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एडिटोरियल

  • 26 May, 2023
  • 17 min read
शासन व्यवस्था

दशकीय जनगणना में विलंब

यह एडिटोरियल 24/05/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Don’t delay the census further’’ लेख पर आधारित है। इसमें जनगणना में हो रहे विलंब तथा इस संदर्भ में चर्चा की गई है कि नई जनगणना पुरानी जनगणना से कैसे अलग होगी।

प्रिलिम्स के लिये:

जनगणना प्रावधान और इतिहास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, NFHS- 5, महापंजीयक एवं  जनगणना आयुक्त कार्यालय, वित्त आयोग, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013

मेन्स के लिये:

जनगणना: प्रासंगिकता, विलंब के निहितार्थ।

भारत के महापंजीयक (Registrar General of India- RGI) के नए कार्यालय का उद्घाटन करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि भारत की अगली जनगणना (जब भी आयोजित हो) अधिक कुशल और गतिशील (smarter and more dynamic) हो। इस तरह के उद्देश्य सराहनीय हैं, लेकिन वर्ष 2021 की दशकीय जनगणना में हुआ अभूतपूर्व विलंब एक चिंता का विषय है।

  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण डेटा को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से समयबद्ध रूप से जोड़ना उन कुछ स्वागतयोग्य परिवर्तनों में शामिल है जिन पर विचार किया गया है। यह न केवल हमें जनसंख्या की स्थिति का बेहतर अनुमान देगा, बल्कि यह मौजूदा डेटाबेस, जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम के लाभार्थियों की सूची, मतदाता सूची आदि को अधिक सटीक भी बनाएगा।
  • जनगणना किसी निश्चित क्षेत्र में लोगों की गिनती की प्रक्रिया है, लेकिन भारत में यह केवल लोगों की संख्या के बारे में जानकारी देने तक सीमित नहीं है। जनगणना में शामिल व्यापक सूचना जनसंख्या में विद्यमान गतिशीलता को समझने का उद्देश्य रखती है। ग्रामीण एवं शहरी आबादी की हिस्सेदारी, कृषि व गैर-कृषि एवं मुख्य व सीमांत कार्य में उनकी व्यावसायिक स्थिति, प्रवासन एवं इसकी दीर्घता, मातृभाषा एवं अन्य भाषाएँ, घरेलू रहन-सहन एवं संपत्ति की गुणवत्ता आदि कुछ ऐसे ही आँकड़े हैं।

जनगणना क्या है?

  • जनगणना (Census) किसी विशिष्ट आबादी के बारे में जनसांख्यिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक डेटा के संग्रहण, संकलन, विश्लेषण और प्रकाशन की प्रक्रिया है।
  • जनगणना किसी जनसंख्या और उसकी विशेषताओं की एक विस्तृत छवि प्रदान करती है, जिसमें आयु, लिंग, शिक्षा, रोज़गार, आय, आवास और अन्य कई बातें शामिल हैं।
  • दशकीय जनगणना (decennial census) का आयोजन जनगणना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय (Office of the Registrar General and Census Commissioner) द्वारा किया जाता है।
  • जनगणना दो चरणों में की जाती है: 
    • प्रथम चरण आवास गणना का है, जहाँ आवासों की स्थिति, घरेलू सुविधाओं और परिवारों के पास मौजूद संपत्ति के बारे में डेटा एकत्र किया जाता है।
    • द्वित्तीय चरण में जनसंख्या, शिक्षा, धर्म, आर्थिक गतिविधि, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, भाषा, साक्षरता, प्रवासन और प्रजनन क्षमता संबंधी आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

भारत में जनगणना का इतिहास 

  • भारत में पहली जनगणना वर्ष 1872 में कराई गई थी।
  • भारत की पहली उचित या समकालिक जनगणना, जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक ही दिन या वर्ष में शुरू होती है, वर्ष 1881 में औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा कराई गई थी और तब से प्रत्येक 10 वर्ष पर आयोजित की जाती है।
  • भारत की पिछली जनगणना वर्ष 2011 में आयोजित की गई थी और अगली जनगणना वर्ष 2021 में होनी थी जिसे कोविड-19 महामारी और अन्य कारणों से स्थगित कर दिया गया।

सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना 

  • भारत में सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना (Socio Economic Caste Census- SECC) वर्ष 1931 के बाद पहली बार कराई गई ।
  • SECC ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में प्रत्येक परिवार दायरे में लेते हुए निम्नलिखित विषयों में सूचनाओं के संग्रह का उद्देश्य रखता है:
    • आर्थिक स्थिति (Economic status), ताकि केंद्र और राज्य के प्राधिकार को वंचना, क्रमपरिवर्तन और संयोजन के संकेतकों की एक शृंखला विकसित करने का अवसर मिल सके, जिसका उपयोग प्रत्येक प्राधिकार द्वारा गरीब या वंचित व्यक्ति को परिभाषित करने के लिये किया जा सके।
    • विशिष्ट जातियों की पहचान (Specific caste name) ताकि सरकार पुनर्मूल्यांकन कर सके कि कौन-से जाति समूह आर्थिक रूप से सबसे बदहाल हैं और कौन-से बेहतर स्थिति में हैं।
  • SECC में व्यापक स्तर पर असमानताओं की मैपिंग करने का अवसर देने की क्षमता है।

जनगणना और SECC में क्या अंतर है?

  • जनगणना भारतीय जनसंख्या का एक चित्र प्रदान करती है, जबकि SECC राज्य सहायता के लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपकरण है।
  • चूँकि जनगणना वर्ष 1948 के जनगणना अधिनियम के दायरे में आती है, इसलिये सभी डेटा को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC वेबसाइट के अनुसार, ‘‘SECC में दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारी सरकारी विभागों द्वारा परिवारों को लाभ प्रदान करने और/या उन्हें प्रतिबंधित करने हेतु उपयोग के लिये उपलब्ध है।”

जनगणना की प्रासंगिकता 

  • जनसंख्या के आकार और जनसांख्यिकी का निर्धारण: जनगणना का प्राथमिक उद्देश्य किसी विशेष क्षेत्र में रहने वाली जनसंख्या की सटीक गणना प्रदान करना है। यह सरकारों को उनकी जनसंख्या के आकार, वितरण और संरचना को समझने में मदद देता है। प्रभावी शासन, नीतिनिर्माण और संसाधन आवंटन के लिये यह जानकारी आवश्यक होती है।
  • योजना-निर्माण और विकास: जनगणना के आँकड़े सरकारों को जनसंख्या के रुझान एवं प्रवृत्तियों का विश्लेषण कर शहरी नियोजन, अवसंरचना और सार्वजनिक सेवाओं में निवेश के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय लेने में सहायता करते हैं। यह उन क्षेत्रों की पहचान करता है जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, जैसे उच्च गरीबी दर वाले या स्वास्थ्य सेवा तक अपर्याप्त पहुँच रखने वाले क्षेत्र।
  • निर्वाचक प्रतिनिधित्व: जनगणना के आँकड़े राजनीतिक सीमाओं के पुनर्निर्धारण और विधायी निकायों में सीटों के आवंटन को प्रभावित करते हैं। यह समय के साथ जनसंख्या में बदलाव एवं और परिवर्तनों को सटीक रूप से दर्शाकर उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में मदद करता है।
  • संसाधन आवंटन और वित्तपोषण: जनगणना के आँकड़े शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक कल्याण, परिवहन और अवसंरचना के लिये सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सरकारी धन एवं संसाधन आवंटित करने में मदद करता है। सटीक आँकड़ा कुछ क्षेत्रों के लिये कम वित्तपोषण या उनकी उपेक्षा को रोकता है।
    • जनगणना के आँकड़ों से उपलब्ध जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर वित्त आयोग (FC) राज्यों को अनुदान प्रदान करता है।
  • आर्थिक योजना और व्यावसायिक निर्णय: जनगणना के आँकड़े व्यवसायों को उपभोक्ता प्रवृत्तियों की पहचान करने, जनसांख्यिकी को लक्षित करने, बाज़ार की मांग का आकलन करने और विकास एवं निवेश के अवसरों की पहचान करने में मदद करते हैं।
  • सामाजिक अनुसंधान और नीति विश्लेषण: जनगणना के आँकड़े शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को रुझानों का अध्ययन करने, सामाजिक परिवर्तनों को समझने और नीतियों का मूल्यांकन करने में सहायता प्रदान करते हैं। यह साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने और सूचना-संपन्न सार्वजनिक विमर्श में योगदान देता है।

जनगणना में विलंब के निहितार्थ 

  • सही लाभार्थियों को लक्षित करना:
    • जनगणना के पुराने आँकड़े (जो 2011 की पिछली जनगणना से प्राप्त होते हैं) प्रायः अविश्वसनीय सिद्ध होते हैं और उन लोगों को प्रभावित करते हैं जो कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करते हैं और प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
    • उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 जो गरीब एवं कमज़ोर तबके को सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न प्रदान करता है, लाभार्थियों की पहचान के लिये जनगणना के आँकड़े का ही उपयोग करता है।
      • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 121 करोड़ थी जिसमें PDS लाभार्थी लगभग 80 करोड़ थे। हालाँकि, विश्व बैंक ने भारत की जनसंख्या 141 करोड़ होने का अनुमान लगाया है और इसलिये PDS कवरेज बढ़कर लगभग 97 करोड़ हो जाना चाहिये था।
    • इसके अलावा, वित्त आयोग राज्यों को वित्त प्रदान करते समय जनगणना के आँकड़ों का उपयोग करता है। सटीक आँकड़ों के अभाव में राज्यों को धन का आवंटन विसंगत होगा।
  • अनुसंधान और विश्लेषण के लिये चुनौतियाँ:
    • शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को पुरानी सूचना या वैकल्पिक डेटा स्रोतों पर भरोसा करना पड़ सकता है, जो समान स्तर की सटीकता या बारीकी से वंचित कर सकते हैं।
    • जनगणना के आँकड़े देश में आयोजित अन्य नमूना सर्वेक्षणों के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे संदर्भ के रूप में जनगणना के आँकड़े का ही उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिये, पिछले वर्ष जारी नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) में वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों का इस्तेमाल किया गया था।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रभाव:
    • जनगणना के आँकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन करने और संसद एवं राज्य विधानसभाओं में सीटों के आवंटन के लिये भी किया जाता है। जनगणना में विलंब का अर्थ है कि अभी वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े का इस्तेमाल ही जारी रहेगा। यह पिछले दशक में जनसंख्या की संरचना में हुए तीव्र परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने में सक्षम नहीं होगा।
    • जनगणना के आँकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण की मात्रा निर्धारित करने के लिये किया जाता है। जनगणना में विलंब के कारण विभिन्न क्षेत्रों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं के लिये बहुत अधिक या बहुत कम सीटें आरक्षित करने का परिदृश्य बन सकता है।
  • प्रवासन संबंधी आँकड़े से समझौता: प्रवासन एवं प्रवास प्रतिरूप और इसके आर्थिक प्रभाव को समझने के लिये जनगणना के आँकड़े महत्त्वपूर्ण हैं।जनगणना में विलंब का अर्थ है कि नीति निर्माण और योजना निर्माण बनाने के लिये आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रवास पर नवीनतम सूचना उपलब्ध नहीं है।
    • कोविड महामारी ने प्रवासन संबंधी आँकड़े की आवश्यकता को उजागर किया है। लॉकडाउन के दौरान पर्याप्त आँकड़ों के अभाव में सरकार अपने घरों से दूर शहरों में फँसे प्रवासी श्रमिकों को लक्षित कर सकने में असमर्थ रही।
  • अवसरों से चूकना और विलंबित निर्णयन: उभरती प्रवृत्तियों की पहचान करने, आवश्यकताओं का आकलन करने और अवसरों का लाभ उठाने के लिये समयबद्ध जनगणना आँकड़े आवश्यक हैं। जनगणना में देरी के परिणामस्वरूप लक्षित हस्तक्षेपों, आर्थिक नियोजन और व्यावसायिक निर्णयों के अवसर चूक सकते हैं।

वर्ष 2021 की जनगणना पिछली जनगणना से कैसे अलग होगी?

  • जनगणना के आँकड़े पहली बार मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से डिजिटल रूप से एकत्र किये जाएँगे (जो गणक या गणना करने वाले के फोन पर इनस्टॉल होंगे) और ऑफ़लाइन मोड में कार्य करने का भी उपबंध होगा।
  • वर्ष 2021 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का भी आँकड़ा होगा जो वर्ष 1931 की जनगणना के बाद पहली बार आयोजित होगा।
  • वर्ष 2021 की जनगणना 22 अनुसूचित भाषाओं में से 18 भाषाओं एवं अंग्रेज़ी आयोजित होगी, जबकि जनगणना 2011 उस समय घोषित 22 अनुसूचित भाषाओं में से 16 में कराई गई थी।
  • वर्ष 2021 की जनगणना में एक गतिशील दृष्टिकोण अपनाया जाएगा जहाँ हाउस-लिस्टिंग शेड्यूल में 31 प्रश्न शामिल होंगे जिसमें इंटरनेट, लैपटॉप/कंप्यूटर और LPG या PNG  कनेक्शन तक पहुँच पर नए प्रश्न शामिल किये गए हैं।
  • पहली बार उन परिवारों और परिवार के सदस्यों के बारे में सूचना एकत्र की जाएगी जिनका मुखिया ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंध रखता है।

निष्कर्ष

जनगणना में देरी के व्यापक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं, जिसमें जनसंख्या के आँकड़े में त्रुटियाँ, योजना निर्माण एवं विकास में बाधा, संसाधन आवंटन में चुनौतियाँ, चुनावी प्रतिनिधित्व पर प्रभाव, अनुसंधान एवं विश्लेषण की सीमाएँ और निर्णयन में अवसर से चूकना शामिल हैं। यह प्रभावी शासन और विकास के लिये सटीक एवं अद्यतन सूचना सुनिश्चित करने हेतु समयबद्ध तरीके से जनगणना करने के महत्त्व को उजागर करता है।

अभ्यास प्रश्न: शासन, योजना निर्माण और संसाधन आवंटन के संदर्भ में जनगणना में देरी के निहितार्थों की चर्चा कीजिये।


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