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एडिटोरियल

  • 25 Feb, 2025
  • 28 min read
शासन व्यवस्था

RTI के उद्देश्य का पुनर्स्थापन

यह एडिटोरियल 25/02/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “The RTI is now the ‘right to deny information” पर आधारित है। इस लेख में RTI अधिनियम की घटती प्रभावशीलता पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो कभी पारदर्शिता के लिये एक ऐतिहासिक सुधार था और अब प्रशासनिक प्रभुत्व, लंबित मामलों और प्रणालीगत प्रतिरोध के कारण कमज़ोर हो गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, अनुच्छेद 19(1)(a), अनुच्छेद 21, MNREGA, चुनावी बॉण्ड योजना, RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019, संविधान का अनुच्छेद 12, एच.डी. शौरी समिति 

मेन्स के लिये:

भारत में RTI का महत्त्व, RTI की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। 

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, जिसकी कभी एक ऐतिहासिक सुधार के रूप में सराहना की गई थी, साथ ही जिसने शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करके नागरिकों को सशक्त बनाने का प्रयास किया, सत्तासीन लोगों के व्यवस्थित प्रतिरोध के कारण इसकी प्रभावशीलता में लगातार गिरावट आई है। विश्व के सबसे सुदृढ़ पारदर्शिता कानूनों में से एक होने के बावजूद, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों के वर्चस्व वाले सूचना आयोगों, नियुक्तियों में विलंब और मामलों के बढ़ते बैकलॉग के कारण इसका कार्यान्वयन कमज़ोर होता चला गया है। नवीनतम विफलता डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के साथ हुई है, जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि यह RTI को "सूचना से अस्वीकृति के अधिकार" में बदल रहा है।

भारत में सूचना का अधिकार किस प्रकार अस्तित्व में आया?

  • सूचना के अधिकार की न्यायिक मान्यता (वर्ष 1975-1989)
    • वर्ष 1975: सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकारों के हिस्से के रूप में मान्यता दी।
    • वर्ष 1982: अनुच्छेद 19(1)(a) एवं अनुच्छेद 21 के तहत विस्तारित व्याख्या के रूप में RTI को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से जोड़ा गया।
    • वर्ष 1985: भोपाल गैस त्रासदी के बाद गैर सरकारी संगठनों ने पर्यावरण संबंधी सूचना तक नागरिक अभिगम की मांग की।
  • ज़मीनी स्तर के आंदोलन और प्रारंभिक प्रारूप (सत्र 1990-1999)
    • 1990 का दशक: राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) जैसे आंदोलनों ने जन सुनवाई के माध्यम से मजदूरी भुगतान में भ्रष्टाचार को उजागर किया।
    • वर्ष 1996: जन सूचना अधिकार के लिये राष्ट्रीय अभियान (NCPRI) का गठन, जिसने भारतीय प्रेस परिषद के साथ मिलकर RTI विधेयक का प्रारूप तैयार किया।
    • वर्ष 1997: सरकार ने प्रारूप एच.डी. शौरी समिति को भेजा, जिसने अपनी अनुशंसाएँ प्रस्तुत कीं।
  • विधायी प्रयास और प्रारंभिक राज्य RTI कानून (2000-2004)
    • वर्ष 2000: संसदीय स्थायी समिति ने RTI प्रारूप की समीक्षा की; राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु, दिल्ली और कर्नाटक ने राज्य RTI कानून पारित किये।
    • वर्ष 2002: संसद ने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, लेकिन इसे कभी अधिसूचित नहीं किया गया।
    • वर्ष 2003: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार पर RTI आधारित शासन सुधार लागू करने का दबाव डाला।
    • वर्ष 2004: UPA सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में एक सख्त RTI कानून का वादा किया गया।
  • RTI अधिनियम का पारित होना (सत्र 2004-2005)
    • वर्ष 2004: NCPRI ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) को संशोधन प्रस्तुत किया।
      • दिसंबर 2004: सरकार ने केवल केंद्र सरकार को कवर करने वाला एक सीमित RTI विधेयक पेश किया, जिसके कारण विरोध हुआ।
    • वर्ष 2005: लॉबिंग के बाद, संसद ने केंद्र और राज्य सरकारों को कवर करते हुए एक व्यापक RTI अधिनियम पारित किया।
      • 12 अक्तूबर 2005: RTI अधिनियम लागू हुआ, जिसके तहत पुणे में शाहिद रज़ा बर्नी द्वारा दायर RTI आवेदन, इस कानून के तहत दायर पहला आवेदन था।

सूचना का अधिकार (RTI) भारत में शासन में किस प्रकार योगदान देता है?

  • लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण और नागरिक सशक्तीकरण: RTI नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड, नीतियों और निर्णयों तक पहुँच बनाने में सक्षम बनाता है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है। 
    • यह सहभागी लोकतंत्र को सुदृढ़ी करता है, जिससे लोगों को प्राधिकारियों से सवाल करने और बेहतर शासन की मांग करने का अवसर मिलता है। 
    • यह सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये एक साधन के रूप में भी कार्य करता है, जिससे सीमांत समुदायों को अपने अधिकारों का दावा करने में मदद मिलती है। 
    • उदाहरण: चुनावी बॉण्ड योजना में अनियमितताओं पर सवाल उठाने में RTI आवेदनों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
      • इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनावी बॉण्ड योजना मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है।
  • भ्रष्टाचार से लड़ना और सुशासन को बढ़ावा देना: RTI भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अकुशलता और नीतिगत विफलताओं को उजागर करने में मदद करता है, जिससे लोक सेवक अधिक जवाबदेह बनते हैं। 
    • शासन में गोपनीयता को कम करके, यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी अनुबंध, धन आवंटन और निर्णय लेने की प्रक्रिया जाँच के अधीन हैं। 
    • उदाहरण: आदर्श हाउसिंग घोटाला (वर्ष 2010) तब उजागर हुआ जब एक RTI से पता चला कि किस प्रकार सैनिकों व अन्य सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिये बने फ्लैटों को अवैध रूप से राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को आवंटित कर दिया गया था। 
  • लोक कल्याणकारी योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: RTI सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन और धन के उपयोग पर नज़र रखने, लीकेज और अकुशलता को रोकने में मदद करता है।
    • नागरिक उपस्थिति रिकॉर्ड, व्यय विवरण और लाभार्थी सूची की मांग कर सकते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सार्वजनिक धन इच्छित प्राप्तकर्त्ताओं तक पहुँचे। 
    • उदाहरण: हाल ही में RTI के तहत पूछे गए प्रश्नों से पश्चिम बंगाल की MNREGA योजना में अनियमितताएँ उजागर हुईं, जिनमें फर्ज़ी कार्य रिकॉर्ड, पुराने जॉब कार्ड और अनुचित निविदा प्रक्रिया का खुलासा हुआ।
  • मौलिक अधिकारों और सामाजिक न्याय को कायम रखना: RTI अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(a) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) से संबद्ध है, क्योंकि सूचना तक पहुँच सूचित निर्णय लेने एवं अन्य मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिये आवश्यक है। 
    • यह मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों और सीमांत समूहों के लिये भेदभाव एवं अन्याय से लड़ने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
    • उदाहरण: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में (सत्र 2008-09) RTI से प्राप्त सूचना में BPL राशन कार्डों के दुरुपयोग का खुलासा हुआ, जिसके कारण वास्तविक लाभार्थियों को उनके हक का अनाज नहीं मिल पा रहा था, जिससे सरकार को इस समस्या को सुधारने के लिये मज़बूर होना पड़ा।
  • मीडिया और व्हिसलब्लोअर्स को सशक्त बनाना: RTI पत्रकारों, कार्यकर्त्ताओं और व्हिसलब्लोअर्स के लिये एक शक्तिशाली जाँच उपकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे उन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड तक पहुँचने तथा गलत कामों को उजागर करने में मदद मिलती है। 
    • इसने सरकारी अनुबंधों, न्यायिक कार्यवाहियों और प्रशासनिक निर्णयों को अधिक सुलभ बनाकर खोज़ी पत्रकारिता को सुदृढ़ किया है।
    • उदाहरण: कोयला आवंटन घोटाला (Coalgate) RTI के माध्यम से उजागर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अवैध कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द कर दिये गए।

RTI की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • सूचना आयोगों में रिक्तियाँ और लंबित मामले: केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में रिक्तियों की उच्च संख्या के कारण RTI की दक्षता प्रभावित हो रही है, जिसके कारण अपील और शिकायतों में विलंब होता रहा है। 
    • पर्याप्त आयुक्तों के बिना मामले वर्षों तक अनसुलझे रहते हैं, जिससे RTI की प्रभावशीलता कम हो जाती है। 
    • जून 2024 तक 29 सूचना आयोगों में 4 लाख से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित थीं। 
      • सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर 2024 तक, 4 राज्य सूचना आयोग आयुक्तों की अनुपस्थिति के कारण निष्क्रिय बने रहे, जबकि केंद्रीय सूचना आयोग 11 स्वीकृत सदस्यों में से केवल 3 के साथ काम कर रहा है।
  • विधायी संशोधनों के माध्यम से कमज़ोर करना: हाल के संशोधनों ने सूचना आयोगों की स्वतंत्रता को बाधित कर दिया है, जिससे वे सरकारी प्रभाव के प्रति संवेदनशील हो गए हैं। 
    • RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन निर्धारित करने की शक्ति दी, जिससे उनकी स्वायत्तता कम हो गई। 
    • इसके अलावा, DPDP अधिनियम, 2023 ने RTI की धारा 8(1) में संशोधन किया, जिससे सभी व्यक्तिगत सूचनाओं को प्रकटीकरण से छूट मिल गई, भले ही वह लोक सेवकों से संबंधित हो।
  • प्रशासनिक प्रतिरोध और गैर-अनुपालन: कई लोक सेवक अपनी अक्षमताओं और भ्रष्टाचार के उजागर होने के भय से जानबूझकर सूचना देने में विलंब करते हैं या उसे अस्वीकार करते हैं। 
    • कुछ संस्थाएँ तो लोक सूचना अधिकारी (PIO) नियुक्त करने से भी अस्वीकृत कर देती हैं, जिससे नागरिकों के लिये सूचना प्राप्त करना कठिन हो जाता है। 
      • राजनीतिक दलों ने भी RTI का उल्लंघन किया है, जिससे उनके वित्त पोषण और आंतरिक कामकाज़ की जाँच सीमित हो गई है।
    • सत्र 2023-24 में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को भेजी गई लगभग 42% RTI अपीलें बिना सुनवाई के वापस कर दी गईं।
  • छूट और गोपनीयता कानूनों का विस्तार: कई सरकारी निकाय व्यापक छूट के कारण RTI के दायरे से बाहर हैं। 
    • यह देखा गया है कि सरकारी विभाग प्रायः आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए RTI के तहत सूचना साझा करने से इनकार कर देते हैं।
      • RAW, IB और CERT-In सहित 27 सुरक्षा एजेंसियों को RTI अधिनियम की दूसरी अनुसूची के तहत छूट दी गई है। 
  • सूचना प्रकटीकरण में अत्यधिक विलंब: RTI अधिनियम के तहत 30 दिनों के भीतर (या आजीवन कारावास और स्वतंत्रता के मामलों में 48 घंटे) जवाब देना अनिवार्य है, लेकिन अधिकारी प्रायः इन समय-सीमाओं का उल्लंघन करते हैं। 
    • इससे न्याय में विलंब होता है, विशेषकर मानवाधिकार उल्लंघन, पर्यावरण अनुमोदन और भ्रष्टाचार जाँच से संबंधित मामलों में। 
      • इस तरह के विलंब के लिये कठोर दंड का अभाव अधिकारियों में लापरवाही एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
    • वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 29 में से 12 सूचना आयोगों में सूचना देने से अनुचित अस्वीकृति या शिकायत पर अपील की सुनवाई के लिये प्रतीक्षा अवधि एक वर्ष से अधिक है।
  • RTI कार्यकर्त्ताओं और मुखबिरों को धमकियाँ: RTI कार्यकर्त्ताओं को उत्पीड़न और हिंसा सहित गंभीर धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिससे नागरिक भ्रष्टाचार को उजागर करने से हतोत्साहित होते हैं।
    • संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने के कारण कई कार्यकर्त्ताओं पर हमला किया गया या उनकी हत्या कर दी गई, फिर भी सुरक्षा तंत्र कमज़ोर बना हुआ है। 
    • कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) के अनुसार, वर्ष 2006 से अब तक भारत भर में 99 RTI कार्यकर्त्ताओं की जान जा चुकी है और 180 पर हमला हुआ है।
  • RTI संस्थाओं में लैंगिक प्रतिनिधित्व का विषमता: सूचना आयोगों में लैंगिक विविधता का अभाव महिलाओं को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर परिप्रेक्ष्य को सीमित करता है। 
    • RTI की शुरुआत से ही इस पर पुरुष अधिकारियों का वर्चस्व रहा है, जिससे लिंग-संवेदनशील शासन सुनिश्चित करने में असफलता मिली है।
      •  इससे पारदर्शिता तंत्र में महिलाओं की चिंताओं का प्रतिनिधित्व कमज़ोर होता है।
    • वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित होने के बाद से, देश भर में सूचना आयुक्तों में से केवल 9% महिलाएँ हैं।
      • इसके अलावा, 29 में से 12 सूचना आयोगों में स्थापना के बाद से एक भी महिला आयुक्त नहीं है।
  • नागरिकों में जागरूकता का अभाव: कई नागरिक, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, अपने RTI अधिकारों के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं, जिसके कारण इसका कम उपयोग होता है। 
    • अभियान और शिक्षा के माध्यम से RTI जागरूकता को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयास अपर्याप्त हैं। 
    • प्रक्रिया की जानकारी के बिना, सीमांत समुदायों को जवाबदेही की मांग करने में संघर्ष करना पड़ता है।
    • PWC के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 12% ग्रामीण आबादी और 30% शहरी आबादी को RTI अधिनियम के संदर्भ में जानकारी थी।
  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम का दुरुपयोग: RTI अधिनियम पारदर्शिता के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन है, लेकिन तुच्छ या गैर-गंभीर प्रश्नों के लिये इसका दुरुपयोग सार्वजनिक कार्यालयों पर बोझ डालता है तथा महत्त्वपूर्ण शासन संबंधी मामलों से संसाधनों को हटाता है। 
    • कुछ व्यक्ति अधिकारियों को परेशान करने या व्यक्तिगत विवादों को निपटाने के लिये RTI दायर करते हैं, जिससे अधिनियम का मूल उद्देश्य कमज़ोर होता है। 
    • उदाहरण के लिये, एक बार किसी क्षेत्र में मवेशियों की संख्या की गणना के लिये RTI दायर की गई थी, जिससे यह पता चला कि किस प्रकार अप्रासंगिक प्रश्न प्रशासनिक दक्षता पर असर डाल सकते हैं। 
      • इस तरह का दुरुपयोग RTI अधिनियम की प्रभावशीलता को कमज़ोर करता है तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने में इसकी भूमिका को बाधित करता है। 

RTI की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • रिक्तियों की भर्ती और लंबित मामलों को कम करना: केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सूचना आयुक्तों की समय पर नियुक्ति सुनिश्चित करना लंबित मामलों को निपटाने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • भर्ती के लिये एक निश्चित समयसीमा और स्वतंत्र चयन प्रक्रिया से नियुक्तियों में राजनीतिक प्रभाव कम हो सकता है। 
    • अधिक लंबित मामलों को निपटाने के लिये फास्ट-ट्रैक तंत्र और अतिरिक्त पीठें शुरू की जानी चाहिये। 
    • AI-संचालित केस प्रबंधन प्रणालियों का लाभ उठाने से तत्काल मामलों को प्राथमिकता देने एवं सुनवाई में तीव्रता लाने में मदद मिल सकती है। 
      • दक्षता सुनिश्चित करने के लिये सूचना आयोगों का नियमित निष्पादन ऑडिट किया जाना चाहिये।
  • सूचना आयोगों की स्वायत्तता की आंशिक बहाली: राज्य और केंद्रीय सूचना आयोगों की वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता को मज़बूत करने से सरकारी हस्तक्षेप को रोका जा सकेगा। 
    • नियुक्ति प्रक्रिया में कार्यकारी विवेक के बजाय संसदीय निगरानी शामिल होनी चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की आवधिक समीक्षा के माध्यम से न्यायिक जाँच से स्वतंत्रता को मज़बूती मिल सकती है।
  • सक्रिय प्रकटीकरण को सुदृढ़ बनाना (RTI अधिनियम की धारा 4): सार्वजनिक प्राधिकरणों को RTI अनुरोधों की आवश्यकता को कम करने के लिये ऑनलाइन सक्रिय रूप से जानकारी प्रकट करने के लिये अधिकृत किया जाना चाहिये।
    • सरकारी वेबसाइटों को बजट, निविदाओं, अनुबंधों, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और निधि आवंटन के विवरण के साथ नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिये।
    • ओपन डेटा पोर्टल्स के अंगीकरण से गैर-संवेदनशील जानकारी तक वास्तविक काल पर अभिगम सुनिश्चित हो सकता है। 
    • प्रमुख योजनाओं और सरकारी कार्यक्रमों के लिये सामाजिक अंकेक्षण और तृतीय पक्ष के मूल्यांकन को संस्थागत बनाया जाना चाहिये।
  • प्रशासनिक प्रतिरोध पर अंकुश लगाना और अनुपालन बढ़ाना: बिना वैध कारण के सूचना देने में विलंब करने वाले या इनकार करने वाले अधिकारियों पर कठोर दंड लगाया जाना चाहिये।
    • मंत्रालयों और विभागों के लिये RTI अनुपालन रेटिंग प्रणाली स्थापित करने से पारदर्शिता को बढ़ावा मिल सकता है।
      • जागरूकता और दक्षता में सुधार के लिये लोक सूचना अधिकारियों (PIO) को अनिवार्य वार्षिक प्रशिक्षण दी जानी चाहिये।
  • RTI कार्यकर्त्ताओं और व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करना: व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 को गुमनाम शिकायतों और आपातकालीन सुरक्षा तंत्र के प्रावधानों के साथ पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिये। 
    • फास्ट-ट्रैक अदालतों को RTI कार्यकर्त्ताओं पर हमलों के मामलों को सख्त कानूनी प्रतिबंधों के साथ निपटाना चाहिये। 
    • ज़िला स्तर पर समर्पित RTI कार्यकर्त्ता हेल्पलाइन और सहायता प्रकोष्ठ स्थापित किये जाने चाहिये।
    • सरकार और नागरिक समाज की साझेदारी खतरों का सामना कर रहे कार्यकर्त्ताओं के लिये कानूनी सहायता कोष स्थापित कर सकती है।
  • सूचना आयोगों में लैंगिक प्रतिनिधित्व बढ़ाना: विविधता सुनिश्चित करने के लिये सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में न्यूनतम लैंगिक कोटा लागू किया जाना चाहिये।
    • सरकारी भर्ती नीतियों को अधिक महिलाओं को PIO और IC पदों के लिये आवेदन करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। 
    • RTI प्रशिक्षण कार्यक्रम महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (SHG) और ज़मीनी स्तर के संगठनों के अनुरूप होना चाहिये।
    • महिला-केंद्रित पारदर्शिता पहलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक कल्याण और ग्रामीण विकास में। 
  • जागरूकता और डिजिटल अभिगम का विस्तार: RTI साक्षरता को कम उम्र से ही जागरूकता उत्पन्न करने के लिये स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिये।
    • सरकार को डिजिटल प्लेटफॉर्म, सामुदायिक रेडियो और स्थानीय शासन निकायों का उपयोग करके देशव्यापी RTI जागरूकता अभियान चलाना चाहिये।
    • क्षेत्रीय भाषा समर्थन और मोबाइल आधारित एप्लीकेशन सहित RTI दाखिल करने की प्रक्रिया को सरल बनाने से पहुँच बढ़ सकती है। 
    • ग्राम पंचायतों को RTI जागरूकता सत्र आयोजित करने के लिये प्रोत्साहित करने से ग्रामीण भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 जैसे अतिव्यापी कानूनों का समाधान: सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA), 1923 को RTI सिद्धांतों के अनुरूप बनाने और अनुचित गोपनीयता को कम करने के लिये सुधार किया जाना चाहिये। 
    • सरकार की निर्णय प्रक्रिया, विशेषकर राष्ट्रीय सुरक्षा से असंबंधित मुद्दों पर, अधिक पारदर्शी होनी चाहिये। 
    • RTI अधिनियम की दूसरी अनुसूची, जो 27 सुरक्षा एजेंसियों को छूट देती है, की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गैर-संवेदनशील जानकारी का खुलासा न हो।
  • RTI कार्यान्वयन के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: AI-संचालित चैटबॉट और स्वचालित RTI सहायक नागरिकों को बेहतर RTI आवेदन तैयार करने में मदद कर सकते हैं। 
    • ब्लॉकचेन-आधारित रिकॉर्ड-कीपिंग से डेटा से छेड़छाड़ को रोका जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रकट की गई सूचना प्रामाणिक बनी रहे। 
    • सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेज़ों तक सुगमता प्रदान करने के लिये RTI पोर्टलों को डिजिलॉकर के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • रियल टाइम ट्रैकिंग सिस्टम शुरू की जानी चाहिये, जिससे आवेदक अपने RTI अनुरोध की स्थिति पर नजर रख सकें। 

निष्कर्ष:

सूचना के अधिकार की प्रभावशीलता को पुनः स्थापित करने के लिये, भारत को समय पर नियुक्तियों को प्राथमिकता देनी चाहिये, डिजिटल पारदर्शिता को बढ़ाना चाहिये और व्हिसलब्लोअर सुरक्षा को सुदृढ़ करना चाहिये। सक्रिय खुलासे और AI-संचालित केस प्रबंधन विलंब को कम कर सकते हैं और शासन को बेहतर बना सकते हैं। एक सही मायने में सशक्त RTI कार्यढाँचा जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास सुनिश्चित करके लोकतंत्र को सुदृढ़ करेगा। पारदर्शिता का भविष्य भागीदारीपूर्ण शासन के लिये एक साधन के रूप में RTI को पुनर्जीवित करने पर निर्भर करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. RTI अधिनियम की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाले कारकों का आकलन कीजिये तथा इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उपाय प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स 

प्रश्न 1. "सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनःपरिभाषित करता है।" विवेचना कीजिये।  (2018)


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