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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 05 Jun, 2023
  • 33 min read
प्रारंभिक परीक्षा

हिमालयन ब्राउन बियर

कश्मीर में हिमालयन ब्राउन बियर/हिमालयी भूरा भालू (उर्सस आर्कटोस इसाबेलिनस/Ursus arctos isabellinus) की आबादी कई चुनौतियों का सामना कर रही है जिससे उनके अस्तित्व और मानव सुरक्षा दोनों को लेकर खतरा बढ़ गया है।

  • रिहायशी इलाकों में भालुओं के घुसने और कब्रिस्तानों को तोड़ने या क्षतिग्रस्त करने की हाल की घटनाओं ने स्थानीय समुदायों के बीच चिंता बढ़ा दी है।
  • ये घटनाएँ अंतर्निहित कारकों और गंभीर रूप से लुप्तप्राय इस प्रजाति के आवासों की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती हैं।

हिमालयन ब्राउन बियर:

  • परिचय: 
    • हिमालयन ब्राउन बियर, ब्राउन बियर की उप-प्रजाति है जो पाकिस्तान से लेकर भूटान तक हिमालय के उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • इनके मोटे फर जो प्रायः रेतीले या लाल-भूरे रंग के होते हैं।
    • ये 2.2 मीटर तक लंबे हो सकते हैं जिनका वज़न 250 किलोग्राम तक होता है।

  • स्थिति: 
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा हिमालयन ब्राउन बियर को गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) प्रजाति की सूची में शामिल किया गया है।
      • ब्राउन बियर (उर्सस आर्कटोस/Ursus arctos) को कम चिंतनीय (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • CITES - अनुसूची II
      • अनुसूची II में सूचीबद्ध आबादी भूटान, चीन, मैक्सिको और मंगोलिया में पाई जाती है।
    • यह भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध है।
  • भोजन:  
    • सर्वाहारी।
  • व्यवहार:  
    • ये निशाचर या रात्रिचर प्राणी हैं और उनकी घ्राण-शक्ति काफी तीव्र होती है, जो भोजन खोजने का उनका प्रमुख साधन माना जाता है।
  • खतरा:  
    • मानव-पशु संघर्ष, निवास स्थान का तेज़ी से क्षरण, छाल, पंजे और अंगों के लिये अवैध शिकार तथा कुछ दुर्लभ मामलों में भालू के लिये चारे की अनुपलब्धता।
  • क्षेत्र/रेंज:  
    • उत्तर-पश्चिमी और मध्य हिमालय, जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, चीन का तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र और भूटान शामिल हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • अपर्याप्त भोजन स्रोत और परिवर्तित व्यवहार: 
      • भालू का आवासीय क्षेत्रों में भटकना और कब्रों को क्षतिग्रस्त करने का अज़ीब व्यवहार दर्शाता है कि उनके प्राकृतिक आवासों में पर्याप्त भोजन की कमी हो सकती है। 
      • भारत की प्राकृतिक विरासत, जंगलों और जैवविविधता की रक्षा एवं संरक्षण में स्थायी परिवर्तन करने के लक्ष्य के साथ स्थापित संस्था वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस. द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि कश्मीर में भालुओं के आहार में प्लास्टिक की थैलिएँ, चॉकलेट रैपर और अन्य खाद्य अपशिष्ट सहित मैला कचरा शामिल है। 
        • यह भालुओं के भोजन के प्राकृतिक प्रारूप को बाधित करता है और व्यवहार को बदल देता है, जिससे मनुष्यों के साथ संघर्ष होता है।
      • स्थानीय निवासियों और होटल व्यवसायियों द्वारा भालुओं के निवास स्थान के पास रसोई के कचरे का अनुचित निपटान भोजन तक उन्हें आसान पहुँच प्रदान करता है, जिस कारण भालुओं और मनुष्यों के बीच लगातार संघर्ष देखा जाता है।
        • भोजन के लिये शिकार करने के साथ इस बदले हुए व्यवहार ने मानव-निर्मित कचरे पर निर्भरता उत्पन्न कर दी है जिस कारण संघर्ष और बढ़ गया है। 
    • प्रतिबंधित वितरण और घटती जनसंख्या:
      • हिमालय के अल्पाइन घास के मैदानों में हिमालयी भूरे भालू के प्रतिबंधित वितरण ने शोधकर्त्ताओं के लिये प्रजातियों का व्यापक डेटा एकत्र करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
      • आवास के अतिक्रमण, पर्यटन और चराई के दबाव जैसे कारकों के कारण आवास विनाश ने भालुओं की घटती आबादी में योगदान दिया है।
        • भारत में लगभग 500-750 भालू बचे हैं, उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये तत्काल संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता है।
    • आगामी जोखिम एवं संरक्षण अनुशंसाएँ: 
      • हिमालयी भूरे भालू का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है क्योंकि एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि पश्चिमी हिमालय में वर्ष 2050 तक उनका निवास स्थान लगभग 73% कम हो जाएगा।
      • जलवायु परिवर्तन एक गंभीर जोखिम उत्पन्न करता है जिससे प्रजातियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों की रिक्ति हेतु पूर्व स्थानिक योजना की आवश्यकता होती है।
      • संरक्षण प्रयासों के तहत आवास संरक्षण, जैविक गलियारे बनाने और मानव-भालू संघर्ष को कम करने के लिये ज़िम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
      • वर्ष 2022 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम और वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन नियमों (CITES Regulations) को लागू करके कानूनी संरक्षण और प्रवर्तन को मज़बूत किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित प्राणीजात पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. सिंह-पुच्छी मकाॅक  
  2. मालाबार सिवेट 
  3. सांभर किरण

उपर्युक्त में से कितने आमतौर पर रात्रिचर हैं या सूर्यास्त के बाद अधिक सक्रिय होते हैं?

(a) केवल एक  
(b) केवल दो  
(c) सभी तीन  
(d) कोई भी नहीं  

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

  • सिंह-पुच्छी मकाॅक निशाचर/रात्रिचर जानवर नहीं है। यह वृक्षवासी और दिनचर प्राणी है, जो रात में पेड़ों पर सोते हैं (आमतौर पर उच्च वर्षावन कैनोपी में)। ये मकाॅक प्रादेशिक होने के साथ-साथ संचरण शाली जानवर हैं। अतः 1 सही नहीं है।
  • मालाबार सिवेट मुख्य रूप से रात्रिचर जानवर है। यह एक छोटा, माँसाहारी स्तनपायी है जो मूलतः भारत के पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाया जाता है।
    • इसकी प्रकृति एकांत और गोपनीय अर्थात् इन्हें वनों में खोजना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसका रात्रिचर व्यवहार शिकारियों से बचने में मदद करता है। अत: 2 सही है।
  • सांभर हिरण निशाचर होते हैं। वे आमतौर पर सुगंध और फुट स्टैम्पिंग द्वारा संवाद करते हैं। ये पर्णपाती झाड़ियों एवं घास के सघन आवरण को पसंद करते हैं। अत: 3 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


प्रारंभिक परीक्षा

कथकली

हाल ही में के.के. गोपालकृष्णन ने "कथकली डांस थिएटर: ए विज़ुअल नैरेटिव ऑफ सेक्रेड इंडियन माइम" नामक एक आकर्षक पुस्तक का विमोचन किया है।

  • यह पुस्तक ग्रीन रूम, कलाकारों के संघर्ष और मेकअप के लंबे घंटों के दौरान बने अनूठे बंधनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कथकली की दुनिया में पर्दे के पीछे की झलक पेश करती है।

कथकली:

  • उत्पत्ति और इतिहास: 
    • कथकली का उदय 17वीं शताब्दी में त्रावणकोर (वर्तमान केरल) में हुआ था।
      • इस कला रूप को प्रारंभ में मंदिर परिसर में प्रदर्शित किया जाता था और बाद में इसने शाही दरबारों में लोकप्रियता हासिल की।
    • कथकली ऋषि भरत द्वारा लिखित नृत्य पर प्राचीन ग्रंथ नाट्य शास्त्र पर आधारित है।
      • हालाँकि कथकली हाथों की मुद्राओं की व्याख्या के लिये ग्रंथ हस्तलक्षण दीपिका पर आधारित है, जो एक अन्य शास्त्रीय पाठ है। 
    • 20वीं शताब्दी की शुरुआत में कथकली संकट में थी और विलुप्त होने के कगार पर थी।
      • प्रसिद्ध कवि वल्लथथोल नारायण मेनन और मनक्कुलम मुकुंद राजा ने कथकली के पुनरुद्धार हेतु शास्त्रीय कला रूपों के लिये उत्कृष्टता केंद्र केरल कलामंडलम स्थापित करने की पहल की।
  • नृत्य और संगीत:
    • कथकली नृत्य, संगीत, भाव-भंगिमा और नाटक के तत्त्वों को जोड़ती है। 
    • इसमें गति को अत्यधिक शैलीबद्ध किया जाता है और इसमें जटिल चाल, लयबद्ध बोल तथा हाथों के विभिन्न इशारों को मुद्रा कहा जाता है।
      • नर्तक भावनाओं को व्यक्त करने और कहानियाँ सुनाने के लिये अपने चेहरे के भावों का उपयोग करते हैं जिन्हें रस के रूप में जाना जाता है।
    • मणिप्रवालम, मलयालम और संस्कृत का मिश्रण कथकली गीतों में प्रयुक्त भाषा है।
      • कथकली गीतों के पाठ को अट्टाकथा के नाम से जाना जाता है।
      • चेंडा, मद्दलम्, चेंगिला, इलत्‍तालम् कथकली संगीत के साथ प्रयोग किये जाने वाले प्रमुख वाद्य यंत्र हैं।
  • श्रृंगार: 
    • चरित्र की प्रकृति के अनुसार कथकली श्रृंगार को पाँच प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
      • पच्‍चा (हरा): कुलीन तथा वीर पात्र जैसे देवता, राजा और संत।
      • कत्ती (चाकू): वीरता या बहादुरी की धारियों के साथ नायक-विरोधी या खलनायक।
      • ताढ़ी (दाढ़ी): विभिन्न प्रकार की दाढ़ी विभिन्न प्रकार के वर्णों को दर्शाती है, जैसे:
        • वेल्‍लाताढ़ी (सफेद दाढ़ी): दिव्य या परोपकारी पात्र।
        • चुवन्‍ना ताढ़ी (लाल दाढ़ी): दुष्ट या राक्षसी पात्र।
        • करूत्‍ता ताढ़ी (काली दाढ़ी): वनवासी या शिकारी।
      • करि (काला): पात्र जो दुष्ट, क्रूर या विचित्र हैं, जैसे- राक्षस या चुड़ैल।
      • मिनुक्‍क् (दीप्तिमान): पात्र जो कोमल, गुणी या परिष्कृत होते हैं जैसे कि स्त्रियाँ और ऋृषि-मुनि
    • भारी आभूषण और हेडड्रेस के साथ वेशभूषा रंगीन और असाधारण है।
  • नव गतिविधि:  
    • महिलाओं का समावेश: परंपरागत रूप से केवल पुरुष अभिनेताओं द्वारा किया जाने वाला कथकली में धीरे-धीरे स्त्री कलाकारों का प्रवेश शुरू हुआ जिन्होंने इस कला रूप का प्रशिक्षण लिया और विभिन्न महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं ।
    • विषयों में नवीनता: हिंदू महाकाव्यों और पुराणों की शास्त्रीय कहानियों के अलावा कथकली ने शेक्सपियर के नाटकों, सामाजिक मुद्दों, ऐतिहासिक घटनाओं तथा समकालीन विषयों जैसे अन्य स्रोतों से भी नए विषयों की खोज की है।
  • वर्तमान में दर्शकों हेतु कथकली की प्रासंगिकता:
    • कथकली, कला का एक जटिल रूप होने के कारण दर्शकों को इसे गहराई के साथ पूर्ण रूप से समझने के लिये इसकी सांकेतिक भाषा, मेकअप कोड और कहानियों से खुद को परिचित कराने की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा आधुनिक तकनीक की शुरुआत, जैसे कि माइक्रोफोन और बेहतर ध्वनिकी ने कथकली संगीत के पुनरुत्थान एवं इसकी लोकप्रियता में योगदान दिया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्रसिद्ध सत्रिया नृत्य के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. सत्रिया संगीत, नृत्य और नाटक का एक संयोजन है।
  2. यह असम के वैष्णवों की सदियों पुरानी जीवित परंपरा है।
  3. यह तुलसीदास, कबीर और मीराबाई द्वारा रचित भक्ति गीतों के शास्त्रीय रागों एवं तालों पर आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • सत्रिया असम का एक शास्त्रीय नृत्य है, जिसमें एकसरन परंपरा (यानी कृष्ण-केंद्रित वैष्णववाद पंथ) पर आधारित नृत्य-नाटक प्रदर्शन शामिल हैं, जो 15वीं शताब्दी के भक्ति संत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा आयोजित किया गया था। अतः कथन 1 सही है।
  • 15वीं शताब्दी में शंकरदेव और उनके प्रमुख शिष्य माधवदेव ने नाट्य शास्त्र (जो तांडव नृत्य एवं अभिनय तकनीकों का प्रतीक है) भागवत पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों का उपयोग करके नृत्य रूप को व्यवस्थित तथा निर्देशित किया, साथ ही कृष्ण के प्रति भावनात्मक भक्ति हेतु सामुदायिक धार्मिक कला के रूप में नाटक व अभिव्यंजक नृत्य (नृत्त एवं नृत्य) पेश किया। अतः कथन 2 सही है।
  • इसके अलावा संगीत मुख्य रूप से 15वीं-16वीं शताब्दी में श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव द्वारा रचित बोरगीतों पर आधारित है, जो गीतात्मक गीतों का एक संग्रह है जो विशिष्ट रागों हेतु निर्धारित हैं लेकिन किसी भी ताल के लिये ज़रूरी नहीं हैं। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

बीमा वाहक

देश के सुदूर क्षेत्रों में बीमा की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) ने हाल ही में बीमा वाहक संबंधी मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये हैं। उल्लेखनीय है कि बीमा वाहक (Bima Vahak) ग्रामीण क्षेत्रों तक बीमा की पहुँच हेतु एक समर्पित वितरण चैनल है।

बीमा वाहक:

  • परिचय: 
    • बीमा वाहक कार्यक्रम IRDAI के "वर्ष 2047 तक सभी के लिये बीमा" लक्ष्य के घटकों में से एक है जिसका उद्देश्य पूरे भारत में बीमा उत्पादों की पहुँच और उपलब्धता में सुधार करना है।
    • यह कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत प्रतिनिधियों दोनों के क्षेत्र बल की स्थापना करके बीमाकर्त्ताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण अंतिम-मील कनेक्शन के रूप में काम करेगा। ये प्रतिनिधि, जिन्हें बीमा वाहक के रूप में जाना जाता है, बीमा उत्पादों के वितरण और सर्विसिंग के लिये ज़िम्मेदार होंगे।
    • बीमा वाहक योजना IRDAI द्वारा शुरू की गई प्रमुख बीमाकर्त्ताओं की अवधारणा के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है।
      • प्रमुख बीमाकर्त्ता ग्राम पंचायतों की अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करने के लिये संसाधनों की तैनाती हेतु समन्वय करते हैं, जो भारत में स्थानीय स्वशासन इकाइयाँ हैं। 
  • उद्देश्य: 
    • यह महिलाओं को बीमा वाहक के रूप में ऑनबोर्ड करने पर केंद्रित है, क्योंकि वे स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल कर सकती हैं और विभिन्न समुदायों में बीमा पैठ की सुविधा प्रदान कर सकती हैं।
    • बीमा वाहक का लक्ष्य स्थानीय आबादी के साथ जुड़कर देश के प्रत्येक क्षेत्र में बीमा की पहुँच और जागरूकता को बढ़ाना है।
  • महत्त्व: 
    • बीमा वाहक पहल से भारत भर में प्रत्येक ग्राम पंचायत में लोगों की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु बीमा समावेशन को बढ़ाने, जागरूकता बढ़ाने तथा बीमा प्रस्तावों को अपनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान की उम्मीद है।

IRDAI:

  • IRDAI, वर्ष 1999 में स्थापित एक नियामक संस्था है जिसे बीमा ग्राहकों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है।
    • यह IRDA अधिनियम, 1999 के तहत एक वैधानिक निकाय है और वित्त मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है।
  • यह बीमा से संबंधित गतिविधियों की निगरानी करते हुए बीमा उद्योग के विकास को नियंत्रित करता और देखता है। 
  • प्राधिकरण की शक्तियाँ और कार्य IRDAI अधिनियम, 1999 और बीमा अधिनियम, 1938 में निर्धारित की गई हैं।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

फिस्टुला का स्थायी उपचार

पुणे के एक सर्जन ने जटिल फिस्टुला के इलाज के लिये डिस्टल लेज़र प्रॉक्सिमल लिगेशन (DSPL) प्रक्रिया विकसित की है।

फिस्टुला:  

  • परिचय: 
    • फिस्टुला शरीर के दो अंगों, जैसे कि एक अंग या रक्त वाहिका और दूसरी संरचना के बीच एक असामान्य संबंध है। फिस्टुलस आमतौर पर चोट या सर्जरी का परिणाम होता है। संक्रमण या सूजन के कारण भी फिस्टुला बन सकता है।
    • फिस्टुला शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है। वे इनके बीच बन सकते हैं: एक धमनी और शिरा, पित्त नलिकाएँ और त्वचा की सतह (पित्ताशय की सर्जरी से) गर्भाशय ग्रीवा और योनि, बृहदान्त्र एवं शरीर की सतह, जिसके कारण मल गुदा के अलावा किसी अन्य छिद्र से बाहर निकलता है।
  • व्यापकता: 
    • प्रसूति फिस्टुलस कम संसाधन वाले वातावरण में दो मिलियन महिलाओं को प्रभावित करते हैं, साथ ही प्रत्येक वर्ष 100,000 और विकसित होते हैं। प्रसूति फिस्टुला एक विनाशकारी प्रसव चोट है जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं मानवाधिकारों के संदर्भ में भी अनदेखा किया जाता है।
      •  फिस्टुला वाली 50 में से केवल 1 महिला को इलाज मिल पाता है।
    • फिस्टुला-इन-एनो 2/10,000 के औसत के प्रसार के साथ सबसे सामान्य सामना की जाने वाली सर्जिकल समस्याओं में से एक है।
  • इलाज: 
    • जबकि कुछ फिस्टुला का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य दवाओं के साथ किया जा सकता है, हालाँकि यदि संक्रमण का दवा के माध्यम से निदान नहीं होता है या फिस्टुला काफी गंभीर स्थिति में है तो फिस्टुला हटाने को सर्जरी आवश्यक हो सकती है।

डिस्टल लेज़र प्रॉक्सिमल लिगेशन: 

  • DSPL सर्जरी जटिल फिस्टुला हेतु एक न्यूनतम इनवेसिव, स्फिंक्टर-सेविंग सर्जरी है।
    • स्फिंक्टर एक अंगूठी के आकार की मांसपेशी है जो शरीर में एक मार्ग को खोलने या बंद करने के लिये मांसपेशी को ढीला या कसती है। उदाहरण पाइलोरिक स्फिंक्टर (पेट के निचले भाग में)
  • सर्जरी दो सिद्धांतों पर आधारित है - पहले दो से तीन हफ्तों में नालव्रण (फिस्टुला) से मलत्याग और पस की निकासी।
  • DLPL को एक 3D एंडोएनल इमेजिन मशीन के मार्गदर्शन में किया जाता है जो सर्जरी के दौरान वास्तविक समय में छिपे हुए फिस्टुला ट्रैक्ट और सूक्ष्म फोड़े की पहचान कर सकती है।
  • DLPL एक नगण्य पुनरावृत्ति दर से जुड़ा है और रोगी लगभग पाँच दिनों में फिर से काम शुरू कर सकता है।
  • इंडियन जर्नल ऑफ कोलो-रेक्टल सर्जरी के अनुसार, मिनिमली इनवेसिव, स्फिंक्टर-सेविंग DLPL सर्जरी जटिल फिस्टुला-इन-एनो के लिये एक सुरक्षित और प्रभावी उपचार है।

 फिस्टुलस के उपचार हेतु वैश्विक पहल:

  • प्रत्येक वर्ष 23 मई को इंटरनेशनल डे टू एंड ऑब्सटेट्रिक फिस्टुला (International Day to End Obstetric Fistula) मनाया जाता है।
    • इस दिन का उद्देश्य आपातकालीन प्रसूति देखभाल और कुशल स्वास्थ्य पेशेवरों विशेष रूप से दाइयों तक पहुँच सुनिश्चित करना है ताकि सभी महिलाओं को प्रसूति नालव्रण को रोकने और उपचार सुनिश्चित करने में मदद मिल सके।
    • वर्ष 2023 का विषय “एंड फिस्टुला नाउ- End Fistula Now” है।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) फिस्टुला को समाप्त करने के अभियान का नेतृत्व करता है जो रोकथाम, उपचार और पुनर्वास प्रयासों पर 55 से अधिक देशों में कार्य करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों को वर्ष 2030 तक फिस्टुला को समाप्त करने के प्रस्ताव पर परामर्श प्रदान करने के लिये आमंत्रित किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 जून, 2023

स्वास्थ्य देखभाल एवं उत्कृष्टता का सम्मान करना 

कोच्चि, केरल में अमृता अस्पताल के रजत जयंती कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री ने चिकित्सा विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से अमृता विश्व विद्यापीठम के अमृतपुरी एवं कोच्चि परिसरों में दो अत्याधुनिक अनुसंधान केंद्रों का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम ने चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढाँचे में उल्लेखनीय प्रगति तथा आयुष्मान भारत योजना के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पर प्रकाश डाला, जो 60 करोड़ से अधिक गरीबों को मुफ्त इलाज प्रदान करता है। साथ ही विशेष रूप से मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 387 से 648 तक की पर्याप्त वृद्धि देखी गई है और 22 नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences- AIIMS) की स्थापना ने देश भर में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का विस्तार किया है। गृह मंत्री ने चिकित्सा उत्कृष्टता एवं अनुसंधान में असाधारण उपलब्धियों हेतु अमृता अस्पताल की सराहना की, जिसमें भारत का पहला माइक्रो-ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, उच्च परिशुद्धता वाले रोबोटिक लिवर ट्रांसप्लांट की सबसे बड़ी संख्या व देश की पहली 3D प्रिंटिंग लैब जैसे अग्रणी सुविधाएँ शामिल हैं।

और पढ़ें…आयुष्मान भारत योजना, भारत का स्वास्थ्य ढाँचा

शानन जलविद्युत परियोजना को लेकर पंजाब-हिमाचल प्रदेश में टकराव 

ऊहल नदी (ब्यास की सहायक नदी) पर स्थित 110 मेगावाट की शानन जलविद्युत परियोजना का पट्टा मार्च 2024 में समाप्त होने वाला है। इसे हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के जोगिंदरनगर में ब्रिटिश काल में  स्थापित किया गया था था और इस पर पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश के बीच विवाद छिड़ गया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस परियोजना को समाप्त होने पर राज्य को सौंपने की मांग करते हुए पट्टे का नवीनीकरण या विस्तार नहीं करेगी। हालाँकि पंजाब परियोजना पर नियंत्रण बनाए रखने का इरादा रखता है और कानूनी उपायों का सहारा लेने के लिये तैयार है। 

ऊहल नदी हिमालय की धौलाधार पर्वतमाला में स्थित थाम्सर ग्लेशियर (हिमाचल प्रदेश में) से निकलती है और हिमाचल प्रदेश के बड़ा ग्रान और बरोट गाँव एवं ऊहल घाटी से होकर प्रवाहित होती है। ऊहल नदी ब्यास नदी का जल बेसिन है। ऊहल नदी को त्युन नाला के नाम से भी जाना जाता है तथा ऊहल घाटी चोहर घाटी के नाम से भी प्रसिद्ध है। चोहर घाटी को पार करने के बाद ऊहल नदी पंडोह से 5 किलोमीटर नीचे की तरफ ब्यास नदी में मिलती है।

छत्रपति शिवाजी महाराज की चिरस्थायी विरासत 

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक दिवस की 350वें वर्ष की स्मृति में प्रधानमंत्री ने भारत के वर्तमान युग के संदर्भ में इस ऐतिहासिक घटना के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक अत्यधिक महत्त्व के एक अध्याय का प्रतीक है, जो स्व-शासन, सुशासन और समृद्धि की विशेषता है, जो राष्ट्र को प्रेरित करता है। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक ने भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने पर बल देने के साथ स्वराज्य (स्व-शासन) एवं राष्ट्रवाद की भावना को भी मूर्त रूप दिया। इस विरासत का सम्मान करने के लिये भारतीय नौसेना ने ब्रिटिश शासन का प्रतिनिधित्व करने वाले ध्वज भारत के समुद्री गौरव के प्रतीक को शिवाजी महाराज के प्रतीक के साथ बदल दिया। उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था। शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया तथा इसे रैयतवाड़ी प्रणाली से बदल दिया। उन्होंने छत्रपति, शाकार्ता, क्षत्रिय कुलवंतों और हैंदव धर्मोद्धारक की उपाधियाँ धारण कीं। वह इतिहास में एक अद्वितीय शासक थे जिन्होंने सैन्य कौशल और असाधारण शासन कौशल दोनों का प्रदर्शन किया। उन्होंने कम उम्र में किलों पर विजय प्राप्त की और शत्रुओं को पराजित किया, अपने सैन्य नेतृत्व का प्रदर्शन किया, साथ ही सुशासन स्थापित करने के लिये लोक प्रशासन में सुधारों को लागू किया।

और पढ़ें… छत्रपति शिवाजी महाराज

भारत सरकार द्वारा अरहर और उड़द दाल पर स्टॉक सीमा तय 

जमाखोरी पर अंकुश लगाने, अनैतिक अटकलों को रोकने तथा उपभोक्ताओं के सामर्थ्य को बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने अरहर और उड़द दाल पर स्टॉक सीमा लगाने के आदेश को लागू किया है। 

लाइसेंसिंग आवश्‍यकताएँ हटाने, भंडारण सीमा निर्धारण और आवाजाही पर प्रतिबंध संबंधी विशेष खाद्यान्न संशोधन आदेश 2023, जो कि थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी शृंखला के विक्रेताओं, मिलर्स और आयातकों पर लागू होता है, को 2 जून, 2023 से तत्‍काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। इस आदेश के तहत सभी राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 31 अक्तूबर, 2023 तक अरहर और उड़द दाल की भंडारण सीमा निर्धारित की गई है। इस आदेश के तहत निर्धारित स्टॉक सीमा इस प्रकार है: थोक व्यापारी प्रत्येक दाल के 200 मीट्रिक टन (MT) तक व्यक्तिगत रूप से रख सकते हैं, खुदरा विक्रेता 5 मीट्रिक टन तक सीमित हैं, बड़ी शृंखला के खुदरा विक्रेता प्रत्येक खुदरा आउटलेट पर 5 मीट्रिक टन और डिपो में 200 मीट्रिक टन रख सकते हैं। मिलरों को उत्पादन के अंतिम तीन महीनों या उनकी वार्षिक स्थापित क्षमता का 25% (जो भी अधिक हो) रखने की अनुमति है तथा आयातकों को सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 30 दिनों के बाद आयातित स्टॉक रखने से प्रतिबंधित किया गया है। अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये कानूनी संस्थाओं को अधिसूचना के 30 दिनों के भीतर उपभोक्ता मामलों के विभाग के पोर्टल पर अपने स्टॉक की स्थिति घोषित करने की आवश्यकता होती है।

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