प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स: 09 सितंबर, 2020
दक्षिण अमेरिका की योनोमामी जनजाति
Yanomami Tribe of South America
हाल ही में दक्षिण अमेरिका (South America) की योनोमामी जनजाति (Yanomami Tribe) ने कोरोनोवायरस महामारी के बीच अपनी भूमि से 20,000 स्वर्ण खनिकों को बाहर निकालने के लिये एक वैश्विक अभियान शुरू किया है।
प्रमुख बिंदु:
- यानोमामी उत्तरी ब्राज़ील एवं दक्षिणी वेनेज़ुएला के वर्षावनों व पहाड़ों में निवास करते हैं और सर्वाइवल इंटरनेशनल (Survival International) के अनुसार, दक्षिण अमेरिका में सबसे बड़ी पृथक जनजाति है।
सर्वाइवल इंटरनेशनल (Survival International):
- लंदन स्थित सर्वाइवल इंटरनेशनल अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का समर्थन करने वाला एक संगठन है जो दुनिया भर के देशज एवं आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिये अभियान चलाता है।
- गुआरानी (Guarani), कैंगंग (Kaingang), पैटाक्सो (Pataxo), एचए एचए एचएई (Ha Ha Hae), तुपिनाम्बा (Tupinamba), यानोमामी (Yanomami), तिकुना (Tikuna) और अकुंट्सू (Akuntsu) दक्षिण अमेरिका के अमेज़न बेसिन की लोकप्रिय जनजातियाँ हैं।
- अमेज़न दक्षिण अमेरिका की एक नदी है और इसका बेसिन दुनिया के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वर्षावनों से ढका हुआ है।
अमेज़न नदी:
- अमेज़न दक्षिण अमेरिका की सबसे लंबी नदी तथा अपवाह क्षेत्र की दृष्टि से संसार की सबसे बड़ी नदी है।
- इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 70 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक तथा लंबाई 6400 किमी. है।
- यह पेरू में एंडीज़ पर्वतमाला से निकलकर पूर्व की ओर बहते हुए अटलांटिक महासागर में गिरती है।
- वर्तमान में इस जनजाति की संख्या लगभग 38,000 है जो ब्राज़ील के लगभग 9.6 मिलियन हेक्टेयर और वेनेज़ुएला के 8.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र पर निवास करते हैं।
- ये बड़े, गोलाकार घरों में रहते हैं जिन्हें यानोस (Yanos) या शाबोनोस (Shabonos) कहा जाता है जिनमें लगभग 400 लोग रह सकते हैं।
- यानोमामी सभी लोगों को समान मानते हैं, इस जनजाति समुदाय में मुख्य व्यक्ति की अवधारणा नहीं पाई जाती है।
- इनके सभी निर्णय लंबी चर्चा एवं बहस के बाद सर्वसम्मति पर आधारित होते हैं।
- ये लोग एक्सिरिआना (Xirianá) भाषा बोलते हैं।
- एक ब्राज़ीलियाई देशज नेता डारियो कोपेनावा (Dario Kopenawa) जिन्होंने यानोमामी लोगों के भूमि अधिकारों के लिये संघर्ष किया, को राइट लिवलीहुड अवार्ड-2019 (Right Livelihood Award-2019) से सम्मानित किया गया जिसे स्वीडन के वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार के रूप में भी जाना जाता है।
पहला विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन
First World Solar Technology Summit
8 सितंबर, 2020 को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) द्वारा पहला विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन (World Solar Technology Summit) आयोजित किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- नवाचार पर ISA ग्लोबल लीडरशिप टास्क फोर्स के संयोजक के रूप में ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) इस शिखर सम्मेलन के आयोजन में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के साथ कार्य कर रहा है।
- इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन में 149 देशों के 26000 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- इस सम्मेलन का उद्देश्य सौर प्रौद्योगिकी की प्रमुख विशेषताओं (लागत, प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, चुनौतियाँ एवं चिंताएँ) को प्रस्तुत करना और चर्चा करने के लिये प्रमुख हितधारकों (प्रमुख शैक्षणिक वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकी डेवलपर्स, शोधकर्त्ताओं और नवप्रवर्तनकर्त्ताओं) को एक साथ लाना है।
- इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को अत्याधुनिक एवं अगली पीढ़ी की सौर प्रौद्योगिकियों से परिचित कराना है। इसके साथ ही निर्णयकर्त्ताओं एवं हितधारकों के मिलने और अपनी प्राथमिकताओं एवं रणनीतिक एजेंडे पर चर्चा करने का अवसर भी प्रदान करना है जिससे और सहयोग बढ़ सके।
- इस सम्मेलन में सस्ती एवं टिकाऊ स्वच्छ हरित ऊर्जा में तेज़ी लाने के लिये भी चर्चा की गई।
- इस सम्मेलन के दौरान ISA की प्रौद्योगिकी पत्रिका ‘सोलर कंपास 360’ (Solar Compass 360) भी लॉन्च की गई।
- इस अवसर पर तीन समझौतों की घोषणा की गई:
- ISA और अंतर्राष्ट्रीय प्रशीतन संस्थान
- ISA और ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट
- ISA और नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन
- भारत सरकार ने एक्ज़िम (EXIM) बैंक ऑफ इंडिया के सहयोग से ISA सदस्य देशों में ‘बैंकेबल सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट’ (Bankable Solar Energy Projects) विकसित करने के लिये एक ‘प्रोजेक्ट प्रिपरेशन फेसिलिटी’ भी स्थापित की है।
- उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन 'एक विश्व, एक सूर्य, एक ग्रिड' परियोजना का एक हिस्सा है।
कुसुम योजना (KUSUM Scheme):
- किसानों को वित्तीय एवं जल सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान-कुसुम (Kisan Urja Suraksha evam Utthaan Mahabhiyan-KUSUM) को शुरू किया गया है।
- इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2022 तक कुल 25,750 मेगावाट की सौर क्षमता स्थापित करना है।
- इस योजना के तहत कृषि क्षेत्र में डीज़ल के उपयोग को सौर ऊर्जा से बदला जा रहा है।
- इस योजना के तहत 2.8 मिलियन सिंचाई पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
संस्कृत ग्राम
Sanskrit Gram
उत्तराखंड के दो गाँवों के निवासियों को संस्कृत सिखाने के लिये एक पायलट कार्यक्रम में उल्लेखनीय प्रगति के बाद उत्तराखंड सरकार ने राज्य भर में ‘संस्कृत ग्राम’ (Sanskrit Gram) विकसित करने का निर्णय लिया।
प्रमुख बिंदु:
- उत्तराखंड में संस्कृत दूसरी आधिकारिक भाषा है।
- इससे पहले संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने वाले पायलट कार्यक्रम के तहत गाँवों की एक सूची का चयन किया गया था। इन गाँवों को संस्कृत स्कूलों की उपलब्धता के अनुसार चुना गया था ताकि शिक्षक अक्सर गाँवों का दौरा कर सकें और निवासियों को संस्कृत सीखने एवं उपयोग करने के लिये प्रेरित कर सकें।
- गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार वर्तमान में 97 संस्कृत विद्यालयों का संचालन करती है जहाँ प्रति वर्ष औसतन 2100 छात्र पढ़ते हैं।
- उत्तराखंड में संस्कृत भाषा के प्रचार के लिये पहले ज़िला स्तर पर और फिर ब्लॉक स्तर पर अभियान चलाया जाएगा।
- उत्तराखंड सरकार ने संस्कृत भाषा के प्रचार के लिये हरिद्वार, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत एवं ऊधम सिंह नगर ज़िलों को चुना है।
- उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’ (Uttarakhand Sanskrit Academy) की एक बैठक में इस अकादमी का नाम बदल कर ‘उत्तरांचल संस्कृत संस्थानम् हरिद्वार’ (Uttaranchal Sanskrit Sansthanam Haridwar) कर दिया गया।
संस्कृत दिवस:
- प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा (Poornima) को संस्कृत दिवस मनाया जाता है।
- इस वर्ष यह दिवस 03 अगस्त, 2020 को आयोजित किया गया।
- संस्कृत दिवस का मुख्य उद्देश्य इस प्राचीन भारतीय भाषा के पुनरुद्धार को बढ़ावा देना है।
- गौरतलब है कि इस दिवस का आयोजन सर्वप्रथम वर्ष 1969 में किया गया था। संस्कृत दिवस की शुरुआत इस प्राचीन भारतीय भाषा के संबंध में जागरुकता फैलाने, बढ़ावा देने और इसे पुनर्जीवित करने के प्रयासों को तेज़ करने के लक्ष्य के साथ हुई थी।
- माना जाता है कि भारत में संस्कृत भाषा की उत्पत्ति लगभग 3500 पूर्व हुई थी।
रोगन आर्ट
Rogan Art
हाल ही में रोगन आर्ट कलाकारों ने अपनी आजीविका चलाने के लिये COVID-19 से बचाव के लिये उपयोग किये जाने वाले मास्क पर रोगन आर्ट (Rogan Art) को चित्रित करना शुरू किया।
प्रमुख बिंदु:
- रोगन आर्ट एक प्राचीन कपड़ा कला है जिसकी उत्पत्ति फारस में हुई थी जो लगभग 300 वर्ष पहले भारत में गुजरात के कच्छ में प्रचलित हुई।
- ‘रोगन’ फारसी मूल का एक शब्द है जिसका अर्थ ‘तेल’ होता है। ‘रोगन आर्ट’ कपड़े पर पेंटिंग करने की तकनीक है जिसमें अरंडी के तेल और प्राकृतिक रंगों से बने एक समृद्ध, चमकीले रंग का उपयोग किया जाता है।
- अरंडी गुजरात के कच्छ में उगाई जाने वाली एक स्थानीय फसल है जिसे कलाकार मूल रूप से स्थानीय किसानों से प्राप्त करते थे।
- परंपरागत रूप से इसका उपयोग क्षेत्रीय जनजातियों में दुल्हन के कपड़ों को सुशोभित करने के लिये किया जाता था।
- इस कला का प्रयोग घाघरा, ओढ़नी एवं बेडशीट के किनारों को सजाने के लिये किया जाता है।
- हालाँकि वर्तमान में इस कला का प्रयोग दीवार पर भी होने लगा है जिसके कारण इस कला को 'रोगन काम' (Rogan Kaam) के नाम से भी काफी लोकप्रियता मिली है।
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 सितंबर, 2020
गोविंद स्वरूप
07 सितंबर, 2020 को देश के महान वैज्ञानिक और रेडियो खगोलशास्त्री गोविंद स्वरूप (Govind Swarup) का 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वर्ष 1929 में उत्तरप्रदेश के ठाकुरद्वारा में जन्मे गोविंद स्वरूप को ‘भारतीय रेडियो खगोलशास्त्र के पिता के रूप में जाना जाता था। उन्होंने वर्ष 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री और वर्ष 1961 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट डिग्री हासिल की। वर्ष 1963 में डॉ. होमी जहाँगीर भाभा के निमंत्रण पर गोविंद स्वरूप भारत लौट आए और जल्द ही वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में शामिल हो गए। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में उन्होंने रेडियो खगोलशास्त्रियों का एक समूह स्थापित किया, जो कि विश्व में इस तरह का अपना पहला समूह था। वर्ष 1984 से वर्ष 1996 के दौरान गोविंद स्वरूप के निर्देशन में राष्ट्रीय खगोल भौतिकी केंद्र (National Centre for Radio Astrophysics) ने जायंट मीटर-वेव रेडियो टेलीस्कोप (Giant Metrewave Radio Telescope-GMRT) का निर्माण किया, जो कि 25 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई 30 परवलयाकर (Parabolic) रेडियो दूरबीनों (प्रत्येक दूरबीन का व्यास 45 मीटर) की एक श्रृंखला है जो सभी दिशाओं में घूम सकती हैं। यह विश्व की सबसे संवेदनशील दूरबीनों में से एक है और इसे पूरी तरह से गोविंद स्वरूप के नेतृत्त्व में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है।
इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार
हाल ही में मशहूर प्रकृतिवादी और प्रसारक (Broadcaster) सर डेविड एटनबरो (Sir David Attenborough) को वर्ष 2019 के लिये इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ‘इंदिरा गांधी शांति, निरस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार’ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर दिये जाने वाला एक प्रतिष्ठित वार्षिक पुरस्कार है। इसे वर्ष 1986 से प्रत्येक वर्ष इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के तहत एक प्रशस्ति पत्र और 25 लाख रुपए का मौद्रिक पुरस्कार प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों या संगठनों को प्रदान किया जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और विकास सुनिश्चित करने और नए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हों।
किसान रेल सेवा
09 सितंबर, 2020 को देश की दूसरी और दक्षिण भारत की पहली किसान रेलगाड़ी की शुरुआत की गई, जिसके माध्यम से आंध्रप्रदेश के अनंतपुर से दिल्ली के आदर्श नगर रेलवे स्टेशन तक कृषि उत्पादों की ढुलाई की जाएगी। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस रेलगाड़ी की शुरुआत करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने में किसान रेल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। साथ ही उन्होंने बागबानी को प्रोत्साहन देने के लिये शीघ्र ही किसान उड़ान कार्यक्रम शुरू करने की भी घोषणा की। किसान रेल का प्रयोग फल-सब्जियों, मछली-मांस और दूध जैसी जल्द खराब होने वाली वस्तुओं के परिवहन के लिये किया जाएगा। किसान रेल में वातानुकूलित डिब्बे निर्मित किये गए हैं और इसके माध्यम से देश भर में मछली, मांस और दूध सहित जल्द खराब होने वाली कई खाद्य योग्य वस्तुओं को निर्बाध रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाएगा। ध्यातव्य है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्तीय वर्ष के बजट में किसान रेल चलाने की घोषणा की थी ताकि जल्द खराब होने वाली कृषि उपज की निर्बाध आपूर्ति की जा सके।
दिल्ली-मेरठ रीज़नल रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम कॉरिडोर
अत्याधुनिक एवं हाई-स्पीड 82 किलोमीटर लंबे दिल्ली-मेरठ रीज़नल रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम (Regional Rapid Transit System-RRTS) कॉरिडोर के विकास के लिये एशियाई विकास बैंक (ADB) और भारत ने 500 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये है। इस कॉरिडोर से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बेहतर होने के साथ-साथ भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में आवाजाही काफी बढ़ जाएगी। 82 किलोमीटर लंबे इस कॉरिडोर की डिज़ाइनिंग कुछ इस तरह से की जाएगी कि इस पर 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें दौड़ सकेंगी। यह कॉरिडोर दिल्ली के सराय काले खाँँ को उत्तर प्रदेश के मेरठ के मोदीपुरम से जोड़ेगा। इस कॉरिडोर से सफर में लगने वाला समय घटकर लगभग 1 घंटा रह जाएगा, जबकि अभी इसमें 3-4 घंटे लगते हैं। ऋण की पहली किस्त का उपयोग विद्युतीकृत पटरियों, सिग्नलिंग प्रणालियों, मल्टीमोडल हब और स्टेशनों के निर्माण में किया जाएगा। इस परियोजना के तहत स्टेशन कुछ इस तरह से बनाए जाएंगे जिससे वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, बच्चों और दिव्यांगों को सहायता मिलेगी।