एडिटोरियल (27 Jul, 2021)



भारतीय सशस्त्र बलों का पुनर्गठन

यह एडिटोरियल 26/07/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Getting India's military convergence formula right’’ लेख पर आधारित है। इसमें सशस्त्र बलों के पुनर्गठन के समक्ष मौजूद समस्याओं और प्रभावी रक्षा क्षमता के लिये उनके समाधान के संबंध में चर्चा की गई है।

दो मोर्चों पर युद्ध (संयुक्त रूप से चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध) के खतरे से उत्पन्न प्रमुख भू-रणनीतिक चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में भारत परमाणु युद्ध से लेकर उप-पारंपरिक युद्ध तक संघर्ष के पूर्ण दायरे में विस्तृत जटिल खतरों एवं चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस प्रकार, अपने संसाधनों के प्रभावी और कुशल उपयोग के लिये भारत को सशस्त्र बलों के पुनर्गठन की आवश्यकता है।

इस बीच, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत द्वारा भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) को भारतीय थल सेना (Indian Army) की एक सहायक इकाई मात्र कहना और इस पर वायु सेना प्रमुख की आपत्ति सशस्त्र बलों की पुनर्गठन प्रक्रिया को चिह्नित करने वाली कठिन यात्रा की नवीनतम गुत्थी के रूप में सामने आई।      

इस प्रकार, सैन्य संगठन में सुधार विभिन्न चुनौतियों से जूझ रहा है जिन्हें हल किये जाने की आवश्यकता है।

सशस्त्र बलों के पुनर्गठन के समक्ष विद्यमान समस्याएँ

  • तालमेल की समस्या: घटते बजट, तेज़ी से बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और प्रौद्योगिकी के बढ़ते दखल के साथ सशस्त्र बल तालमेल की आवश्यकता को तो समझते हैं, लेकिन स्वाभाविक मानवीय दोष इस तालमेल के बीच अवरोध उत्पन्न करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, विभिन्न सैन्य सेवाएँ जहाँ एक ही स्थान पर आधारित हैं, वहाँ भी उनके बीच सह-अस्तित्व का सुमेल नहीं है। भूमि, भवन, सुविधाओं आदि को लेकर आपसी संघर्ष इनके बीच इष्टतम परिचालन तालमेल को प्रभावित करता है।
  • संतोषजनक परिचालन चार्टर का अभाव: एक-दूसरे को सर्वश्रेष्ठ सहयोग देने या एक-दूसरे के साथ कार्य करने की इच्छा का अभाव है।  
    • उदाहरण के लिये अंडमान और निकोबार कमान में जहाँ संतोषजनक परिचालन चार्टर की कमी है वहीं सैन्य सेवाएँ भी वहाँ उपयुक्त संख्या में कर्मियों एवं पर्याप्त संसाधनों की तैनाती में रुचि नहीं रखतीं।    
    • इसके अलावा, चूँकि एक संयुक्त कार्यकाल से कॅरियर में कोई लाभ नहीं होता, इसलिये कोई भी इसकी इच्छा नहीं रखता।
  • चरम अभाव और सिकुड़ती हुई अर्थव्यवस्था: चरम अभाव और सिकुड़ती हुई अर्थव्यवस्था (जिसे जारी कोविड महामारी ने और अधिक प्रभावित किया है) के समय भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान के समक्ष सबसे बड़ी समस्या मौद्रिक या वित्त की कमी है।   
  • भौतिक और मानवीय संसाधनों की कमी: मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, यदि पुराने पड़ चुके विमानों को गिनती में शामिल कर लें तो भी भारतीय वायु सेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या आवश्यकता से 25% कम है।
    • अखिल भारतीय सेवा में लगभग 400 पायलटों की कमी (उनकी अधिकृत क्षमता का लगभग 10%) इस समस्या को और बढ़ाती है।
    • इसलिये, IAF ने संसाधनों के बँटवारे के विरुद्ध आगाह किया है, क्योंकि बँटवारे के लिये पर्याप्त संसाधन ही नहीं है।
  • सेवाओं के बाह्य उपयोग की संभावना: केवल संसाधनों की कमी ही भारतीय वायु सेना की आपत्तियों के मूल में नहीं है बल्कि इनके सेवा क्षेत्र के बाहर भी IAF के लिये परिचालन योजनाएँ बनाए जाने की संभावना है। 

पूरक शक्ति के रूप में वायु सेना

  • ऐतिहासिक कारणों से थल सेना और नौसेना वायु सेना को पूरक शक्ति (Supplementary Power) के रूप में देखते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुभव का विश्लेषण करते हुए वायु शक्ति सिद्धांतकार टामी डेविस बिडल ने वर्ष 2019 में लिखा था कि 'हवाई बमबारी ज़मीनी परिदृश्य को नियंत्रित नहीं कर सकती।
  • निरोध और सामर्थ्य दोनों के लिये ही यह एक महत्त्वपूर्ण एवं व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला सैन्य साधन है। हालाँकि, परिणाम दे सकने की इसकी क्षमता भिन्न होती है तथा रणनीतिकारों को उन परिस्थितियों को समझना चाहिये जहाँ विशेष परिणाम या राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करने की इसकी क्षमता कम या अधिक होगी।
  • युद्ध की स्थिति में थल या जल पर कब्ज़ा और नियंत्रण आवश्यक है।
  • वियतनाम से लेकर अफगानिस्तान तक के उदाहरण में वायु शक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका को इच्छित परिणाम दे सकने में विफल रही। लेकिन हर कोई यह स्वीकार करता है कि वायु शक्ति जीत में कितनी मदद कर सकती है।

तीनों सेवाओं के दृष्टिकोण में अंतर

थल सेना – पक्ष समर्थन:

  • यह अभियान के प्रति सेवा विशिष्ट दृष्टिकोण से दूर एक ऐसी प्रणाली की ओर आगे बढ़ने का उपयुक्त समय है जो कार्रवाई के दोहराव से बचाती है और उपलब्ध संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करती है।

वायु सेना – सख्त विरोध: 

  • इसके पास फाइटर स्क्वाड्रन, मिड-एयर रिफ्यूलर और AWACS आदि के रूप में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं जिन्हें वह अलग-अलग थिएटर कमांडरों को समर्पित रूप से आवंटित कर सके।
  • वायु सेना मानती है कि भारत भौगोलिक रूप से इतना बड़ा नहीं है कि इसे विभिन्न थिएटरों में विभाजित किया जाए, क्योंकि एक थिएटर से दूसरे थिएटर तक संसाधनों को आसानी से ले जाया जा सकता है।

नौसेना - अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण: 

  • वर्तमान में यह भी प्रस्ताव को लागू करने के पक्ष में नहीं है।  
  • नौसेना मुख्यालय द्वारा नियंत्रण का वर्तमान मॉडल इसकी रणनीतिक भूमिका के लिये आदर्शतः अनुकूल है।
  • लघु सेवाओं की स्वायत्तता और महत्त्व खोने को लेकर भी अंतर्निहित आशंकाएँ मौजूद हैं।

आगे की राह

  • व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति: विभिन्न सैन्य सेवाओं को उनके संबंधित क्षेत्रों में आवश्यक क्षमता विकसित करने के लिये मार्गदर्शन देने हेतु एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (Comprehensive National Security Strategy) अपनाए जाने की आवश्यकता है।   
  • व्यावसायिक शिक्षा का रूपांतरण: अन्य सेवाओं के प्रति वास्तविक सम्मान की भावना को पोषित करने के लिये व्यावसायिक शिक्षा में रूपांतरण और अंतर-सेवा बहाली व्यवस्था को अपनाया जा सकता है। 
  • मतभेदों को दूर करना: सशस्त्र बलों को अपने मतभेदों को आपस में सुलझाना चाहिये, क्योंकि राजनेता या नौकरशाह ऐसा करने में सक्षम नहीं होंगे। 
  • पर्याप्त मानव संसाधन की आवश्यकता: शीर्ष संयुक्त संगठनों में पर्याप्त संख्या में गुणवत्तायुक्त कर्मियों की नियुक्ति सुनिश्चित करना ताकि अलग-अलग सेवाओं और संबद्ध व्यक्तियों को आश्वस्त किया जा सके कि उनके हितों को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा। 
  • समस्या विशिष्ट समाधान: इस तथ्य को भी स्वीकार किये जाने की आवश्यकता है कि जो प्रणाली अन्य देशों के लिये उपयोगी है, संभव है वह हमारे लिये उपयुक्त न हो। हमें अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप समाधानों और इसके लिये अधिक व्यावहारिक सोच की आवश्यकता है।
    • वास्तविक सैन्य संयुक्तता के लिये अलग-अलग दृष्टिकोणों का वास्तविक अभिसरण महत्त्वपूर्ण है।
  • स्पष्ट और लिखित अवधारणाएँ: प्रमुख पुनर्गठन कार्रवाइयों को लिखित अवधारणाओं के अनुक्रम का कठोर अनुपालन करना चाहिये। कार्यान्वयन से पूर्व उनका परिष्करण परामर्श, अनुकरण या रणनीतिक मनन, क्षेत्र मूल्यांकन और एक अंतिम विश्लेषण के माध्यम से किया जाना चाहिये।   
    • इससे कमान और नियंत्रण, परिसंपत्ति पर्याप्तता, व्यक्तिगत सेवा भूमिकाएँ, नई परिस्थितियों में परिचालन योजना तथा संयुक्त संरचनाओं की पर्याप्तता को संबोधित करने में मदद मिलेगी।
    • थल सेना और वायु सेना के पास पश्चिमी कमान, थल सेना के पास उत्तरी कमान, नौसेना के पास समुद्री कमान तथा वायु सेना के पास वायु रक्षा कमान एक स्वीकार्य सूत्र हो सकता है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय सुरक्षा की बदलती गतिशीलता—जिसमें वर्तमान में साइबर, ऑटोमेशन और ऐसी अन्य नई चुनौतियाँ भी शामिल हैं, को एक असंबद्ध या भ्रमित जनरल द्वारा हल नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे एक स्पष्ट और सुदृढ़ संरचना की आवश्यकता है जो आकस्मिक स्थितियों में त्वरित कार्रवाई कर सके।

Diffused-Strength

अभ्यास प्रश्न: वास्तविक सैन्य एकीकरण के लिये अलग-अलग दृष्टिकोणों का वास्तविक अभिसरण आवश्यक है। एकीकृत थिएटर कमान के सृजन के संदर्भ में इस कथन पर विचार कीजिये।