पाल-दाधवाव नरसंहार
हाल ही में गुजरात सरकार ने पाल-दाधवाव नरसंहार के 100 साल पूरे कर लिये, इसे जलियाँवाला बाग से भी बड़ा नरसंहार बताया गया है।
- नरसंहार की शताब्दी पर गुजरात सरकार की एक विज्ञप्ति ने इस घटना को वर्ष 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड से भी अधिक क्रूर बताया।
- इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि 90 साल पहले बिहार के मुंगेर ज़िले के तारापुर शहर (अब उपखंड) में पुलिस द्वारा मारे गए 34 स्वतंत्रता सेनानियों की याद में 15 फरवरी को "शहीद दिवस" के रूप में मनाया जाएगा।
पाल-दाधवाव नरसंहार:
- पाल-दाधवाव हत्याकांड 7 मार्च, 1922 को साबरकांठा ज़िले के पाल-चितरिया और दधवाव गाँव में हुआ था, जो उस समय इदर राज्य (अब गुजरात) का हिस्सा था।
- उस दिन आमलकी एकादशी थी, जो आदिवासियों का एक प्रमुख त्योहार है जो होली से ठीक पहले मनाया जाता है।
- मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में 'एकी आंदोलन' के हिस्से के रूप में पाल, दाधवाव और चितरिया के ग्रामीण वारिस नदी के तट पर एकत्र हुए थे।
- राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के कोलियारी गाँव के रहने वाले तेजावत ने भी इसमें भाग लेने के लिये कोटड़ा छावनी, सिरोही और दांता के भीलों को बुलाया था।
- विरोध का असर विजयनगर, दाधवाव, पोशिना और खेड़ब्रह्मा में महसूस किया गया जो अब साबरकांठा के तालुका हैं; अरावली ज़िले के बनासकांठा और दंता तथा राजस्थान के कोटड़ा छावनी, डूंगरपुर, चित्तौड़, सिरोही, बांसवाड़ा और उदयपुर, ये सभी उस समय की रियासतें थीं।
- यह आंदोलन अंग्रेजों और सामंतों द्वारा किसानों पर लगाए गए भू-राजस्व कर (लगान) के विरोध में था।
- तेजावत की तलाश में ब्रिटिश अर्द्ध-सैनिक बल लगा हुआ था। उसने इस सभा के बारे में सुना और मौके पर पहुँच गया।
- तेजावत के नेतृत्व में लगभग 200 भीलों ने अपने धनुष-बाण उठा लिये लेकिन अंग्रेज़ों ने उन पर गोलियाँ चला दीं और लगभग 1,000 आदिवासियों (भील) को गोलियों से भून दिया गया।
- जबकि अंग्रेज़ों ने दावा किया कि कुल 22 लोग मारे गए लेकिन भीलों का मानना है कि इसमें 1,200-1,500 लोग मारे गए।
- तेजावत, हालाँकि बच गए और आज़ादी के बाद उन्होंने इस जगह का नाम “विरुभूमि” रखा।
मोतीलाल तेजावत
- एक आदिवासी बहुल कोलियारी गाँव में व्यापारी (बनिया) परिवार में जन्मे तेजावत को एक ज़मींदार ने काम पर रखा था, जहाँ उन्होंने आठ साल तक काम किया।
- इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि कैसे ज़मींदार आदिवासियों का शोषण करते हैं और टैक्स नहीं देने पर उन्हें जूतों से पीटने की धमकी देते हैं।
- आदिवासियों के अत्याचार और शोषण से नाराज़ तेजावत ने वर्ष 1920 में नौकरी छोड़ दी और खुद को सामाजिक कार्य एवं सुधार के लिये समर्पित कर दिया। आज भी स्थानीय पाल-दाधवाव हत्याकांड को शादियों और मेलों में गाए जाने वाले गीतों के रूप में सुनाते हैं। ऐसा ही एक गाना है 'हंसु दुखी, दुनिया दुखी'।
विगत वर्षों के प्रश्नऔपनिवेशिक भारत के संदर्भ में शाह नवाज खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों किस रूप में याद किये जाते है: (2021) (a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में उत्तर: (d) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सारस 3 रेडियो टेलीस्कोप
हाल ही में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (Raman Research Institute-RRI) के भारतीय शोधकर्त्ताओं ने सारस 3 रेडियो टेलीस्कोप (SARAS 3 Radio Telescope) का उपयोग करते हुए एक अध्ययन में कॉस्मिक डॉन (ब्रह्माण्ड का उद्भव) से एक रेडियो तरंग सिग्नल ( Radio Wave Signal) की खोज के हालिया दावे का खंडन किया है।
- वर्ष 2018 में अमेरिका में एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी (Arizona State University- ASU) और MIT के शोधकर्त्ताओं की एक टीम द्वारा ईडीजीईएस रेडियो टेलीस्कोप (EDGES Radio Telescope) से डेटा का उपयोग करके प्रारंभिक ब्रह्मांड में उभरते तारों से एक सिग्नल का पता लगाया था।
- कॉस्मिक डॉन (Cosmic Dawn) बिग बैंग के लगभग 50 मिलियन वर्ष से लेकर एक अरब वर्ष तक की अवधि है जब ब्रह्मांड में पहले तारे, ब्लैक होल और आकाशगंगाएँ बनीं।
- रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है जो बुनियादी विज्ञान में अनुसंधान में संलंग्न है। संस्थान की स्थापना वर्ष 1948 में भारतीय भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सीवी रमन द्वारा की गई थी।
रेडियो तरंगें और रेडियो टेलीस्कोप:
- विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में रेडियो तरंगों की तरंगदैर्ध्य सबसे लंबी होती है। ये एक फुटबॉल के आकार से लेकर पृथ्वी (ग्रह) के समान विशाल आकार तक हो सकती हैं। रेडियो तरंगों की खोज वर्ष 1880 के दशक के अंत में हेनरिक हर्ट्ज़ (Heinrich Hertz) ने की।
- रेडियो टेलीस्कोप की मदद से दुर्बल रेडियो प्रकाश तरंगों को एकत्र किया जाता है और उनकी केंद्रीयता बढ़ाकर इनका उपयोग विश्लेषण हेतु किया जाता है।
- ये तारों, आकाशगंगाओं, ब्लैक होल और अन्य खगोलीय पिंडों से प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले रेडियो प्रकाश का अध्ययन करने में मददगार साबित होती हैं।
- ये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए टेलीस्कोप प्रकाश की सबसे दीर्घ तरंगदैर्ध्य का निरीक्षण करते हैं, जो 1 मिलीमीटर से लेकर 10 मीटर से अधिक लंबे होते हैं। तुलना के लिये दृश्यमान प्रकाश तरंगें केवल कुछ सौ नैनोमीटर लंबी होती हैं। एक नैनोमीटर कागज़ के एक टुकड़े की मोटाई का केवल 1/10,000वाँ हिस्सा होता है! वास्तव में हम आमतौर पर रेडियो प्रकाश को उसकी तरंगदैर्ध्य से नहीं बल्कि उसकी आवृत्ति से संदर्भित करते हैं।
सारस 3 रेडियो टेलीस्कोप क्या है?
- सारस ‘रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (RRI) का एक उच्च-जोखिम वाला उच्च-लाभ प्रायोगिक प्रयास है।
- सारस का लक्ष्य भारत में एक सटीक रेडियो टेलीस्कोप का डिज़ाइन, निर्माण और तैनाती करना है, जो हमारे अतीत से रेडियो तरंग संकेतों का पता लगाता है, जब प्रारंभिक ब्रह्मांड में पहले तारे और आकाशगंगाएँ बनी थीं।
निष्कर्ष क्या हैं?
- सारस 3 को ‘EDGES’ प्रयोग द्वारा दावा किये गए संकेत का कोई प्रमाण नहीं मिला।
- माप अनिश्चितताओं के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के बाद संकेत की उपस्थिति को निर्णायक रूप से खारिज कर दिया गया।
- EDGES’ द्वारा रिपोर्ट किये गए संकेत प्रायः दूषित मापों पर आधारित थे, न कि अंतरिक्ष और समय की गहराई से प्राप्त संकेतों पर।
- हालाँकि खगोलविदों को अभी भी यह नहीं पता है कि वास्तविक संकेत कैसे दिखते हैं।
विगत वर्षों के प्रश्ननिम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिये: (2018)
उपरोक्त में से कौन-सा/से अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत की भविष्यवाणी/भविष्यवाणियाँ है/हैं, जिसकी/जिनकी अक्सर मीडिया में चर्चा होती है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: D |
स्रोत: पी.आई.बी.
UPI123Pay और डिजिसाथी
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने डिजिटल भुगतान करने हेतु गैर इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के फोन के लिये नई UPI सेवाएँ UPI123Pay शुरू की हैं, साथ ही डिजिटल भुगतान के लिये 24x7 हेल्पलाइन की भी शुरुआत की गई है, जिसे 'डिजीसाथी' कहा गया।
- डिजिटल भुगतान उत्पादों और सेवाओं से संबंधित जानकारी पर उपयोगकर्त्ताओं को स्वचालित प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिये भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा 'डिजीसाथी' की स्थापना की गई है। वर्तमान में यह अंग्रज़ी और हिंदी भाषा में उपलब्ध है।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)
- यह तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service- IMPS) जो कि कैशलेस भुगतान को तीव्र और आसान बनाने के लिये चौबीस घंटे धन हस्तांतरण सेवा है, का एक उन्नत संस्करण है।
- UPI एक ऐसी प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लीकेशन (किसी भी भाग लेने वाले बैंक ) द्वारा कई बैंकिंग सुविधाओं, निर्बाध फंड रूटिंग और मर्चेंट भुगतान की शक्ति प्रदान करती है।
- वर्तमान में UPI नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH), तत्काल भुगतान सेवा (IMPS), आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS), भारत बिल भुगतान प्रणाली (BBPS), RuPay आदि सहित भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा संचालित प्रणालियों में सबसे बड़ा है।
- वर्तमान के शीर्ष UPI एप्स में फोन पे, पेटीएम, गूगल पे, अमेज़न पे और भीम एप शामिल हैं।
‘UPI123Pay’ क्या है?
- परिचय:
- यह उन साधारण फोन पर काम करेगा, जिनमें इंटरनेट कनेक्शन नहीं है।
- अभी तक UPI फीचर ज़्यादातर स्मार्टफोन पर ही उपलब्ध हैं।
- फीचर फोन के लिये UPI सेवा खुदरा भुगतान पर आरबीआई के नियामक सैंडबॉक्स का लाभ उठाएगी।
- एक नियामक सैंडबॉक्स आमतौर पर नियंत्रित/परीक्षण नियामक वातावरण में नए उत्पादों या सेवाओं के लाइव परीक्षण को संदर्भित करता है जिसके लिये नियामक परीक्षण के सीमित उद्देश्य हेतु कुछ नियामक छूट की अनुमति दी जा सकती है।
- UPI सेवा UPI अनुप्रयोगों में 'ऑन-डिवाइस' वॉलेट तंत्र के माध्यम से डिजिटल लेन-देन को सक्षम करेगी।
- उपयोगकर्त्ता चार प्रौद्योगिकी विकल्पों के आधार पर कई लेन-देन करने में सक्षम होंगे, जिनमें- आईवीआर (इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पांस) नंबर, मिस्ड कॉल-आधारित दृष्टिकोण, फीचर फोन में एप की कार्यक्षमता और ‘नियर वॉइस’ आधारित भुगतान शामिल हैं।
- यह उन साधारण फोन पर काम करेगा, जिनमें इंटरनेट कनेक्शन नहीं है।
- लाभ:
- फीचर फोन हेतु नई सेवा व्यक्तियों को स्मार्टफोन और इंटरनेट के बिना दूसरों को सीधे भुगतान करने में सक्षम होगी।
- उपयोगकर्त्ताओं द्वारा मित्रों और परिवार को भुगतान किया जा सकता हैं, साथ ही इससे उपयोगिता बिलों का भुगतान कर सकते हैं, अपने वाहनों के फास्ट टैग को रिचार्ज कर सकते हैं, मोबाइल बिलों का भुगतान कर सकते हैं तथा उपयोगकर्त्ता अपने खाते की शेष राशि को भी चेक कर सकते हैं।
- यह ग्राहकों को स्कैन और भुगतान को छोड़कर लगभग सभी लेन-देन हेतु फीचर फोन का उपयोग करने की अनुमति देगा।
- UPI123Pay अनुमानित 40 करोड़ फीचर फोन उपयोगकर्त्ताओं को लाभान्वित करेगा और उन्हें सुरक्षित तरीके से डिजिटल भुगतान करने में सक्षम बनाएगा। यह स्मार्टफोन का उपयोग न करने वाले उपयोगकर्त्ताओं को डिजिटल भुगतान प्रणाली से जोड़ने में मददगार साबित होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 मार्च, 2022
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल
प्रतिवर्ष 10 मार्च को ‘केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल’ (CISF) का स्थापना दिवस आयोजित किया जाता है। ‘केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल’ एक केंद्रीय सशस्त्र बल है जिसका गठन केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के तहत किया गया था। यह केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत भारत के सात अर्द्ध-सैनिक बलों में से एक है। CISF की स्थापना 10 मार्च, 1969 को की गई थी और CISF अधिनियम, 1968 के तहत कुल तीन बटालियनों का गठन किया गया था। यह पूरे भारत में स्थित औद्योगिक इकाइयों, सरकारी अवसंरचना परियोजनाओं और सुविधाओं तथा प्रतिष्ठानों को सुरक्षा प्रदान करता है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, खदानों, तेल क्षेत्रों व रिफाइनरियों, मेट्रो रेल, प्रमुख बंदरगाहों आदि जैसे औद्योगिक क्षेत्रों की सुरक्षा का ज़िम्मा भी CISF ही उठाता है। CISF में एक विशेष सुरक्षा समूह विंग भी है, जिसका प्राथमिक कार्य X, Y, Z और Z प्लस श्रेणियों के तहत वर्गीकृत लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के अलावा भारत में अन्य केंद्रीय सशस्त्र बलों में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), सीमा सुरक्षा बल (BSF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), सशस्त्र सीमा बल (SSB), असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड शामिल हैं।
मिशन इंद्रधनुष में ओडिशा का पहला स्थान
मिशन इंद्रधनुष 4.0 के तहत कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ सफल टीकाकरण के अलावा 90.5% टीकाकरण हासिल करने वाला ओडिशा देश का एकमात्र राज्य बन गया है। माताओं और बच्चों के लिये निवारक स्वास्थ्य देखभाल की दिशा में एक कदम के रूप में लक्षित महिलाओं और बच्चों के पूर्ण टीकाकरण कवरेज को बढ़ावा देने के लिये इसी वर्ष मार्च माह से ओडिशा में गहन मिशन इंद्रधनुष (IMI) 4.0 शुरू किया गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS) की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा राष्ट्रीय स्तर पर पूर्ण टीकाकरण कवरेज में 90.5% पूर्ण टीकाकरण के साथ सूची में सबसे ऊपर है। राज्य के बीस ज़िले पूर्ण टीकाकरण में 90% से ऊपर थे और 10 ज़िले 90% से नीचे थे। आमतौर पर पूर्ण टीकाकरण में पोलियो, तपेदिक, पीलिया, डिप्थीरिया, काली खाँसी, टेटनस, एचआईवी, मस्तिष्क बुखार, निमोनिया, खसरा, रूबेला, दस्त, जापानी बुखार आदि सहित 12 विभिन्न प्रकार की बीमारियों के खिलाफ निवारक टीके शामिल होते हैं। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 25 दिसंबर, 2014 को ‘मिशन इंद्रधनुष’ की शुरुआत की थी। मिशन इन्द्रधनुष एक बूस्टर टीकाकरण कार्यक्रम है जो कम टीकाकरण कवरेज वाले ज़िलों में शुरू किया गया था।
महिलाओं के स्वामित्व वाला पहला औद्योगिक पार्क
हाल ही में भारत के पहले 100 प्रतिशत महिलाओं के स्वामित्व वाले औद्योगिक पार्क का संचालन हैदराबाद में शुरू हुआ है। राज्य सरकार के साथ साझेदारी में फिक्की महिला संगठन (FLO) द्वारा शुरू किये गए इस पार्क में कुल 25 इकाइयाँ हैं, जो 16 विविध श्रेणी के उद्योगों का प्रतिनिधित्व करती हैं और सभी का स्वामित्व महिलाओं के पास एवं उनके द्वारा संचालित हैं। फिक्की महिला संगठन द्वारा स्थापित यह औद्योगिक पार्क देश में अपनी तरह का पहला पार्क है, जिसे 250 करोड़ रुपए के निवेश के साथ पाटनचेरु के पास सुल्तानपुर में 50 एकड़ क्षेत्र में स्थापित किया गया है। इस पार्क के तहत महिला उद्यमियों को अतिरिक्त 10 प्रतिशत सब्सिडी देने का भी आश्वासन दिया गया है।
पाल-दाधवाव नरसंहार
07 मार्च को गुजरात के ‘पाल-दाधवाव नरसंहार’ के 100 वर्ष पूरे हुए हैं। पाल-दाधवाव नरसंहार 7 मार्च, 1922 को साबरकांठा ज़िले के पाल-चितरिया और दाधवाव गांवों में हुआ था, जो उस समय इडर राज्य का हिस्सा था। मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में 'एकी आंदोलन' के हिस्से के रूप में पाल, दाधवाव और चितरिया के ग्रामीण ‘वारिस नदी’ के तट पर एकत्र हुए थे। यह आंदोलन अंग्रेज़ों और सामंतों द्वारा किसानों पर लगाए गए भू-राजस्व कर (लगान) के विरोध में था। तेजावत को उदयपुर राज्य द्वारा अपराधी घोषित किया गया था और उन पर 500 रुपए के इनाम की घोषणा की गई थी। मेवाड़ भील कॉर्प्स (MBC), जो कि अंग्रेज़ों द्वारा तेजावत की तलाश में स्थापित एक अर्द्ध-सैनिक बल था, ने इस सभा के बारे में सुना और वे मौके पर पहुँच गए। यहाँ तेजावत की उपस्थिति के कारण अफसरों ने गोली चलाने के आदेश दे दिये और इसके तहत 1000 से अधिक भील आदिवासी मारे गए, हालाँकि ब्रिटिश सरकार के आँकड़े बताते हैं कि इस घटना में केवल 22 लोगों की मृत्यु हुई थी।