Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 मई, 2023
हॉर्न ऑफ अफ्रीका में फ्लैश फ्लड
मानवीय मामलों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office for the Coordination of Humanitarian Affairs- UN-OCHA) और केन्या रेड क्रॉस जैसे संगठनों की रिपोर्ट केन्या, तंज़ानिया एवं हॉर्न ऑफ अफ्रीका के कुछ हिस्सों में फ्लैश फ्लड के गंभीर मामलों को दर्शाती है। हॉर्न ऑफ अफ्रीका पूर्वोत्तर अफ्रीका में एक प्रायद्वीप है जिसमें सोमालिया, इथियोपिया, इरिट्रिया और ज़िबूती जैसे देश शामिल हैं। यहाँ ऐसे समय में बाढ़ आई है जब हॉर्न ऑफ अफ्रीका के देश डायरिया, हैज़ा और खसरा सहित जलवायु संबंधी बीमारियों के प्रकोप से प्रभावित हैं।
तीव्र तथा भारी वर्षा जब मृदा और जल निकासी प्रणालियों की जल अवशोषित करने की क्षमता से अधिक हो जाती है, तो फ्लैश फ्लड की स्थिति उत्पन्न होती है। फ्लैश फ्लड बुनियादी ढाँचे, फसलों, पशुधन तथा मानव जीवन को व्यापक स्तर पर नुकसान पहुँचा सकती है। इन घटनाओं की एक चरम सीमा होती है जो सामान्यतः वर्षण के छह घंटे के भीतर होती है। वर्षा की तीव्रता एवं वितरण, भूमि उपयोग, स्थलाकृति, वनस्पति, मृदा के प्रकार तथा जल की मात्रा आदि सभी फ्लैश फ्लड की गति व स्थान को प्रभावित करते हैं। फ्लैश फ्लड के प्रभाव को कम करने हेतु घाटियों में रहने के बजाय मज़बूत धरातल वाले ढलान के क्षेत्रों में रहना आवश्यक है।
और पढ़ें…भूस्खलन और फ्लैश फ्लड
भूमिगत आयुध भंडार ढाँचा
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) की दिल्ली स्थित प्रयोगशाला अग्नि, विस्फोटक एवं पर्यावरण सुरक्षा केंद्र (Centre of Fire, Explosive and Environment Safety) ने एक भूमिगत आयुध भंडारण ढाँचे का डिज़ाइन विकसित किया है। यह विस्फोट के उपरी प्रभाव का लोप करने की क्षमता रखता है जिसके परिणामस्वरूप आस-पास के ढाँचे पर विस्फोट का प्रभाव कम पड़ता है। इस भूमिगत आयुध भंडारण ढाँचे के डिज़ाइन के वैधीकरण के लिये 30 अप्रैल, 2023 को सफल परीक्षण किया गया था। यह परीक्षण सशस्त्र सेनाओं की उपस्थिति में भूमिगत भंडारण ढाँचे के एक चैंबर में 5,000 किलोग्राम TNT का विस्फोट कर किया गया। जब आयुध भंडारण भूमिगत होता है तो सुरक्षा के लिहाज़ से जो दूरी रखनी होती है वह काफी कम हो जाती है। यांत्रिक परीक्षण से प्राप्त परिणामों के आधार पर सुरक्षा दूरी को 120 मीट्रिक टन (40 मीट्रिक टन शुद्ध विस्फोटक पदार्थ) प्रति चैंबर आयुद्ध भंडारण सुनिश्चित किया गया है। आयुद्ध भंडारण के इस विशिष्ट डिज़ाइन की एक खूबी यह भी है कि इसमें सुरक्षा के लिहाज से दूरी कम होने के साथ ही लागत भी मौजूदा डिज़ाइनों के मुकाबले 50 प्रतिशत कम आती है। इस डिज़ाइन से भंडार में रखे गोला-बारूद को किसी भी तरह के हवाई हमले अथवा क्षति पहुँचाने जैसी गतिविधियों से उच्च सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। नई भंडारण सुविधा का सशस्त्र सेनाएँ सभी तरह के आयुद्ध भंडारण के लिये व्यापक तौर पर इस्तेमाल कर सकतीं हैं।
एयर ड्रॉपेबल कंटेनर का सफल परीक्षण
भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 150 किलोग्राम की पेलोड क्षमता वाले एक एयर ड्रॉपेबल कंटेनर का सफल परीक्षण किया है, कंटेनर को IL 38SD विमान से गिराया गया था। परीक्षण का उद्देश्य तट से 2,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर तैनात जहाज़ों के लिये महत्त्वपूर्ण इंजीनियरिंग स्टोर की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करके नौसैनिक परिचालन रसद क्षमताओं में सुधार करना था। इसका उद्देश्य पुर्जों को इकट्ठा और स्टोर करने के लिये जहाज़ों के लिये तट के करीब आने की आवश्यकता को कम करना भी है।
कंटेनर का विकास विशाखापत्तनम में नौसेना विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला (NSTL), आगरा में एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ADRDE) तथा बंगलूरू में वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (ADE) सहित तीन DRDO प्रयोगशालाओं का एक सहयोगी प्रयास था। एयर ड्रॉपेबल कंटेनर का सफल परीक्षण भारतीय नौसेना की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाएगा, जिससे तट से दूर तैनात जहाज़ों को महत्त्वपूर्ण आपूर्ति तेज़ी से प्रदान करना आसान हो जाएगा।
भारत की पहली अंतःसमुद्रीय सुरंग
बृहन्मुंबई नगर निगम द्वारा मुंबई तटीय सड़क परियोजना पर दो वर्ष से अधिक के कार्य के पश्चात भारत की पहली अंतःसमुद्रीय जुड़वां सुरंगें मुंबई में खुलने वाली हैं। ये सुरंगें 10.58 किलोमीटर लंबी तटीय सड़क परियोजना का हिस्सा हैं जो मरीन ड्राइव को बांद्रा-वर्ली सी लिंक से जोड़ती हैं। 2.07 किलोमीटर लंबी सुरंगें समुद्र तल से 17-20 मीटर नीचे स्थित हैं, जिसमें लगभग 1 किलोमीटर का हिस्सा समुद्र के नीचे है। परियोजना का लक्ष्य पीक आवर्स के दौरान यात्रा के समय को 45 मिनट से घटाकर सिर्फ 10 मिनट करना है। सुरंगों में छह क्रॉस मार्ग प्रदान किए जाएंगे,जिसमें चार पैदल चलने वालों के लिये और दो मोटर चालकों के लिये, प्रत्येक सुरंग में तीन लेन होंगे। सुरंगों को सबसे बड़ी टनल-बोरिंग मशीन (TBM) की मदद से बनाया गया था।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर और पिग्मी हॉग
जर्नल साइंस (Science) में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, अफ्रीकी स्वाइन फीवर विश्व के सबसे दुर्लभ एवं छोटे सूअर पिग्मी हॉग की आबादी को घातक रूप से प्रभावित कर सकता है।
- वर्ष 2018 में चीन में आगमन के बाद से ही इस बीमारी ने पूरे एशिया में पॉर्सिन (सूअरों से संबंधित) आबादी को पहले ही खत्म कर दिया है।
नोट:
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पिग्मी हॉग की विशेषताएँ
- वैज्ञानिक नाम:
- पोर्कुला साल्वेनिया (Porcula Salvania)
- विशेषताएँ:
- यह उन गिने-चुने स्तनधारियों में से एक है जो एक 'छत' के साथ अपना घर या घोंसला बनाते हैं।
- यह एक संकेतक प्रजाति भी है। इनकी उपस्थिति इसके प्राथमिक आवास, क्षेत्र, गीले घास के मैदानों के स्वास्थ्य की स्थिति को दर्शाती है।
- आवास:
- ये आर्द्र घास के मैदान में पाए जाते हैं।
- पूर्व में हिमालय की तलहटी- नेपाल के तराई क्षेत्रों और बंगाल के दुअर क्षेत्रों से होते हुए उत्तर प्रदेश से असम तक- में लंबे और गीले घास के मैदानों की एक संकीर्ण पट्टी में पाए जाते थे।
- वर्तमान में ये केवल भारत (असम) में पाए जाते हैं।
- संरक्षण स्थिति:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट: संकटग्रस्त (Endangered)
- वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट I (Appendix I)
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I (Schedule I)
- खतरा:
- पर्यावास (घास का मैदान) का नष्ट होना
- अवैध शिकार
- संरक्षण प्रयास - पिग्मी हॉग संरक्षण कार्यक्रम 1995:
- विलुप्त माने जाने के बाद वर्ष 1971 में इसे फिर से खोजा गया। वर्ष 1995 में यूनाइटेड किंगडम के ड्यूरेल वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट, IUCN, असम वन विभाग एवं MoEF&CC ने पिग्मी हॉग संरक्षण कार्यक्रम शुरू करने हेतु संयुक्त प्रयास किया।
- यह वर्तमान में गैर सरकारी संगठनों आरण्यक और इकोसिस्टम्स इंडिया द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- वर्ष 2008 और 2022 के बीच, 152 को पिग्मी हॉग्स का असम के चार संरक्षित क्षेत्रों में पुनःप्रवेश कराया गया, जिसमें हाल ही में 36 पिग्मी हॉग्स का हाल ही में छोड़ा जाना भी शामिल है।
- वर्ष 2011 और 2015 के बीच जानवरों को ओरंग नेशनल पार्क में फिर से लाया गया।
- वर्ष 2025 तक PHCP मानस नेशनल पार्क में 60 पिग्मी हॉग्स को छोड़ने की योजना बना रहा है।
- विलुप्त माने जाने के बाद वर्ष 1971 में इसे फिर से खोजा गया। वर्ष 1995 में यूनाइटेड किंगडम के ड्यूरेल वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट, IUCN, असम वन विभाग एवं MoEF&CC ने पिग्मी हॉग संरक्षण कार्यक्रम शुरू करने हेतु संयुक्त प्रयास किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)
- तारा कछुआ
- मॉनिटर छिपकली
- वामन सूअर
- स्पाइडर वानर
उपरोक्त में से कौन-से भारत में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं?
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (a)