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एडिटोरियल

  • 27 Mar, 2023
  • 16 min read
शासन व्यवस्था

मीडिया का पूर्वाग्रह और लोकतंत्र

यह एडिटोरियल 24/03/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Press must remain free if a country is to remain a democracy....” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे और इसे संबोधित करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

राज्य की अवधारणा में मीडिया को चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है और इस प्रकार यह लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक कार्यशील और स्वस्थ लोकतंत्र को एक ऐसी संस्था के रूप में पत्रकारिता के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये जो व्यवस्था (establishment) से कठिन प्रश्न पूछ सके—या जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है, ‘‘सत्य के पक्ष में सत्ता के समक्ष खड़े हो (speak truth to power)।’’

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य के अधिकार की गारंटी देता है और आमतौर पर राज्य के विरुद्ध लागू होता है। हालाँकि, संवैधानिक संरक्षण के बावजूद भारत में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिनमें सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और गैर-राज्य अभिकर्ताओं की ओर से धमकी, हमले और भयादोहन शामिल हैं।
  • मीडिया वह इंजन है जो सत्य, न्याय और समानता की तलाश के साथ लोकतंत्र को आगे बढ़ाता है। आज के डिजिटल युग में, तेज़ी से बदलते मीडिया परिदृश्य से उत्पन्न चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिये पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग में सटीकता, निष्पक्षता और उत्तरदायित्व के मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता है।

लोकतंत्र को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका

  • सूचना प्रदान करना:
    • मीडिया नागरिकों को राजनीतिक मुद्दों, नीतियों और घटनाओं के बारे में सूचित करता है, जिससे उन्हें अपने नेताओं और सरकार के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय ले सकने का अवसर मिलता है।
  • नेताओं को जवाबदेह बनाए रखना:
    • मीडिया एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है, जो सरकारी अधिकारियों के कार्यों की संवीक्षा करता है और उन्हें उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराता है।
  • सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करना:
    • मीडिया सार्वजनिक बहस और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के लिये मंच प्रदान करता है, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।
  • विविध दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करना:
    • मीडिया को विभिन्न परिप्रेक्ष्यों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करना चाहिये, जिससे नागरिकों की विविध मतों और विचारों तक पहुँच हो सके।
  • नागरिकों को शिक्षित करना:
    • मीडिया को नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना चाहिये; उन्हें यह समझने में मदद करनी चाहिये कि सरकार कैसे कार्य करती है और नागरिक कैसे इसमें प्रभावी भागीदारी कर सकते हैं।

लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका से संबद्ध चुनौतियाँ

  • मीडिया पूर्वाग्रह:
    • मीडिया पूर्वाग्रह (Media Bias) आम जनता के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली सूचना को विकृत कर सकता है, जिससे निष्पक्षता की कमी और उपलब्ध सूचना में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीकृत जनमत (polarized public opinion) और मीडिया के प्रति भरोसे की कमी की स्थिति बन सकती है।
    • भारत में मुख्यधारा की मीडिया प्रायः सरकार समर्थक या पूर्णरूपेण सरकार विरोधी रुख से ग्रस्त रही है, जहाँ वे चरम दृष्टिकोण रखते हैं और संतुलन साधने का प्रयास नहीं करते, बल्कि आम लोगों से संबंधित मुद्दों की उपेक्षा ही करते हैं।
  • ‘फेक न्यूज़’:
    • सोशल मीडिया के उदय ने फर्ज़ी ख़बरों या फेक न्यूज़ (Fake News) के तीव्र प्रसार को आसान बना दिया है, जिससे प्रायः जनता में भ्रम और भ्रामक सूचना का प्रसार होता है।
    • यह मीडिया की विश्वसनीयता को कम कर सकता है और प्रस्तुत की जाने वाली सूचना के प्रति भरोसे की कमी को जन्म दे सकता है।
      • हाल ही में हरियाणा में गौरक्षकों द्वारा गोवंश के अवैध परिवहन, तस्करी या उनके वध के संदेह के आधार पर दो लोगों की हत्या कर दी गई जो ‘मॉब लिंचिंग’ के मुद्दे को उजागर करता है।
  • कॉर्पोरेट प्रभाव:
    • मीडिया आउटलेट प्रायः बड़े कॉर्पोरेट के स्वामित्व में होते हैं, जो मीडिया की संपादकीय नीतियों और रिपोर्टिंग को प्रभावित कर सकते हैं। इससे दृष्टिकोणों की विविधता की कमी की स्थिति बन सकती है और सार्वजनिक हित के बजाय लाभ पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • सरकारी सेंसरशिप:
    • सरकारें सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करने और असंतोष को दबाने के लिये ‘सेंसरशिप’ का प्रयोग कर सकती हैं। इससे सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी की स्थिति बन सकती है और मीडिया की एक ‘प्रहरी’ के रूप में कार्य करने की क्षमता सीमित हो सकती है।
  • वैधता का मुद्दा:
    • मीडिया संस्थानों के लिये सुशोधित और जटिल ख़बरें प्रदान करने के लिये एक विविध एवं प्रतिनिधिक न्यूज़रूम आवश्यक है जो विभिन्न दृष्टिकोणों एवं आवाज़ों तक पहुँच सके।
    • मीडिया के साथ वैधता (legitimacy) का मुद्दा इस चिंता को संदर्भित करता है कि मीडिया संस्थान अनिवार्य रूप से हमेशा सटीक, निष्पक्ष या सत्यनिष्ठ सूचना ही नहीं प्रदान करते।
      • यह राजनीतिक पूर्वाग्रहों, व्यावसायिक हितों, सनसनीखेज प्रवृत्ति और पत्रकारिता मानकों की कमी जैसे विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकता है।
  • लैंगिक विविधता:
    • मीडिया में लैंगिक विविधता की कमी एक और महत्त्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर विचार किया जाना चाहिये। मीडिया संगठनों के स्वामित्व और कार्यबल दोनों में ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है, जो मीडिया में दृष्टिकोण और आवाज़ की विविधता को सीमित करता है। यह लैंगिक रूढ़िवादिता को भी कायम रखता है और पितृसत्तात्मक मानदंडों को पुष्ट करता है।
  • ‘मीडिया ट्रायल’:
    • ऐसे दृष्टांत सामने आते रहे हैं जब मीडिया ने ऐसे आख्यान चलाए हैं जो अदालत द्वारा किसी व्यक्ति को दोषी सिद्ध किये जाने से पहले ही उसे जनता की नज़रों में दोषी बना देते हैं।
    • उदाहरण:
      • भारत में मीडिया ट्रायल का एक प्रसिद्ध उदाहरण वर्ष 2008 के आरुषि तलवार-हेमराज दोहरे हत्याकांड का है। इस मामले को व्यापक मीडिया कवरेज मिला और मीडिया ने जनता की राय को आकार देने और आगे की जाँच एवं अदालती कार्यवाही को प्रभावित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
    • मीडिया ट्रायल का प्रभावित व्यक्तियों के जीवन के साथ-साथ सम्यक प्रक्रिया पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
      • मीडिया और न्यायिक स्वतंत्रता के बीच संबंधों पर मैड्रिड सिद्धांतों (Madrid Principles on the Relationship Between the Media and Judicial Independence) के अनुसार, यह मीडिया का कार्य है कि ‘‘वह निर्दोषिता की धारणा (presumption of innocence) का उल्लंघन किये बिना सुनवाई के पहले, इसके दौरान या इसके बाद जनता तक सूचना पहुँचाए और न्याय प्रक्रिया पर टिप्पणी करे।’’

आगे की राह

  • तथ्य की शुद्धता और तथ्य-परीक्षण को बढ़ावा देना:
    • यह पत्रकारों के साथ-साथ अन्य हितधारकों की सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि वे रिपोर्टिंग की प्रक्रिया से पूर्वाग्रह के किसी भी तत्त्व को अलग करें।
    • रिपोर्टिंग से पहले सभी समाचारों को सत्यापित करने के लिये एक व्यापक तथ्य-परीक्षण तंत्र (fact-checking mechanism) होना चाहिये। समाचार प्रकाशित करते समय मीडिया संस्थानों से सतर्कता बरतने की अपेक्षा की जाती है।
  • विविध दृष्टिकोण प्रदान करना:
    • मीडिया को यह सुनिश्चित करने के लिये विविध आवाज़ों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करना चाहिये कि सभी दृष्टिकोणों को सुना जाए और उन पर विचार किया जाए। यह अधिक सूचना-संपन्न और संलग्न नागरिक वर्ग को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
  • सत्तारूढ़ लोगों में जवाबदेह बनाए रखना:
    • मीडिया की प्रमुख भूमिकाओं में से एक है सत्तारूढ़ लोगों के कार्यों एवं निर्णयों की रिपोर्टिंग करके उन्हें जवाबदेह बनाए रखना। इसमें भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की जाँच करना भी शामिल है।
  • सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देना:
    • मीडिया बहस और चर्चा के लिये एक मंच प्रदान कर सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह विभिन्न समूहों के बीच समझ एवं संवाद को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, जिससे अधिक सूचना-संपन्न और समावेशी निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • पक्षपात से बचना:
    • मीडिया को अपनी रिपोर्टिंग में पक्षपात से बचने का प्रयास करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी पक्षों द्वारा इसे न्यायपूर्ण और निष्पक्ष माना जाए। यह मीडिया के प्रति भरोसा जगाने और लोकतंत्र में इसकी भूमिका को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
  • पत्रकारों के ऑनलाइन उत्पीड़न के मुद्दे को संबोधित करना:
    • सोशल मीडिया के उभार के साथ पत्रकारों को ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। इससे उनकी सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। भारत को इस मुद्दे के समाधान के लिये उपाय करने और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • मीडिया साक्षरता को प्रोत्साहित करना:
    • जहाँ लोकतंत्र को बढ़ावा देने में मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, वहीं नागरिकों की भी यह ज़िम्मेदारी है कि वे आलोचनात्मक तरीके और समझदारी से समाचारों का उपभोग करें। मीडिया साक्षरता कार्यक्रम नागरिकों को यह बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं कि मीडिया कैसे कार्य करता है, विश्वसनीय एवं अविश्वसनीय स्रोतों के बीच अंतर कैसे करें और सूचना-संपन्न सार्वजनिक संवाद में कैसे शामिल हों।
  • स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देना:
    • मुख्यधारा के बड़े मीडिया संस्थानों के साथ ही भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता को समर्थन एवं प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। इसमें खोजी पत्रकारिता के लिये धन देना, समुदाय-आधारित मीडिया को समर्थन देना और स्वतंत्र पत्रकारों एवं स्ट्रिंगर्स (जो प्रायः स्टाफ पत्रकारों की तुलना में अधिक जोखिम का सामना करते हैं) को सुरक्षा प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • पत्रकारों के लिये कानूनी सुरक्षा को मज़बूत करना:
    • पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को प्रायः विभिन्न स्रोतों से धमकियों, हमलों और भयादोहन का सामना करना पड़ता है। इस परिदृश्य में सरकार एक ऐसा कानून बनाने पर विचार कर सकती है जो विशेष रूप से पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को उत्पीड़न एवं हिंसा से सुरक्षा प्रदान करे।
      • जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य की गारंटी देता है, पत्रकारों की सुरक्षा के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं किया गया है।
  • मीडिया नैतिकता का पालन:
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सच्चाई एवं तथ्यपरकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, न्यायपरकता एवं निष्पक्षता, उत्तरदायित्व और निष्पक्ष कार्य जैसे मूल सिद्धांतों से संबद्ध रहे।

अभ्यास प्रश्न: लोकतंत्र को बढ़ावा देने में प्रेस की क्या भूमिका है और इस भूमिका को प्रभावी ढंग से पूरा करने में प्रेस को किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?


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