लैंगिक वेतन अंतराल की समस्या से निपटना
यह एडिटोरियल 19/03/2023 को ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित “It pays to fix gender wage disparity” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में लैंगिक समानता के मुद्दे और उसे संबोधित करने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत में लैंगिक वेतन अंतराल (Gender Pay Gap) देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच औसत वेतन या आय अर्जन के बीच के अंतर को दर्शाता है। संवैधानिक प्रावधानों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के विभिन्न प्रयासों के बावजूद, भारत में लैंगिक वेतन अंतराल एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।
- केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी ‘भारत में महिला एवं पुरुष 2022’ (Women and Men in India 2022) रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन असमानता बढ़ी है, जहाँ उच्च वेतन स्तरों पर अंतराल और अधिक बढ़ गया है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 (World Inequality Report 2022) में प्रस्तुत वैश्विक आय में लैंगिक असमानता के पहले अनुमान के अनुसार, भारत में पुरुष श्रम आय में 82% हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि महिलाएँ महज 18% हिस्सेदारी रखती हैं।
- लैंगिक वेतन अंतराल को दूर करने के लिये, इस विषय के बारे में अधिक जागरूकता और पैरोकारी की आवश्यकता है, साथ ही ऐसे नीतिगत उपाय करने होंगे जो लैंगिक समानता और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा दें।
लैंगिक वेतन अंतराल के प्रमुख कारण
- व्यावसायिक अलगाव:
- महिलाएँ कम-वेतन वाले व्यवसायों में केंद्रित होती हैं, जैसे कि देखभाल संबंधी और प्रशासनिक कार्य, जबकि पुरुषों को प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और वित्त जैसे उच्च-भुगतान वाले उद्योगों में अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
- भेदभाव:
- महिलाओं को नियुक्ति, पदोन्नति और भुगतान में पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ सकता है, भले ही उनकी योग्यता और अनुभव उनके पुरुष सहयोगियों के बराबर हो।
- कार्यबल भागीदारी:
- बच्चों या वृद्ध रिश्तेदारों की देखभाल के लिये महिलाओं द्वारा कार्य से अवकाश लेने या पार्ट-टाइम कार्य करने की संभावना अधिक होती है, जिससे उनके करियर के रास्ते में रुकावट आ सकती है और कुल कमाई कम हो सकती है।
- सौदेबाजी:
- महिलाओं के लिये उच्च वेतन या लाभ के लिये सौदेबाजी (negotiation) की संभावना कम होती है क्योंकि उनके लिये अवसर कम होते हैं और इसके परिणामस्वरूप उन्हें कम मुआवजा पैकेज प्राप्त हो सकता है।
- शिक्षा और प्रशिक्षण तक सीमित पहुँच:
- महिलाओं की शैक्षिक और प्रशिक्षण के अवसरों तक कम पहुँच हो सकती है जो इन पितृसत्तात्मक मान्यताओं से प्रेरित है कि बालिकाओं एवं महिलाओं को घरेलू कार्य में संलग्न होना चाहिये।
- यह उच्च भुगतान वाली नौकरियों के लिये आवश्यक कौशल और साख (credentials) हासिल करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
- अनियमित घंटों में कार्य असमर्थता:
- कई नौकरियों में कर्मचारियों को अनियमित घंटों में कार्य करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि ओवरटाइम या नाइट शिफ्ट और सुरक्षा कारणों से महिलाएँ अनियमित घंटों में कार्य असमर्थता रखती हैं।
- इसके परिणामस्वरूप महिलाओं की पदोन्नति के मामले में उपेक्षा की जा सकती है या उन पुरुषों की तुलना में कम भुगतान किया जा सकता है जो अधिक लचीले शेड्यूल पर कार्य करने में सक्षम होते हैं।
- कार्य स्थल तक पहुँचने के लिये गतिशीलता की कमी:
- महिलाओं द्वारा परिवहन चुनौतियों का सामना करने की भी अधिक संभावना होती है, जैसे विश्वसनीय परिवहन तक पहुँच की कमी, जो फिर कार्य स्थल तक पहुँचने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है। इसके परिणामस्वरूप महिलाएँ कुछ नौकरियों या उद्योगों से बाहर रखी जा सकती हैं, जो फिर उनकी अर्जन क्षमता को सीमित कर सकता है।
- पारिवारिक उत्तरदायित्वों के कारण अनुभव का अंतराल:
- पुरुषों की तुलना में महिलाएँ बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल के लिये काम से समय निकालने की अधिक संभावना रखती हैं। इसके परिणामस्वरूप अनुभव के अंतराल (Discontinuity of Experience) की स्थिति बन सकती है, जिससे महिलाओं के लिये अपने करियर में आगे बढ़ना और उच्च वेतन अर्जित करना कठिन हो जाता है।
संबंधित पहलें/संवैधानिक प्रावधान
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारत का संविधान अनुच्छेद 39 (d) और अनुच्छेद 42 के तहत पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन की गारंटी देता है। यह अनुच्छेद 15 (1) और अनुच्छेद 15 (2) के तहत लैंगिक भेदभाव पर भी रोक लगाता है।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम:
- समान पारिश्रमिक अधिनियम (Equal Remuneration Act ) वर्ष 1976 में यह सुनिश्चित करने के लिये पारित किया गया था कि पुरुषों और महिलाओं को समान कार्य के लिये समान वेतन प्राप्त हो। यह अधिनियम सभी संगठनों पर लागू होता है, चाहे वे सार्वजनिक हों या निजी, और यह नियमित एवं अनियत दोनों तरह के कर्मचारियों को दायरे में लेता है।
- मातृत्व लाभ अधिनियम:
- मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act) महिला कर्मचारियों के लिये मातृत्व अवकाश और अन्य लाभों का प्रावधान करता है। वर्ष 2017 में इसमें किये गए संशोधन के माध्यम से मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम:
- महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने के लिये यह अधिनियम वर्ष 2013 में पारित किया गया था। यह सभी नियोक्ताओं के लिये शिकायतों के निवारण हेतु एक तंत्र स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने को आवश्यक बनाता है कि वेतन और कार्य दशाओं के मामले में महिलाओं के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
- अन्य:
- वर्ष 2022 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने ‘भुगतान समता नीति’ (pay equity policy) की घोषणा करते हुए कहा कि इसके केंद्रीय रूप से अनुबंधित पुरुष और महिला खिलाड़ियों को समान मैच फीस प्राप्त होगी।
आगे की राह
- विधान को सशक्त करना:
- कार्यस्थल में लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिये मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जा सकता है और नए विधान लाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिये, समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 को समान कार्य के लिये समान वेतन सुनिश्चित करने हेतु अधिक सख्ती से लागू किया जा सकता है।
- प्रशिक्षण और विकास प्रदान करना:
- महिला कर्मचारियों को उनके कौशल एवं ज्ञान में वृद्धि के लिये प्रशिक्षण और विकास के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं, जो उन्हें अपने करियर में आगे बढ़ने तथा बेहतर वेतन पाने के लिये सौदेबाजी कर सकने में सहायता कर सकते हैं।
- महिला सशक्तीकरण:
- महिलाओं को बेहतर अवसर प्रदान करके बेहतर वेतन एवं लाभ के लिये सौदेबाजी कर सकने तथा अपने संगठनों में नेतृत्व की स्थिति प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह लैंगिक भेदभाव के चक्र को तोड़ने में मदद कर सकता है और अधिकाधिक महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिका में ले जा सकता है।
- कार्य का समान वितरण सुनिश्चित करना:
- घरेलू कार्य और बच्चों की देखभाल का बोझ प्रायः महिलाओं पर असंगत रूप से पड़ता है, जो घर से बाहर कार्य कर सकने या अपने करियर में आगे बढ़ने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
- इसे संबोधित करने के लिये, महिलाओं और पुरुषों के बीच घरेलू कार्य और बच्चों की देखभाल के कर्तव्यों के अधिक समान वितरण को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
- माता-पिता अवकाश (parental leave), लचीली कार्य व्यवस्था और वहनीय बाल देखभाल सेवाओं जैसी नीतियों के माध्यम से इसकी पूर्ति की जा सकती है।
अभ्यास प्रश्न: संवैधानिक प्रावधानों और विभिन्न प्रयासों के बावजूद, भारत में लैंगिक वेतन अंतराल अभी भी बना हुआ है। लैंगिक वेतन अंतराल के लिये ज़िम्मेदार कारकों का विश्लेषण करें और देश में इस मुद्दे को हल करने के लिये आवश्यक उपायों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
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