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एडिटोरियल

  • 29 Jul, 2020
  • 14 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण एशियाई-खाड़ी प्रवासी संकट

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में दक्षिण एशियाई-खाड़ी प्रवासी संकट व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

जुलाई 2020 में केरल उच्च न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकारों को अनिवासी भारतीयों की सहायता के लिये एक तंत्र स्थापित करने की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जो किसी अन्य देश में अपना रोज़गार खो चुके थे और जीविकोपार्जन की तलाश में भारत लौट आए थे। यह याचिका विधिक विशेषज्ञों के एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क लॉयर्स बियॉन्ड बॉर्डर्स (Lawyers Beyond Borders) द्वारा दायर की गई थी। 

इस याचिका में प्रवासी श्रमिकों की शेष वेतन व भत्तों के भुगतान, सेवानिवृत्ति लाभ तथा वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण मृत्यु को प्राप्त होने वाले श्रमिकों के परिजनों को मुआवज़ा उपलब्ध करने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप की माँग की गई है। याचिका में यह भी बताया गया है कि इस संकट की  घड़ी में खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council) के देशों में नियोक्ताओं विशेषकर निर्माण क्षेत्र से संबंधित कंपनियों ने प्रवासी श्रमिकों को वेतन आदि का भुगतान किये बिना अत्यधिक लाभ उठाया है। विदित है कि भारत समेत दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों से बड़ी संख्या में कामगार खाड़ी देशों में रोज़गार हेतु प्रवास करते हैं। दक्षिण एशियाई श्रम बल खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ है, लेकिन खाड़ी देशों में इस श्रम बल के लिये कोई सामाजिक सुरक्षा संरक्षण या श्रम अधिकार नहीं है। 

वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण उपज़ी परिस्थितियों से खाड़ी देशों से भारत सहित अन्य दक्षिण एशियाई देशों में रिवर्स माइग्रेशन देखा जा रहा है। 

रिवर्स माइग्रेशन से तात्पर्य 

  • सामान्य शब्दों में रिवर्स माइग्रेशन से तात्पर्य किसी अन्य देश से अपने मूल देश या देश के भीतर महानगरों और शहरों से गाँव एवं कस्बों की ओर होने वाले पलायन से है।
  • बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का खाड़ी देशों से अपने मूल देश में प्रवासन हो रहा है। लॉकडाउन के कुछ दिनों बाद ही काम-धंधा बंद होने की वजह से श्रमिकों के सामने जीविकोपार्जन की चुनौती है। 

प्रवासी श्रमिक से तात्पर्य 

  • एक ‘प्रवासी श्रमिक’ वह व्यक्ति होता है जो असंगठित क्षेत्र में अपने देश के भीतर या इसके बाहर काम करने के लिये पलायन करता है। प्रवासी श्रमिक आमतौर पर उस देश या क्षेत्र में स्थायी रूप से रहने का इरादा नहीं रखते हैं जिसमें वे काम करते हैं।
  • अपने देश के बाहर काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों को विदेशी श्रमिक भी कहा जाता है। उन्हें प्रवासी या अतिथि कार्यकर्ता भी कहा जा सकता है, खासकर जब उन्हें स्वदेश छोड़ने से पहले मेजबान देश में काम करने के लिये भेजा या आमंत्रित किया गया हो।

खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों की बड़ी संख्या

  • दक्षिण एशिया-खाड़ी प्रवास क्षेत्र विश्व का सबसे बड़ा प्रवास गलियारा है। दक्षिण-एशियाई देशों से लगभग 15 मिलियन लोग खाड़ी देशों में रोज़गार या शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से आते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग की ओर से ज़ारी ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी स्टाॅक-2019 (The International Migrant Stock-2019)’ रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वर्ष 2019 में खाड़ी देशों में लगभग 8.5 मिलियन भारतीय रहते हैं, जो दुनिया में प्रवासियों का सबसे बड़ा संकेंद्रण है। 
  • वर्ष 2019 तक संयुक्त अरब अमीरात में प्रवासी भारतीयों की संख्या लगभग 31 लाख के आस-पास थी। इसी तरह सऊदी अरब में प्रवासी भारतीयों की संख्या लगभग 28 लाख थी। 
  • कुवैत में प्रवासी भारतीयों की संख्या लगभग 9 लाख, क़तर में लगभग 7 लाख, ओमान में लगभग 6 लाख तथा बहरीन में यह संख्या तकरीबन 3.5 लाख थी।
  • वहीं दक्षिण एशिया के अन्य देशों में पाकिस्तान से लगभग 4.7 मिलियन प्रवासी, बांग्लादेश से लगभग 1.5 मिलियन प्रवासी, नेपाल से लगभग 2 लाख प्रवासी खाड़ी देशों में मौजूद हैं।

खाड़ी देशों में प्रवासियों की दयनीय स्थिति

  • खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, कल्याणकारी तंत्र व श्रमिक अधिकारों का अभाव है, परिणामस्वरूप श्रमिकों को वेतन, भत्ते, स्वास्थ्य आदि पर होने वाले व्यय के लिये नियोक्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • खाड़ी देशों में काम करने वाले अधिकतर प्रवासी मज़दूर है तथा अकुशल श्रमिकों के वर्ग में आते हैं और संविदा पर काम करते हैं। इसे खाड़ी देशों में कफाला सिस्टम (Kafala sponsorship system) कहा जाता है। वैश्विक महामारी के दौर में जहाँ अधिकतर नौकरियाँ खतरे में हैं, वहीं यह सभी प्रवासी कामगार सबसे अधिक जोखिम में है क्योंकि वे अकुशल श्रमिक हैं।
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण खाड़ी देशों में अधिकाँश कारखाने, कम्पनियाँ, ऑयल फील्ड्स आदि ठप्प है, जिससे प्रवासी लोगों के समक्ष रोज़गार का संकट है और जीवन निर्वाह के लिये न्यूनतम धनराशि भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
  • रोज़गार के अभूतपूर्व संकट के कारण खाड़ी देशों में स्थानीय लोगों को रोज़गार में प्राथमिकता  देने तथा श्रम के राष्ट्रीयकरण की माँग की जा रही है, जिसने प्रवासियों की समस्या को और बढ़ा दिया है।
  • स्थानीय लोगों को रोज़गार में प्राथमिकता देने की माँग ने खाड़ी देशों में विभिन्न अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत भारतीय महिला डॉक्टरों, नर्सों तथा घरों में काम करने वाली घरेलू सहायिकाओं के समक्ष समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं।     
  • खाड़ी देशों में जीवनरक्षक दवाइयों की अत्यधिक कीमत के कारण पूर्व में प्रवासी श्रमिक भारत से दवाओं का स्टॉक ले कर रखते थे, परंतु लॉकडाउन के कारण वायु परिवहन सेवा के बाधित होने से दवाइयों की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो पाई जिससे प्रवासियों को भयंकर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 1990 में ऐसी ही स्थिति का सामना प्रवासियों को उस समय करना पड़ा था जब इराक ने कुवैत पर आक्रमण कर दिया था। 

अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका 

  • विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों को लगभग 140 बिलियन डॉलर प्रेषण (Remittances) के रूप में खाड़ी देशों से प्राप्त हुए। 
  • जिसमें भारत को 83.1 बिलियन डॉलर, पाकिस्तान को 22.5 बिलियन डॉलर, बांग्लादेश को 18.3 बिलियन डॉलर और नेपाल को 8.1 बिलियन डॉलर की धनराशि प्रेषण के रूप में  हुई। 
  • प्रवासी श्रमिकों का योगदान केवल अपने मूल देश में प्रेषित धनराशि भेजने तक ही नहीं सीमित है बल्कि यह खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था को भी सस्ता श्रम उपलब्ध कराते हैं।
  • प्रवासी श्रमिक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में मांग में वृद्धि करने वाला कारक और एक बड़ा उपभोक्ता भी होता है। 
  • प्रवासी श्रमिक दो देशों के मध्य आर्थिक संबंधों के साथ-साथ सांस्कृतिक संबंधों को भी जोड़ने वाले कारक हैं। 

रिवर्स माइग्रेशन से पड़ने वाले प्रभाव  

  • खाड़ी देशों से होने वाली रिवर्स माइग्रेशन से प्रवासियों के मूल देश पर अत्यधिक आर्थिक दबाव पड़ेगा। यह सर्वविदित है कि खाड़ी देशों में कार्य कर रहे श्रमिक अपने मूल देश में एक बड़ी राशि भेजते हैं, जिससे दक्षिण एशियाई देशों को बड़ी आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी।
  • दक्षिण एशियाई देश अपेक्षाकृत रूप से औद्योगीकरण में पिछड़े हुए हैं, रिवर्स माइग्रेशन के परिणामस्वरूप इन देशों में रोज़गार का संकट भीषण रूप ले रहा है।

  • रोज़गार के संकट से इन देशों में महिलाओं की स्थिति में गिरावट होगी क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप की सामाजिक व्यवस्था में पूर्व में भी आर्थिक वंचनाओं के दौरान महिलाओं को प्रतिकूल परिवर्तनों का सामना करना पड़ा है। 

  • खाड़ी देशों में वर्तमान में भले ही उद्योगों में काम कम हो गया है या रुक गया है परंतु लॉकडाउन समाप्त होते ही श्रमिकों की मांग में तीव्र वृद्धि होगी। सस्ता श्रम बल उपलब्ध न हो पाने से ऑयल फील्ड्स और निर्माण क्षेत्र में उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा।

  • बड़ी संख्या में श्रमिकों के पलायन से खाड़ी देशों को प्राप्त होने वाला राजस्व भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाएगा। 

प्रवासियों के पुनर्वास हेतु किये गए प्रयास

  • प्रवासी श्रमिकों के पुनर्वास को सुविधाजनक बनाने के लिये भारत सरकार ने विदेश से लौटने वाले नागरिकों के कौशल मानचित्रण के लिये स्वदेश (SWADES)  नामक योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत स्वदेश लौट रहे भारतीयों का उनकी कुशलता के आधार पर डेटाबेस तैयार किया जा रहा है और इस डेटाबेस के आधार पर प्रवासियों को स्वदेशी और विदेशी कंपनियों में रोज़गार उपलब्ध कराया जाएगा। 
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के सबसे बड़े भागीदार राज्य केरल ने प्रवासियों के बहुमुखी प्रतिभा का उपयोग करने के लिये 'ड्रीम केरल' परियोजना की घोषणा की है। ड्रीम केरल प्रोजेक्ट के माध्यम से, न केवल वापसी करने वाले प्रवासियों का पुनर्वास किया जाएगा, बल्कि उनकी विशेषज्ञता, कौशल ज्ञान के आधार पर रोज़गार भी उपलब्ध कराया जाएगा।
  • भारत के अतिरिक्त बांग्लादेश ने भी प्रवासियों के पुनर्वास के लिये एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है जिसमें स्वदेश आगमन पर धन की सहायता, स्वरोजगार परियोजनाओं को शुरू करने के लिये कोष और वैश्विक महामारी COVID -19 से विदेश में मृत्यु को प्राप्त होने वाले प्रवासियों के परिजनों के लिये मुआवज़ा आदि शामिल हैं।
  • पाकिस्तान ने प्रवासी रोज़गार निगम के द्वारा वापस आने वाले प्रवासियों के कौशल को उन्नत करने के लिये विशेष कार्यक्रमों को अपनाया है।
  • श्रीलंका ने एक संपूर्ण प्रवासन नीति को अपनाकर प्रवासियों के हितों को सुरक्षित करने का प्रयास किया है।

प्रश्न- दक्षिण एशियाई-खाड़ी प्रवासी संकट से आप क्या समझते हैं? अर्थव्यवस्था में प्रवासियों की भूमिका का उल्लेख करते हुए प्रवासन के प्रभावों का आकलन कीजिये।


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