एडिटोरियल (26 Feb, 2022)



विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी

यह एडिटोरियल 24/02/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A More Inclusive Science” लेख पर आधारित है। इसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ 

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व नियुक्त एवं पदोन्नति से लेकर पुरस्कृत किये जाने और विज्ञान अकादमियों के सदस्य/फेलो के रूप में चुने जाने से लेकर वैज्ञानिक संस्थानों में नेतृत्वकारी पदों पर आसीन किये जाने तक समग्र कैरियर प्रक्षेपवक्र में नज़र आता है। विज्ञान अकादमियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति वैज्ञानिक समुदाय के अंदर उनकी समग्र स्थिति को दर्शाती है। इस समस्या को दो स्तरों पर संबोधित किये जाने की आवश्यकता है- पहला, सामाजिक स्तर पर जिसके लिये दीर्घकालिक प्रयास की आवश्यकता और दूसरा, नीतिगत एवं संस्थागत स्तर पर, जिसे तत्काल प्रभाव से शुरू किया जा सकता है।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

वैश्विक रुझान 

  • 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कई यूरोपीय अकादमियों में महिला वैज्ञानिकों को सदस्य के रूप में स्वीकृति प्रदान की गई थी।
  • ‘जेंडर इन साइंस, इनोवेशन, टेक्नोलॉजी एंड एन्जनिरिंग (Gender in Science, Innovation, Technology and Engineering- GenderInSITE), इंटर एकेडमी पार्टनरशिप (InterAcademy Partnership- IAP) और इंटरनेशनल साइंस काउंसिल (International Science Council- ISC) द्वारा संयुक्त रूप से किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि वरिष्ठ अकादमियों (senior academies) में महिलाओं की निर्वाचित सदस्यता में मामूली वृद्धि हुई है जो वर्ष 2015 में 13% थी जो वर्ष 2020 में बढ़कर 16% हो गई है।
    • हालाँकि यूथ एकेडमी (Young Academies) के मामले में स्थिति बेहतर है, लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व (42% औसत हिस्सेदारी) वहाँ भी कम है।
    • वरिष्ठ अकादमियों में ‘अकैडमी ऑफ़ साइंसेज़ ऑफ क्यूबा’ (Academy of Sciences of Cuba) 33% महिला प्रतिनिधित्व के साथ सबसे आगे है।

भारत-विशिष्ट आँकड़े 

  • वर्ष 2020 में किये गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (Indian National Science Academy- INSA) के 1,044 सदस्यों में से केवल 89 महिलाएँ हैं जो कुल मात्र का 9% है। वर्ष 2015 में उनके प्रतिनिधित्व में और अधिक कमी देखगी गई जिसमें 864 सदस्यों में मात्र 6% महिला वैज्ञानिक सदस्य शामिल थी।
  • इसी प्रकार, INSA के शासी निकाय में वर्ष 2020 में कुल 31 सदस्यों में से केवल 7 महिलाएँ शामिल थीं जबकि वर्ष 2015 में इसमें कोई महिला सदस्य शामिल नहीं थी।
  • तीन अकादमियाँ—भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (INSA), भारतीय विज्ञान अकादमी (IAS) और नेशनल अकादमी (NAS) पेशेवर निकायों और संबंधित संस्थानों सहित विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहन देने हेतु शुरू की गई पहलें 

  • देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science Technology Engineering and Mathematics- STEM) के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व की समस्या को संबोधित करने हेतु ‘विज्ञान ज्योति कार्यक्रम’ (Vigyan Jyoti Programme) शुरू किया गया था।
    • आरंभ में इसे स्कूल स्तर पर शुरू किया गया था जहाँ कक्षा 9-12 की मेधावी छात्राओं को STEM क्षेत्र में उच्च शिक्षा और करियर बनाने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
    • हाल ही में कार्यक्रम के दूसरे चरण का 100 ज़िलों में विस्तारित किया गया है।
  • महिला वैज्ञानिकों को शैक्षणिक और प्रशासनिक स्तर पर अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में ‘किरण योजना (KIRAN scheme ) शुरू की गई।
    • योजना के तहत शामिल 'महिला वैज्ञानिक योजना' बेरोज़गार महिला वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों को करियर के अवसर प्रदान करती है, विशेषकर उन महिलाओं को जिनके करियर में एक अवरोध आया है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence-AI) नवाचारों को बढ़ावा देने और भविष्य में AI-आधारित नौकरियों के लिये कुशल जनशक्ति तैयार करने के लक्ष्य के साथ महिला विश्वविद्यालयों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रयोगशालाएँ भी स्थापित की हैं।
  • महिलाओं के लिए इंडो-यूएस फेलोशिप कार्यक्रम के तहत महिला वैज्ञानिकों को अमेरिका में अनुसंधान प्रयोगशालाओं में कार्य करने का अवसर प्रदान किया गया है।
  • महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता हेतु विश्वविद्यालय अनुसंधान का समेकन (Consolidation of University Research for Innovation and Excellence in Women Universities- CURIE) कार्यक्रम का उद्देश्य महिला विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्टता के सृजन हेतु अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना में सुधार लाना और अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना करना है।
  • STEM क्षेत्र में लैंगिक समानता का आकलन करने हेतु एक व्यापक चार्टर एवं फ्रेमवर्क विकसित करने के लिये ‘जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस’ (Gender Advancement for Transforming Institutions- GATI) कार्यक्रम शुरू किया गया।

महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारण 

  • रूढ़िबद्धता: STEM क्षेत्र में महिलाओं की कमी केवल कौशल अपर्याप्तता के कारण नहीं है बल्कि निर्दिष्ट रूढ़िवादी लिंग भूमिकाओं (Stereotypical Gender Roles) का भी परिणाम है।
    • किसी महिला वैज्ञानिक को नौकरी देने या उसे नेतृत्वकारी पद प्रदान करने का निर्णय लेते समय उसकी योगता के बजाय उसकी पारिवारिक स्थिति या फिर जीवन साथी के स्तर को ध्यान में रखा जाता है।
    • यह एक सामान्य मानदंड सा बन गया है कि पहले से ही काम पर रखे गए फैकल्टी की महिला पत्नियों को वरीयता नहीं दी जायेगी चाहे वे कितनी भी मेधावी हों।
  • पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक कारण: नियुक्ति या फेलोशिप एवं अनुदान आदि प्रदान करने में पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण प्रकट होता है।
    • विवाह एवं संतानोत्पत्ति से संबंधित तनाव, सामाजिक मानदंडों के अनुरूप होने का दबाव और घरेलू बंधन (घर चलाने से संबंधित ज़िम्मेदारी, बुजुर्गों की देखभाल आदि) इन 'गैर-पारंपरिक' क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में और अवरोध उत्पन्न करते हैं।
  • रोल मॉडल का अभाव: लैंगिक समानता को अवरुद्ध करने में संगठनात्मक कारकों ने भी बड़ी भूमिका है। महिला नेतृत्वकर्त्ताओं और महिला रोल मॉडलों की कमी ने भी संभवतः अधिकाधिक महिलाओं को इन क्षेत्रों में प्रवेश को अवरुद्ध किया है।
  • सहायक संस्थागत संरचना का अभाव: गर्भावस्था के दौरान सहायक संस्थागत संरचनाओं की अनुपस्थिति और फील्डवर्क एवं कार्यस्थल में सुरक्षा-संबंधी समस्याएँ महिलाओं को कार्यबल से बाहर होने को विवश करती हैं।
    • इन क्षेत्रों में महिलाओं की कम संख्या के लिये न केवल सामाजिक मानदंड बल्कि गुणवत्ताहीन शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित समस्याएँ भी ज़िम्मेदार हैं।

आगे की राह 

  • विज्ञान अकादमियों की भूमिका: यद्यपि सभी क्षेत्रों में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व देखा जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में इस स्थिति को देखते हुए वैज्ञानिक समुदाय एवं विज्ञान अकादमियों को महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिये रणनीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है।
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि विज्ञान अकादमियों में महिलाओं को बढ़ावा देने और उन्हें बनाए रखने के लिये उनकी भूमिका एवं योगदान को प्रतिबिंबित करना होगा और इस तरह विज्ञान के क्षेत्र को महिलाओं के प्रति भी समावेशी और संवेदनशील बनाना होगा।
  • व्यवहारिक परिवर्तन लाना: सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से कमज़ोर लैंगिक भागीदारी उत्पन्न होती है जिसे लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाकर संबोधित किया जा सकता है।
    • इसे तभी परिवर्तित किया जा सकता है जब महिलाओं को नेतृत्वकारी पद प्रदान किया जाए।
    • STEM क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिये ताकि वे अगली पीढ़ी की बालिकाओं के लिये STEM क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु रोल मॉडल बन सकें।
    • यह आवश्यक है कि हम लिंगभेद एवं संस्थागत बाधाओं को समझें और दूर करें जो अधिक महिलाओं के अधिक से अधिक वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रवेश को अवरुद्ध करते हैं।
  • उच्च प्रतिनिधित्व के महत्त्व को समझना: समावेशी एवं धारणीय समाजों का निर्माण करने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व आवश्यक है।
    • लैंगिक समानता न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है बल्कि एक व्यावसायिक प्राथमिकता भी है। जिन संगठनों द्वारा अपनी कार्यकारी टीमों में अधिक विविधता को बढ़ावा दिया जाता है उन संगठनों की लाभ और नवाचार क्षमता अधिक होने की संभावना होती हैं।
    • यथास्थिति को तेज़ी से परिवर्तित करने के लिये हम सभी को अपने प्रयासों को बढ़ाना होगा। लैंगिक असमानता के विरुद्ध इस युद्ध में परिवारों, शैक्षणिक संस्थानों, कंपनियों और सरकारों सभी को साथ मिलकर कार्य करना होगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘STEM क्षेत्र में लैंगिक असमानता को तभी समाप्त किया जा सकता है जब समाज, परिवार, शैक्षणिक संस्थान और सरकार की ओर से इसके विरुद्ध सामूहिक प्रयास किये जाएँ।’’ टिप्पणी कीजिये।