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एडिटोरियल

  • 26 Oct, 2022
  • 12 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

शहरी गरीब और जलवायु संकट

यह एडिटोरियल 22/10/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Insulate Urban Poor from Climate Shocks” लेख पर आधारित है। इसमें जलवायु संकट के परिणामस्वरूप शहरी निर्धनों के समक्ष व्याप्त चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

जलवायु संकट के कारण चरम मौसमी घटनाओं (Extreme weather events) का उभार हाल के वर्षों में एक सामान्य परिघटना ही बन गई है। मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरू जैसे शहरों में बाढ़ का आना आए दिन सुर्खियों में बनी रहती है। हाल ही में उत्तर भारत ग्रीष्म लहरों (Heat Waves) से बुरी तरह प्रभावित हुआ था, जिससे रबी मौसम में गेहूँ के उत्पादन में कमी आई।

  • यद्यपि जलवायु परिवर्तन से संबद्ध ये चरम घटनाएँ सभी को ही प्रभावित करती हैं, लेकिन निर्धनतम और भेद्य आबादी पर इनका सबसे गंभीर प्रभाव पड़ता है जहाँ ये उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावना को कम कर देते हैं।
  • वर्तमान में विश्व की आधी से अधिक आबादी शहरों में निवास करती है और शहरीकरण का विस्तार जारी है। इस वृद्धि के साथ शहरी निर्धनों (Urban poor) की संख्या, विशेषकर विकासशील देशों में बढ़ती जा रही है। शहरी निर्धन जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से भेद्य/संवेदनशील हैं क्योंकि उनके घर प्रायः खतरनाक या जोखिमपूर्ण क्षेत्रों में अवस्थित होते हैं।

जलवायु परिवर्तन शहरी निर्धनों को कैसे प्रभावित करता है?

  • आपदाओं के प्रति प्रवणता में वृद्धि: झुग्गी बस्तियों में रहने वाले गरीब लोग जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक खतरों के प्रभावों के लिये विशेष रूप से उच्च जोखिम रखते हैं।
    • वे शहरों के भीतर सबसे संवेदनशील भूमि क्षेत्रों पर बसे होते हैं; ये आम तौर पर ऐसे क्षेत्र होते हैं जिन्हें दूसरों द्वारा अवांछनीय समझा जाता है और इस प्रकार वे वहनीय तो होते हैं लेकिन भूस्खलन, समुद्र जल स्तर वृद्धि, बाढ़ और अन्य खतरों के प्रभावों के संपर्क में भी होते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: बार-बार बाढ़ या ग्रीष्म लहरों जैसी चरम मौसमी घटनाओं के परिणामस्वरूप कार्यदिवसों, आजीविका, आवास और महत्त्वपूर्ण आर्थिक संपत्ति की क्षति होती है।
    • अर्थव्यवस्था पर गंभीर आघात के साथ ही प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव भी उत्पन्न हुए हैं जहाँ वेक्टर जनित रोगों एवं ‘हीट स्ट्रोक’ से रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।
  • आवास और संपत्ति की क्षति: आवास और संपत्ति की हानि एवं क्षति (विशेष रूप से बाढ़ के दौरान) कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण चिंताएँ हैं।
    • भीड़भाड़युक्त रहने की स्थिति, पर्याप्त आधारभूत संरचनाओं एवं सेवाओं की कमी, असुरक्षित आवास, अपर्याप्त पोषण और खराब स्वास्थ्य के कारण यह समस्या और भी बढ़ जाती है।
  • विलंबित प्रतिक्रियाओं के प्रभाव: निर्धन आबादी की भेद्यताओं को दूर करने हेतु आवश्यक प्रतिक्रिया की गति सबसे महत्त्वपूर्ण कारक बनी हुई है। विलंबित प्रतिक्रिया क्षति को बढ़ाती है और पुनर्वास प्रक्रिया को सुदीर्घ करती है जो प्रत्यास्थता (resilience) पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से शहरी निर्धनों की रक्षा के उपाय

  • बीमा योजना: एक बीमा योजना पारिवारिक स्तर पर प्रत्यास्थता की वृद्धि कर सकती है। ऐसे बीमा उत्पाद उपलब्ध हैं जो घर और घरेलू संपत्ति दोनों को दायरे में लेते हैं, लेकिन बहुत से लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं। ग्राहकों की व्यापक विविधता को देखते हुए इस उद्योग को आबादी के विशिष्ट खंडों के अनुरूप अपने उत्पादों को डिज़ाइन करना चाहिये।
    • न्यूनतम क्रय शक्ति वाले लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये राज्य का सक्रिय हस्तक्षेप भी अपेक्षित है।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तर्ज पर निर्धनों के लिये एक प्रधानमंत्री गृह बीमा योजना कार्यान्वित करने पर विचार किया जा सकता है।
  • प्रतिक्रिया समय को न्यूनतम करना: राज्य की ओर से या बीमा फर्मों की ओर से जलवायु जोखिम का सामना होने और राहत/लाभ प्रदान करने बीच के प्रतिक्रिया समय को न्यूनतम करना आवश्यक है।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण व्यवस्था का लाभ उठाया जा सकता है जहाँ नीति कार्रवाई के रूप में इसके दायरे का विस्तार किया जाए।
    • दावा करने की एक सरल प्रक्रिया के निर्माण के साथ ही बीमा उद्योग राज्य वितरण प्रणाली से जुड़कर सहयोग कर सकते हैं।
  • प्रमुख क्षेत्रों में एकीकृत हस्तक्षेप: शहरी निर्धनों की प्रत्यास्थता को सुदृढ़ करने के लिये छह नीति क्षेत्रों (सामाजिक सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आजीविका, आवास, सामुदायिक अवसंरचना और शहरी नियोजन) में विभिन्न पैमानों (घर, समुदाय और शहरी स्तर) पर एकीकृत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी।
    • तीन सक्षमताकारी घटकों—सक्षम, जवाबदेह एवं उत्तरदायी शासन; जलवायु एवं शहरी डेटा; और जलवायु एवं शहरी वित्त—को अवसर प्रदान करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निर्धन-समर्थनकारी जलवायु प्रत्यास्थी समाधान भेद्यता के अंतर्निहित चालकों को संबोधित कर सकने के लिये परिवर्तनकारी बदलावों को बढ़ावा दें।
  • डेटा कैप्चरिंग और शेयरिंग: बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की पहचान के लिये सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसे इलाकों के सरकारी डेटाबेस का इस्तेमाल लाभार्थियों को चिह्नित करने के लिये किया जा सकता है।
    • लाभार्थी द्वारा दावा किये जाने की आवश्यकता के बिना ही बीमा दावों को प्रत्यक्ष रूप से हस्तांतरित किया जा सकता है। राज्य और उद्योग के बीच एक नए उद्देश्य-संचालित डेटा-साझाकरण समझौते द्वारा इसे संभव किया जा सकता है।
  • स्थानीय सरकारों की भूमिका: जोखिमों को संबोधित करने में शहर की सरकारों की प्रमुख भूमिका है। स्थानीय सरकारें बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जो शहरी निर्धनों की प्रत्यास्थता में सुधार हेतु अत्यंत आवश्यक हैं।
    • शहर के प्राधिकारी जोखिम न्यूनीकरण को शहरी प्रबंधन में मुख्यधारात्मक बनाकर प्रत्यास्थता का निर्माण कर सकते हैं।
      • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण को मौजूदा शहरी नियोजन एवं प्रबंधन अभ्यासों के साथ एकीकृत करने के माध्यम से सर्वोत्तम रूप से संबोधित और अविरत बनाया जा सकता है।
        • इस संदर्भ में, एक बड़ी चुनौती राज्य और केंद्र सरकारों पर स्थानीय सरकारों की वित्तीय निर्भरता है और इसलिये उन्हें उल्लेखनीय वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना आवश्यक है।

निष्कर्ष

निर्धनों की भेद्यताओं को कम करने के लिये राज्य की नीतिगत कार्य-योजनाओं और बीमा उद्योग के बीच पर्याप्त प्रतिक्रिया और तालमेल का होना आवश्यक है। राज्य एवं उद्योग के बीच साझेदारी और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से जलवायु आपदाओं के लिये त्वरित एवं समयबद्ध प्रतिक्रिया की सुविधा मिल सकती है तथा शहरी निर्धनों की प्रत्यास्थता का निर्माण किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘चूँकि चरम मौसमी घटनाओं की आवृति बढ़ती जा रही है, शहरी निर्धनों की आघात सहने की क्षमता को बढ़ाने के लिये नए तंत्रों की आवश्यकता है।’’ टिप्पणी कीजिये।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ): 

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. बेहतर शहरी भविष्य की दिशा में काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में UN-Habitat की भूमिका के संदर्भ में, कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (वर्ष 2017)

  1. UN-Habitat को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सभी के लिए पर्याप्त आश्रय प्रदान करने के लिए सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ कस्बों और शहरों को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य किया गया है।
  2. इसके भागीदार या तो सरकारें हैं या केवल स्थानीय शहरी प्राधिकरण।
  3. UN-Habitat संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के समग्र उद्देश्य में योगदान देता है ताकि गरीबी को कम किया जा सके और सुरक्षित पेयजल और बुनियादी स्वच्छता तक पहुंच को बढ़ावा दिया जा सके।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) 1, 2 और 3
(B) केवल 1 और 3
(C) केवल 2 और 3
(D) केवल 1

उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

प्रश्न. भारत में शहरी जीवन की गुणवत्ता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ, 'स्मार्ट सिटी कार्यक्रम' के उद्देश्यों और रणनीति का परिचय दें। (वर्ष 2016)

प्रश्न. भूमि और जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन से मानवीय समस्याओं में भारी कमी आएगी। व्याख्या कीजिये। (वर्ष 2016)


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