लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 24 Sep, 2021
  • 12 min read
शासन व्यवस्था

सामाजिक उद्यमिता शासन

यह लेख 22/09/2021 को ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘For the empowerment of social entrepreneurs, a five-point agenda’’ लेख पर आधारित है। इसमें सामाजिक उद्यमिता की चर्चा की गई है और भारत में सामाजिक उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के तरीके सुझाए गए हैं।

संदर्भ

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने सामाजिक उद्यमियों की उल्लेखनीय भूमिका और सामाजिक क्षेत्र के विकास में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया है।  

इस अवधि के दौरान उन्होंने संसाधन जुटाने, जागरूकता के प्रसार, आवश्यक वस्तुओं/सेवाओं के वितरण, परामर्श देने, मिथकों को दूर करने, घरेलू देखभाल सेवाओं की सुनिश्चितता, सामुदायिक सेवा केंद्रों का निर्माण, परीक्षण की सुविधा और टीकाकरण अभियान में सहयोग के रूप में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) से इतर सामाजिक उद्यम मुक्त बाज़ार में सक्रीय होते हैं। वे लाभकारी, गैर-लाभकारी अथवा मिश्रित—किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। अब जबकि सामाजिक उद्यमियों की संख्या बढ़ी रही है, उन्हें सरकार से तत्काल सहायता की आवश्यकता है। 

सामाजिक उद्यमी और उनका महत्त्व

  • सामाजिक समस्याओं पर ध्यान: सामाजिक उद्यमी मुख्य रूप से सामाजिक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिये सामाजिक व्यवस्था के निर्माण हेतु उपलब्ध संसाधनों को जुटाकर नवाचार की पहल करते हैं। 
  • सामाजिक क्षेत्र में बदलाव के एजेंट: सामाजिक उद्यमी समाज में परिवर्तन निर्माताओं के रूप में कार्य करते हैं और इस रूप में मानव जाति के विकास में योगदान के लिये दूसरों को भी प्रेरित करते हैं।  
    • वे न केवल समाज में एक मज़बूत उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि सामाजिक क्षेत्र में बदलाव के एजेंट के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • परिवर्तन लाना: वे सामाजिक मूल्य के सृजन और उसे बनाए रखने के लिये एक मिशन को अंगीकार करते हैं। वे नए अवसरों की पहचान करते हैं और उनका सख्ती से पालन करते हैं। वे लगातार नवाचार, अनुकूलन और लर्निंग की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं।     
  • जवाबदेही में बढ़ोतरी: वे उपलब्ध संसाधनों तक सीमित रहे बिना साहसपूर्वक कार्य करते हैं और अपने लक्षित समूहों के प्रति उच्च जवाबदेही का प्रदर्शन करते हैं। 
  • लोगों के जीवन में सुधार लाना: लोग जिन कारणों से स्टीव जॉब्स जैसे व्यावसायिक उद्यमियों के प्रति सम्मोहित होते हैं, उन्हीं कारणों से नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस जैसे सामाजिक उद्यमियों की ओर भी आकर्षित होते हैं। ये असाधारण लोग शानदार विचारों के साथ सामने आए हैं और सभी बाधाओं को पार करते हुए ऐसे नए उत्पादों एवं सेवाओं के निर्माण में सफल हुए जिन्होंने लोगों के जीवन में नाटकीय रूप से सुधार किया।   
  • समावेशी समाज के निर्माण में सहायक: वे ज़मीनी स्तर पर समावेशी सुधार और समुदायों के पुनर्निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।  
    • उदाहरण: इला भट्ट (स्व-नियोजित महिला संघ- SEWA), बंकर रॉय (बेयरफुट कॉलेज के संस्थापक, जो ग्रामीण समुदायों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है), हरीश हांडे (इन्होने अपने सामाजिक उद्यम ’सेल्को इंडिया’ के माध्यम से गरीबों तक सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी पहुँचाने का व्यावहारिक प्रयास किया है) जैसे भारतीय उद्यमियों ने भारत में कुछ प्रमुख वैश्विक चुनौतियों से निपटने में योगदान किया है।      

सामाजिक उद्यमियों को बढ़ावा देना

  • तीन वर्ष से कम अवधि वाले सामाजिक उद्यमियों के साथ-साथ लाभकारी सामाजिक उद्यमियों को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) वित्तपोषण के माध्यम से वित्तीय सहायता प्राप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिये।   
    • वर्तमान में कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों में इसकी अनुमति नहीं है।
    • कोविड-19 महामारी ने हाशिये पर स्थित समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, ऐसे में सामाजिक उद्यमियों ने अपने संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर इन समुदायों की सेवा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • उन्हें आगे अपना कार्य जारी रखने और पुनर्निर्माण एवं पुनर्प्राप्ति प्रयासों में तेज़ी लाने के लिये पूँजी की आवश्यकता है।
  • सामाजिक उद्यम को परिभाषित करना: आधिकारिक परिभाषा की कमी एक बाधा के रूप में कार्य करती है। उदाहरण के लिये यूनाइटेड किंगडम का व्यापार एवं उद्योग विभाग उन्हें ‘सामाजिक उद्देश्यों के साथ संचालित एक ऐसे व्यवसाय के रूप में परिभाषित करता है, जिसका अधिशेष प्रमुख रूप से व्यवसाय या समुदाय में शेयरधारकों और मालिकों के लिये अधिकतम लाभ की आवश्यकता से प्रेरित होने के बजाय सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति के लिये पुनर्निवेश किया जाता है।’    
    • भारत में सामाजिक उद्यमियों की समस्याओं को संबोधित करने के लिये कोई विशिष्ट मंत्रालय या विभाग मौजूद नहीं है, जिससे वे केंद्रित समर्थन प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
    • उन्हें सरकार में एक संदर्भ बिंदु की आवश्यकता है। नीति आयोग इस क्षेत्र के संपोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
  • नॉट-फॉर-प्रॉफिट स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना: ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ पहल ने फॉर-प्रॉफिट स्टार्टअप सामाजिक उद्यमों को तो संबोधित किया है, लेकिन नॉट-फॉर-प्रॉफिट स्टार्टअप्स को अब तक इसके दायरे में नहीं लाया गया है। इनका समावेशन भी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।   
  • सामाजिक उद्यमों के लिये विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’ (FCRA) के प्रावधानों को सरल बनाया जाना चाहिये, ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय दाताओं के माध्यम से धन प्राप्त कर सकें।   
    • बड़ी वैश्विक पूँजी की संभावना को अवसर देना और FCRA दिशानिर्देशों में अधिक समावेशी, लचीला एवं समयबद्ध निकासी दृष्टिकोण धन की कमी का सामना कर रहे सामाजिक उद्यमों, विशेष रूप से वे उद्यम जो शुद्ध सामाजिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं, को बड़ी राहत प्रदान कर सकता है।
  • सोशल स्टॉक एक्सचेंज के निर्माण कार्य को तीव्र करना: वर्ष 2019-20 के बजट में इसकी घोषणा के साथ भारतीय बाज़ार तक पहुँच का इरादा रखने वाले निवेशकों के लिये सोशल बॉण्ड में निवेश को एक पात्रता मानदंड के रूप में रखना परियोजनाओं के वित्तपोषण में मदद कर सकता है।   
  • सामाजिक परियोजनाओं के लिये बोली प्रक्रिया को आसान बनाना: सामाजिक उद्यमी-विशेष रूप से छोटे और सूक्ष्म संगठन, जो ज़मीनी स्तर पर परियोजनाएँ कार्यान्वित करते हैं और नवोन्मेषक जो नए समाधान प्रस्तुत करते है, प्रायः सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं और कार्यक्रमों के लिये बोली प्रक्रिया में भाग लेने में असमर्थ होते हैं। 
  • कार्य को चिह्नित करना: एक दशक से अधिक समय से ‘श्वाब फाउंडेशन फॉर सोशल इंटरप्रेन्योरशिप’ और ‘जुबिलेंट भारतीय फाउंडेशन’ वार्षिक ‘सोशल इंटरप्रेन्योर ऑफ द इयर’ (SEOY) इंडिया अवार्ड के माध्यम से सामाजिक उद्यमिता को संपोषण प्रदान कर रहे हैं।   
    • सामाजिक उद्यमियों को प्रोत्साहित करने वाली ऐसी अन्य पहलों को अपनाया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

यह आवश्यक है कि एक ऐसे संपोषणकारी पारितंत्र का विकास किया जाए, जो नए कार्यक्रम शुरू करने, महामारी-प्रेरित अंतराल को कम करने, मौजूदा पहलों का दायरा बढ़ाने और मुख्यधारा की अनुक्रिया प्रणाली का हिस्सा बनने हेतु सामाजिक उद्यमियों को प्रेरित करने हेतु महत्त्वपूर्ण हो।

सामाजिक उद्यमियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनकी अनुक्रियाओं का समर्थन कर हम उनके ज़मीनी प्रयासों को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकते हैं और भारत की समावेशी रिकवरी में मदद कर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर ने सामाजिक उद्यमियों की उल्लेखनीय भूमिका को उजागर किया है। चर्चा कीजिये कि भारत में सामाजिक उद्यमिता को किस प्रकार प्रोत्साहित किया जा सकता है।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2