिक सुलभ, सक्षम एवं कुशल बनाने के प्रयासों  के अनुरूप है। दूसरी पीढ़ी के इस इथेनॉल संयंत्र का निर्माण भारतीय तेल निगम लिमिटेड ने 900 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से किया है। यह परियोजना ‘कचरे से कंचन’ उत्‍पादित करने के भारत के प्रयासों में एक नया अध्‍याय जोड़ेगी। इसके तहत लगभग दो लाख टन पराली से प्रतिवर्ष तीन करोड़ लीटर इथेनॉल बनाया जा सकेगा और लगभग तीन लाख टन कार्बन डाईऑक्‍साइड के बराबर ग्रीन हाऊस गैसों का उत्‍सर्जन कम करने में भी मदद मिलेगी। इथेनॉल  प्रमुख जैव ईंधनों में से एक है, जो प्रकृतिक रूप से खमीर अथवा एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से शर्करा के किण्वन द्वारा उत्पन्न होता है। इथेनॉल को गैसोलीन में मिलाकर यह कार चलाने के लिये आवश्यक पेट्रोल की मात्रा को कम कर सकता है जिससे आयातित महंँगे और प्रदूषणकारी पेट्रोलियम पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। इथेनॉल अपेक्षाकृत निम्न प्रदूषणकारी ईंधन है जो पेट्रोल की तुलना में कम लागत पर समान दक्षता प्रदान करता है। 


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