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एडिटोरियल

  • 29 Nov, 2023
  • 23 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

शहरी प्रदूषण से निपटने के लिये विद्युतीकरण की राह

एडिटोरियल 27/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Fleet Electrification to tackle urban pollution” लेख पर आधारित है। इसमें मुख्य रूप से वाहन उत्सर्जन से उत्पन्न वायु प्रदूषण के मुद्दे के बारे में चर्चा की गई है और परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीति के रूप में सड़क परिवहन के विद्युतीकरण का समर्थन किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन, EVs, इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण (FAME) योजना II, नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन (NEMMP), वाहन स्क्रैपेज नीति, मॉडल बिल्डिंग उपनियम, 2016 (MBBL), परिवर्तनकारी पर राष्ट्रीय मिशन गतिशीलता और बैटरी भंडारण, वस्तु एवं सेवा कर (GST), नीति आयोग।

मेन्स के लिये:

भारत में सड़क परिवहन के विद्युतीकरण की आवश्यकता, भारत में सड़क परिवहन के विद्युतीकरण में प्रमुख चुनौतियाँ, भारत में परिवहन विद्युतीकरण के लिये प्रमुख सरकारी पहल, सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ, आगे की राह।

भारत के कई शहरों में इस वर्ष कई बार खराब वायु गुणवत्ता की स्थिति उत्पन्न हुई, जिससे लाखों लोगों के लिये साँस लेना अस्वास्थ्यकर हो गया। दिल्ली के प्रदूषण के बारे में दो महत्त्वपूर्ण अध्ययन (वर्ष 2015 में ‘शहरी उत्सर्जन’ शीर्षक अध्ययन और वर्ष 2018 में ‘TERI’ द्वारा आयोजित एक अध्ययन) ने प्रकट किया कि शहरों में धुँध (smog) का एक बड़ा कारण PM2.5 और PM10 नामक सूक्ष्म कण से उत्पन्न प्रदूषण है। ये कण मुख्यतः वाहनों और निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं।

इस परिदृश्य में, सड़क परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के अंगीकरण में देश में वायु प्रदूषण की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने की क्षमता है।

भारत में सड़क परिवहन के विद्युतीकरण (Electrification of Road Transport) की आवश्यकता क्यों है?

  • वायु गुणवत्ता में सुधार:
    • वैश्विक स्तर पर, परिवहन क्षेत्र ईंधन दहन से होने वाले CO₂ उत्सर्जन में लगभग 25% और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 15% का योगदान देता है।
    • इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट फोरम की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ पूरी तरह से लागू हों तो भी वर्ष 2050 तक परिवहन से होने वाला वैश्विक CO₂ उत्सर्जन 16% तक बढ़ जाएगा।
    • विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 35 भारत में हैं।
    • सड़क परिवहन के विद्युतीकरण से मानदंड वायु प्रदूषकों, विशेष रूप से NOx और PM2.5 को कम किया जा सकता है, जो परिवेशीय वायु गुणवत्ता (विशेष रूप से घनी आबादी वाले शहरों में) में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना:
    • परिवहन क्षेत्र तेल पर बहुत अधिक निर्भर है जहाँ 95% माँग की पूर्ति पेट्रोलियम उत्पादों से होती है। भारत की तेल मांग के लगभग आधे भाग के लिये परिवहन क्षेत्र ज़िम्मेदार है।
      • विद्युतीकरण इस निर्भरता को कम करेगा और स्वच्छ एवं अधिक संवहनीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देगा। विद्युतीकरण परिवहन के लिये ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देगा।
  • वैश्विक जलवायु परिवर्तन शमन:
    • विद्युतीकृत सड़क परिवहन जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों में आम तौर पर कार्बन का कम उत्सर्जन होता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की भारत की प्रतिबद्धता का समर्थन करता है।
    • वर्ष 2021 में विभिन्न शोधकर्ताओं ने दावा किया कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों ने गैसोलीन कारों की तुलना में लगभग 19-34% तक कम GHG का उत्सर्जन किया।
  • आर्थिक विकास का संभावित स्रोत:
    • चूँकि भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कार निर्माता है, इलेक्ट्रिक वाहन आर्थिक विकास एवं निर्यात के संभावित स्रोत बन सकते हैं। भारत सरकार वर्ष 2030 तक कुल परिवहन या गतिशीलता (mobility) के 30% के विद्युतीकरण के लिये प्रतिबद्ध है।
    • इलेक्ट्रिक गतिशीलता बैटरी निर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और चार्जिंग अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में रोज़गार एवं नवाचार का सृजन भी करती है।
  • शहरी नियोजन और वास योग्यता (Urban Planning and Livability):
    • इलेक्ट्रिक वाहन साझा गतिशीलता (shared mobility) और कॉम्पैक्ट डिज़ाइन को बढ़ावा देकर शहरों में भीड़ कम करने में मदद कर सकते हैं।
    • यह पैदल यात्री के अनुकूल स्थानों, साइकिलिंग अवसंरचना और कुशल सार्वजनिक परिवहन के लिये अवसर के द्वार खोल सकता है, जो समग्र शहरी वास योग्यता या लिवेबिलिटी में योगदान करेगा।

भारत में सड़क परिवहन के विद्युतीकरण के राह की प्रमुख चुनौतियाँ

  • बिजली उत्पादन का डीकार्बोनाइज़ेशन:
    • विद्युतीकरण के माध्यम से सड़क परिवहन के डीकार्बोनाइज़ेशन की नीतियाँ अधिक प्रभावी नहीं होंगी क्योंकि ये महज प्रदूषण को वाहनों से थर्मल पावर जनरेटर की ओर स्थानांतरित कर देंगी।
    • प्रदूषण नियंत्रण उपायों के बिना, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये विद्युत हेतु कोयला बिजली संयंत्रों पर भारी निर्भरता के परिणामस्वरूप SO2 का उत्सर्जन कई गुना बढ़ ही सकता है।
  • EVs का जीवनचक्र कार्बन उत्सर्जन:
    • हाल के शोध ने निष्कर्ष निकाला है कि EVs को 200,000 किमी तक चलाये जाने बाद उनका जीवनकालीन कार्बन उत्सर्जन (‘whole of life’ carbon emissions) एक आंतरिक दहन इंजन वाहन के बराबर होगा।
      • जीवनकालीन कार्बन उत्सर्जन किसी उत्पाद, प्रक्रिया या प्रणाली के पूरे जीवन चक्र में उत्पादित कुल कार्बन उत्सर्जन होता है, जिसमें विनिर्माण, उपयोग और निपटान भी शामिल है।
    • लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण के लिये बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता और इलेक्ट्रिक वाहन का विशिष्ट वजन (जो फ्रेम में फ्रेम में अधिक स्टील एवं एल्यूमीनियम की आवश्यकता रखने वाले आंतरिक दहन इंजन/ICE वाहन की तुलना में औसतन 50% अधिक होता है) इसके कारणों में शामिल हैं।
  • विद्युतीकरण में प्रौद्योगिकीय बाधाएँ:
    • EVs के प्रमुख घटक लिथियम-आयन बैटरियों के उत्पादन के लिये विशिष्ट खनिजों और दुर्लभ मृदा तत्वों (rare earth elements) की आवश्यकता होती है।
    • भारत वर्तमान में बैटरी निर्माण के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे आपूर्ति शृंखला में चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं।
  • EV क्षेत्र के समक्ष विद्यमान वित्तीय चुनौतियाँ:
    • पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की अग्रिम लागत अपेक्षाकृत अधिक होती है।
    • उच्च आरंभिक लागत इसे कई संभावित खरीदारों के लिये कम किफायती बना देती है, जिससे EVs की मांग सीमित हो जाती है।
  • बेहतर अवसंरचना की ज़रूरत:
    • इंजन और अन्य कार्यशील कल-पुर्जों में अंतर के कारण EVs को पारंपरिक ICE वाहनों की तुलना में अलग चार्जिंग एवं रखरखाव अवसंरचना की आवश्यकता होती है।
    • भारत की मौजूदा चार्जिंग अवसंरचना EVs की बढ़ती मांग को संभालने के लिये अपर्याप्त सिद्ध हो सकती है।
    • वर्ष 2030 तक सड़क पर आठ करोड़ EVs होने के नीति आयोग के आकलन को देखते हुए भारत को वित्त वर्ष 2022 और 2030 के बीच कम से कम 39 लाख संचयी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
  • निम्न बाज़ार पैठ या प्रवेश:
    • पिछले पाँच वर्षों में वैश्विक EV बाज़ार में सालाना औसतन 43% की वृद्धि हुई और वर्ष 2019 में दुनिया भर में EVs का ऑटोमोबाइल बाज़ार में प्रवेश या पैठ दर (penetration rate) लगभग 2.6% रही।
    • भारत—जो वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे बड़ा कार बाज़ार है, में अभी भी EVs की पैठ महज 1% के आसपास है और उसमें भी मुख्यतः इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का दबदबा है। बाज़ार के आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2020 में इलेक्ट्रिक बसों और कारों की बिक्री महज 4000 यूनिट तक सीमित रही।

भारत में परिवहन विद्युतीकरण के लिये प्रमुख सरकारी पहलें

  • इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles- FAME) योजना II
  • नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (NEMMP)
  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना
  • परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Transformative Mobility and Battery Storage)
  • वाहन स्क्रैपेज नीति (Vehicle Scrappage Policy)
  • ऊर्जा मंत्रालय: ऊर्जा मंत्रालय ने चार्जिंग अवसंरचना पर अपने संशोधित दिशानिर्देशों में निर्धारित किया है कि 3 किमी के ग्रिड में और राजमार्गों के दोनों किनारों पर प्रत्येक 25 किमी पर कम से कम एक चार्जिंग स्टेशन मौजूद होना चाहिये।
  • आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय: इसने आवासीय और वाणिज्यिक भवनों में EVs चार्जिंग सुविधाओं के लिये 20% पार्किंग स्थान निर्धारित करने के लिये मॉडल बिल्डिंग उपनियम (MBBL) 2016 में संशोधन किया है।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग: इसने इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग अवसंरचना के लिये भारतीय मानकों को विकसित करने हेतु एक वृहत ‘चैलेंज’ कार्यक्रम शुरू किया।
  • पेट्रोल और डीजल पर उच्च कर: पेट्रोल एवं डीजल पर उच्च कर (खुदरा कीमतों का लगभग 60%) अधिरोपित करने, EVs पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) को 12% से घटाकर 5% करने के साथ ही EV खरीदारों के लिये कर एवं अन्य प्रोत्साहनों की पेशकश करने से EVs के विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

भारत अन्य देशों की सफलता से क्या सीख ग्रहण कर सकता है?

  • एक सुपरिभाषित इलेक्ट्रिक मोबिलिटी रोडमैप स्थापित करना:
    • यूनाइटेड किंगडम: यूके ने वर्ष 2030 तक देश के परिवहन क्षेत्र को शून्य-उत्सर्जन कारों और वैन के साथ डीकार्बोनाइज़ करने की प्रतिबद्धताओं एवं कार्रवाइयों के साथ एक ट्रांसपोर्ट डीकार्बोनाइज़ेशन योजना लागू की है।
    • चिली एनर्जी रोडमैप 2018-2022: इसके तहत चिली ने वर्ष 2022 तक इलेक्ट्रिक कारों की मौजूदा संख्या को दस गुना बढ़ाने, वर्ष 2040 तक सार्वजनिक परिवहन का 100% विद्युतीकरण करने और वर्ष 2050 तक निजी स्टॉक में इलेक्ट्रिक कारों की 40% प्रवेश दर हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
  • इलेक्ट्रिक गतिशीलता के कार्यान्वयन के लिये स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करना:
    • नॉर्वे: नॉर्वे ने वर्ष 2025 तक लाइट-ड्यूटी वाहनों (LDVs) और सार्वजनिक बस खंडों में 100% इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का लक्ष्य रखा है।
  • आसानी से उपलब्ध प्रोत्साहन:
    • दक्षिण कोरिया: इसने इलेक्ट्रिक कारों के लिये एकमुश्त खरीद सब्सिडी, इलेक्ट्रिक कारों के खरीद कर अधिभार में योजनाबद्ध कटौती जैसे उपाय किये हैं।
    • उपराष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन का प्रशासन करना:
      • कैलिफोर्निया: संघीय सरकार के स्तर पर उपलब्ध वित्तीय एवं गैर-वित्तीय प्रोत्साहन के साथ ही राज्य स्तर पर भी ऐसे प्रोत्साहनों से पूरकता प्रदान की जा रही है। इस भूभाग के लिये स्पष्ट और विशिष्ट अंगीकरण लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं।
  • तीव्र गति से EVs अपनाने वाले प्रमुख देश:
    • EV बिक्री में सर्वाधिक हिस्सेदारी रखने वाले शीर्ष 5 देश नॉर्वे (जहाँ वर्ष 2022 में यात्री वाहन बिक्री में EVs की हिस्सेदारी 80% रही), आइसलैंड (41%), स्वीडन (32%), नीदरलैंड (24%) और चीन (22%) हैं।

आगे की राह

  • सरकारी वाहनों का बेड़ा:
    • सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले सभी वाहन 100% इलेक्ट्रिक होने चाहिये।
      • भारत में 7750 ई-ट्रकों की मांग है (वर्ष 2030 तक), जो यदि पूरी होती है तो देश में वर्ष 2050 तक 800 बिलियन लीटर से अधिक डीजल की बचत होगी।
    • सभी राज्यों द्वारा सरकारी स्वामित्व वाले बेड़े को इलेक्ट्रिक में बदलने के लिये स्पष्ट लक्ष्य एवं योजनाओं की घोषणा करने और उदाहरण के साथ इसका नेतृत्व करने की आवश्यकता है।
      • कुछ राज्यों, जैसे जैसे आंध्र प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने पहले ही सरकारी एजेंसियों के स्वामित्व वाले वाहनों को 100% EVs से प्रतिस्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है।
  • चार्जिंग अवसंरचना के लिये कोष का निर्माण:
    • ‘वायबिलिटी गैप फंडिंग’ (Viability Gap Funding) जैसे उपाय व्यवसाय के चार्जिंग स्टेशन संचालन की स्थापना की कुल लागत को कम कर सकने में सक्षम हैं।
  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के अंतर्गत EVs को शामिल करना:
    • EVs के खुदरा वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिये इस क्षेत्र को भारतीय रिज़र्व बैंक के प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending- PSL) दिशानिर्देशों के अंतर्गत लाया जाना चाहिये।
      • PSL अधिदेश, जो राष्ट्रीय प्राथमिकता रखने वाले क्षेत्रों के लिये औपचारिक ऋण की आपूर्ति में सुधार का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड रखता है, बैंकों और NBFCs को EVs के लिये अपने वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये एक मज़बूत नियामक प्रोत्साहन प्रदान करने में सक्षम है।
  • वित्तीय मॉडल के माध्यम से नवाचार:
    • नीति आयोग ने EVs को अवसंरचना उप-क्षेत्र के रूप में मान्यता देने और EVs को RBI के अंतर्गत एक अलग रिपोर्टिंग श्रेणी के रूप में शामिल करने का सुझाव दिया है।
    • ‘ग्रीन बॉण्ड’ जैसे नए वित्तपोषण मॉडल इलेक्ट्रिक बसों के अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • उत्पादों के माध्यम से नवाचार:
    • भारत ने सार्वजनिक जन परिवहन में एक महत्त्वपूर्ण नवाचार को दर्ज करते हुए अपनी पहली इलेक्ट्रिक डबल-डेकर बस पेश की है।
    • यह विशिष्ट बस शहरी यात्रा के लिये एक इष्टतम समाधान के रूप में सामने आई है, जो कम रोड स्पेस के साथ प्रति फुटप्रिंट अधिक यात्री क्षमता को प्रदर्शित करती है।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से अभिनव समाधान:
    • डेटा मॉनिटरिंग और एनालिटिक्स जैसे आईटी-सक्षम समाधानों का एकीकरण परिचालन प्रदर्शन को उन्नत करने, यात्रियों को बनाए रखने और पैसेंजर ट्रिप्स को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुगम बनाना:
    • निजी क्षेत्र इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग अवसंरचना का विकास करने, EV अंगीकरण के एक महत्त्वपूर्ण पहलू को संबोधित करने और अधिकाधिक व्यक्तियों एवं व्यवसायों को इलेक्ट्रिक गतिशीलता को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने में सक्रिय रुचि रखता है।
  • सतत् गतिशीलता की ओर आगे बढ़ना:
    • नीति आयोग ने ‘डीकार्बोनाइज़िंग ट्रांसपोर्ट 2023’ शीर्षक रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि एक सफल ‘परिवहन रूपांतरण’ (transport transformation) की प्राप्ति के लिये ‘गतिशीलता संक्रमण’ (mobility transition) और ‘परिवहन में ऊर्जा संक्रमण’ (energy transition in transport) की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

केवल सड़क परिवहन के विद्युतीकरण पर ही बल देने से परिवहन क्षेत्र में प्रभावी डीकार्बोनाइज़ेशन की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। इस चुनौती को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो न केवल परिवहन के कुशल, निम्न कार्बन-गहन तरीकों को बढ़ावा दे बल्कि ग्रिड उत्सर्जन कारकों को संबोधित करने, वैकल्पिक ईंधन उत्पादन में निवेश करने और जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने जैसे विषयों को भी दायरे में ले। भारत में परिवहन क्षेत्र के भीतर ऊर्जा संक्रमण को आगे बढ़ाने और डीकार्बोनाइज़ेशन प्राप्त करने की दिशा में ये सभी कदम ही अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मेन्स अभ्यास प्रश्न: भारत में सड़क परिवहन के विद्युतीकरण की आवश्यकता पर विचार कीजिये। इससे संलग्न चुनौतियों की चर्चा कीजिये और इसके सफल क्रियान्वयन के लिये समाधान सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सार्वजनिक परिवहन में बसों के लिये ईंधन के रूप में हाइड्रोजन समृद्ध CNG (H-CNG) के उपयोग के प्रस्तावों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. एच-सीएनजी के उपयोग का मुख्य लाभ कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन का उन्मूलन है।
  2. ईंधन के रूप में एच-सीएनजी कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन उत्सर्जन को कम करती है।
  3. बसों के लिये ईंधन के रूप में CNG के साथ हाइड्रोजन को आयतन के आधार पर पाँचवें हिस्से तक मिलाया जा सकता है।
  4. एच-सीएनजी ईंधन को CNG से कम महँगी बनाती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

मेन्स

प्रश्न: दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के तीव्र आर्थिक विकास की कुंजी है? (2019)


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