भारतीय राजनीति
गठबंधन राजनीति के बीच राजकोषीय संघवाद
यह एडिटोरियल 25/07/2024 को ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में प्रकाशित “Union Budget 2024: Fiscal balance amid coalition compromises” लेख पर आधारित है। इसमें 18वीं लोकसभा के पहले बजट की समीक्षा की गई है जहाँ अपेक्षाओं से इसकी अनुरूपता पर विचार किया गया है। नवीन बजट में स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष तक ‘विकसित देश’ का दर्जा प्राप्त करने जैसे दीर्घकालिक लक्ष्यों पर बल दिया गया है, जबकि गठबंधन की मांगों को भी समायोजित किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:वित्त आयोग, योजना आयोग, नीति आयोग, जीएसटी, कर हस्तांतरण, केंद्रीय बजट, 2024-25 , वस्तु और सेवा कर परिषद, सातवीं अनुसूची, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, सहकारी संघवाद, प्रतिस्पर्द्धी संघवाद। मेन्स के लिये:भारत में राजकोषीय संघवाद की प्रमुख चुनौतियाँ और सहकारी संघवाद द्वारा इन चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइये। |
भारत में राजकोषीय संघवाद (Fiscal federalism) केंद्र और राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाए रखने तथा संसाधनों का समतामूलक वितरण सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह स्थानीय निर्णय-निर्माण और जवाबदेही को बढ़ावा देकर लोकतांत्रिक शासन को सुदृढ़ करता है, साथ ही क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करता है और सहकारी संघवाद (cooperative federalism) को बढ़ावा देता है।
भारतीय संविधान ने सुदृढ़ राजकोषीय संघवाद की परिकल्पना करते हुए क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिये साझा करों और अनुदान सहायता जैसे तंत्रों की स्थापना की है, जिन्हें विशिष्ट अधिदेशों के साथ वित्त आयोग जैसे संस्थागत ढाँचे द्वारा पूरकता प्रदान की गई है।
योजना आयोग की समाप्ति, नीति आयोग की स्थापना, GST के लिये संवैधानिक संशोधन और 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुरूप कर हस्तांतरण में वृद्धि जैसे महत्त्वपूर्ण सुधारों ने संघ और राज्यों के बीच राजकोषीय संबंधों को मौलिक रूप से बदल दिया है।
वर्ष 2024-25 के लिये केंद्रीय बजट का लक्ष्य भारतीय स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष (2047) तक ‘विकसित देश’ का दर्जा हासिल करने को प्राथमिकता देना है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना आवश्यक है, जिसे गठबंधन लोकतंत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार, गठबंधन की गतिशीलता को चिह्नित करते हुए नवीन बजट में राजनीतिक समर्थन के लिये प्रमुख सहयोगी दलों की मांगों को समायोजित करने का भी प्रयास किया गया है।
केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित प्रमुख संवैधानिक उपबंध:
- संवैधानिक ढाँचा (भाग XII):
- भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच करों, गैर-कर राजस्व, उधार लेने की शक्तियों एवं अनुदान-सहायता के वितरण को नियंत्रित करने वाले व्यापक उपबंधों का वर्णन किया गया है।
- अनुच्छेद 268 से 293 विशेष रूप से वित्तीय संबंधों को संबोधित करते हैं, जहाँ राजकोषीय लेनदेन और आवंटन के तंत्र को रेखांकित किया गया है।
- अनुच्छेद 269A (वस्तु एवं सेवा कर - GST):
- GST को संविधान (101वें संशोधन) अधिनियम, 2016 द्वारा पेश किया गया था।
- अनुच्छेद 269A में कहा गया है कि अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के अनुक्रम में प्रदाय पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत सरकार द्वारा उदगृहीत और संगृहीत किया जाएगा तथा ऐसा कर उस रीति में, जो संसद द्वारा, विधि द्वारा, वस्तु एवं सेवा कर परिषद की अनुशंसा पर उपबंधित की जाए, संघ और राज्यों के बीच प्रभाजित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 275 (उत्तर हस्तांतरण राजस्व घाटा अनुदान):
- अनुच्छेद 275 के तहत, केंद्र सरकार विशिष्ट उद्देश्यों या योजनाओं के लिये राज्य सरकारों को धनराशि हस्तांतरित करने के लिये विवेकाधीन अधिकार का प्रयोग करती है, तथा जहाँ आवश्यक हो, वित्तीय सहायता सुनिश्चित करती है।
- अनुच्छेद 280 (वित्त आयोग):
- संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण की अनुशंसा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वित्त आयोग कर हस्तांतरण के अलावा राज्य के वित्त को बढ़ाने, राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा देने और समग्र राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करने पर भी सलाह देता है।
- सातवीं अनुसूची
- संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच कराधान शक्तियों को रेखांकित करती है:
- संघ सूची में सूचीबद्ध करों पर संसद को विशेष अधिकार प्राप्त है।
- राज्य सूची में सूचीबद्ध करों पर राज्य विधानमंडलों को विशेष अधिकार प्राप्त है।
- समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों पर दोनों ही कर लगा सकते हैं, जबकि कर संबंधी शेष शक्तियाँ पूर्णतया संसद में निहित हैं।
- संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच कराधान शक्तियों को रेखांकित करती है:
भारत में राजकोषीय संघवाद की चुनौतियाँ :
- सकल कर राजस्व में घटती हिस्सेदारी:
- 14वें और 15वें वित्त आयोगों की सिफ़ारिशों के बावजूद, जहाँ राज्यों के लिये शुद्ध कर राजस्व के 42% और 41% का सुझाव दिया गया था, सकल कर राजस्व में उनकी वास्तविक हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 में घटकर 35% रह गई तथा वर्ष 2023-24 तक और घटते हुए 30% (बजट अनुमानों के अनुसार) हो गई।
- बजट अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2024-25 के लिये सकल कर राजस्व (GTR) वर्ष 2023-24 की तुलना में 11.7% बढ़कर 38.40 लाख करोड़ रुपए (GDP का 11.8%) होने का अनुमान है। इस प्रकार, GTR में वृद्धि के साथ राज्यों की हिस्सेदारी उनकी राजकोषीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भिन्न-भिन्न होनी चाहिये।
- राज्य कर स्वायत्तता का क्षरण:
- राज्यों द्वारा राजस्व स्रोतों पर स्वतंत्र रूप से कर दरें निर्धारित कर सकने की क्षमता में गिरावट आई है, जो विशेष रूप से अंतर-राज्य व्यापार के लिये मूल्य-वर्द्धित कर (VAT) के अंगीकरण के बाद स्पष्ट हो गई है।
- GST लागू होने के साथ ही इस बदलाव ने राज्यों की स्थानीय आर्थिक स्थितियों के अनुसार कर नीतियों को अनुरूप बना सकने की क्षमता को कम कर दिया है। इसके अलावा, GST क्षतिपूर्ति बकाया के समय पर वितरण को लेकर भी राज्यों ने विभिन्न अवसरों पर आपत्ति जताई है।
- राज्यों को दी जाने वाली अनुदान सहायता में कटौती:
- राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता वर्ष 2015-16 में 1.95 लाख करोड़ रुपए से घटकर वर्ष 2023-24 में 1.65 लाख करोड़ रुपए रह गई।
- इसके परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व में सांविधिक वित्तीय हस्तांतरण का संयुक्त अनुपात 48.2% से घटकर 35.32% रह गया।
- उपकर और अधिभार श्रेणियों के अंतर्गत कर संग्रहण को बढ़ाना:
- सकल राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी में गिरावट का एक महत्त्वपूर्ण कारक शुद्ध कर राजस्व की कटौती प्रक्रिया में उपकर एवं अधिभार (cess and surcharge) के माध्यम से एकत्रित राजस्व को शामिल करना है।
- इस संग्रहण में (जून 2022 तक GST उपकर को छोड़कर) समय के साथ उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- वित्तीय केंद्रीकरण संबंधी चिंताएं:
- केंद्र सरकार राज्यों को प्रत्यक्ष वित्तीय हस्तांतरण के रूप में केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) और केंद्रीय क्षेत्र योजनाओं (CS) का उपयोग करती है, जिससे उनकी राजकोषीय प्राथमिकताएँ प्रभावित होती हैं।
- वर्ष 2015-16 और 2023-24 के बीच केंद्र प्रायोजित योजनाओं (59 योजनाओं तक विस्तृत) के लिये आवंटन 2.04 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 4.76 लाख करोड़ रुपए हो गया।
- यह दृष्टिकोण राज्यों को संघीय निधि के साथ-साथ समतुल्य वित्तीय संसाधन देने के लिये बाध्य करता है।
- समृद्ध बनाम कम समृद्ध राज्यों से जुड़े मुद्दे:
- CSS कार्यान्वयन से राज्यों के बीच असमानताएँ उजागर होती हैं, क्योंकि समृद्ध राज्य स्वतंत्र रूप से अनुरूप अनुदान का वित्तपोषण कर सकते हैं, जबकि कम समृद्ध राज्यों को उधार पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उनकी राजकोषीय देनदारियाँ बढ़ जाती हैं।
- यह असमानता सार्वजनिक वित्त में अंतर-राज्यीय असमानता को बढ़ाती है।
- सीमित व्यय उत्तरदायित्वों के साथ संघ सरकार की वृहत वित्तीय शक्तियाँ:
- राज्यों को सकल कर राजस्व का 50% से भी कम हस्तांतरित करने के बावजूद, केंद्र सरकार सकल घरेलू उत्पाद के 5.9% का उल्लेखनीय राजकोषीय घाटा रखती है।
- यह व्यवस्था संघ को पर्याप्त वित्तीय अधिकार प्रदान करती है, जबकि इसके व्यय दायित्वों को सीमित करती है, जिससे राज्य आवंटन के लिये कम अवसर बचता है।
राजकोषीय संघवाद पर गठबंधन राजनीति का प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- केंद्रीय हस्तांतरण पर प्रभाव: गठबंधन में प्रतिनिधित्व रखने वाले राज्य (वे राज्य जहाँ केंद्रीय सरकार में शामिल दलों की सरकार है) राजस्व-साझाकरण और अनुदान के संदर्भ में अधिक अनुकूल शर्तों के लिये सौदेबाज़ी कर सकते हैं, जिससे समग्र राजकोषीय संघवाद ढाँचे पर प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिये, नवीन बजट में विभिन्न सड़क परियोजनाओं के लिये बिहार को 26,000 करोड़ रुपए प्राप्त होंगे, जबकि आंध्र प्रदेश को नई राजधानी के निर्माण के लिये 15,000 करोड़ रुपए दिये जाएँगे।
- राज्यों की बेहतर सौदेबाज़ी शक्ति: गठबंधन सरकारों को प्रायः क्षेत्रीय दलों के समर्थन की आवश्यकता होती है, जिससे राज्यों की केंद्रीय हस्तांतरण के बड़े हिस्से के लिये बातचीत करने और राजकोषीय प्रबंधन में अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिये सौदेबाज़ी की शक्ति बढ़ जाती है।
- क्षेत्रीय विकास पर फोकस: गठबंधन सरकारें ऐसी नीतियाँ अपना सकती हैं जो क्षेत्रीय आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं को पूरा करती हों। इससे स्थानीय विकासात्मक चुनौतियों का समाधान करने वाली अधिक सुव्यवस्थित राजकोषीय नीतियों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है, जिससे संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 जिसका उद्देश्य दो राज्यों के विकास को बढ़ावा देना था, केंद्र में गठबंधन दलों के सहयोग के कारण संसद द्वारा पारित किया गया।
- पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि: गठबंधन साझेदारों को बनाए रखने की आवश्यकता कभी-कभी राजकोषीय निर्णयों में अधिक पारदर्शिता और सार्वजनिक धन के उपयोग में जवाबदेही का कारण बन सकती है।
- स्थिरता और दीर्घकालिक योजना: यद्यपि गठबंधन कभी-कभी अस्थिर हो सकते हैं, लेकिन वे राजकोषीय मामलों में आम सहमति और दीर्घकालिक योजना के निर्माण को भी बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे शासन में स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है और सतत आर्थिक वृद्धि एवं विकास संभव हो सकता है।
- केंद्रीय हस्तांतरण पर प्रभाव: गठबंधन में प्रतिनिधित्व रखने वाले राज्य (वे राज्य जहाँ केंद्रीय सरकार में शामिल दलों की सरकार है) राजस्व-साझाकरण और अनुदान के संदर्भ में अधिक अनुकूल शर्तों के लिये सौदेबाज़ी कर सकते हैं, जिससे समग्र राजकोषीय संघवाद ढाँचे पर प्रभाव पड़ता है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- राजकोषीय अनुशासनहीनता: गठबंधन सहयोगियों के तुष्टीकरण की इच्छा अत्यधिक व्यय एवं लोकलुभावन उपायों को जन्म दे सकती है, जिससे राजकोषीय अनुशासन और व्यापक आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
- निर्णय लेने में विलंब: गठबंधन सरकारों को प्रायः राजकोषीय मामलों पर आम सहमति तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप निर्णय लेने और महत्त्वपूर्ण सुधारों के कार्यान्वयन में देरी होती है।
- अनिश्चितता और अस्थिरता: गठबंधन सरकारों की भंगुर प्रकृति राजकोषीय वातावरण में अनिश्चितता पैदा कर सकती है, जिससे दीर्घकालिक निवेश और योजना-निर्माण हतोत्साहित हो सकते हैं।
- धन के दुरुपयोग की संभावना: गठबंधन सहयोगियों को संतुष्ट करने के लिये संसाधनों को वितरित करने का दबाव कभी-कभी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को जन्म दे सकता है।
आगे की राह:
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देना:
- सहकारी संघवाद के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धी संघवाद Competitive Federalism) को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद और निधि आवंटन को बढ़ावा देने के लिये मापदंड के रूप में बेंचमार्किंग एवं प्रदर्शन संकेतक, प्रोत्साहन-आधारित संसाधन आवंटन तथा निवेश आकर्षण पर बल दिया जा सकता है।
- वित्त आयोग और कर-साझाकरण तंत्र में सुधार करना:
- वित्त आयोग को भारत के उभरते राजकोषीय संघवाद के संदर्भ में कर-साझाकरण सिद्धांतों की समीक्षा करने का निर्देश दिया जाना चाहिये।
- विभाज्य पूल को पुनः परिभाषित किया जाना चाहिये, जिसमें IGST को पूर्णतः शामिल किया जाना चाहिये तथा उपभोग-आधारित कर प्रणाली के अनुरूप क्षैतिज हस्तांतरण (horizontal devolution) के मानदंडों को संशोधित किया जाना चाहिये।
- राजकोषीय संघवाद के लिये संस्थागत ढाँचे को उन्नत बनाना:
- विभाज्य पूल एवं उसके वितरण पर समन्वित निर्णयन को सुनिश्चित करने के लिये जीएसटी परिषद और वित्त आयोग के बीच एक औपचारिक संबंध स्थापित किया जाना चाहिये।
- अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council) को वित्तीय मामलों पर केंद्र और राज्यों के बीच संवाद एवं आम सहमति के निर्माण के लिये एक मंच के रूप में कार्य करने हेतु सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- इसके अलावा, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम के प्रावधानों को केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिये संरेखित किया जाना चाहिये ताकि राजकोषीय अनुशासन बनाए रखा जा सके तथा प्रत्येक राज्य की विशिष्ट स्थिति के अनुरूप लचीलापन प्राप्त हो सके।
- राजकोषीय हस्तांतरण और अनुदान में सुधार लाना:
- अनुच्छेद 275 के अंतर्गत अनुदान तंत्र को GST क्षतिपूर्ति कानून के आलोक में पुनः अभिकल्पित किया जाना चाहिये।
- समानता को बढ़ावा देने और क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर दोनों प्रकार के राजकोषीय असंतुलनों को दूर करने के लिये अंतर-सरकारी हस्तांतरणों को नया रूप दिया जाना चाहिये।
- पारदर्शी राजकोषीय हस्तांतरण सुनिश्चित करने और विवेकाधीन शक्तियों को कम करने के लिये केंद्रीय निधियों, अनुदानों एवं सब्सिडी के वितरण के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित किये जाने चाहिये।
- प्रबल दलबदल विरोधी कानून लागू करना:
- राजनीतिक खरीद-फरोख्त को हतोत्साहित करने तथा सरकारों की स्थिरता बनाए रखने के लिये दलबदल विरोधी कानूनों को प्रबल बनाया जाए और सख्ती से लागू किया जाए, जो सुसंगत राजकोषीय नीतियों के लिये अत्यंत आवश्यक है।
- ऐसे उपायों के अभाव में राज्य को मिलने वाला राजकोषीय आवंटन असंतुलित हो सकता है।
- राज्य और स्थानीय सरकार की स्वायत्तता को सशक्त करना:
- राज्यों और स्थानीय निकायों को अधिक राजकोषीय शक्तियाँ हस्तांतरित की जानी चाहिये, जिससे उन्हें राजस्व सृजन, व्यय नियोजन और उधार सीमा में अधिक लचीलापन प्राप्त हो सके।
- राज्यों को कराधान पर अधिक नियंत्रण दिया जाना चाहिये ताकि वे अपनी स्थानीय आर्थिक स्थितियों और प्राथमिकताओं के अनुसार राजस्व उत्पन्न कर सकें।
- सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना:
- सहकारी संघवाद की भावना को बढ़ावा देकर राज्यों को क्षेत्रीय विकास पहलों के लिये सहयोग करने और संसाधनों को साझा करने के लिये प्रेरित करने हेतु प्रोत्साहन (Incentives) प्रदान किये जाने चाहिये।
- राजकोषीय मुद्दों, नीतिगत चुनौतियों और राजकोषीय संघवाद ढाँचे में संभावित सुधारों पर चर्चा करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संवाद हेतु नियमित तंत्र स्थापित किये जाएँ।
- राजकोषीय संघवाद में संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करना:
- अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची पर पुनर्विचार करने के लिये संवैधानिक सुधारों पर विचार किया जाना चाहिये, जहाँ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों एवं उत्तरदायित्वों के विभाजन को पुनः परिभाषित किया जाए।
- प्रच्छन्न देनदारियों (hidden liabilities) को रोकने और राजकोषीय प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये ऑफ-बजट उधारी के मुद्दे को संबोधित किया जाना चाहिये।
- क्षमता निर्माण और दीर्घकालिक योजना-निर्माण को बढ़ावा देना:
- प्रशिक्षण कार्यक्रमों, ज्ञान-साझाकरण मंचों और तकनीकी सहायता के माध्यम से राजकोषीय प्रबंधन में राज्यों की क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिये।
- बार-बार होने वाले बदलावों से बचकर और राजनीतिक परिवर्तनों के दौरान निरंतरता सुनिश्चित कर दीर्घकालिक राजकोषीय नीति स्थिरता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में राजकोषीय संघवाद को प्रभावित करने में गठबंधन राजनीति की भूमिका का परीक्षण कीजिये। चर्चा कीजिये कि गठबंधन की गतिशीलता किस प्रकार केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय नीतियों एवं संसाधन आवंटन को आकार प्रदान करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय राज्य-व्यवस्था में, निम्नलिखित में से कौन-सी अनिवार्य विशेषता है, जो यह दर्शाती है कि उसका स्वरूप संघीय है? (a) न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित है। उत्तर: (a) मेन्स:Q. हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में मौजूद असुविधाओं के बारे में बताते हुए सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालें। (2018) |