भारतीय राजव्यवस्था
बंधुत्व की भावना को पुनर्जीवित करना
यह एडिटोरियल 27/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘The challenge of reviving a sense of fraternity’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत के संविधान की प्रस्तावना में शामिल किये गए बंधुत्व के सिद्धांत और बंधुत्व की अवधारणा के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:प्रस्तावना, 42वाँ संशोधन अधिनियम, मौलिक कर्तव्य, संविधान सभा मेन्स के लिये:बंधुत्व का अर्थ, बंधुत्व के आदर्शों को प्राप्त करने की चुनौतियाँ |
बंधुत्व (Fraternity) का अभिप्राय है सभी भारतीयों के सामान्य बंधुत्व की भावना, जो सामाजिक जीवन को एकता और एकजुटता प्रदान करती है।
बंधुत्व का विचार सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity) से घनिष्ठ रूप से संबद्ध है, जिसे सार्वजनिक समानुभूति (Public Empathy) के बिना प्राप्त करना असंभव है।
आचार्य कृपलानी ने रेखांकित किया था कि प्रस्तावना के आधारभूत तत्त्व (Contents) न केवल विधिक और राजनीतिक सिद्धांत थे, बल्कि इनमें नैतिक, आध्यात्मिक और रहस्यवादी तत्व भी शामिल थे।
यह वर्ष 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक आधिकारिक मांग बन गई और अप्रैल 1936 में लखनऊ सत्र में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया। उल्लेखनीय है कि पंडित नेहरू ने ही बाद में ‘उद्देश्य संकल्प’ (Objectives Resolution) का मसौदा तैयार किया था।
संविधान सभा के समापन सत्र में भीम राव अंबेडकर ने संविधान में बंधुत्व के सिद्धांत की मान्यता के अभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि ‘बंधुत्व के बिना समानता और स्वतंत्रता की जड़ें अधिक गहरी नहीं होंगी।’ (‘‘without fraternity, equality and liberty would be no deeper than coats of paint’’)।
संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया गया था जहाँ बंधुत्व को आधारभूत सिद्धांतों में से एक के रूप में चिह्नित किया गया था। हालाँकि, बंधुत्व की अवधारणा को पर्याप्त रूप से समझा नहीं गया है और इसके कर्तव्यों का संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
बंधुत्व की प्राप्ति के मार्ग की चुनौतियाँ
- सामाजिक और सांस्कृतिक मतभेद:
- विभिन्न समुदायों के बीच संस्कृतियों और परंपराओं की विविधता भ्रांति और संघर्ष का कारण बन सकती है।
- यह सामाजिक और सांस्कृतिक अवरोध उत्पन्न कर सकती है जो भ्रातृत्व/भाईचारे की भावना को बाधित करती है।
- उदाहरण के लिये, धार्मिक या जाति-आधारित मतभेदों से अविश्वास, भेदभाव और यहाँ तक कि हिंसा की भी स्थिति बन सकती है। इससे बंधुत्व का क्षरण और समाज का ध्रुवीकरण हो सकता है।
- आर्थिक विषमताएँ:
- समाज के विभिन्न वर्गों के बीच वृहत आर्थिक विभाजन असंतोष और भेदभाव की भावनाओं को जन्म दे सकता है, जिससे नागरिकों में विश्वास और सहयोग की कमी की स्थिति बन सकती है।
- जब लोगों को लगता है कि उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है या उनकी आर्थिक स्थिति उनकी सफलता के लिये बाधा है, तो वे साझा भलाई के लिये सहयोग करने और मिलकर कार्य करने की कम संभावना रखते हैं।
- इससे उस सामाजिक संसंजन (Social Cohesion) का विखंडन हो सकता है जो बंधुत्व का एक मूलभूत पहलू है।
- राजनीतिक मतभेद:
- राजनीतिक विचारधाराएँ समाज में गहरे विभाजन पैदा कर सकती हैं और सहयोग एवं संवाद को बाधित कर सकती हैं।
- राजनीतिक मतभेद ध्रुवीकरण की ओर भी ले जाते हैं, जहाँ लोग राजनीतिक रेखाओं पर गहनता से विभाजित हो जाते हैं।
- यह शत्रुता और असहिष्णुता का माहौल उत्पन्न कर सकता है, जहाँ लोग रचनात्मक संवाद में संलग्न होने या साझा लक्ष्यों की दिशा में कार्य करने के प्रति अनिच्छुक होते हैं।
- विश्वास की कमी:
- विभिन्न समूहों के बीच विश्वास और आपसी समझ की कमी भ्रातृत्व की भावना को कमज़ोर कर सकती है।
- जब लोग एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं या उनमें भ्रांतियाँ होती हैं तो एक साझा लक्ष्य के लिये मिलकर कार्य करना कठिन हो जाता है।
- संवैधानिक नैतिकता की विफलता:
- संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality), जो भारतीय संविधान में निहित मूल्यों पर आधारित है, बंधुत्व को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- संवैधानिक नैतिकता की विफलता से संस्थानों और विधि के शासन के प्रति भरोसा कम होने की स्थिति बन सकती है।
- यह अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल उत्पन्न कर सकता है, जो अंततः समाज में भ्रातृत्व और सामाजिक संसंजन की भावना को कमज़ोर कर सकता है।
- अपर्याप्त नैतिक व्यवस्था:
- लोकतंत्र की सफलता के लिये समाज में एक कार्यशील नैतिक व्यवस्था का होना आवश्यक है। इसमें नैतिक मूल्यों, सामाजिक उत्तरदायित्व और सामाजिक न्याय की भावना का पालन करना शामिल है।
- इस विषय में कोई भी असफलता भ्रातृत्व की भावना के क्षरण का कारण बन सकती है।
- उदाहरण के लिये, यदि व्यक्तियों को अनैतिक कृत्यों के लिये जवाबदेह नहीं ठहराया जाता है, तो इससे नागरिकों के बीच भरोसे का क्षरण हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं जो फिर बंधुत्व को बाधित करती हैं।
बंधुत्व से संबंधित संवैधानिक उपबंध
- प्रस्तावना:
- संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और न्याय के साथ ही बंधुत्व के सिद्धांत को भी शामिल किया गया है।
- मूल कर्तव्य:
- वर्ष 1977 में 42वें संशोधन द्वारा मूल कर्तव्यों से संबंधित अनुच्छेद 51A को शामिल किया गया जिसे वर्ष 2010 में 86वें संशोधन द्वारा संशोधित किया गया।
- अनुच्छेद 51 A(e) में ‘‘भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करने’’ के प्रत्येक नागरिक के कर्तव्य को संदर्भित किया गया है।
भारतीय संदर्भ में बंधुत्व की प्राप्ति के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देना:
- भारत एक समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत संपन्न विविधतापूर्ण देश है। विभिन्न धर्मों/पंथों के बीच संवाद और समझ को प्रोत्साहित करने से बंधुत्व की भावना को बढ़ावा मिल सकता है।
- विविधता का सम्मान करना:
- भारत विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोगों का घर है। मतभेदों का सम्मान करने और विविधता को स्वीकार करने से लोगों को निकट लाने और बंधुत्व की भावना उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है।
- संवैधानिक मूल्यों के बारे में लोगों को शिक्षित करना:
- भारतीय संविधान समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे कई मूल्यों को स्थापित करता है। इन मूल्यों के बारे में लोगों को शिक्षित करने से उनमें बंधुत्व की भावना उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है।
- स्वयंसेवा को प्रोत्साहित करना:
- सामाजिक कारणों के लिये स्वयंसेवा (Volunteering) विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक साथ ला सकती है और उन्हें एक साझा लक्ष्य की दिशा में कार्य करने में मदद कर सकती है, जिससे बंधुत्व की भावना को बढ़ावा मिलता है।
- सामाजिक पहलों का समर्थन करना:
- समावेशिता और समानता को बढ़ावा देने वाली सामाजिक पहलों का समर्थन करने से समाज में बंधुत्व की भावना उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है।
- राष्ट्रीय गौरव की भावना को बढ़ावा देना:
- देशभक्ति और राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देना लोगों को एक साथ ला सकता है और यह बंधुत्व एवं एकता की भावना को बढ़ावा दे सकता है।
निष्कर्ष
- बंधुत्व एक आवश्यक सिद्धांत है जिसके लिये सामूहिक कार्रवाई और सार्वजनिक समानुभूति की आवश्यकता होती है। संविधान बंधुत्व के महत्त्व को स्वीकार करता है, लेकिन इसके निहितार्थों एवं कर्तव्यों के लिये आगे और अधिक विमर्श एवं समझ की आवश्यकता है। भीम राव अंबेडकर ने संविधान के मसौदे में एक कमी की ओर ध्यान आकर्षित किया था और कहा था कि बंधुत्व की प्राप्ति आसान नहीं है।
- सामान्य भावना के मनोवैज्ञानिक तथ्य और बंधुत्व या सहयोग के राजनीतिक सिद्धांत के बीच अंतर करना होगा। संविधान में निहित नैतिक मूल्यों की खोज करके भारत में बंधुत्व की भावना का पुनरुद्धार किया जा सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय संविधान में मौजूद बंधुत्व की अवधारणा का विश्लेषण करें और वर्तमान भारत में बंधुत्व की भावना के पुनरुद्धार के मार्ग की चुनौतियों की चर्चा करें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्र. निम्नलिखित में से कौन सा उद्देश्य भारत के संविधान की प्रस्तावना में सन्निहित नहीं है? (2017) (a) विचार की स्वतंत्रता उत्तर: (b) व्याख्या:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
मेन्सप्र. 'प्रस्तावना' में 'गणराज्य' शब्द से जुड़े प्रत्येक विशेषण पर चर्चा कीजिये। क्या वे वर्तमान परिस्थितियों में परिरक्षण योग्य हैं? (2016) |