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एडिटोरियल

  • 28 Nov, 2018
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

अंडमान की सेंटिनली जनजाति

संदर्भ


हाल ही में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के नॉर्थ सेंटिनल नामक द्वीप पर एक अमेरिकी नागरिक की हत्या सुर्खियों का कारण रहा। उल्लेखनीय है कि यह हत्या उस क्षेत्र में हुई है जहाँ सेंटिनली जनजाति निवास करती है। कुछ विचारकों ने सेंटिनेलियों को दोषी ठहराने और दंडित करने की मांग की है तथा कुछ अन्य ने कहा है कि उन्हें आधुनिक समाज के रूप में एकीकृत किया जाए। किंतु इन दोनों ही परिस्थितियों का परिणाम केवल इन अद्वितीय लोगों की विलुप्ति ही हो सकती है।


संरक्षित जनजाति और प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (RPA)

  • भारत सरकार ने जनजातियों के कब्ज़े वाले पारंपरिक क्षेत्रों को संरक्षित घोषित करने के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन, 1956 जारी किया और इस क्षेत्र में प्राधिकरण के अलावा अन्य सभी व्यक्तियों के प्रवेश को प्रतिबंधित किया गया।
  • जनजाति सदस्यों की फोटो लेना या फिल्मांकन का कार्य करना भी एक अपराध है।
  • विदेशी लोगों को ‘प्रतिबंधित’ या ‘संरक्षित’ क्षेत्रों के रूप में घोषित क्षेत्रों को देखने के लिये उचित वीज़ा के अलावा प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट/संरक्षित क्षेत्र परमिट की आवश्यकता होती है।
  • कई मामलों में ऐसे परमिट संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों द्वारा गृह मंत्रालय से अनुमति प्राप्त करने के बाद दिये जाते रहे हैं। इस प्रक्रिया में समय लगता है और एक तरह की बाधा पैदा होती रही है।
  • हाल ही में कुछ द्वीपों के प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश संबंधी नियमों में छूट दी गई थी।

संशोधित प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (RPA)

  • अब गृह मंत्रालय ने इस तरह की अनुमति देने की प्रक्रिया को तर्कसंगत बनाया है। निम्नलिखित तीन प्रमुख क्षेत्रों में विदेशियों को संरक्षित क्षेत्र परमिट (PAP) और प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (RPA) की अनुमति के लिये गृह मंत्रालय द्वारा पूर्व मंजूरी दे दी गई है:
  • विदेशी पर्यटक वीज़ा के अलावा अन्य गतिविधियों के लिये PAP/RPA शासन के तहत कवर की गई जगह पर जाने के इच्छुक विदेशी इसके तहत शामिल होंगे;
  • विदेशी पर्यटक, पर्यटन के उद्देश्य से उस जगह पर जा रहे हैं जिसे अभी पर्यटन के लिये खोला नहीं गया है;
  • व्यक्तिगत विदेशी पर्यटकों के मामले में संबंधित राज्य सरकार या फॉरेनर्स रीज़नल रजिस्ट्रेशन ऑफिस (FRRO) स्थानीय रूप से निर्णय ले सकते हैं और तत्काल विदेशियों को PAP या RPA प्रदान कर सकते हैं।
  • मगर अब पर्यटन और निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंडमान और निकोबार के 30 द्वीपों को विदेशियों के प्रतिबंधित क्षेत्रों संबंधी आदेश, 1963 के तहत अधिसूचित RPA से बाहर रखा गया है।
  • 29 आवास योग्य द्वीपों को 31 दिसंबर, 2022 तक विदेशी (प्रतिबंधित क्षेत्रों) आदेश, 1963 के तहत अधिसूचित, कुछ शर्तों के अधीन प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (RPA) से बाहर रखा गया है ।
  • विदेशियों को अब अंडमान और निकोबार द्वीप समूह श्रृंखला में 29 आवास योग्य द्वीपों पर जाने के लिये (केवल दिन के समय) प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट की आवश्यकता नहीं है। साथ ही 11 अन्य निर्जन द्वीप भी विदेशियों के लिये खोले गए हैं।
  • हालाँकि, अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान के नागरिक तथा इन देशों के मूल के विदेशी नागरिकों को इस केंद्रशासित प्रदेश में जाने के लिये आरएपी की आवश्यकता होगी।
  • मयबंदर और दिगलीपुर जाने के लिये म्याँमार के नागरिकों को RPA की आवश्यकता होगी, जिसे केवल मंत्रालय की पूर्व मंज़ूरी के साथ जारी किया जाएगा।
  • आरक्षित वनों, वन्यजीव अभयारण्यों और जनजातीय आरक्षित क्षेत्रों के भ्रमण के लिये सक्षम प्राधिकारी की अलग-अलग मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।

भारत में जनजातियों के अधिकार

  • भारतीय संविधान के तहत पंचायतों के प्रावधान में निहित (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 या PESA और भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के पंचशील सिद्धांत सभी स्वदेशी लोगों को सुरक्षा की गारंटी प्रदान करते हैं।
  • उत्तरी सेंटिनल द्वीप और इसके बफर ज़ोन के संरक्षण के लिये आदिवासी जनजाति (विनियमन), 1956 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 के विनियमों के तहत इसे सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है।
  • भारतीय संविधान की पाँचवी और छठी अनुसूची के माध्यम से जनजातीय हितों, विशेष रूप से जनजातीय स्वायत्तता और भूमि पर उनके अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित किया गया है।
  • भारत में अधिकांश जनजातियों को सामूहिक रूप से अनुच्छेद 342 (1 और 2) के तहत "अनुसूचित जनजाति" के रूप में पहचाना जाता है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 (1) अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन औरनियंत्रण के अधिकार का उल्लेख है।
  • भारत स्थानिक और जनजातीय आबादी के अधिकारों से संबंधित समझौते (UNDRIP) का हस्ताक्षरकर्त्ता है लेकिन अपने स्वयं के स्थानिक लोग इन कानूनों के तहत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते।

व्यवहार, संशय और बदलता परिदृश्य

  • सेंटिनली लोगों का बाहरी व्यक्तियों के प्रति व्यवहार अत्यधिक शत्रुतापूर्ण रहा है। लेकिन 1991 में उन्होंने भारतीय मानव विज्ञानविदों और प्रशासकों की एक टीम से कुछ नारियल स्वीकार किये थे।
  • कुछ शोधकर्त्ताओं का मानना है कि सेंटिनली लोगों को औपनिवेशिक काल से ही अकेला छोड़ दिया गया था क्योंकि अन्य जनजातियों जैसे कि ओंज, जारवा और ग्रेट अंडमानीज़ (Great Andamanese) के विपरीत इस जनजाति ने जिस भूमि पर कब्ज़ा किया है, उसके प्रति वाणिज्यिक आकर्षण नहीं है।
  • 1970 के दशक के बाद से भारत सरकार की अपनी आधिकारिक रूप से इन जनजातियों से ‘संपर्क’ स्थापित करने वाली तस्वीरों ने दिलचस्प संकेतों को प्रकट किया जो ‘पूर्ण अलगाव’ की अवधारणा पर सवाल उठाते हैं।
  • यदि हम सावधानीपूर्वक इस रिकॉर्ड के दृश्यों का विश्लेषण करते हैं, तो हम देख सकते हैं कि सेंटिनली द्वारा प्रयोग किये जाने पात्रों का आकार कैसे बदल गया है और कैसे वे बड़ी मात्रा में लौहे का उपयोग करते हैं ताकि वे इससे ब्लेड और तीरहेड बना सकें।
  • इन तश्वीरों में उनकी गर्दन के चारों ओर छोटे शीशे के मोती वाले हार भी देखने को मिलते हैं। अब प्रश्न उठता है कि आखिर इन्हें छोटे शीशे के मोती, बड़ी टैरपॉलिन चादरें और लौहे की आपूर्ति कहाँ से हो रही है?
  • भारत के एन्थ्रोपोज़िकल सर्वे में 26 द्वीपों को दर्ज किया गया है, सर्वे के मुताबिक यह कहा गया है कि इनमें से सात द्वीपों की जनजाति का व्यहवार शत्रुतापूर्ण मिला दूसरे शब्दों में कहें तो सेंटीनली लोगों के शत्रुतापूर्ण व्यवहार को मनोविकार (pathological) के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • जाहिर है कि वे सेंटिनल द्वीप पर किसी भी तरह की यात्रा को उनके अस्तित्व या गरिमा और सुरक्षा के समक्ष खतरे के रूप में देखते हैं।
  • भारत सरकार के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या राज्य एक ऐसी विधि तैयार नहीं कर सकती जिसके द्वारा सेंटीनली लोगों को ‘शांत’ किया जा सके और कल्याणकारी योजनाओं द्वारा उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सके।

मुख्यधारा से जोड़ने की आवश्यकता क्यों?

  • सेंटिनलीज आज दुनिया में सबसे अधिक समावेशी समुदाय है। उनकी भाषा को अब तक किसी अन्य समूह द्वारा समझा नहीं गया है और उन्होंने पारंपरिक रूप से भाले और तीर के साथ घुसपैठियों पर हमला करते हुए पारंपरिक रूप से अपने द्वीप की रक्षा की है। अगर उन्हें असंबद्ध छोड़ दिया जाता है, तो हो सकता है कि वे अपनी अनूठी संस्कृति, भाषा और जीवन के विविध तरीकों को ही खो दें।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, उनकी आबादी सिर्फ 15 थी। इसलिये उनके विलुप्त होने की आशंका भी है।
  • जनजातियों की गरीबी रेखा दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। वे शिक्षा में बहुत पीछे हैं और उनमें कुपोषण अत्यधिक प्रचलित है।
  • हालाँकि, पिछले 10 से 12 वर्षों में PESA और वन अधिकार अधिनियम ने इस अंतर को पाटने का काफी प्रयास किया है लेकिन आदिवासी बड़े पैमाने पर अपने अधिकारों से अवगत नहीं हैं। वे भारतीय समाज में अब भी हाशिये पर हैं।

आगे की राह

  • ये जनजातियाँ देश की विविधता में अपनी मानव विरासत को गले लगाने का अवसर प्रदान करती हैं और भावनात्मक तौर पर दुनिया को अपने सबसे कमजोर निवासियों की आँखों से देखने की कोशिश करती हैं।
  • किंतु जब तक उनकी भूमि सुरक्षित नहीं होती है तब तक सेंटीलली लोगों और इसी प्रकार की जनजातियों की पहचान एक आपदा के रूप में ही होती रहेगी जैसा की हाल का घटनाक्रम इसकी पुष्टि करता है।
  • भारत सरकार को एक और अन्य अनहोनी को रोकने के लिये तथा आगे किसी भी विदेशी से सेंटिनली लोगों और अन्य अंडमानी जनजातियों दोनों की भूमि की रक्षा करने के लिये जनजागृति का कार्य चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि प्रत्येक जनजाति में एक अलग बनावट और चरित्र होता है जैसा कि मध्य भारत में स्थानिक लोगों की स्थिति पूर्वोत्तर और अंडमानों के स्थानिक जनजातियों से बहुत अलग है। इसको ध्यान में रखते हुए उनके साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाना चाहिये।
  • अतः समावेश के सपने को साकार करने के लिये विभिन्न जनजातियों की आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न नीतियों को तैयार किया जाना चाहिये।

स्रोत : द हिंदू


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