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एडिटोरियल

  • 27 Jul, 2023
  • 18 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की चक्रीय क्रांति

यह एडिटोरियल 26/07/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Moving away from the ‘take-make-dispose’ model’’ लेख पर आधारित है। इसमें चक्रीय अर्थव्यवस्था के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

चक्रीय अर्थव्यवस्था, सतत् विकास लक्ष्य, G-20, प्रधानमंत्री जी-वन योजना, गोबर धन योजना, SATAT योजना, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, चक्रीय अर्थव्यवस्था के लाभ

संसाधन दक्षता (Resource efficiency) और चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) वे प्रभावशाली रणनीतियाँ हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता को प्रभावी ढंग से न्यूनतम कर सकती हैं, अपशिष्ट को कम कर सकती हैं और सतत/संवहनीय डिज़ाइन अभ्यासों को प्रोत्साहित कर सकती हैं। 

सतत् विकास सुनिश्चित करने और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को साकार करने के सामूहिक वैश्विक प्रयास में संसाधन उपयोग को आर्थिक विकास से पृथक करना महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा। ‘टेक-मेक-डिस्पोज़’ (take-make-dispose) से ‘रिड्यूज़-रीयूज़-रीसाइक्लिंग’ (reduce-reuse-recycle) मॉडल की ओर आगे बढ़ने की आवश्यकता को चिह्नित करते हुए भारत ने G-20 फोरम में विचार-विमर्श के लिये तीन मुख्य विषयों में से एक के रूप में ‘संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था’ को प्राथमिकता दी है  

भारत ने अपनी G-20 अध्यक्षता के दौरान चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिये चार प्राथमिकता क्षेत्रों को अपनाया है: इस्पात क्षेत्र में चक्रीयता (circularity in the steel sector); विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR); चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था (circular bioeconomy) और एक औद्योगिक नेतृत्व वाली संसाधन दक्षता एवं चक्रीय अर्थव्यवस्था उद्योग गठबंधन (industry-led resource efficiency and circular economy industry coalition) की स्थापना करना। G-20 समुदाय के भीतर संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था रणनीतियों को अब अधिकाधिक महत्त्व से देखा जा रहा है। 

इस्पात क्षेत्र में चक्रीय अर्थव्यवस्था का महत्त्व: 

  • अवसंरचना और औद्योगिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण सामग्री: 
    • इस्पात निर्माण, विनिर्माण और परिवहन सहित विभिन्न क्षेत्रों के लिये एक मूलभूत निर्माण सामग्री है। 
    • जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाओं का विकास होता है, इस्पात की माँग बढ़ती जाती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। 
  • ऊर्जा क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन: 
    • वैश्विक स्तर पर, ऊर्जा क्षेत्र के कुल उत्सर्जन के लगभग 7% भाग के लिये लौह एवं इस्पात उत्पादन को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। 
    • पारंपरिक रैखिक उत्पादन मॉडल (linear production model) उच्च संसाधन खपत और उत्सर्जन की ओर ले जाता है, जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण में योगदान करता है। 
  • अपशिष्ट उत्पादन को कम करना: 
    • चक्रीय प्रणाली का उद्देश्य संपूर्ण इस्पात उद्योग में अपशिष्ट उत्पादन को कम करना और उत्तरदायी अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना है। 
    • इस्पात क्षेत्र में चक्रीय अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण अपनाकर अपशिष्ट निपटान और ‘लैंडफिलिंग’ से जुड़े पर्यावरणीय प्रभाव को काफी कम कर सकता है। 
  • सतत् विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देना: 
    • चक्रीय इस्पात अर्थव्यवस्था से उत्तरदायी उपभोग एवं उत्पादन को बढ़ावा मिलना, जलवायु कार्रवाई और सतत् विकास के लिये साझेदारियों सहित संयुक्त राष्ट्र के कई सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान होगा। 

EPR: 

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) एक ऐसी अवधारणा है जो उत्पादकों को उनके उत्पादों के पर्यावरणीय परिणामों के लिये आरंभ से लेकर अंत तक ज़िम्मेदार ठहराती है। 
  • इसका उद्देश्य अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना और स्थानीय प्राधिकारों पर दबाव कम करना है। 
  • यह उत्पाद की कीमतों में पर्यावरणीय लागत को दर्शाता है और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों के निर्माण को प्रेरित करता है। 
  • EPR विभिन्न अपशिष्ट पर लागू होता है, जैसे प्लास्टिक अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट और बैटरी अपशिष्ट। 
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 में भारत में पहली बार EPR की अवधारणा पेश की गई थी। 

EPR से चक्रीयता को कैसे बढ़ावा मिल सकता है? 

  • इको-डिज़ाइन और संवहनीय सामग्रियों को प्रोत्साहन मिलना: 
    • अपनी विस्तारित ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिये, उत्पादकों को ऐसे उत्पाद डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है जो अधिक टिकाऊ, मरम्मत योग्य और पुन:प्रयोज्य हों। 
    • इको-डिज़ाइन सिद्धांतों को यह सुनिश्चित करने के लिये एकीकृत किया गया है कि उत्पादों का जीवनकाल लंबा हो और कम अपशिष्ट उत्पन्न हो। 
  • संसाधन संरक्षण और अपशिष्ट न्यूनीकरण: 
    • EPR उत्पादकों को संसाधन खपत को कम करने के लिये प्रेरित करता है, क्योंकि वे अपशिष्ट प्रबंधन और अपने उत्पादों के ‘एंड-ऑफ़-लाइफ ट्रीटमेंट’ से जुड़ी लागत का वहन करते हैं। 
    • परिणामस्वरूप, उन्हें पुनर्चक्रित सामग्रियों का उपयोग करने और अधिक संवहनीय उत्पादन प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे नए संसाधनों या ‘वर्जिन रिसोर्स’ की मांग कम हो जाती है। 
  • पुनर्चक्रण अवसंरचना को बढ़ावा देना: 
    • निर्माता, अपनी ज़िम्मेदारी के एक भाग के रूप में, यह सुनिश्चित करने के लिये प्रायः पुनर्चक्रण अवसंरचना की स्थापना एवं समर्थन करते हैं कि उनके उत्पादों को उनके उपयोगी जीवनकाल के अंत में प्रभावी ढंग से संग्रहीत, वर्गीकृत और पुनर्चक्रित किया जाता है। 
    • यह एक क्लोज़्ड-लूप प्रणाली में योगदान देता है और सामग्रियों को संचलन या चक्रण में बनाये रखकर चक्रीयता को बढ़ावा देता है। 
  • ‘टेक-बैक’ और ‘रिकवरी’ कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना: 
    • EPR योजनाओं के लिये प्रायः आवश्यक होता है कि उत्पादक ‘टेक-बैक’ और ‘रिकवरी’ कार्यक्रमों की स्थापना करें, जहाँ उपभोक्ता उपयोग किये जा चुके उत्पादों को वापस कर सकते हैं। 
    • यह अभ्यास सुनिश्चित करता है कि उत्पादों को उनके उपयोग के बाद पुनर्चक्रण, नवीनीकरण या सुरक्षित निपटान के माध्यम से ठीक से प्रबंधित किया जाता है। 
  • पुनर्चक्रित सामग्रियों के लिये बाज़ार का सृजन करना: 
    • चूँकि निर्माता अपने उत्पादों के एंड-ऑफ़-लाइफ के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार हैं, इसलिये उन्हें पुनर्नवीनीकृत सामग्री को अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं में वापस शामिल करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। 
    • यह, बदले में, पुनर्नवीनीकृत सामग्री की मांग को उत्तेजित करता है; इस प्रकार, एक चक्रीय आपूर्ति शृंखला का समर्थन करता है। 
  • सरकार और उद्योग के बीच सहयोग निर्माण: 
    • EPR सरकारों, उद्योगों और अन्य हितधारकों के बीच गहन सहयोग पर निर्भर करता है। 
    • साथ मिलकर वे अधिक प्रभावी और व्यापक EPR नीतियाँ विकसित कर सकते हैं, जिससे एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर सहज संक्रमण संभव हो सकेगा। 

चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था के लाभ: 

  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी आना: 
    • चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था (Circular Bioeconomy) जैव-आधारित उत्पादों एवं जैव-ऊर्जा का उत्पादन करने के लिये पादपों, शैवाल और कृषि अपशिष्ट जैसे नवीकरणीय जैविक संसाधनों पर निर्भर करती है। 
    • जीवाश्म ईंधन के बजाय इन संसाधनों का उपयोग करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के शमन में मदद मिलती है। 
  • संसाधन दक्षता और संरक्षण: 
    • चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था एक क्लोज़्ड-लूप प्रणाली के सिद्धांतों का पालन करती है, जहाँ एक प्रक्रिया के अपशिष्ट और सह-उत्पाद दूसरी प्रक्रिया के लिये मूल्यवान संसाधन बन जाते हैं। 
    • संसाधनों का यह कुशल उपयोग अपशिष्ट उत्पादन को कम करता है और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम करता है, जिससे अधिक सतत् संसाधन प्रबंधन की स्थिति प्राप्त होती है। 
  • सतत् कृषि और वानिकी: 
    • चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था संबंधी अभ्यास सतत् कृषि और वानिकी अभ्यासों को प्रोत्साहित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, जैव-ऊर्जा या जैव उत्पादों के लिये फसल अवशेषों का उपयोग करने से मृदा में कार्बनिक पदार्थ को बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार होता है। 
  • हरित रोज़गार सृजन: 
    • चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण से कृषि, वानिकी, जैव-आधारित उद्योग, अनुसंधान और अपशिष्ट प्रबंधन सहित विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर सृजित होते हैं। 
      • यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है और सामाजिक विकास में योगदान करता है। 
  • नवाचार और तकनीकी प्रगति: 
    • चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था नवाचार को बढ़ावा देती है और सतत् प्रौद्योगिकियों एवं जैव प्रसंस्करण विधियों में अनुसंधान व विकास को प्रोत्साहित करती है। 
      • यह तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देती है जिससे विभिन्न उद्योगों को लाभ प्राप्त हो सकता है। 
  • जलवायु परिवर्तन शमन: 
    • बायोमास से प्राप्त सतत् जैव-ऊर्जा विभिन्न अनुप्रयोगों में जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित करने में मदद कर सकती है; इस प्रकार, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में मदद कर सकती है। 
    • भारत सरकार प्रधानमंत्री जी-वन योजना, गोबर धन योजना, SATAT योजना आदि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जैव ईंधन, बायोगैस और बायो-कंपोस्ट को अपनाने की दिशा में कार्य कर रही है। 
  • बेहतर खाद्य सुरक्षा: 
    • चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था कृषि अवशेषों और अपशिष्टों को खाद्य उत्पादन से हटाने के बजाय जैव-आधारित उत्पादों के लिये फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करने के माध्यम से बेहतर खाद्य सुरक्षा में योगदान कर सकती है। 

चक्रीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियाँ:  

  • अवसंरचना और प्रौद्योगिकी: 
    • पुनर्चक्रण एवं अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना का विकास एवं उन्नयन, साथ ही संसाधन पुनर्प्राप्ति के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाना एक बड़ी चुनौती सिद्ध हो सकती है। 
  • व्यवहार परिवर्तन: 
    • उत्तरदायी उपभोग, उत्पाद के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के प्रति उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिये प्रभावी संचार एवं व्यवहार परिवर्तन अभियानों की आवश्यकता है। 
  • नियामक ढाँचा: 
    • विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय अर्थव्यवस्था अभ्यासों का समर्थन करने के लिये प्रभावी एवं सामंजस्यपूर्ण नीतियों, विनियमों और प्रोत्साहनों को सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है। 
  • वित्तीय निवेश: 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था परियोजनाओं को प्रायः उल्लेखनीय अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है। इन पहलों के वित्तपोषण के लिये निजी और सार्वजनिक निवेश आकर्षित करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है। 

आगे की राह:  

  • डेटा और केस स्टडीज़ को शामिल करना: 
    • ठोस साक्ष्य और उदाहरण प्रदान करने के लिये, भारत में विशिष्ट चक्रीय अर्थव्यवस्था परियोजनाओं और उनके परिणामों को प्रदर्शित करने वाले डेटा एवं केस स्टडीज़ को शामिल करने पर विचार करना चाहिये। 
  • चुनौतियाँ और समाधान: 
    • भारत में चक्रीय अर्थव्यवस्था अभ्यासों के कार्यान्वयन के दौरान सामने आने वाली चुनौतियों को हल करना। 
    • उन संभावित समाधानों और रणनीतियों को शामिल करना जिन्हें देश इन चुनौतियों से निपटने के लिये अपना रहा है। 
  • हितधारकों के दृष्टिकोण को शामिल करना: 
    • भारत में चक्रीयता को बढ़ावा देने से संलग्न सरकारी अधिकारियों, उद्योग जगत के नेताओं, पर्यावरण विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों के वक्तव्यों या दृष्टिकोणों को शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिये। 
    • इससे इस विषय में गहराई और प्रामाणिकता प्राप्त होगी। 
  • संक्षिप्त और स्पष्ट नीतिगत ढाँचा: 
    • संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये भारत द्वारा लागू किये गए नीतिगत ढाँचे और नियामक उपायों का एक संक्षिप्त एवं स्पष्ट अवलोकन प्रदान किया जाना चाहिये। 

अभ्यास प्रश्न: विद्यमान विभिन्न चुनौतियों से निपटने के सामूहिक प्रयासों में चक्रीय अर्थव्यवस्था एक प्रमुख समाधान के रूप में उभरी है। टिप्पणी कीजिये।  

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्वपूर्ण विशेषता के रूप में ‘विस्तारित उत्पादक दायित्व’ आरंभ किया गया था? (2019)

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (निर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमन, 2011

उत्तर: (c)


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