प्रीलिम्स फैक्ट्स : 1 मार्च, 2021
सरस आजीविका मेला, 2021
Saras Aajeevika Mela, 2021
हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने नोएडा हाट में सरस आजीविका मेला, 2021 का उद्घाटन किया।
- इस मेले में 27 राज्यों के 300 से अधिक ग्रामीण स्वयं सहायता समूह और शिल्पकार भाग ले रहे हैं।
प्रमुख बिंदु:
- यह सामान्य रूप से ग्रामीण भारत और विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के जीवन में परिवर्तन लाने हेतु एक कार्यक्रम है।
- इस मेले के दौरान ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों और शिल्पकारों को प्रशिक्षित करने के लिये उत्पाद पैकेजिंग तथा डिज़ाइन, संचार कौशल, सोशल मीडिया प्रचार एवं बिज़नेस टू बिज़नेस मार्केटिंग पर कार्यशालाएँ आयोजित की जाएंगी।
आयोजक:
- यह दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के तहत ग्रामीण विकास मंत्रालय के ‘लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद’ (CAPART) द्वारा आयोजित एक पहल है।
- CAPART ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के बीच इंटरफेस प्रदान करने के लिये स्थापित एक स्वायत्त निकाय है, यह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास करता है।
उद्देश्य:
- ग्रामीण महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को एक मंच के तहत लाना ताकि वे अपने कौशल का प्रदर्शन कर सकें, अपने उत्पादों को बेच सकें और थोक खरीदारों के साथ जुड़ सकें।
- सरस आजीविका मेले में भागीदारी के माध्यम से इन ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को शहरी ग्राहकों की मांग और पसंद को समझने के लिये राष्ट्रीय स्तर का महत्त्वपूर्ण विवरण प्राप्त होगा।
महत्त्व:
- यह मेला महिला सशक्तीकरण हेतु एक एकीकृत दृष्टिकोण के रूप में कार्य करता है।
- इस पहल को सरकार के आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण के साथ जोड़ा गया है।
गुरु रविदास जयंती
Guru Ravidas Jayanti
गुरु रविदास जयंती (27 फरवरी, 2021), हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार माघ महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
प्रमुख बिंदु:
गुरु रविदास:
- वे 14वीं सदी के संत तथा उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख सुधारक थे।
- ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ था।
- एक ईश्वर में विश्वास और निष्पक्ष धार्मिक कविताओं के कारण उन्हें ख्याति प्राप्त हुई।
- उन्होंने अपना पूरा जीवन जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिये समर्पित कर दिया और ब्राह्मणवादी समाज की धारणा की खुले तौर पर निंदा की।
- उनके भक्ति गीतों ने भक्ति आंदोलन पर त्वरित प्रभाव डाला। उनकी कविताओं को सिखों के धार्मिक पाठ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में भी शामिल किया गया।
भक्ति आंदोलन:
- भक्ति आंदोलन का विकास तमिलनाडु में सातवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ।
- यह नयनार (शिव के भक्त) और अलवार (विष्णु के भक्त) की भावनात्मक कविताओं में परिलक्षित होता था।
- इन संतों ने धर्म को एक उदासीन औपचारिक पूजा के रूप में नहीं बल्कि पूज्य और उपासक के बीच प्रेम पर आधारित एक प्रेमपूर्ण बंधन के रूप में देखा।
- समय के साथ दक्षिण के विचारों का स्थानांतरण उत्तर की ओर हुआ लेकिन यह एक बहुत धीमी प्रक्रिया थी।
- भक्ति विचारधारा के प्रसार के लिये सर्वाधिक प्रभावी तरीका स्थानीय भाषाओं का प्रयोग था।
- भक्ति संतों ने अपने छंदों की रचना स्थानीय भाषाओं में की।
- उन्होंने व्यापक स्तर पर दर्शकों तक पहुँच स्थापित करने के लिये संस्कृत कृतियों का अनुवाद भी किया।
- उदाहरणार्थ, मराठी में ज्ञानदेव, हिंदी में कबीर, सूरदास और तुलसीदास, असमिया में शंकरदेव, चैतन्य और चंडीदास ने बंगाली, हिंदी तथा राजस्थानी में मीराबाई ने अपना संदेश दिया।
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 01 मार्च, 2021
बीर चिलाराय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी, 2021 को 16वीं सदी के महान जनरल बीर चिलाराय को उनकी जयंती पर याद करते हुए कहा कि वे एक उत्कृष्ट योद्धा थे, जिन्होंने आम लोगों तथा अपने सिद्धांतों के लिये संघर्ष किया। 1515 ई. में महाराजा विश्व सिंह ने कोच राजवंश की स्थापना कर असम के इतिहास में एक स्वर्ण युग की शुरुआत की। पूर्णिमा के दिन जन्मे शुक्लाध्वज महाराजा विश्व सिंह के तीसरे पुत्र थे। अपने भाइयों के साथ ही उन्होंने भी युद्ध कला और सैन्य रणनीति के विशिष्ट गुण सीखे। शुक्लाध्वज को ‘चिलाराय की उपाधि प्राप्त हुई, क्योंकि उनके सैन्य हमलों को उनकी चीला (पतंग) जैसी गति के लिये जाना जाता था। उनके साहस और सैन्य कौशल ने उनके बड़े भाई, महाराजा नारा नारायण के साम्राज्य का विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। महाराजा नारा नारायण की सेना का प्रधान सेनापति होने के नाते चिलाराय ने कोच राजवंश के विस्तार में अभूतपूर्व कार्य किया और युद्ध के मैदान में उनका सैन्य कौशल असम में जन-जन के बीच प्रसिद्ध हो गया। पश्चिमी भारत में एक अभियान के दौरान चेचक की बीमारी के कारण गंगा नदी के तट पर 1577 ई. में बीर चिलाराय की मृत्यु हो गई। वर्ष 2005 से असम सरकार द्वारा बीर चिलाराय की जयंती को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जा रहा है। असम सरकार प्रत्येक वर्ष बहादुरी के लिये बीर चिलाराय पुरस्कार को राज्य के सर्वोच्च सम्मान के रूप में प्रदान करती है।
प्रोटीन दिवस
प्रत्येक वर्ष 27 फरवरी को आयोजित किये जाने वाले प्रोटीन दिवस का उद्देश्य भारत में आम नागरिकों के बीच प्रोटीन जागरूकता और पर्याप्तता में बढ़ोतरी करना है। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2020 में ‘राइट टू प्रोटीन’ नामक सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान द्वारा की गई थी। इस वर्ष की थीम है- ‘पावरिंग विद प्लांट प्रोटीन।’ इस वर्ष की थीम का उद्देश्य पौधे-आधारित प्रोटीन के स्रोतों को रेखांकित करता है और भारतीय नागरिकों को प्रोटीन के विभिन्न स्रोतों के बारे में अधिक जानने और समझने के लिये प्रोत्साहित करना है। प्रोटीन एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है जो शरीर को कोशिकाओं को विकसित करने और उनकी रिकवरी के लिये आवश्यक है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की सिफारिश के मुताबिक, एक वयस्क को प्रतिदिन शरीर के वज़न के हिसाब से प्रति किलो लगभग एक ग्राम प्रोटीन का उपभोग करना चाहिये। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के हालिया आँकड़ों की मानें तो भारत में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति प्रोटीन की खपत कम है।
शून्य भेदभाव दिवस
कानून के समक्ष और आम लोगों के व्यवहार में समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर 01 मार्च को शून्य भेदभाव दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस आय, आयु, लिंग, स्वास्थ्य स्थिति, रंग, नस्ल, व्यवसाय, यौन अभिविन्यास, धर्म और जातीयता आदि आधारों पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को जल्द-से-जल्द खत्म करने के लिये तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2013 में विश्व एड्स दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र एड्स कार्यक्रम (UNAIDS) द्वारा की गई थी और इसे पहली बार 01 मार्च, 2014 को मनाया गया था। UNAIDS के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के साथ विश्व की कुल आबादी के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से को किसी-न-किसी रूप में असमानता और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। शून्य भेदभाव दिवस का लक्ष्य बेहतर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों के माध्यम से लोगों के अधिकारों की रक्षा कर उनके सम्मान को बनाए रखना है।
लिगिया नोरोन्हा
संयुक्त राष्ट्र (UN) प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने प्रमुख भारतीय अर्थशास्त्री लिगिया नोरोन्हा को सहायक महासचिव और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के न्यूयॉर्क स्थित कार्यालय के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया है। लिगिया नोरोन्हा, भारतीय अर्थशास्त्री और पूर्व सहायक महासचिव सत्या त्रिपाठी का स्थान लेंगी। लिगिया नोरोन्हा भारतीय अर्थशास्त्री हैं, जिन्हें सतत् विकास के क्षेत्र में कुल 30 वर्षों का अंतर्राष्ट्रीय अनुभव है। इससे पूर्व लिगिया नोरोन्हा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अर्थव्यवस्था प्रभाग की निदेशक के तौर पर कार्य कर रही थीं। UNEP में शामिल होने से पूर्व लिगिया नोरोन्हा ने नई दिल्ली में ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट’ (TERI) में कार्यकारी निदेशक (अनुसंधान समन्वय) और संसाधन, विनियमन तथा वैश्विक सुरक्षा प्रभाग के निदेशक के रूप में भी कार्य किया है। वर्ष 1972 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है, जिसका प्राथमिक कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण हेतु एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है।