एडिटोरियल (28 Aug, 2024)



भारत का खाद्य प्रसंस्करण परिदृश्य

यह एडिटोरियल 26/08/2024 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Attracting global anchor firms in food processing” लेख पर आधारित है। इसमें गतिहीन कृषि-निर्यात और प्रमुख पहलों के क्रियान्वयन में धीमी प्रगति के साथ भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की अप्रयुक्त क्षमता की चर्चा की गई है तथा संबद्ध चुनौतियों एवं अवसरों पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना, खाद्य प्रसंस्करण में FDI भत्ता, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) , कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, भारतीय मानक ब्यूरो, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण योजना। 

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारक, भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें वृद्धि और निर्यात विस्तार की व्यापक संभावना है। कृषि विकास को प्राथमिकता देने के सरकार के प्रयासों—जहाँ वर्ष 2024-25 में 1.52 लाख करोड़ रुपए का पर्याप्त बजट आवंटन भी किया गया है, के बावजूद देश का कृषि-निर्यात कमज़ोर प्रदर्शन कर रहा है। कृषि निर्यात का केवल 25% भाग प्रसंस्करित या मूल्यवर्द्धित उत्पादों का है और यह आँकड़ा पिछले एक दशक से गतिहीन बना हुआ है। भारत वैश्विक औसत और चीन जैसे प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे है। यह अंतराल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive Scheme for the Food Processing Industry- PLISFPI) का कार्यान्वयन धीमा रहा है, जहाँ क्रियान्वयन समय-सीमा के मध्य तक आवंटित धनराशि का केवल 10% ही उपयोग किया गया है। भारत को अपनी पूरी क्षमता को साकार करने और वैश्विक बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने की आवश्यकता है। 

खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) क्या है? 

  • परिचय: खाद्य प्रसंस्करण में कच्चे (raw) पादप एवं पशु पदार्थों को खाद्य उत्पादों में परिणत करने के लिये उपयोग की जाने वाली विधियाँ और तकनीकें शामिल हैं। 
    • इसमें सरल परिरक्षण से लेकर जटिल औद्योगिक विधियों तक की विस्तृत शृंखला शामिल है।
  • प्रसंस्करण के स्तर: 
    • प्राथमिक प्रसंस्करण: कृषि उत्पादों की बुनियादी सफाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग। 
    • द्वितीयक प्रसंस्करण: सामग्री को खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करना (जैसे, गेहूँ को पीसकर आटा बनाना)। 
    • तृतीयक प्रसंस्करण: खाने के लिये तैयार (ready-to-eat) खाद्य पदार्थ का निर्माण करना (जैसे, आटे से रोटी पकाना)। 
  • मुख्य उद्देश्य: 
    • परिरक्षण: खाद्य उत्पादों के उपयोग-काल या ‘शेल्फ-लाइफ’ को बढ़ाना 
    • सुरक्षा: हानिकारक सूक्ष्मजीवों और संदूषकों को समाप्त करना 
    • गुणवत्ता वृद्धि: स्वाद, बनावट और पोषण मूल्य में सुधार करना 
    • सुविधा: आसानी से तैयार होने वाले (easy-to-prepare) या खाने के लिये तैयार (ready-to-eat) उत्पाद बनाना 
    • मूल्य संवर्द्धन: कच्चे कृषि उत्पादों का आर्थिक मूल्य बढ़ाना 

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक  

  • जनसांख्यिकीय लाभांश से प्रेरित मांग: भारत की बड़ी एवं बढ़ती आबादी आय वृद्धि और शहरीकरण के साथ संयुक्त होकर प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों की मांग को बढ़ा रही है। 
    • चूँकि 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु वर्ग की है, इसलिये बदलती जीवनशैली और खाद्य प्राथमिकताएँ बाज़ार को नया स्वरूप दे रही हैं। 
    • भारतीय प्रसंस्करित खाद्य बाज़ार के वर्ष 2019-20 में 263 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2025 तक 470 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। 
      • यह वृद्धि ‘रेडी-टू-ईट’ खाद्य की बढ़ती लोकप्रियता से स्पष्ट है। 
  • डिजिटल क्रांति – ‘फ्रॉम फार्म टू फोन टू प्लेट’ (Digital Revolution - From Farm to Phone to Plate): भारत की खाद्य आपूर्ति शृंखला का तेज़ी से डिजिटलीकरण इस क्षेत्र में बदलाव ला रहा है। 
    • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और फूड डिलीवरी ऐप्स ने प्रसंस्करित खाद्य उत्पादों के लिये बाज़ार पहुँच का विस्तार किया है। 
    • सरकार की डिजिटल इंडिया पहल ने भी किसानों और प्रसंस्करणकर्ताओं के बीच प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया है, जिससे बिचौलियों की संख्या कम हुई है। 
    • एक B2B ताज़ा उत्पाद आपूर्ति शृंखला कंपनी निंजाकार्ट (Ninjacart) ने सब्जी एवं फल उत्पादक किसानों का व्यवसायों से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया है, जो खाद्य प्रसंस्करण पारिस्थितिकी तंत्र में डिजिटल एकीकरण की क्षमता को प्रदर्शित करता है। 
  • सरकारी नीतियाँ – विकास को उत्प्रेरण (Government Policies - Catalyzing Growth): खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को आगे बढ़ाने में समर्थनकारी सरकारी नीतियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • वर्ष 2021 में शुरू की गई खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLISFPI) ने घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये 10,900 करोड़ रुपए आवंटित किये। 
    • स्वचालित मार्ग के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण में 100% FDI की अनुमति ने महत्त्वपूर्ण विदेशी निवेश आकर्षित किया है। 
    • उदाहरण के लिये, नेस्ले (Nestlé) ने भारत में वर्ष 2025 तक 5,000 करोड़ रुपए निवेश करने की योजना की घोषणा की है, जहाँ प्रसंस्करित खाद्य क्षेत्र में क्षमता विस्तार और नए उत्पाद विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 
  • नवोन्मेष – सफलता का स्वाद (Innovation - The Flavor of Success): उत्पाद नवोन्मेष एक प्रमुख प्रेरक है, जहाँ कंपनियाँ बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिये लगातार नई पेशकशें पेश करती रहती हैं। 
    • स्वास्थ्य के प्रति जागरूक एवं कार्यात्मक खाद्य पदार्थों (health-conscious and functional foods) पर फोकस से नवोन्मेषी उत्पादों में उछाल आया है। 
    • उदाहरण के लिये, ITC के ‘फार्मलैंड’ फ्रोज़न खाद्य श्रेणी—जहाँ परिरक्षक-मुक्त और न्यूनतम प्रसंस्करित उत्पादों पर बल दिया गया है, ने वित्त वर्ष 2023-24 में तेज़ वृद्धि देखी। 
    • आधुनिक प्रारूपों में पारंपरिक भारतीय सामग्रियों की पेशकश ने भी लोकप्रियता हासिल की है (जैसे कि GAIA के मोटे अनाज आधारित स्नैक्स)। 
  • एग्री-टेक – प्रसंस्करण के बीज बोना (Agri-Tech - Sowing Seeds of Processing): कृषि में प्रौद्योगिकी का एकीकरण अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को भी बढ़ावा दे रहा है। 
    • एग्री-टेक स्टार्टअप्स ने वर्ष 2023 में 706 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का वित्तपोषण जुटाया, जो सुदृढ़ विकास क्षमता को इंगित करता है। 
    • क्रॉप-इन (CropIn) जैसी कंपनियाँ, जो फसल की पैदावार एवं गुणवत्ता में सुधार के लिये AI और उपग्रह निगरानी का उपयोग करती हैं, उच्च गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं के साथ साझेदारी स्थापित कर रही हैं। 
    • यह तकनीकी हस्तक्षेप विशेष रूप से अनुबंध कृषि व्यवस्था (contract farming arrangements) के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के बीच अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने के दृष्टिकोण से तेज़ी से लोकप्रिय होती जा रही है। 

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख मुद्दे  

  • विखंडित आपूर्ति शृंखला – ‘द ब्रोकेन लिंक’ (Fragmented Supply Chain - The Broken Link): भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र अत्यधिक विखंडित आपूर्ति शृंखला से ग्रस्त है, जिसके कारण अकुशलताएँ पैदा होती हैं। 
    • चूँकि 86% से अधिक किसान लघु और सीमांत किसान हैं, इसलिये उपज का एकत्रीकरण एक बड़ी चुनौती बन जाता है। 
    • इस विखंडन के परिणामस्वरूप अनेक बिचौलिये उत्पन्न हो जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक आनुपातिक मूल्य संवर्द्धन के बिना लागत में वृद्धि करता है। 
    • भारत में किसानों को अपनी उपज का मात्र 30-35% मूल्य ही मिल पाता है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह स्तर 65-70% तक है। 
    • किसान और प्रसंस्करणकर्ता के बीच प्रत्यक्ष संपर्क का अभाव न केवल कच्चे माल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अंतिम उत्पाद की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को भी प्रभावित करता है। 
  • अवसंरचना की कमी – एक कठोर यथार्थ (Infrastructure Deficit - The Cold Reality): हाल के निवेशों के बावजूद, भारत की कोल्ड चेन अवसंरचना अपर्याप्त बना हुई है। 
    • भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। हालाँकि, अपर्याप्त परिवहन और वितरण अवसंरचना के कारण हर वर्ष इनमें से 25-30% उत्पाद नष्ट या बर्बाद हो जाते हैं। 
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के अनुसार, इस घाटे के कारण प्रतिवर्ष 92,651 करोड़ रुपए मूल्य की फसलोपरांत हानि (post-harvest losses) होती है।  
    • विकास की वर्तमान गति और सुविधाओं का असमान भौगोलिक वितरण प्रसंस्करणकर्ताओं के लिये, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में, गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहा है। 
  • नियामक भूलभुलैया – लालफीताशाही का जाल (Regulatory Labyrinth - Tangled in Red Tape): भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला जटिल और प्रायः अतिव्यापी नियामक ढाँचा गंभीर परिचालनात्मक चुनौतियाँ उत्पन्न करता है। 
    • खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं को FSSAI, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और राज्यस्तरीय एजेंसियों सहित विभिन्न निकायों के विनियमनों से होकर गुज़ारना पड़ता है। 
    • यह नियामक भूलभुलैया न केवल अनुपालन लागत बढ़ाती है, बल्कि विशेष रूप से SMEs के लिये अनिश्चितता भी पैदा करती है। 
    • एकल खिड़की मंज़ूरी प्रणाली (single-window clearance system) का अभाव तथा नियमों में लगातार परिवर्तन से ये चुनौतियाँ और बढ़ जाती हैं, जिससे घरेलू परिचालन एवं निर्यात प्रतिस्पर्द्धा दोनों पर असर पड़ता है। 
  • कौशल अंतराल – ‘द मिसिंग इंग्रेडियेंट’ (Skills Gap - The Missing Ingredient): खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को विभिन्न स्तरों पर कुशल कार्यबल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है। 
    • इस क्षेत्र में रोज़गार सृजन की क्षमता होने के बावजूद विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उद्योग-शैक्षिक जगत सहयोग की कमी के कारण कौशल में भारी असंतुलन पैदा हो रहा है। 
    • भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कार्यरत केवल 3% कर्मचारियों को औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त है। कौशल में यह अंतराल न केवल उत्पाद की गुणवत्ता एवं नवोन्मेष को प्रभावित करता है, बल्कि नई प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण में भी बाधा उत्पन्न करता है। 
    • यह कमी विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा प्रबंधन, गुणवत्ता नियंत्रण और अनुसंधान एवं विकास (R&D) जैसे क्षेत्रों में गंभीर है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने और निर्यात वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये ये क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • पूंजी की कमी – वित्तपोषण की मांग (Capital Crunch - Starved for Funds): खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, विशेषकर MSMEs के लिये पूंजी तक पहुँच एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। 
    • मौसमी प्रभाव, कच्चे माल की शीघ्र नष्ट होने की प्रवृत्ति तथा बाज़ार में अस्थिरता के कारण इस क्षेत्र से जुड़ी उच्च जोखिम धारणा (high risk perception) के कारण ऋण देने के मानदंड कठोर हो जाते हैं तथा ब्याज दरें भी उच्च हो जाती हैं। 
    • पूंजी की कमी के कारण प्रौद्योगिकी उन्नयन, क्षमता विस्तार और अनुसंधान एवं विकास में निवेश सीमित हो जाता है, जबकि प्रतिस्पर्द्धात्मकता और उत्पाद नवोन्मेष की वृद्धि के लिये ये महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • गुणवत्ता की समस्या – मानकों का संघर्ष (Quality Conundrum - The Standards Struggle): भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र असंगत गुणवत्ता मानकों से जूझ रहा है, जिससे घरेलू खपत और निर्यात क्षमता दोनों प्रभावित हो रहे हैं। 
    • FSSAI विनियमनों के बावजूद कार्यान्वयन एक चुनौती बना हुआ है (विशेष रूप से लघु प्रसंस्करणकर्ताओं के बीच)। 
      • गुणवत्ता में यह असंगति न केवल स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा करती है, बल्कि उपभोक्ताओं का भरोसा भी कम करती है। 
    • निर्यात बाज़ार में गुणवत्ता संबंधी मुद्दों के कारण बार-बार अस्वीकृति से भारत की प्रतिष्ठा और बाज़ार पहुँच पर गंभीर असर पड़ता है। 
      • यूरोपीय संघ (EU) के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरणों ने सितंबर 2020 से अप्रैल 2024 के बीच भारत से जुड़े 527 उत्पादों में मिलावट पाई। 
    • भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के बीच सामंजस्य का अभाव निर्यात प्रयासों को और जटिल बनाता है तथा इस क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सीमित करता है। 
  • ‘पैकेजिंग पैराडॉक्स’ – पैकेजिंग संबंधी चुनौतियाँ (Packaging Paradox - Wrapped in Challenges): पैकेजिंग संबंधी नवोन्मेष जहाँ विकास को गति देते हैं, वहीं वे महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करते हैं। 
    • खाद्य पैकेजिंग उद्योग, जो प्रतिवर्ष 13-15% की दर से बढ़ रहा है, संवहनीयता और लागत संबंधी के मुद्दों का सामना कर रहा है। 
    • भारत में लचीली एवं दृढ़ पैकेजिंग (flexible and rigid packaging) कुल प्लास्टिक उपभोग में 59% हिस्सेदारी रखती है, जिसके कारण पर्यावरण संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं। 
    • संवहनीय पैकेजिंग के लिये सरकार के प्रयास (जैसे एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध) तेज़ी से बदलाव ला रहा है, लेकिन उद्योग को लागत-प्रभावी विकल्प की तलाश करने में संघर्ष करना पड़ रहा है। 
    • इससे प्रसंस्करणकर्ताओं के लिये वहनीयता के साथ संवहनीयता के बीच संतुलन का निर्माण करने में गंभीर चुनौती उत्पन्न होती है। 
  • बाज़ार की अस्थिरता – मूल्य का उतार-चढ़ाव (Market Volatility - The Price Rollercoaster): कृषि वस्तुओं में अत्यधिक मूल्य उतार-चढ़ाव खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करता है। 
    • भारत का कृषि बाज़ार, जो मौसमी उत्पादन और जलवायु संबंधी भेद्यताओं से ग्रस्त है, प्रायः मूल्य आघातों का अनुभव करता है। 
    • उदाहरण के लिये, प्रतिकूल मौसमी दशाओं के कारण वर्ष 2023 के मध्य में टमाटर की कीमतें 400% तक बढ़ गईं, जिससे टमाटर आधारित उत्पादों के प्रसंस्करणकर्ताओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा। 
    • ऐसी अस्थिरता के कारण प्रसंस्करणकर्ताओं के लिये लगातार मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जिससे घरेलू बाज़ार की स्थिरता और निर्यात प्रतिबद्धताएँ दोनों प्रभावित होती हैं। 

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें 

  • खाद्य एवं कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयों के साथ-साथ कोल्ड चेन अवसंरचना को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending- PSL) मानदंडों के अंतर्गत प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है। 
  • 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में FDI के लिये स्वचालित मार्ग का अनुमोदन किया गया है। 
  • विशेष खाद्य प्रसंस्करण कोष: राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) के साथ 2,000 करोड़ रुपए के विशेष खाद्य प्रसंस्करण कोष (Special Food Processing Fund) का गठन किया गया है।   
  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना 
  • प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण (PMFME) योजना 
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं? 

  • खाद्य-संकुल का विकास: एकीकृत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के सृजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक संकुल/क्लस्टर विकास दृष्टिकोण लागू किया जाए। 
    • इन संकुलों को रणनीतिक रूप से प्रमुख कृषि उत्पादन क्षेत्रों के निकट अवस्थित होना चाहिये और परिवहन नेटवर्क से निर्बाध रूप से जोड़ा जाना चाहिये। व्यक्तिगत स्थापना लागत को कम करने के लिये कोल्ड स्टोरेज, गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं और अपशिष्ट उपचार संयंत्रों जैसी साझा अवसंरचना स्थापित की जाए। 
    • एक पूर्ण पारितंत्र के निर्माण के लिये इन संकुलों के भीतर पैकेजिंग और लॉजिस्टिक्स जैसे सहायक उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाए। 
    • इस दृष्टिकोण से परिचालन लागत में 25-30% की कमी आ सकती है, संसाधन उपयोग में सुधार हो सकता है और लघु एवं मध्यम प्रसंस्करणकर्ताओं की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि हो सकती है। यह इस क्षेत्र में ग्रामीण-शहरी असमानताओं को भी संबोधित कर सकता है। 
  • टेक-संचालित आपूर्ति शृंखला – ‘फ्रॉम सॉइल टू शेल्फ’ (Tech-Driven Supply Chain - From Soil to Shelf): प्रौद्योगिकी-संचालित, एंड-टू-एंड आपूर्ति शृंखला प्रबंधन प्रणाली में निवेश किया जाए। 
    • ट्रेसिएबिलिटी (traceability), खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चितता और उपभोक्ता भरोसे के निर्माण के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाए। 
    • भंडारण स्थितियों और परिवहन की रियल-टाइम निगरानी के लिये IoT सेंसर को एकीकृत किया जाए। 
    • अपव्यय को कम करने और इन्वेंट्री (inventory) को अनुकूलित करने के लिये AI-संचालित मांग पूर्वानुमान मॉडल का विकास किया जाए। 
    • फसलों की निगरानी के लिये ड्रोन (ड्रोन-दीदी योजना का लाभ उठाते हुए) और उपग्रह छवियों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए, जिससे प्रसंस्करणकर्ताओं को पैदावार का पूर्वानुमान लगाने और उसके अनुसार योजना बनाने में मदद मिलेगी। 
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की वित्तीय पुनर्रचना: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिये एक विशेष वित्तीय ढाँचा विकसित किया जाए। 
    • फसल चक्र के अनुरूप लचीली पुनर्भुगतान शर्तों के साथ क्षेत्र-विशिष्ट ऋण योजनाएँ शुरू की जाएँरें। 
    • बैंकों को लघु एवं मध्यम प्रसंस्करणकर्ताओं को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु एक ऋण गारंटी कोष (credit guarantee fund) का क्रियान्वयन किया जाए। 
    • कर लाभों के माध्यम से फूड-टेक स्टार्टअप्स में निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाए। 
  • गुणवत्ता मानकीकरण: खाद्य प्रसंस्करण मूल्य शृंखला में एक व्यापक गुणवत्ता मानकीकरण कार्यक्रम लागू किया जाए। 
    • निर्यात क्षमता को बढ़ावा देने के लिये भारतीय मानकों को कोडेक्स एलीमेंटेरियस (Codex Alimentarius) जैसे वैश्विक मानदंडों के साथ सुसंगत बनाया जाए। 
    • प्रसंस्करणकर्ताओं के लिये एक स्तरीकृत प्रमाणन प्रणाली लागू किया जाए; उच्च मानकों के लिये आसान बाज़ार पहुँच और वित्तीय लाभ के रूप में प्रोत्साहन प्रदान किया जाए। 
    • दूरदराज के क्षेत्रों और लघु प्रसंस्करणकर्ताओं तक पहुँच बनाने के लिये मोबाइल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएँ। 
    • गुणवत्ता मापदंडों को e-NAM प्लेटफॉर्म में एकीकृत किया जाए, जिससे कृषि उपज का गुणवत्ता-आधारित मूल्य निर्धारण संभव हो सकेगा। 
  • विनियामक सुव्यवस्था – लालफीताशाही को कम करना (Regulatory Streamlining - Cutting the Red Tape): प्रक्रियाओं को सरल और सुव्यवस्थित करने के लिये व्यापक विनियामक सुधार लागू किया जाए। 
    • खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित सभी अनुमोदनों के लिये एकल-खिड़की मंज़ूरी प्रणाली स्थापित की जाए, जहाँ औसत सेटअप समय को 6-8 माह से घटाकर 2-3 माह किया जाए। 
    • रियल-टाइम अपडेट और अनुपालन ट्रैकिंग के लिये सभी नियामक निकायों (FSSAI, APEDA, BIS) को एकीकृत करते हुए एक एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म का विकास किया जाए। 
  • संवहनीय प्रसंस्करण – खेत से लेकर खाने तक हरित (Sustainable Processing - Green from Farm to Fork): खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिये एक व्यापक संवहनीयता ढाँचा विकसित किया जाए। 
    • प्रसंस्करणकर्ताओं के लिये उनके पर्यावरणीय प्रभाव, जल उपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन अभ्यासों के आधार पर एक स्तरीकृत हरित प्रमाणन प्रणाली लागू किया जाए। 
    • प्रसंस्करण इकाइयों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और जल पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाए। 
    • अनुसंधान एवं विकास अनुदान और कर प्रोत्साहन के माध्यम से बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्रियों के विकास एवं अंगीकरण को बढ़ावा दिया जाए। 
  • निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र – वैश्विक स्वाद, स्थानीय जड़ें (Export Ecosystem - Global Flavors, Local Roots): प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों के लिये एक सुदृढ़ निर्यातोन्मुख पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जाए। 
    • निर्यात दस्तावेज़ीकरण के लिये प्लग-एंड-प्ले अवसंरचना और एकल-खिड़की मंज़ूरी के साथ समर्पित निर्यात क्षेत्र स्थापित किये जाएँ। 
    • विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के अनुरूप उत्पाद अनुकूलन, पैकेजिंग और विपणन पर ध्यान केंद्रित करते हुए राष्ट्र-विशिष्ट रणनीति का विकास किया जाए। 
    • वैश्विक मांग, मूल्य प्रवृत्तियों और नियामक परिवर्तनों परियल-टाइम डेटा प्रदान करने वाली एक व्यापक मार्केट इंटेलिजेंस प्रणाली लागू की जाए। 
    • जहाँ PLISFPI की 90% धनराशि अभी भी अप्रयुक्त है, भारत को विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों को आकर्षित करने को प्राथमिकता देनी चाहिये। 
      • यह रणनीति, इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में ‘एप्पल’ की सफलता के समान (जिसने वर्ष 2020 में निर्यात को 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 2023 में 15.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचा दिया और भारत में 400,000 से अधिक रोज़गार अवसर सृजित किये), खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में समान उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकती है। 
  • अनुसंधान एवं विकास में तेज़ी – उन्नति के लिये नवोन्मेष (R&D Acceleration - Innovate to Elevate): बहुआयामी दृष्टिकोण के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा दिया जाए। 
    • अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग जगत के साथ साझेदारी में खाद्य नवोन्मेष प्रयोगशालाओं (Food Innovation Labs) का एक नेटवर्क स्थापित किया जाए। 
    • नवोन्मेष में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के लिये अनुसंधान एवं विकास व्यय पर भारित कर कटौती (weighted tax deduction) लागू की जाए। 
    • पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण तकनीकों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जाए और उनके वैज्ञानिक सत्यापन एवं विस्तार में सहायता प्रदान की जाए। 

अभ्यास प्रश्न: भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों और अवसरों की चर्चा कीजिये। नीतिगत उपाय और प्रौद्योगिकीय प्रगति इन मुद्दों को किस प्रकार संबोधित कर सकती है ताकि क्षेत्र की वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाया जा सके? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत सरकार मेगा फूड पार्क की अवधारणा को किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011)

  1. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्तम अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु।  
  2. खराब होने वाले पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रसंस्करण करने और अपव्यय घटाने हेतु। 
  3. उद्यमियों के लिये उद्यमी और पारिस्थितिकी के अनुकूल आहार प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने हेतु।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकार्यता के क्या कारण हैं? खाद्य प्रक्रमण इकाई गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में किस प्रकार सहायक होगी? (2017)