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एडिटोरियल

  • 29 Aug, 2024
  • 30 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का ई-कॉमर्स उद्योग

यह एडिटोरियल 25/08/2024 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “E-commerce has done more good than harm” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के ई-कॉमर्स उद्योग के तीव्र विकास की चर्चा की गई है, जो उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों को सशक्त तो बना रहा है लेकिन साथ ही पारंपरिक खुदरा व्यापार में संभावित व्यवधानों के बारे में चिंता भी उत्पन्न कर रहा है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI), भीम, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, गिग इकॉनमी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, समकारी लेवी नियम 2016, सोशल  ई-कॉमर्स, भुगतान एग्रीगेटर्स और गेटवे पर आरबीआई दिशा-निर्देश। 

मेन्स के लिये:

भारत में ई-कॉमर्स का प्रमुख विकास, भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग तेज़ी से विकास कर रहा है, जहाँ अनुमान है कि यह वर्ष 2030 तक 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। हालाँकि, इस विस्तार ने एक गंभीर बहस को जन्म दिया है। हाल ही में भारत के वाणिज्य मंत्री ने चिंता व्यक्त की है कि ई-कॉमर्स का उदय पारंपरिक खुदरा व्यापार को बाधित कर सकता है, जिससे छोटे व्यवसायों को हानि हो सकती है। चूँकि सरकार पूर्व में ई-कॉमर्स क्षेत्र को समर्थन देती रही है, प्रतीत होता है कि इससे संबद्ध चिंता को समझने में सरकार ने कुछ देर कर दी है।

इसके विपरीत, ई-कॉमर्स ने उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प, कुशल वितरण प्रणाली और बेहतर वापसी नीतियों (return policies) की पेशकश कर सशक्त बनाया है। इसने छोटे शहरों में उत्पादों तक पहुँच की वृद्धि की है, जबकि लॉजिस्टिक्स अवसंरचना को भी सुदृढ़ किया है। कई छोटे व्यवसाय ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का लाभ उठाकर इसके अनुकूल बन कर रहे हैं, जिससे बिक्री और रोज़गार के अवसरों में वृद्धि हुई है। ई-कॉमर्स ने पारंपरिक वितरण मॉडल को बाधित किया है, जिससे छोटे भारतीय ब्रांड स्थापित खिलाड़ियों के साथ अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम हुए हैं। यह उभरता परिदृश्य उपभोक्ता-केंद्रित बाज़ार को बढ़ावा देता है, जिससे ‘शिकारी अभ्यासों’ (predatory practices) के जड़ जमाने की संभावना कम हो जाती है।

ई-कॉमर्स (E-Commerce) क्या है?

  • परिचय: ई-कॉमर्स इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (electronic commerce) का संक्षिप्त रूप है, जो इंटरनेट के माध्यम से वस्तुओं या सेवाओं की खरीद एवं बिक्री और इस लेन-देन को निष्पादित करने के लिये धन एवं डेटा के हस्तांतरण को संदर्भित करता है।
  • ई-कॉमर्स के प्रकार:
    • शामिल पक्षकारों के आधार पर
      • व्यवसाय-से-उपभोक्ता (Business-to-Consumer- B2C): जैसे Amazon द्वारा व्यक्तिगत ग्राहकों को उत्पाद बेचना
      • व्यवसाय-से व्यवसाय (Business-to-Business- B2B): थोक विक्रेता द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से खुदरा विक्रेताओं को वस्तुओं की बिक्री
      • उपभोक्ता-से-उपभोक्ता (Consumer-to-Consumer- C2C): C2C): eBay या OLX जैसे प्लेटफॉर्म व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली बिक्री 
      • उपभोक्ता-से-व्यवसाय (Consumer-to-Business- C2B): Upwork जैसे प्लेटफॉर्म पर कंपनियों को सेवाएँ प्रदान करने वाले फ्रीलांसर
      • व्यवसाय-से-सरकार (Business-to-Government- B2G):  कंपनियों द्वारा सरकारी अनुबंधों के लिये ऑनलाइन बोली लगाना
    • प्लेटफॉर्म के आधार पर 
      • सोशल कॉमर्स: ई-कॉमर्स के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे, Facebook Marketplace) का लाभ उठाना
      • मोबाइल कॉमर्स (M-Commerce): मोबाइल उपकरणों के माध्यम से किये गए लेन-देन
      • स्थानीय वाणिज्य: स्थानीय खरीदारों और विक्रेताओं को जोड़ने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (जैसे, Nextdoor)

भारत में ई-कॉमर्स के प्रमुख विकास चालक :

  • डिजिटल क्रांति – स्मार्टफोन और इंटरनेट का प्रसार: भारत के डिजिटल परिदृश्य में व्यापक परिवर्तन आया है, जिससे ई-कॉमर्स की वृद्धि को बढ़ावा मिला है।
    • भारत में वर्ष 2026 तक स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 1 बिलियन हो जाएगी, जहाँ इंटरनेट-सक्षम फोन की बिक्री में ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान सबसे अधिक होगा।
    • भारत में 1GB मोबाइल इंटरनेट डेटा की औसत लागत विश्व में सबसे कम है, जो मात्र 13.98 रुपए है; इससे लाखों लोग ऑनलाइन होने में सक्षम हुए हैं।
    • इस डिजिटल पहुँच ने लाखों लोगों के लिये, विशेषकर टियर 2 और टियर 3 शहरों में, ऑनलाइन शॉपिंग को सक्षम किया है।
    • इसके अलावा, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) पहल का उद्देश्य डिजिटल कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करना है।
  • डिजिटल भुगतान का उभार – UPI और उससे आगे: डिजिटल भुगतान में वृद्धि ई-कॉमर्स के लिये एक प्रमुख उत्प्रेरक रही है।
    • मई 2024 में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस लेन-देन ने 20.45 ट्रिलियन रुपए मूल्य के 14.04 बिलियन लेन-देन संसाधित कर मूल्य में एक नया उच्च स्तर हासिल किया।
    • डिजिटल लेन-देन की आसानी और भीम (BHIM) जैसी पहलों ने कैश-ऑन-डिलीवरी पर निर्भरता कम कर दी है।
    • इस बदलाव ने न केवल ऑनलाइन खरीदारी को सरल बनाया है, बल्कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के लिये ग्राहक आधार को भी व्यापक बनाया है।
  • उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन – सुविधा और विकल्प: बदलती जीवनशैली और समय की बढ़ती कमी ने उपभोक्ताओं को ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा की ओर प्रवृत्त किया है।
    • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अद्वितीय उत्पाद विविधता प्रदान करते हैं; जैसे अकेले Amazon India पर ही 170 मिलियन से अधिक उत्पाद सूचीबद्ध हैं।
    • प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण और डोरस्टेप डिलीवरी के साथ इस विशाल चयन ने ई-कॉमर्स को शहरी एवं ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिये एक आकर्षक विकल्प बना दिया है।
  • लॉजिस्टिक्स और अंतिम-दूरी डिलीवरी संबंधी नवाचार: लॉजिस्टिक्स में सुधार ई-कॉमर्स विस्तार के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।
    • भारत का लॉजिस्टिक्स बाज़ार, जिसका मूल्य वर्ष 2021 में 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, वर्ष 2025 तक बढ़कर 380 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
    • Delhivery और Ecom Express जैसी ई-कॉमर्स-केंद्रित लॉजिस्टिक्स कंपनियों ने अंतिम-दूरी डिलीवरी में क्रांति ला दी है।
    • हाइपरलोकल डिलीवरी (Dunzo, Swiggy Instamart आदि द्वारा) जैसे नवाचारों ने कुछ शहरों में डिलीवरी का समय घटाकर 10-30 मिनट तक कर दिया है।
  • सोशल कॉमर्स और लाइव शॉपिंग का उदय: सोशल कॉमर्स एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति के रूप में उभर रहा है, जो सोशल मीडिया को ई-कॉमर्स के साथ मिश्रित कर रहा है।
    • Meesho जैसे प्लेटफॉर्म ने उत्पाद खोज और बिक्री के लिये सोशल नेटवर्क की शक्ति का उपयोग किया है।
    • Flipkart के Shopsy और YouTube की एकीकृत शॉपिंग सुविधाओं द्वारा लोकप्रिय बनाई गई लाइव शॉपिंग (Live shopping) वर्ष 2025 तक भारत में 4-5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बाज़ार बन सकती है।
    • यह ट्रेंड विशेष रूप से युवाओं और ‘डिजिटल-नेटिव’ उपभोक्ताओं को आकर्षित कर रहा है तथा आवेग खरीदारी (impulse purchases) एवं संलग्नता को बढ़ावा दे रहा है।
  • वैयक्तिकरण और AI-संचालित अनुशंसाएँ: एडवांस्ड डेटा एनालिटिक्स और AI एआई वैयक्तिकरण (Personalisation) के माध्यम से ऑनलाइन शॉपिंग के अनुभव को बढ़ा रहे हैं ।
    • Amazon जैसी ई-कॉमर्स दिग्गज कंपनियों का कहना है कि उनकी 35% बिक्री वैयक्तिकृत अनुशंसाओं से होती है। 
    • AI-संचालित चैटबॉट प्रमुख प्लेटफॉर्मों पर ग्राहकों की पूछताछ के 30-40% भाग को संभाल रहे हैं।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ न केवल ग्राहक संतुष्टि में सुधार करती हैं, बल्कि उच्च रूपांतरण दर (conversion rates) और औसत ऑर्डर मूल्य को भी प्रेरित करती हैं।
  • देसी भाषा दृष्टिकोण और ‘वॉइस कॉमर्स’: भारत की भाषाई विविधता के अनुरूप बनने से ई-कॉमर्स के लिये नए बाज़ार खुल गए हैं।
    • एलेक्सा (Alexa) और गूगल असिस्टेंट (Google Assistant) जैसे प्लेटफॉर्मों द्वारा समर्थित वॉइस-बेस्ड खरीदारी लोकप्रिय हो रही है।
    • इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 57% इंटरनेट उपयोगकर्त्ता भारतीय भाषाओं में इंटरनेट का उपयोग करना पसंद करते हैं, जो वॉइस एवं वर्नाकुलर ई-कॉमर्स समाधानों के लिये एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है।

भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • न्यूनतम प्रतिस्पर्द्धी कीमतों की पेशकश (Predatory Pricing -The Race to the Bottom): कई प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों पर प्रेडेटरी प्राइसिंग के आरोप लगते हैं, जहाँ वे प्रतिस्पर्द्धा और बाज़ार एकाधिकार के लिये अत्यंत कम मूल्यों पर वस्तुओं की पेशकश करते हैं।
    • वर्ष 2020 में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने भारी छूट अभ्यासों के लिये Amazon और Flipkart की जाँच का आदेश दिया था।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 के त्योहारी मौसम के दौरान ई-कॉमर्स साइटों ने इलेक्ट्रॉनिक्स पर 80% तक की छूट की पेशकश की। यद्यपि यह अल्पावधि में उपभोक्ताओं के लिये लाभप्रद होता है, लेकिन यह अभ्यास दीर्घकालिक बाज़ार स्वास्थ्य एवं निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
  • डेटा प्राइवेसी – वैयक्तिकरण की दोधारी तलवार (Data Privacy- The Double-Edged Sword of Personalisation): चूँकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म वैयक्तिकृत अनुभव के निर्माण के लिये बड़ी मात्रा में उपयोगकर्ता डेटा एकत्रित करते हैं, डेटा प्राइवेसी और सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
    • हाई-प्रोफाइल डेटा उल्लंघन (जैसे कि डोमिनोज़ इंडिया में कथित उल्लंघन जिसने वर्ष 2021 में 180 मिलियन ऑर्डर को प्रभावित किया) ऐसे जोखिमों को रेखांकित करते हैं।
    • वैयक्तिकरण और निजता/गोपनीयता के बीच संतुलन का निर्माण करना ई-कॉमर्स उद्योग के लिये एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।
  • नकली उत्पादों की समस्या: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर नकली उत्पादों का प्रसार ब्रांड की अखंडता और उपभोक्ता विश्वास के लिये एक बड़ा खतरा बन गया है।
    • LocalCircles द्वारा वर्ष 2018 में आयोजित सर्वेक्षण में पाया गया कि 38% उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स साइटों से नकली उत्पाद प्राप्त हुए थे।
    • वर्ष 2022 में एक संसदीय पैनल ने नकली सामान बेचने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये कठोर दंड की सिफ़ारिश की थी।
    • चुनौती इस बात की है कि वैध विक्रेताओं को परेशान किये बिना लाखों सूचीबद्ध उत्पादों की निगरानी एवं विनियमन कैसे किया जाए।
  • छोटे खुदरा विक्रेताओं पर दबाव: ई-कॉमर्स दिग्गजों के तेज़ी से विकास ने भारत के 63 मिलियन छोटे खुदरा विक्रेताओं पर भारी दबाव उत्पन्न किया है।
    • वित्त वर्ष 2023 में लगभग 1.5-2.5 मिलियन MSMEs ऑनलाइन उत्पाद बेच रहे थे, जो कुल MSMEs के केवल 2-3% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा के स्तर को एकसमान बनाना है, लेकिन छोटे खुदरा विक्रेता अभी भी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों की तकनीकी क्षमता और आकारिका मितव्ययिता (economies of scale) से मुक़ाबला करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
  • अंतिम-दूरी लॉजिस्टिक्स – ग्रामीण क्षेत्र तक पहुँच की पहेली (Last-Mile Logistics - The Rural Reach Riddle): हालाँकि ई-कॉमर्स ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन भारत की विशाल ग्रामीण आबादी तक पहुँच अभी भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
    • दूरदराज के क्षेत्रों में बदतर सड़क अवसंरचना, उचित पता-ठिकाने का अभाव और सीमित भंडारण सुविधाओं के कारण डिलीवरी लागत बढ़ जाती है।
    • Amazon के ‘आई हैव स्पेस’ (I Have Space) कार्यक्रम और फ्लिपकार्ट (Flipkart) की किराना दुकानों के साथ साझेदारी जैसे नवाचारों से मदद मिली है, लेकिन ऐसे देश में जहाँ 65% आबादी ग्रामीण है, अंतिम दूरी तक लाभप्रद तरीके से पहुँचना एक कठिन चुनौती बनी हुई है।
  • सुविधा की पर्यावरणीय लागत: ई-कॉमर्स में उछाल ने महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताओं को भी जन्म दिया है।
    • ऑनलाइन ऑर्डर से उत्पन्न पैकेजिंग अपशिष्ट चिंताजनक है। भारत ने वर्ष 2019-20 में 3.4 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न किया, जिसमें ई-कॉमर्स का प्रमुख योगदान था।
    • अंतिम-दूरी डिलीवरी का कार्बन फुटप्रिंट, विशेष रूप से त्वरित वाणिज्य (quick commerce) के उदय के साथ, बहुत अधिक है।
  • गिग इकॉनोमी की समस्या: ई-कॉमर्स में उछाल ने गिग इकॉनोमी (Gig Economy) के विकास को, विशेष रूप से लॉजिस्टिक्स और डिलीवरी सेवाओं में, बढ़ावा दिया है।
    • यद्यपि त्वरित वाणिज्य लचीले रोज़गार की पेशकश करते हैं, लेकिन इसने श्रमिक अधिकारों, रोज़गार सुरक्षा और दुर्घटना (विशेष रूप से 10 मिनट में डिलीवरी जैसे वादे के कारण) के बारे में चिंताएँ भी उत्पन्न की हैं।
    • गिग श्रमिक प्रायः अलग-थलग कार्य करते हैं और उनमें बेहतर कार्य दशाओं एवं पारिश्रमिक की मांग के लिये यूनियन बनाने या सामूहिक रूप से सौदेबाज़ी करने की क्षमता का अभाव होता है।
    • इस शक्ति असंतुलन के कारण उनके लिये अपने अधिकारों की पैरोकारी करना या जिन मंचों के लिये वे कार्य करते हैं, उनके साथ बेहतर शर्तों की सौदेबाज़ी करना कठिन हो जाता है।
  • ‘इन्फ्लुएंसर्स’ का प्रभाव: ई-कॉमर्स में ‘इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग’ की बढ़ती भूमिका ने प्रामाणिकता और प्रकटीकरण के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
    • गुप्त ‘पेड पार्टनरशिप’ और भ्रामक उत्पाद समर्थन के मुद्दे संवीक्षा के दायरे में आए हैं।
    • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने बताया कि उनके द्वारा विश्लेषण किये गए इन्फ्लुएंसर पोस्ट्स (सोशल मीडिया पर) में से 30% ने प्रकटीकरण दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया था।
    • उपभोक्ता विश्वास और विनियामक अनुपालन को बनाए रखने के साथ इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग की शक्ति को संतुलित करना ई-कॉमर्स क्षेत्र के लिये एक सतत चुनौती है।

भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें: 

  • ई-कॉमर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): सरकार ने ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस मॉडल में, विशेष रूप से B2B लेन-देन में, 100% FDI की अनुमति दी है।
  • सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) पोर्टल: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा अगस्त 2016 में लॉन्च किया गया GeM पोर्टल पारदर्शी एवं कुशल सार्वजनिक खरीद को बढ़ावा देता है, जहाँ वित्त वर्ष 2023 में खरीद का स्तर 2 लाख करोड़ रुपए को पार कर गया।
  • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC): वर्ष 2022 में लॉन्च किये गए ONDC का उद्देश्य डिजिटल कॉमर्स में MSMEs को समान अवसर प्रदान कर ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करना है।
  • उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020: ये नियम ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिये उपभोक्ताओं के लिये पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु मूल देश का नाम प्रदर्शित करना और उत्पाद सूची मापदंडों का खुलासा करना अनिवार्य बनाते हैं।
  • समकारी लेवी नियम (Equalisation Levy Rules), 2016 (2020 में संशोधित): ये नियम भारत में वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री करने वाले विदेशी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों पर 2% कर आरोपित करते हैं, जिससे डिजिटल व्यवसायों का निष्पक्ष कराधान सुनिश्चित होता है।
  • पेमेंट एग्रीगेटर्स और गेटवे पर RBI दिशानिर्देश: वर्ष 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने ई-कॉमर्स लेन-देन के लिये महत्त्वपूर्ण पेमेंट एग्रीगेटर्स और पेमेंट गेटवे के लिये दिशानिर्देश जारी किये।
    • ये दिशा-निर्देश पेमेंट एग्रीगेटर्स के लिये लाइसेंसिंग को अनिवार्य बनाते हैं, परिचालन एवं प्रशासन संबंधी कठोर शर्तें लागू करते हैं और ग्राहक शिकायत निवारण तंत्र को बेहतर बनाते हैं।
  • राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति: आसन्न राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति (National E-Commerce Policy), का उद्देश्य क्षेत्र के विकास को बढ़ाना और निर्यात को बढ़ावा देना है। इसे वर्ष 2018 में प्रस्तावित किया गया था और इसका मसौदा 2019 में जारी किया गया था।

भारत में ई-कॉमर्स से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिये प्रतिस्पर्द्धा का समान अवसर प्रदान करना: छोटे खुदरा विक्रेताओं को डिजिटल साधनों और कौशल से लैस करने के लिये देशव्यापी ‘डिजिटल किराना’ पहल शुरू की जाए।
    • स्थापित ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ साझेदारी कर उनके प्लेटफॉर्मों पर समर्पित ‘लोकल सेलर’ सेक्शन बनाया जाए जो आस-पास के छोटे व्यवसायों को उजागर करे।
    • ई-कॉमर्स सक्षमता प्लेटफॉर्मों, डिजिटल भुगतान प्रणालियों और इन्वेंट्री प्रबंधन सॉफ्टवेयर तक सब्सिडीयुक्त पहुँच प्रदान किया जाए।
    • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर स्तरीकृत कमीशन संरचना लागू करें, जिसमें छोटे विक्रेताओं के लिये कम दरें हों, ताकि उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिले।
  • ONDC को गति देना – डिजिटल वाणिज्य का लोकतंत्रीकरण: सभी प्रमुख शहरों में ONDC पहल के कार्यान्वयन को तीव्र गति से आगे बढ़ाया जाए।
    • भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये शुरू-शुरू में इसे अपनाने वाले विक्रेताओं और प्रौद्योगिकी प्रदाताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाए।
    • ONDC के लाभों एवं उपयोग के बारे में उपभोक्ताओं और व्यवसायों को शिक्षित करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू किया जाए।
  • ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र को सुव्यवस्थित करना: एक व्यापक, भविष्योन्मुखी ई-कॉमर्स नीति तैयार करना जो FDI, डेटा स्थानीयकरण और सीमा-पार व्यापार पर स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान करे।
    • अनुपालन की निगरानी, शिकायतों के समाधान और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये एक समर्पित ई-कॉमर्स नियामक निकाय की स्थापना की जाए।
    • ई-कॉमर्स लेन-देन के लिये GST अनुपालन को सरल बनाया जाए, जहाँ मार्केटप्लेस के लिये एकल-बिंदु GST संग्रह तंत्र का गठन किया जा सकता है।
  • अंतिम-दूरी नवाचार निधि – ग्रामीण-शहरी विभाजन को दूर करना: लागत-प्रभावी ग्रामीण वितरण समाधान विकसित करने में स्टार्टअप्स और मौजूदा खिलाड़ियों को समर्थन देने के लिये सरकार समर्थित ‘अंतिम-दूरी नवाचार कोष’ (ast-Mile Innovation Fund) का गठन किया जाए।
    • माइक्रो-वेयरहाउस और डिजिटल एड्रेसिंग प्रणालियों सहित विभिन्न ग्रामीण लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये कर प्रोत्साहन की पेशकश की जाए।
    • ई-कॉमर्स डिलीवरी के लिये भारतीय डाक के व्यापक ग्रामीण नेटवर्क का लाभ उठाने हेतु उसके साथ साझेदारी स्थापित की जाए, जहाँ डाकघरों में ‘ग्रामीण ई-कॉमर्स सहायक’ पद का सृजन भी किया जा सकता है।
  • हरित ई-कॉमर्स को बढ़ावा: ई-कॉमर्स पैकेजिंग के लिये अनिवार्य ‘ग्रीन रेटिंग’ प्रणाली लागू की जाए, जिससे पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहन मिले।
    • अंतिम-दूरी डिलीवरी के लिये इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये कर लाभ लागू किया जाए।
    • नवीनीकृत वस्तुओं के बाज़ार को बढ़ावा देने तथा उत्पाद की मरम्मत और पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करने के लिये एक ‘सर्कुलर ई-कॉमर्स’ पहल शुरू की जाए।
  • ग्राहक सुरक्षा का संवर्द्धन: त्वरित शिकायत निवारण के लिये समर्पित ऑनलाइन उपभोक्ता अदालतों की स्थापना कर ई-कॉमर्स विवाद समाधान तंत्र को सुदृढ़ बनाया जाए।
    • ब्लॉकचेन आधारित उत्पाद सत्यापन प्रणाली लागू की जाए, जिसकी शुरुआत उच्च-मूल्य और आमतौर पर नकली वस्तुओं से की जाए।
    • मूल्य निर्धारण पारदर्शिता बढ़ाने के लिये आधार मूल्य, छूट और प्लेटफॉर्म शुल्क सहित विभिन्न मूल्य निर्धारण घटकों का स्पष्ट प्रकटीकरण अनिवार्य बनाया जाए।
  • समावेशी गिग इकॉनोमी ढाँचा: ई-कॉमर्स क्षेत्र के गिग श्रमिकों के लिये स्वास्थ्य बीमा और सेवानिवृत्ति लाभ सहित एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा योजना विकसित की जाए।
    • एक  ‘सुवाह्य लाभ’ (Portable Benefits) प्रणाली क्रियान्वित की जाए जिससे गिग श्रमिकों को कई प्लेटफॉर्मों पर लाभ प्राप्त करने की सुविधा मिल सके।
    • स्थानीय जीवन-यापन लागत और कार्य की जटिलता के आधार पर गिग श्रमिकों के लिये न्यूनतम मज़दूरी दिशानिर्देश स्थापित किये जाएँ।
    • डिलीवरी कर्मियों और अन्य गिग श्रमिकों को ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र में उच्च-कुशल भूमिकाओं में स्थानांतरित हो सकने में मदद करने के लिये एक ‘गिग वर्कर अपस्किलिंग प्रोग्राम’ लॉन्च किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत में ई-कॉमर्स के तीव्र विकास के पारंपरिक खुदरा व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये। खुदरा क्षेत्र के संतुलित और समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिये सरकार को किन उपायों पर विचार करना चाहिये?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न: भारत में कार्य कर रही विदेशी-स्वामित्व की ई-वाणिज्य फर्मों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. अपने प्लेटफार्मों को बाज़ार-स्थान के रूप में प्रस्तुत करने के अतिरिक्त वे स्वयं अपने माल का विक्रय भी कर सकते हैं। 
  2. वे अपने प्लेटफॉर्मों पर किस अंश तक बड़े विक्रेताओं को स्वीकार कर सकते हैं, यह सीमित है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


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