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  • 24 Oct, 2024
  • 27 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना विरोधाभास

यह संपादकीय 23/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “The world needs blue helmets who act as blue helmets” पर आधारित है। लेख में यूक्रेन और गाज़ा जैसे प्रमुख संघर्षों में एक 'तमाशबीन/मूकदर्शक' के रूप में संयुक्त राष्ट्र की घटती भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, जबकि इसके पास एक मज़बूत शांति सेना और कंबोडिया व सियेरा लियोन जैसे स्थानों में पिछली सफलताएँ हैं। फिर भी सुरक्षा परिषद में P5 सदस्यों की वीटो शक्ति द्वारा इसकी प्रभावशीलता सीमित है, जिससे सुधार की मांग तेज़ हो गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

शांति सेना, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, रूस-यूक्रेन, इज़रायल-हमास, साइबर हमले, हैती हैजा प्रकोप, अफ्रीकी संघ, संयुक्त राष्ट्र शांति पहल में भारतीय महिलाएँ   

मेन्स के लिये:

शांति सेना की घटती भूमिका में योगदान देने वाले कारक, शांति मिशनों में भारत का योगदान। 

कंबोडिया और सियेरा लियोन जैसे स्थानों में अपनी व्यापक शांति सेना तथा सफल मिशनों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र अब यूक्रेन एवं गाज़ा जैसे प्रमुख संघर्षों में एक 'मूकदर्शक' की भूमिका निभा रहा है। सुरक्षा परिषद के P5 सदस्य राष्ट्रों के पास वीटो शक्ति होने के कारण इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है। इसके परिणामस्वरूप सुधार की मांगें तेज़ हो गई हैं, विशेषकर भारत को स्थायी सदस्यों की सूची में शामिल करने की, जिससे वैश्विक दक्षिण को एक प्रभावशाली समर्थन प्राप्त होगा। साथ ही, वीटो प्रणाली को बढ़ाने से अधिक निर्णायक शांति स्थापना कार्रवाई हो सकती है। 

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना क्या है? 

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के संदर्भ में: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना से तात्पर्य संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने या पुनर्स्थापना करने में मदद करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा की जाने वाली गतिविधियों से है।
    • संघर्षों की जटिल प्रकृति का प्रत्युत्तर देने और संघर्ष से शांति की ओर संक्रमण में देशों को समर्थन देने के लिये संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, आत्मरक्षा तथा जनादेश की रक्षा को छोड़कर, सहमति, निष्पक्षता एवं बल का प्रयोग न करने के सिद्धांतों के तहत काम करती है।
    • यद्यपि अधिकांश शांति सैनिक सैन्य या पुलिस हैं, लगभग 14% नागरिक हैं। 
  • स्थापना और विकास: पहला संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन को मई 1948 में स्थापित किया गया था जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मध्य पूर्व में कुछ सैन्य पर्यवेक्षकों की तैनाती को अधिकृत किया था। 
    • इस मिशन ने संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (UNTSO) का गठन किया, जिसका उद्देश्य इज़रायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच युद्धविराम समझौते की निगरानी करना था।
    • पिछले सात दशकों में, 10 लाख से अधिक पुरुषों और महिलाओं ने संयुक्त राष्ट्र के तहत 70 से अधिक शांति अभियानों में सेवा की है। 
      • वर्तमान में, 125 देशों के 100,000 सैन्य, पुलिस और नागरिक कर्मचारी 14 सक्रिय शांति अभियानों में लगे हुए हैं।
  • उपलब्धियाँ (वर्ष 2022 तक): 
    • संघर्ष समाधान: संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों ने कंबोडिया, अल साल्वाडोर, मोज़ाम्बिक और सियेरा लियोन जैसे देशों में संघर्षों को सफलतापूर्वक हल किया है। कुल मिलाकर, वर्ष 1945 के बाद से अंतर-राज्यीय संघर्षों में 40% की कमी आई है।
    • मानवीय सहायता: शांति सैनिकों ने संघर्ष क्षेत्रों में 125 मिलियन से अधिक नागरिकों की रक्षा की है और शरणार्थियों की वापसी एवं पुनर्वास में सहायता करते हुए मानवीय सहायता पहुँचाने में मदद की है।
    • राज्य निर्माण: उन्होंने 75 से अधिक देशों में लोकतांत्रिक चुनावों का समर्थन किया है और सुरक्षा क्षेत्र में सुधार व प्रशिक्षण में सहायता के साथ-साथ कार्यशील सरकारी संस्थाओं की स्थापना में सहायता की है।

शांति सेना की भूमिका कम होने में किन कारकों का योगदान है?

  • सत्ता की राजनीति और वीटो का दुरुपयोग: P5 सदस्य-देशों के बीच बढ़ते ध्रुवीकरण के कारण, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण स्थितियों में, वीटो शक्ति का बार-बार प्रयोग होने लगा है। 
    • वर्ष 2011 से अब तक रूस ने 19 बार अपने वीटो का प्रयोग किया है, जिसमें से 14 बार सीरिया पर केंद्रित थे तथा शेष वीटो यूक्रेन, स्रेब्रेनिका, यमन और वेनेज़ुएला पर केंद्रित थे।
    • वर्ष 2023 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने गाज़ा में लाखों लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये ‘मानवीय विराम’ का आह्वान करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो कर दिया। 
    • यह गतिरोध शांति सैनिकों की समय पर (जब उनकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है) तैनाती में बाधा उत्पन्न करता है, जैसा कि वर्तमान के दोनों संघर्षों (रूस-यूक्रेन और इज़रायल-हमास) में देखा गया है, जहाँ कई नागरिकों की जान चली गई है। 
    • कभी शांति प्रवर्तक रहा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद शांति स्थापना संबंधी निर्णयों के राजनीतिकरण के कारण आज बहस मंच में बदल गया है।
  • संसाधनों की कमी और वित्तपोषण की चुनौतियाँ: शांति अभियानों को वित्तपोषण की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो संयुक्त राष्ट्र के पास अपने शांति अभियानों को जारी रखने के लिये धन की कमी हो जाएगी, जिसमें 14 वैश्विक हॉटस्पॉट में लगभग 100,000 सैनिक शामिल हैं।
    • प्रमुख शक्तियों द्वारा धन बढ़ाने में अनिच्छा के कारण मिशनों में कर्मचारियों की कमी हो गई है। उदाहरण के लिये, लेबनान में UNIFIL बढ़ते तनाव के बावजूद सीमित संसाधनों के साथ कार्य कर रहा है। 
    • यह वित्तीय दबाव शांति सेना की प्रभावशीलता और मनोबल पर असर डालता है।
  • संघर्षों की बदलती प्रकृति: आधुनिक संघर्षों में जटिल अर्बन वारफेयर, साइबर तत्त्व और गैर-राज्यीय अभिकर्त्ता शामिल होते हैं, जिनसे निपटने के लिये पारंपरिक शांति व्यवस्था सक्षम नहीं है। 
    • गाज़ा संघर्ष इसका उदाहरण है, जहाँ पारंपरिक बफर-ज़ोन शांति स्थापना उपागम अर्बन वारफेयर जैसी स्थितियों के लिये अपर्याप्त हैं। 
    • इसी प्रकार, यूक्रेन में साइबर हमलों और सूचना युद्ध से संबद्ध हाइब्रिड युद्ध पारंपरिक शांति स्थापना क्षमताओं से परे चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।
    • युद्ध के इस विकास के लिये नए उपागमों की आवश्यकता है, जिनका समाधान संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान आदेश और प्रशिक्षण में नहीं है।
  • संप्रभुता संबंधी चिंताएँ और मेज़बान राष्ट्र का प्रतिरोध: संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की उपस्थिति के विरुद्ध मेज़बान देशों में प्रतिरोध बढ़ रहा है, वे इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। 
    • सूडान द्वारा UNAMID को अस्वीकार करना, माली द्वारा MINUSMA को जबरन वापस लेना तथा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य द्वारा MONUSCO को बाहर निकालने पर बल देना इस प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। 
    • इन असामयिक निकासीयों के कारण प्रायः नागरिक आबादी असुरक्षित हो जाती है तथा वर्षों से किये जा रहे स्थिरीकरण प्रयास विफल हो जाते हैं, जैसा कि माली में देखा गया, जहाँ MINUSMA की वापसी के बाद हिंसा लगभग चरम पर पहुँच गई थी।
  • विश्वसनीयता का संकट और अतीत की विफलताएँ: ऐतिहासिक विफलताएँ संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना की प्रतिष्ठा को लगातार नुकसान पहुँचा रही हैं। 
    • रवांडा और स्रेब्रेनिका में नरसंहार को रोकने में असमर्थता तथा समकालीन संघर्षों में हाल की निष्क्रियता ने वैश्विक विश्वास को खत्म कर दिया है। 
    • शांति सैनिकों से जुड़े यौन शोषण के मामले एवं रोग संचरण (हैती हैज़ा प्रकोप) की घटनाओं से विश्वसनीयता और भी प्रभावित हुई है, जिससे मेज़बान राष्ट्र एवं स्थानीय आबादी संयुक्त राष्ट्र की उपस्थिति के प्रति सशंकित हो गई है।
  • उभरते क्षेत्रीय विकल्प: क्षेत्रीय संगठन शांति स्थापना अभियानों में तेज़ी से अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। 
    • सोमालिया में अफ्रीकी संघ के शांति अभियान (ATMIS) और क्षेत्रीय विवादों में अरब लीग की बढ़ती भूमिका, क्षेत्रीय समाधानों की ओर बदलाव को दर्शाती है। 
    • इन संगठनों के पास प्रायः बेहतर स्थानीय समझ और तीव्र तैनाती क्षमताएँ होती हैं, हालाँकि उनके पास संयुक्त राष्ट्र के संसाधनों तथा अंतर्राष्ट्रीय वैधता का अभाव हो सकता है।
  • प्रौद्योगिकी और क्षमता अंतराल: अधिकांश संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में आधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी और निगरानी क्षमताओं का अभाव है, जो समकालीन संघर्षों के लिये अत्यंत आवश्यक हैं। 
    • जबकि निजी सैन्य कंपनियाँ और राष्ट्रीय सेनाएँ ड्रोन, AI-सक्षम प्रणालियाँ व उन्नत संचार तैनात कर रही हैं। 
    • संयुक्त राष्ट्र की सेनाएँ प्रायः बुनियादी उपकरणों के साथ काम करती हैं। तकनीक-सक्षम संघर्षों (जैसा कि यूक्रेन में देखा गया) में संघर्ष विराम उल्लंघनों की प्रभावी निगरानी करने में असमर्थता इस तकनीकी कमी को दर्शाती है।
  • सुधार के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सुधार के लिये अनेक प्रस्तावों के बावजूद, जिनमें वर्ष 2015 की हिप्पो रिपोर्ट की सिफारिशें भी शामिल हैं, का कार्यान्वयन धीमा बना हुआ है। 
    • भारत जैसे देशों को शामिल करने के लिये सुरक्षा परिषद का प्रस्तावित विस्तार (जिसमें 5,700 शांति सैनिक शामिल होंगे) तथा वीटो शक्ति में सुधार अभी भी रुके हुए हैं।
    • यह संस्थागत जड़ता नई चुनौतियों के अनुकूलन को रोकती है तथा पुराने परिचालन मॉडल को बनाए रखती है।

शांति मिशनों में भारत का योगदान क्या है? 

  • ऐतिहासिक नेतृत्व और कार्मिक योगदान: 2,53,000 से अधिक सैनिकों के साथ - जो किसी भी देश से सर्वाधिक है- भारत ने किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक संयुक्त राष्ट्र सैनिकों का योगदान दिया है तथा 49 से अधिक मिशनों में भाग लिया है। 
    • विश्व भर में शांति सुनिश्चित करने के लिये 160 भारतीय सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है। 
    • भारतीय सशस्त्र बल कई देशों में शांति मिशनों में तैनात हैं: 

  • तकनीकी और चिकित्सा विशेषज्ञता: भारतीय शांति सैनिकों ने स्वयं को विभिन्न मिशनों में तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में स्थापित किया है, विशेष रूप से चिकित्सा सहायता में। 
    • भारत ने कांगो गणराज्य और दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन के अस्पतालों में तैनात करने के लिये चिकित्सा विशेषज्ञों की दो टीमें गठित करने हेतु प्रयास तेज़ कर दिये।
    • भारत ने मोज़ाम्बिक में ONUMOZ मिशन (वर्ष 1992-94) के लिये दो इंजीनियरिंग कंपनियों— एक मुख्यालय कंपनी, एक लॉजिस्टिक्स कंपनी, स्टाफ अधिकारी और सैन्य पर्यवेक्षकों का योगदान दिया।
  • विशिष्ट सैन्य क्षमताएँ: भारत ने हमलावर हेलीकॉप्टर, परिवहन विमान और इंजीनियरिंग कंपनियों जैसी विशिष्ट इकाइयाँ प्रदान की हैं। 
    • भारतीय विमानन टुकड़ी-I (IAC-I) को वर्ष 2003 में गोमा में शामिल किया गया था (जिसमें चार MI-25 हमलावर हेलीकॉप्टर और पाँच Mi-17 यूटिलिटी हेलीकॉप्टर शामिल थे) तथा इसने महत्त्वपूर्ण हवाई सहायता प्रदान की। 
    • भारत की सिग्नल इकाइयों ने विभिन्न मिशनों में संचार नेटवर्क स्थापित और बनाए रखा है।
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (CUNPK) के पास 67,000 से अधिक कार्मिकों का ट्रैक रिकॉर्ड है, जिन्होंने 56 संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशनों में से 37 में भाग लिया है। 
    • भारत विशेष रूप से यौन शोषण और दुर्व्यवहार की रोकथाम जैसे क्षेत्रों में तैनाती-पूर्व प्रशिक्षण में अग्रणी रहा है तथा इसने अपने 100% कार्मिकों को इन पहलुओं पर प्रशिक्षित किया है। 
  • नीतिगत योगदान और सुधार: भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना नीतियों को आयाम देने में अहम भूमिका निभाता रहा है, विशेष रूप से C-34 (शांति स्थापना कार्यों पर विशेष समिति) में अपनी उपस्थिति के माध्यम से। 
    • देश ने निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सैनिक योगदान देने वाले देशों के अधिक प्रतिनिधित्व के लिये लगातार दबाव डाला है, जिसके परिणामस्वरूप परामर्श तंत्र में सुधार हुआ है।
  • शांति स्थापना में महिलाएँ: भारत ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और अबेई में महिला संलग्नता दल (FET) तैनात किये हैं (लाइबेरिया के बाद यह भारतीय महिलाओं का दूसरा सबसे बड़ा दल है)। 
    • भारत ने गोलान हाइट्स में महिला सैन्य पुलिस और विभिन्न मिशनों में महिला स्टाफ अधिकारियों/सैन्य पर्यवेक्षकों को भी तैनात किया है। Military Gender Advocate of the Year 2023
    • मेजर राधिका सेन को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय द्वारा ‘मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द इयर, 2023’ से सम्मानित करने के लिये चुना गया है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना पहल में भारतीय महिलाओं के सकारात्मक योगदान का प्रमाण है।
  • मानवीय सहायता और सामुदायिक सहभागिता: भारतीय शांति सैनिकों ने सामुदायिक सहभागिता और त्वरित प्रभाव परियोजनाओं में उत्कृष्टता हासिल की है। 
    • दक्षिण सूडान में लगभग 1,160 भारतीय सैनिक सड़कों के पुनर्निर्माण और स्थानीय समुदायों की क्षमता को बढ़ाने के कार्य में लगे हुए हैं।
    • विकासशील देश होने के बावजूद भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना कोष में निरंतर योगदान दिया है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत ने शांति स्थापना मिशनों में सेवारत संयुक्त राष्ट्र के ब्लू हेलमेटों के टीकाकरण हेतु वर्ष 2021 में कोविड-19 टीकों की 200,000 खुराकें भेजीं, जिससे शांति सैनिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति इसकी प्रतिबद्धता प्रदर्शित हुई।

शांति स्थापना मिशनों की प्रभावशीलता बढ़ाने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • सुरक्षा परिषद सुधार और निर्णय-निर्माण: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को तत्काल संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता है, जिसमें भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को शामिल करने के लिये स्थायी सदस्यता का विस्तार शामिल है। 
    • सामूहिक अत्याचार या नरसंहार से जुड़े मामलों में वीटो के प्रयोग हेतु ‘आचार संहिता’ का कार्यान्वयन।
    • शांति स्थापना तैनाती निर्णयों के लिये भारित मतदान प्रणाली की शुरुआत, जिससे P5 गतिरोध में कमी आएगी। 
    • नागरिक खतरे के निकटस्थ मामलों में आपातकालीन तैनाती के लिये त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र का निर्माण। विशिष्ट निकास रणनीतियों के साथ मिशनों के लिये स्पष्ट, प्राप्य और समयबद्ध अधिदेशों की स्थापना।
  • वित्तीय एवं संसाधन संवर्द्धन: सदस्य राज्यों के योगदान में विलंब को रोकने के लिये अनिवार्य वित्तपोषण तंत्र का कार्यान्वयन।
    • त्वरित तैनाती और आपातकालीन स्थितियों के लिये एक समर्पित शांति स्थापना रिज़र्व का निर्माण।
    • मिशन लॉजिस्टिक्स और सहायता सेवाओं के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी का विकास।
    • सैन्य योगदान देने वाले देशों के लिये प्रदर्शन-आधारित वित्तीय प्रोत्साहन का समय पर भुगतान (वर्ष 2017 में, शांति अभियानों में योगदान के लिये संयुक्त राष्ट्र पर भारत का 55 मिलियन डॉलर बकाया था, जिस पर भारत ने चिंता व्यक्त की थी)।
    • तैनाती की अवधि और लागत को कम करने के लिये क्षेत्रीय शांति स्थापना उपकरण केंद्रों की स्थापना।
  • तकनीकी आधुनिकीकरण: खतरे के आकलन और पूर्व चेतावनी प्रणालियों में AI और मशीन लर्निंग का एकीकरण।
    • बेहतर स्थितिजन्य जागरूकता के लिये UAV और उपग्रह इमेजरी सहित उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकी की तैनाती।
    • पारदर्शी आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और संसाधन ट्रैकिंग के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का प्रभावी कार्यान्वयन। 
    • मिशन संचार और डेटा की सुरक्षा को सुदृढ़ करने हेतु साइबर सुरक्षा क्षमताओं का संवर्द्धन। साथ ही, रियल टाइम सूचना साझाकरण और नागरिक सुरक्षा अलर्ट के लिये मोबाइल ऐप्लीकेशन का विकास।
  • प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण: मिशन-विशिष्ट सिमुलेशन क्षमताओं से युक्त मानकीकृत वैश्विक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना।
    • सभी शांति सैनिकों के लिये अनिवार्य अंतर-सांस्कृतिक और भाषाई प्रशिक्षण का प्रभावी कार्यान्वयन। 
    • अर्बन वारफेयर और आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिये विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल का विकास; सैन्य-योगदान देने वाले विभिन्न देशों के बीच संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास का आयोजन और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में स्थानीय ज्ञान तथा सांस्कृतिक समझ का समावेश।
  • लिंग आधारित मुख्यधाराकरण और समावेशन: मिशन योजना में लिंग-उत्तरदायी बजट का कार्यान्वयन। 
    • लक्षित भर्ती रणनीतियों के माध्यम से महिला शांति सैनिकों की तैनाती को बढ़ाना। 
    • सभी मिशन स्तरों पर विशिष्ट लिंग-आधारित सलाहकार भूमिकाओं का निर्माण करना। लिंग-संवेदनशील सुरक्षा रणनीतियों का विकास। शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • जवाबदेही और निगरानी: कदाचार के प्रति शून्य सहनशीलता की नीतियों का त्वरित जाँच तंत्र के साथ कार्यान्वयन। 
    • मिशन प्रदर्शन मूल्यांकन के लिये स्वतंत्र निरीक्षण निकायों का गठन और परिचालन प्रभावशीलता सुनिश्चित करने हेतु पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र का विकास।
    • मिशन मूल्यांकन के लिये सामुदायिक फीडबैक तंत्र की स्थापना। आंतरिक लेखापरीक्षा और भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को सुदृढ़ करना।
  • क्षेत्रीय भागीदारी: AU, EU, ASEAN जैसे क्षेत्रीय संगठनों के साथ औपचारिक साझेदारी विकसित करना। क्षेत्रीय बलों के साथ संयुक्त त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं का निर्माण करना। साझा रसद और सहायता प्रणालियों का कार्यान्वयन करना। 
    • मिशन की योजना बनाते समय व्यापक निकास रणनीतियों का विकास करना। स्थायी शांति-निर्माण पहलों का प्रभावी कार्यान्वयन करना। 

निष्कर्ष:

  • अपनी व्यापक शांति सेना और पिछली सफलताओं के बावजूद, समकालीन संघर्षों में संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता P5 सदस्यों की वीटो शक्ति तथा संसाधन की कमी के कारण बाधित है। अपनी भूमिका को सशक्त बनाने के लिये संयुक्त राष्ट्र को सुरक्षा परिषद के विस्तार और वित्तीय सुधारों सहित संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र को शांति स्थापना के लिये अपने उपागम को आधुनिक बनाना, संघर्षों की बदलती प्रकृति के अनुकूल होना और प्रौद्योगिकी में निवेश करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भारत के योगदान की समीक्षा करते हुए वैश्विक शांति एवं सुरक्षा पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं तथा शेष 10 सदस्य महासभा द्वारा ------------ की अवधि के लिये चुने जाते हैं।  (2009)  

(a) 1 वर्ष
(b) 2 वर्ष
(c) 3 वर्ष
(d) 5 वर्ष

उत्तर: (b)


मेन्स:

Q. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)


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