प्रीलिम्स फैक्ट्स: 04 फरवरी, 2020
मुक्ति कारवाँ
Mukti Caravan
हाल ही में राजस्थान सरकार ने बाल श्रम और मानव तस्करी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिये मुक्ति कारवाँ (Mukti Caravan) अभियान को हरी झंडी दिखाई।
उद्देश्य:
- इस अभियान का उद्देश्य बाल तस्करी, ज़बरन श्रम एवं बच्चों के यौन शोषण जैसे मामलों से निपटने के लिये निवारक प्रक्रियाओं के बारे में लोगों में जागरूकता का प्रसार करना है।
क्षेत्र:
- यह कारवाँ अगले दो महीने तक राजस्थान के आठ ज़िलों की यात्रा करेगा। इनमें जयपुर, टोंक, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ और बाँसवाड़ा ज़िले शामिल हैं जो मानव तस्करी से ग्रस्त हैं।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में राजस्थान को मानव तस्करी के मामले में छठे स्थान पर रखा गया है।
कारवाँ में शामिल गतिविधियाँ:
- इस कारवाँ में भाग लेने वाले प्रतिभागी सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के साथ विचार-विमर्श करेंगे और उन्हें मानव तस्करी के खिलाफ जागरूक करने के लिये चर्चाएँ, मेले, कविता पाठ और लघु फिल्मों की स्क्रीनिंग जैसी गतिविधियों का आयोजन करेंगे।
कारवाँ का नेतृत्त्व:
- इस अभियान का नेतृत्त्व कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन (KSCF) और राजस्थान पुलिस द्वारा किया जा रहा है।
- KSCF के कार्यकर्त्ता पुलिसकर्मियों के साथ मिलकर लोगों को बच्चों के साथ होने वाले अपराधों से निपटने के साथ-साथ बाल अपराध के लिये कानूनी प्रावधानों के बारे में भी जागरूक करेंगे।
- बचपन बचाओ आंदोलन के अनुसार, पुलिस प्रशासन और मानव तस्करी विरोधी इकाइयों के साथ साझेदारी से राजस्थान को बाल-सुलभ राज्य बनाने में मदद मिलेगी।
हालाँकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 (1) और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत भारत में मानव तस्करी प्रतिबंधित है।
बूढ़ी दिहिंग नदी
Burhi Dihing River
ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) की भूमिगत तेल पाइपलाइन से रिसाव होने के कारण असम के डिब्रूगढ़ ज़िले में नाहरकटिया के पास बूढ़ी दिहिंग नदी (Burhi Dihing River) में आग लग गई।
बूढ़ी दिहिंग नदी के बारे में-
- बूढ़ी दिहिंग नदी, पूर्वोत्तर भारत के ऊपरी असम में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। इसे दिहिंग नदी भी कहा जाता है।
- उद्गम: यह नदी अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय (पटकाई पहाड़ियों) से निकलती है और असम में तिनसुकिया एवं डिब्रूगढ़ ज़िलों से होकर बहती है। इसकी लंबाई लगभग 380 किलोमीटर है।
- बूढ़ी दिहिंग नदी द्वारा निर्मित आकृति: यह नदी पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई जगहों पर गोखुर (Oxbow) झीलों का निर्माण करती है।
- अपवाह क्षेत्र में अद्वितीय परिदृश्य: इसके अपवाह क्षेत्र में जेपोर-दिहिंग वर्षावन (Jeypore-Dihing Rainforest), पेट्रोलियम क्षेत्र, धान के खेत, बाँस और चाय के बागान जैसे कई अद्वितीय परिदृश्य हैं।
- बूढ़ी दिहिंग नदी घाटी में शहरीकरण: इसकी घाटी में कई छोटे शहर जैसे- लेडो, मार्घेरिटा, डिगबोई, दुलियाजन और नाहरकटिया हैं।
- इसके मैदानी इलाकों में बेटेल नट (सुपारी) का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है।
- सुपारी, अरेका कटेचु (Areca Catechu) नामक पौधे के फल का बीज है जो दक्षिणी एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा अफ्रीका के अनेक भागों पाई जाती है।
- ऑयल इंडिया लिमिटेड एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रीय तेल कंपनी है जो कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के अन्वेषण, विकास और उत्पादन के साथ-साथ कच्चे तेल के परिवहन एवं एलपीजी के उत्पादन के व्यवसाय में लगी हुई है।
- हाल ही में क्रिसिल-इंडिया टुडे के एक सर्वेक्षण में ऑयल इंडिया लिमिटेड को देश के पाँच सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रमों में तथा तीन सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में से एक के रूप में चुना गया था।
क्लासिकल स्वाइन फीवर
Classical Swine Fever
आईसीएआर और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (Indian Veterinary Research Institute) ने क्लासिकल स्वाइन फीवर वैक्सीन (IVRI-CSF-BS) विकसित की।
- गौरतलब है कि क्लासिकल स्वाइन फीवर एक संक्रामक बुखार है जो सुअरों के लिये जानलेवा साबित होता है, इसके कारण देश में सुअरों की संख्या में कमी आ रही है।
मुख्य बिंदु:
- क्लासिकल स्वाइन फीवर की वजह से देश को लगभग 4.299 बिलियन रुपए का वार्षिक नुकसान होता है।
- भारत में इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 1964 से एक लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन फीवर वैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है।
- इस वैक्सीन का निर्माण बड़ी संख्या में खरगोशों को मार कर किया जाता है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने पहले सेल कल्चर लैपिनाइज़्ड वैक्सीन वायरस को अपनाकर एक क्लासिकल स्वाइन फीवर वैक्सीन विकसित की थी। इसमें खरगोशों को मारना नहीं पड़ता था।
- नई वैक्सीन सुरक्षित एवं प्रभावशाली है, यह संक्रामक बुखार को दोबारा वापस आने से रोकती है।
- नई वैक्सीन भारत सरकार की ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) का हिस्सा है।
परिष्कृत विश्लेषणात्मक और तकनीकी सहायता संस्थान
Sophisticated Analytical & Technical Help Institutes
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) ने परिष्कृत विश्लेषणात्मक और तकनीकी सहायता संस्थान (Sophisticated Analytical & Technical Help Institutes-SATHI) नामक एक योजना शुरू की।
उद्देश्य: इसका उद्देश्य शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिये एक ही छत के नीचे उच्च दक्षता से युक्त तकनीकी सुविधाएँ मुहैया कराना है। जिससे शिक्षा, स्टार्ट-अप, विनिर्माण, उद्योग और आरएंडडी लैब आदि की ज़रूरतें आसानी से पूरी हो सकें।
- इन केंद्रों में उच्च विश्लेषणात्मक परीक्षण द्वारा सामान्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये प्रमुख विश्लेषणात्मक उपकरणों को विकसित किया जाएगा जिससे विदेशी उपकरणों पर निर्भरता में कमी आएगी।
- इनका संचालन ओपन एक्सेस पॉलिसी के तहत पारदर्शी तरीके से किया जाएगा।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने पहले ही देश में तीन ऐसे केंद्र स्थापित किये हैं जो IIT खड़गपुर, IIT दिल्ली और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित हैं।
SATHI के कार्य:
- यह संस्थानों उपकरणों का रखरखाव, अतिरेक एवं महँगे उपकरणों के दोहराव की समस्याओं का समाधान करेगा।
- यह विभिन्न क्षेत्रों में विकास, नवाचार और विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये संस्थानों के बीच सहयोग की एक मज़बूत संस्कृति विकसित करेगा।
उझ बहुउद्देशीय परियोजना
Ujh Multipurpose Project
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के तहत भारत ने अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए उझ बहुउद्देशीय परियोजना (Ujh Multipurpose Project) की समीक्षा की।
मुख्य बिंदु:
- 5850 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन क्यूबिक मीटर जल का भंडारण किया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली बनाने में होगा।
- स्थिति: इस परियोजना का निर्माण जम्मू और कश्मीर के कठुआ ज़िले में उझ नदी पर करने की योजना है।
- गौरतलब है कि उझ नदी, रावी की सहायक नदी है।
- इस परियोजना को तकनीकी मंज़ूरी जुलाई 2017 में ही दी जा चुकी है। यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसका वित्तपोषित केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है।
- इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन क्यूबिक मीटर जल का भंडारण किया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली उत्पादन में होगा।
- इस जल से जम्मू-कश्मीर के कठुआ, हीरानगर और सांभा ज़िलों में 31 हज़ार 380 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और वहाँ के लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी।