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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 04 Jun, 2022
  • 20 min read
प्रारंभिक परीक्षा

ऑपरेशन महिला सुरक्षा

चर्चा में क्यों? 

ऑपरेशन महिला सुरक्षा के अंतर्गत, रेलवे सुरक्षा बल (RPF)  ने 7000 ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है जो अनधिकृत तरीके से महिलाओं के लिये आरक्षित डिब्बों में यात्रा कर रहे थे।  

  • इस दौरान RPF ने ऑपरेशन आहट (AAHT) के तहत लड़कियों/महिलाओं को मानव तस्करी का शिकार होने से भी बचाया। 

ऑपरेशन महिला सुरक्षा के बारे में 

  • परिचय: 
    • महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये 3 से 31 मई, 2022 तक अखिल भारतीय अभियान "ऑपरेशन महिला सुरक्षा" आयोजित किया गया था। 
  • इस तरह के अन्य अभियान: 
    • ट्रेनों से यात्रा करने वाली महिला यात्रियों को उनकी पूरी यात्रा के दौरान बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से एक अखिल भारतीय पहल "मेरी सहेली" भी आयोजित किया जा रहा है। 
      • भारतीय रेलवे ने सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिये "मेरी सहेली" पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य ट्रेनों से यात्रा करने वाली महिला यात्रियों को स्टेशन से गंतव्य स्टेशन तक की पूरी यात्रा के दौरान सुरक्षा प्रदान करना है 

रेलवे सुरक्षा बल (RPF) 

  • RPF एक केंद्रीय सशस्त्र बल है। जो भारतीय रेल, रेल मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। 
    • RPF की उत्पत्ति वर्ष 1882 में हुई जब विभिन्न रेलवे कंपनियों ने रेलवे संपत्ति की सुरक्षा के लिये अपने स्वयं के गार्ड नियुक्त किये थे। 
  • वर्ष 1957 में संसद के एक अधिनियम द्वारा रेलवे सुरक्षा बल को एक वैधानिक बल के रूप में मान्यता दी गई, जिसे बाद में वर्ष 1985 में भारत संघ के सशस्त्र बल के रूप में घोषित किया गया। 
  • RPF नियम 1959 में बनाए गए थे और RPF विनियम 1966 में प्रकाशित हुए थे। उसी वर्ष रेलवे संपत्ति (गैर-कानूनी कब्ज़ा) अधिनियम, 1966 को लागू करके रेलवे संपत्ति मामले में शामिल अपराधियों को पकड़ने और उन पर मुकदमा चलाने की कुछ सीमित शक्तियाँ इस बल को प्रदान की गईं। 
  • आरंभ में, RPF को मुख्य रूप से रेलवे संपत्ति की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई लेकिन जहाँ एक ओर प्रभावी और अनुशासित बल के रख-रखाव के लिये RPF अधिनियम के प्रावधानों को अभावग्रस्त पाया गया, वहीं RPF नियम और विनियम भी न्यायिक रूप से अनुचित पाए गए। 
    • तद्नुसार, संघ के सशस्त्र बल के रूप में इस बल के गठन और रख-रखाव हेतु आरपीएफ अधिनियम, 1957 को  वर्ष 1985 में संसद द्वारा संशोधित किया गया था। 

स्रोत: पी.आई.बी. 


प्रारंभिक परीक्षा

भारत का पहला लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप

हाल ही में उत्तराखंड में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज़ (ARIES), नैनीताल के स्वामित्व वाले देवस्थल वेधशाला परिसर ने अंतर्राष्ट्रीय लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप (ILMT) की स्थापना की है। 

आईएलएमटी की मुख्य विशेषताएंँ: 

  • यह खगोल विज्ञान के लिये अधिकृत होने वाला विश्व का पहला लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप (LMT) बन गया है और विश्व में कहीं भी परिचालन में आने वाला अपनी तरह का पहला है। 
  • हिमालय में 2,450 मीटर की ऊंँचाई से ILMT का उपयोग करके क्षुद्रग्रह, सुपरनोवा, अंतरिक्ष मलबे और अन्य सभी खगोलीय पिंडों को देखा जाएगा। 
  • पहले निर्मित टेलीस्कोप या तो उपग्रहों को ट्रैक करते थे या सैन्य उद्देश्यों के लिये तैनात किये जाते थे। 
  • ILMT देवस्थल में बनने वाली तीसरी दूरबीन सुविधा होगी। 
    • देवस्थल खगोलीय अवलोकन प्राप्त करने के लिये विश्व के मूल स्थलों में से एक है 
    • देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (DOT) और देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप (DFOT) देवस्थल में अन्य दो टेलीस्कोप सुविधाएंँ हैं। 
  • अक्तूबर 2022 में ILMT का पूर्ण पैमाने पर वैज्ञानिक संचालन शुरू किया जाएगा। 
  • यह भारत के सबसे बड़े संचालित देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (DOT) के साथ काम करेगा। 
  • ILMT के विकास में शामिल देश भारत, बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड और उज़्बेकिस्तान हैं। 

LMT की पारंपरिक टेलीस्कोप से भिन्नता: 

  • LMT एक स्थिर दूरबीन है, जबकि एक पारंपरिक दूरबीन आकाश में ‘इंटरेस्ट ऑफ ऑब्जेक्ट' की दिशा में कार्य करती है। 
  • एक LMT सितारों, आकाशगंगाओं, सुपरनोवा विस्फोटों, क्षुद्रग्रहों और यहाँ तक कि अंतरिक्ष मलबे जैसे  सभी संभावित खगोलीय पिंडों का सर्वेक्षण करेगा। हालाँकि एक पारंपरिक दूरबीन एक निश्चित समय में आकाश के केवल एक अंश को ही दिखा पाती है। 
  • LMT  में एक परावर्तक तरल के साथ दर्पण शामिल होते हैं (ILMT में पारा परावर्तक तरल के रूप में होता है)। दूसरी ओर एक पारंपरिक दूरबीन अत्यधिक पॉलिश वाले काँच के दर्पणों का उपयोग करती है। 
  • ILMT सभी रातों में आकाश की छवियों को प्राप्त करेगी, जबकि पारंपरिक दूरबीनें केवल निश्चित घंटों में ही आकाश में विशिष्ट वस्तुओं का प्राप्त करती है। 

ILMT का महत्त्व: 

  • बड़ी मात्रा में डेटा (10-15 GB/रात) उत्पन्न होगा। यह वैश्विक वैज्ञानिक समुदायों के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। 
  • इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसे नवीनतम कम्प्यूटेशनल टूल्स को डेटा की स्क्रीनिंग, प्रसंस्करण और विश्लेषण के लिये तैनात किया जाएगा। 
  • इन-हाउस DOT पर लगे स्पेक्ट्रोग्राफ, नियर-इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग करके आगे केंद्रित अनुसंधान करने के लिये चयनित डेटा को आधार डेटा के रूप में उपयोग किया जा सकता है। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संदर्भ में हाल ही में समाचारों में आए दक्षिणी ध्रुव पर स्थित एक कण संसूचक (पार्टिकल डिटेक्टर) आइसक्यूब के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 

  1. यह विश्व का सबसे बड़ा, बर्फ में एक घन किलोमीटर घेरे वाला न्यूट्रिनो संसूचक (न्यूट्रिनो डिटेक्टर) है 
  2. यह डार्क मैटर की खोज के लिये बनी शक्तिशाली दूरबीन है। 
  3.  यह बर्फ में गहराई में दबा हुआ है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: D 

व्याख्या: 

  • आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला अंटार्कटिक में बर्फ के अंदर गहराई में स्थित है जो एक घन किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत रूप से फैली हुई है। अत: कथन 1 और 3 सही है। 
  • बड़े पैमाने पर कमज़ोर अंतःक्रिया करने वाले कण (WIMP) डार्क मैटर, सूर्य जैसी विशाल वस्तुओं के गुरुत्त्वाकर्षण द्वारा खींचे जा सकते हैं जो सूर्य के कोर में जमा हो सकते हैं। 
  • कणों की उच्च घनत्व क्षमता के साथ वे एक-दूसरे को महत्त्वपूर्ण दर से नष्ट कर देते हैं। इस विनाश के उत्पाद के रूप में न्यूट्रिनो का क्षय होता है, जिसे आइसक्यूब द्वारा सूर्य की दिशा से न्यूट्रिनो की अधिकता के रूप में देखा जा सकता है। 
  • आइसक्यूब को विशेष रूप से उच्च-ऊर्जा न्यूट्रिनो को पहचानने और उसकी निगरानी करने के लिये बनाया गया था। अत: कथन 2 सही है। 
  • नेशनल साइंस फाउंडेशन (एक अमेरिकी एजेंसी जो मौलिक शोध का समर्थन करती है) ने आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला  को प्राथमिक अनुदान प्रदान किया है। 
  • अतः विकल्प D सही है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


प्रारंभिक परीक्षा

प्लैटिगोम्फस बेनरिटेरम

हाल ही में असम में खोजी गई ड्रैगनफ्लाई 'प्लैटिगोम्फस बेनरिटेरम' की एक नई प्रजाति का नाम पूर्वोत्तर में दो महिलाओं द्वारा किये गए अग्रणी कार्यों के लिये उनके नाम पर रखा गया है। 

  • इसका नाम नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क (NEN) की संस्थापक सदस्य मोनिशा बहल और ग्रीन हब की संस्थापक रीता बनर्जी के नाम पर रखा गया है। 

Platygomphus-Benritarum

मुख्य बिंदु : 

  • यह प्रजाति, जो एक एकल नर है, जून 2020 में असम में ब्रह्मपुत्र के तट के पास दो शोधकर्त्ताओं द्वारा खोजी गई थी।  
  • खोजा गया नर अपने चमकदार पंखों और पेट के आधार पर अलग (नया) प्रजाति का प्रतीत होता है। 
  • इसकी नीली आँखें हैं और गहरे भूरे रंग का चेहरा किनारों पर बालों से ढका हुआ है, जो ब्रह्मपुत्र के तट से लगभग 5-6 मीटर की दूरी पर एक बड़े पेड़ पर आराम करते हुए पाया गया था। 
  • इसका निवास स्थान नदी तट के किनारे है जहाँ  घास, विरल पेड़, धान के खेत और दलदली भूमि का प्रभुत्व है, साथ ही कुछ वन पैच और वृक्षारोपण वाले क्षेत्र में भी है। 
  • ड्रैगनफ्लाईज़ और डेम्फ्लाईज़ कीड़ों के क्रम ओडोनाटा से संबंधित हैं। 
    • ऑर्डर ओडोनाटा ("दाँतेदार") में कुछ सबसे प्राचीन और सुंदर कीड़े शामिल हैं जो कभी पृथ्वी पर पाए जाते थे, साथ ही कुछ सबसे बड़े उड़ने वाले अकशेरूकीय भी शामिल हैं। 
    • ओडोनाटा में तीन समूह होते हैं: अनिसोप्टेरा (जिसमें ड्रैगनफ्लाई शामिल हैं), ज़ीगोप्टेरा (जिसमें डेम्फ्लाईज़ शामिल हैं) और एनिसोज़ीगोप्टेरा (केवल दो जीवित प्रजातियों द्वारा दर्शाया गया एक अवशेष समूह)। 

ड्रैगनफ्लाई:  

  • परिचय: 
    • यह एक हवाई शिकारी कीट है जो दुनिया भर में मीठे पानी वाले क्षेत्रों के पास सबसे अधिक पाया जाता है। 
    • इनके खास रंग इन्हें खूबसूरत बनाते हैं। जो उन्हें पारिस्थितिकी और कला दोनों के लिये कीटों के व्यवहार पर शोध हेतु महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। 
  • प्राकृतिक वास: 
    • ड्रैगनफ्लाई की अधिकांश प्रजातियाँ उष्णकटिबंध में और विशेष रूप से वर्षावनों में रहती हैं। 
  • महत्त्व:  
    • ड्रैगनफ्लाईज़ क्षेत्र के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। वे मच्छरों और अन्य कीड़ों को खाते हैं जो मलेरिया तथा डेंगू जैसी जानलेवा बीमारियों के वाहक हैं। 
  • खतरे:  
    • उनके आवास का तेज़ी से विनाश उनके अस्तित्व के लिये एक सीधा खतरा बन गया है जिससे उनका संरक्षण ज़रूरी हो गया है। 

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 04 जून, 2022

सत्येंद्रनाथ बोस 

गूगल ने 4 जून, 2022 को प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी सत्येंद्रनाथ बोस को भौतिकी और गणित के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिये विशेष डूडल के साथ श्रद्धांजलि दी।सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को हुआ था, बोसॉन एक उप-परमाण्विक कण (Subatomic Particles) है जिसका नाम सत्येंद्रनाथ बोस के नाम पर पड़ा था। वे भारतीय मैथेमैटिशियन और ओरिटिकल फिजिक्स में वैज्ञानिक थे। बोस की भौतिकी, गणित, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, खनिज विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और संगीत सहित विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रुचि थी। उन्हें 1920 के दशक में क्वांटम मैकेनिक्स के क्षेत्र में उनके द्वारा दिये गए योगदान के लिये भी याद किया जाता है।उन्होंने बोस स्टैटिस्टिक्स और बोस कंडेंसेट की स्थापना की थी। बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की। 1924 में बोस ने शास्त्रीय भौतिकी के संदर्भ के बिना प्लैंक के क्वांटम विकिरण नियम पर एक पेपर लिखा। उन्हें भारत सरकार द्वारा 1954 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

पुनीत सागर अभियान 

एनसीसी (National Cadet Core) ने 30 मई, 2022 को अपने देशव्यापी प्रमुख अभियान ‘पुनीत सागर अभियान’ के नवीनतम चरण की शुरुआत की, यह अभियान 5 जून, 2022 को विश्व पर्यावरण दिवस तक जारी रहेगा। इस अभियान के नवीनतम चरण में 10 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों के लगभग 74,000 कैडेट भाग लेंगे। इन एनसीसी कैडेटों के साथ देश भर में कई स्थानों पर एनसीसी के पूर्व छात्र, स्थानीय लोग और पर्यटक भी इस अभियान से जुड़ेंगे। इस अभियान के दौरान एकत्र किये गए कचरे को सरकार/निजी एजेंसियों के सहयोग से पर्यावरण अनुकूल तरीके से निपटाया जाएगा। पुनीत सागर अभियान की शुरुआत एनसीसी द्वारा नदियों और झीलों सहित समुद्र तटों एवं अन्य जल निकायों में मौजूद प्लास्टिक तथा अन्य कचरे को साफ करने, समुद्र तटों व नदी के किनारों को साफ रखने के महत्त्व के बारे में स्थानीय आबादी के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये की गई थी। इस अभियान का उद्देश्य स्थानीय लोगों को 'स्वच्छ भारत' के बारे में अवगत कराना और उन्हें इसके प्रति जागरूक बनाना है। एनसीसी का गठन वर्ष 1948 (एच.एन. कुंजरु समिति-1946 की सिफारिश पर) में किया गया था। एनसीसी रक्षा मंत्रालय के दायरे में आती है और इसका नेतृत्त्व थ्री स्टार सैन्य रैंक के महानिदेशक द्वारा किया जाता है। 

एकीकृत लैंडस्कैप प्रबंधन योजना 

जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा अन्य संबंधित संगठनों के साथ 2 जून, 2022 को ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप के लिये एकीकृत लैंडस्केप प्रबंधन योजना की अंतिम रिपोर्ट जारी की। इस एकीकृत लैंडस्कैप प्रबंधन योजना को भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में तैयार किया है। प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में केंद्रीय जल मंत्री और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच 22 मार्च, 2021 को इस ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर के बाद दिसंबर 2021 में भारत सरकार ने इसके कार्यान्वयन की मंज़ूरी दी थी। इस योजना में बाघ, गिद्ध और घड़ियाल जैसी प्रमुख प्रजातियों के बेहतर आवास संरक्षण एवं प्रबंधन के लिये प्रावधान हैं। इससे जैवविविधता संरक्षण तथा मानव कल्याण, विशेष रूप से वन आश्रित समुदायों के लिये परिदृश्य को समग्र रूप से समेकित करने में मदद मिलेगी। इससे मध्य प्रदेश में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य और दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य तथा उत्तर प्रदेश में रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य के साथ संपर्क को मज़बूत करके इस परिदृश्य में बाघों को रखने की क्षमता में वृद्धि होने की उम्मीद है।  


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