लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 08 Jan, 2022
  • 16 min read
प्रारंभिक परीक्षा

ई-डीएनए के माध्यम से जानवरों को ट्रैक करना

ई-डीएनए के माध्यम से जानवरों को ट्रैक करना

कुछ अध्ययनों के अनुसार हवा में तैरता डीएनए (यानी ई-डीएनए) दुनिया भर में जैव विविधता संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा दे सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • दो टीमों के शोधकर्ताओं ने यह बताया है कि पर्यावरण डीएनए (e-DNA) संभावित रूप से स्थलीय जानवरों की पहचान और निगरानी कर सकता है।
      • जानवर अपनी सांस, लार, फर या मल के माध्यम से पर्यावरण में डीएनए को छोड़ते हैं और इन नमूनों को ई-डीएनए कहा जाता है।
    • एयरबोर्न ई-डीएनए नमूनाकरण एक बायोमाॅनिटरिंग विधि है जो जीवविज्ञानियों और संरक्षणवादियों के बीच लोकप्रियता से बढ़ रही है क्योंकि यह प्रचुर मात्रा में जानकारी प्रदान करती है।
  • महत्त्व:
    • यह पशु समुदायों की संरचना को समझने और गैर-देशी प्रजातियों के प्रसार का पता लगाने में मदद कर सकती है।
    • कुछ परिवर्तनों के बाद लुप्तप्राय प्रजातियों की निगरानी हेतु यह विधि मौजूदा तकनीकों के साथ बेहतर काम करेगी।    
      • आमतौर पर जीवविज्ञानी जानवरों को व्यक्तिगत रूप से या जानवरों के पैरों के निशान या मल से डीएनए प्राप्त कर उसका विश्लेषण करते हैं, जिसके कारण व्यापक स्तर पर फील्डवर्क की आवश्यकता होती है।
      • डीएनए प्राप्त करने हेतु जानवरों को खोजना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर वे दुर्गम आवासों में रहते हैं।
    • यह लंबी दूरी के प्रवासी पक्षियों और अन्य पक्षियों के उड़ने के पैटर्न को ट्रैक करने में सहायता कर सकता है। यह कीड़ों सहित छोटे जानवरों के डीएनए को भी कैप्चर कर सकता है।
      • पिछले साल (2021), एक प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट अध्ययन ने स्थलीय कीड़ों की निगरानी के लिये एयरबोर्न ई-डीएनए का इस्तेमाल किया था।
    • जैसे-जैसे वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों के कारण तीव्रता से बेहद अराजक हो जाते हैं, स्थलीय जैव-निगरानी तकनीकों से सटीक और समय पर निगरानी हेतु अनुकूलन और तीव्र प्रगति की उम्मीद की जाती है।
  • संबंधित पहलें:
    • ग्लोबल ईडीएनए प्रोजेक्ट: अक्तूबर 2021 में यूनेस्को द्वारा समुद्री विश्व धरोहर स्थलों पर जलवायु परिवर्तन के लिये प्रजातियों की भेद्यता का अध्ययन करने हेतु इस परियोजना की शुरूआत की गई।

DNA 

  • डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड को संक्षिप्त में डीएनए कहते है। यह जीवों का वंशानुगत पदार्थ होता है जिसमें जैविक निर्देश होते हैं।
  • डीएनए की रासायनिक संरचना सभी जीवों के लिये समान होती है, लेकिन डीएनए बिल्डिंग ब्लॉक्स के क्रम में अंतर मौजूद होता है, जिसे बेस पेयर (Base Pairs) के रूप में जाना जाता है।
  • बेस पेयर के अनूठे क्रम, विशेष रूप से दोहराए जाने वाले पैटर्न, प्रजातियों, आबादी और यहाँ तक कि व्यक्तियों की पहचान करने हेतु एक साधन प्रदान करते हैं।

पर्यावरणीय डीएनए (e-DNA):

  • पर्यावरणीय डीएनए (ई-डीएनए) परमाणु या माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए है जो एक जीव द्वारा पर्यावरण में छोड़ा जाता है।
  • ईडीएनए के स्रोतों में गुप्त मल, श्लेष्मा और युग्मक शामिल हैं, जैसे- त्वचा और बाल और शव। e-DNA का पता कोशिकीय या बाह्य कोशिकीय (घुलित डीएनए) रूप में लगाया जा सकता है।
  • जलीय वातावरण में e-DNA पतला तथा धाराओं और अन्य हाइड्रोलॉजिकल प्रक्रियाओं द्वारा वितरित किया जाता है, लेकिन यह पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर केवल 7-21 दिनों तक रहता है।
  • UVB विकिरण, अम्लता, गर्मी और एक्सोन्यूक्लिअस के संपर्क में आने से ई-डीएनए खराब हो सकता है।

स्रोत- द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

माया सभ्यता

एक नए अध्ययन के अनुसार, माया सभ्यता की लगभग 500 सूखा प्रतिरोधी खाद्य पौधों तक पहुँच हो सकती है।

  • माया सभ्यता के अचानक पतन के पीछे का रहस्य अभी भी हमें नहीं पता है। वैज्ञानिकों को लंबे समय से संदेह है कि सूखे ने लोगों को भुखमरी की ओर धकेल दिया।
  • मक्का, बीन्स और स्क्वैश जैसी सूखा-संवेदनशील फसलों पर निर्भरता के कारण माया सभ्यता लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा।

Mexico

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • माया मेक्सिको और मध्य अमेरिका के एक स्वदेसी लोग हैं जो मेक्सिको में आधुनिक युकटान, क्विंटाना, कैम्पेचे, टबैस्को, चियापास, ग्वाटेमाला, बेलीज़, अल सल्वाडोर और होंडुरास के माध्यम से दक्षिण के निवासी हैं।
    • माया सभ्यता की उत्पत्ति युकाटन प्रायद्वीप में हुई थी। इसे अपनी विशाल वास्तुकला, गणित और खगोल विज्ञान की उन्नत समझ के लिये जाना जाता है।
    • माया का उदय लगभग 250 ई० से शुरू हुआ और पुरातत्त्वविदों को माया संस्कृति के क्लासिक पीरियड के रूप में जाना जाता है जो लगभग 900 ई० तक चला। अपनी चरम स्थिति में माया सभ्यता में 40 से अधिक शहर शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक की आबादी लगभग 5,000 से 50,000 के बीच थी।
      • लेकिन फिर अचानक 800 से  950 ई० के बीच कई दक्षिणी शहरों को छोड़ दिया गया। इस अवधि को क्लासिक माया सभ्यताओं का पतन कहा जाता है जो आधुनिक वैज्ञानिकों को भ्रमित करती है।
  • विशेष लक्षण:
    • 1500 ईसा पूर्व माया सभ्यता गाँवों में बस गई थी तथा मकई (मक्का), सेम (beans), स्क्वैश (squash) की खेती के आधार पर एक कृषि विकसित की गई थी। यहाँ 600 ई० तक कसावा (Sweet Manioc) भी उगाया जाता था।
    • उन्होंने समारोह केंद्रों का निर्माण शुरू किया और तकरीबन 200 ई० तक ये मंदिरों, पिरामिडों, महलों, गेंद खेलने हेतु कोर्ट और प्लाज़ा वाले शहरों में विकसित हो गए थे।
    • प्राचीन माया सभ्यता के लोगों ने भारी मात्रा में निर्माण हेतु पत्थर (प्रायः चूना पत्थर) का उत्खनन किया, जिसे उन्होंने ‘चर्ट’ (Chert) जैसे कठोर पत्थरों का उपयोग करके काटा। वे मुख्य रूप से स्लेश-एंड-बर्न कृषि अथवा झूम कृषि में संलग्न थे, लेकिन उन्होंने सिंचाई और पर्वतीय कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने चित्रलिपि लेखन एवं अत्यधिक परिष्कृत कैलेंडर तथा खगोलीय प्रणालियों की एक प्रणाली भी विकसित की।
    • माया सभ्यता के लोगों ने जंगली अंजीर के पेड़ों की भीतरी छाल से कागज़ बनाया और इस कागज़ से बनी किताबों पर अपनी चित्रलिपि लिखी। उन पुस्तकों को ‘कोडेक्स’ कहा जाता है।
    • माया सभ्यता के लोगों ने मूर्तिकला एवं नक्काशी की एक विस्तृत और सुंदर परंपरा भी विकसित की।
    • प्रारंभिक माया सभ्यता के बारे में जानकारी के मुख्य स्रोत वास्तुकला कार्य और पत्थर के शिलालेख व नक्काशीदार कार्य है।

अन्य प्राचीन सभ्यताएंँ

  • इंकान सभ्यता- इक्वाडोर, पेरू और चिली
  • एज़्टेक सभ्यता- मेक्सिको
  • रोमन सभ्यता- रोम
  • फारसी सभ्यता- ईरान
  • प्राचीन यूनानी सभ्यता- ग्रीस
  • चीनी सभ्यता- चीन
  • प्राचीन मिस्र की सभ्यता - मिस्र
  • सिंधु घाटी सभ्यता- पाकिस्तान से उत्तर-पूर्व अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत
  • मेसोपोटामिया सभ्यता- इराक, सीरिया और तुर्की

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 जनवरी, 2022

स्टीफन हॉकिंग

08 जनवरी, 2021 को दिग्गज टेक कंपनी गूगल ने एक एनिमेटेड डूडल के माध्यम से विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मांड विज्ञानी, लेखक और सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग को उनकी 80वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। स्टीफन विलियम हॉकिंग का जन्म 08 जनवरी 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में हुआ था। वह छोटी उम्र से ही ब्रह्मांड के रहस्यों से प्रेरित थे। 21 वर्ष की आयु में वे एक न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग से पीड़ित हो गए, जिसके कारण वह चलने और अन्य दैनिक कार्य करने में असमर्थ हो गए। स्टीफन हॉकिंग ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की, जबकि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। वह ‘ब्लैक होल’ के प्रति आकर्षित थे, जो कि उनके अध्ययन और शोध का एक महत्त्वपूर्ण विषय बना। वर्ष 1974 में उन्होंने अपने एक शोध में पाया कि ‘कण’ यानी ‘पार्टिकल्स’ ब्लैक होल से बच सकते हैं, उनके इस एक सिद्धांत को भौतिकी में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वर्ष 1974 में केवल 32 वर्ष की आयु में स्टीफन हॉकिंग प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के सदस्य चुने गए। यह उपलब्धि प्राप्त करने वाले वह विश्व के सबसे कम आयु के व्यक्ति थे। वर्ष 2003 में उन्हें फंडामेंटल फिज़िक्स पुरस्कार, वर्ष 2006 में कॉप्ले मैडल और वर्ष 2009 में प्रेसिडेंशियल मैडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया। उन्हें डॉक्टरेट की 14 मानद उपाधियाँ मिली थीं। 

डिजिटल युआन वॉलेट एप्लीकेशन

चीन के केंद्रीय बैंक ने हाल ही में ‘डिजिटल युआन वॉलेट एप्लीकेशन’ के पायलट संस्करण को लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य चीन की ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ विकसित करने हेतु प्रयासों को आगे बढ़ाना है। पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) के डिजिटल मुद्रा अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित ‘e-CNY’ (पायलट संस्करण) एप्लीकेशन शंघाई में डाउनलोड हेतु उपलब्ध है। ‘e-CNY’ या डिजिटल युआन, एक केंद्रीकृत डिजिटल मुद्रा है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से चीन में खुदरा भुगतान के लिये किया जाएगा। इस डिजिटल युआन वॉलेट का प्राथमिक लक्ष्य एक डिजिटल मुद्रा बनाना है जो अन्य डिजिटल मुद्राओं जैसे कि बिटकॉइन, स्टैब्लॉक्स और अन्य केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं (CBDC) के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सके, जबकि यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि रॅन्मिन्बी चीन में प्रमुख मुद्रा बनी रहे। 

ऑटोमेटिक जनरेशन कंट्रोल

केंद्रीय बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने हाल ही में ‘ऑटोमेटिक जनरेशन कंट्रोल’ (AGC) राष्ट्र को समर्पित किया है। ‘ऑटोमेटिक जनरेशन कंट्रोल’ प्रत्येक चार सेकेंड में बिजली संयंत्रों को सिग्नल भेजता है, ताकि देश की बिजली व्यवस्था की फ्रीक्वेंसी और विश्वसनीयता बनी रह सके। यह वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित उत्पादन क्षमता के सरकार के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में सुविधा प्रदान करेगा। ‘ऑटोमेटिक जनरेशन कंट्रोल’ का संचालन नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर के माध्यम से ‘पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन’ (POSOCO) द्वारा किया जा रहा है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ग्रिड आवृत्ति हमेशा 49.90-50.05 हर्ट्ज बैंड के भीतर बनी रहे। राज्य द्वारा संचालित पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन ‘नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर’ (NLDC) और ‘क्षेत्रीय लोड डिस्पैच सेंटर’ (RLDC) तथा ‘राज्य लोड डिस्पैच सेंटर’ (SLDC) के माध्यम से देश के महत्त्वपूर्ण बिजली लोड प्रबंधन कार्यों की देखरेख करता है। भारत में राष्ट्रीय ग्रिड बनाने वाले पाँच क्षेत्रीय ग्रिडों के लिये 33 SLDCs, पाँच RLDCs और एक NLDC है।

भारत का पहला ओपन रॉक संग्रहालय

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने हैदराबाद में भारत के पहले ओपन रॉक संग्रहालय का उद्घाटन किया है, जिसमें भारत के विभिन्न हिस्सों से लगभग 35 विभिन्न प्रकार की चट्टानों को प्रदर्शित किया गया, जिनकी उम्र तकरीबन 3.3 बिलियन वर्ष से लगभग 55 मिलियन वर्ष तक है। इस संग्रहालय का लक्ष्य आम जनमानस को ऐतिहासिक चट्टानों के संबंध में शिक्षित करना है। ये चट्टानें पृथ्वी की सतह से 175 किलोमीटर की दूरी तक पृथ्वी के सबसे गहरे हिस्से का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इन चट्टानों को ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तराखंड, झारखंड और जम्मू-कश्मीर से लाया गया है।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2