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एडिटोरियल

  • 24 Apr, 2023
  • 17 min read
सामाजिक न्याय

भारत की जनसांख्यिकी क्षमता

यह एडिटोरियल 21/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Numbers game: On the State of World Population Report 2023 and the India projection” लेख पर आधारित है। इसमें ‘विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2023’ के अनुसार भारत की जनसंख्या की स्थिति के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत अकाल, दुर्घटनाओं, बीमारी, संक्रमण और युद्ध के कारण उच्च मृत्यु दर की स्थिति के तहत विकास के उन आरंभिक दिनों से आगे बढ़ता हुआ एक लंबा सफर तय कर चुका है, जब मानव प्रजाति अस्तित्व के लिये अपेक्षाकृत उच्च स्तर के प्रजनन दर आवश्यक थी। समय के साथ, बीमारियों और प्रकृति की अनिश्चितताओं से बेहतर ढंग से निपटने की सक्षमता के साथ देश ने मृत्यु दर में भारी गिरावट के साथ-साथ जीवन प्रत्याशा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है।

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) की विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2023 (State of World Population Report 2023) के अनुसार, भारत वर्ष 2023 के मध्य तक दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा, जहाँ वह चीन की 1.425 बिलियन आबादी को लगभग 3 मिलियन अधिक आबादी के साथ पीछे छोड़ देगा। भारत की अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण के लिये इस जनसांख्यिकीय बदलाव (Demographic Shift) के अपने निहितार्थ हैं। जनसंख्या वृद्धि, जिसे अतीत में एक बोझ या अलाभ की तरह देखा जाता था, अब जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) के कारण एक उल्लेखनीय लाभ के रूप में देखा जाता है।
  • भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिये आर्थिक अवसरों का सृजन करने की आवश्यकता है।

भारत की जनसंख्या वृद्धि की पृष्ठभूमि

  • भारत की जनसंख्या वृद्धि अतीत में चिंता का विषय रही थी।
  • समाजवादी युग में, बढ़ती जनसंख्या को गरीबी के लिये दोषी ठहराया गया और जनसंख्या नियंत्रण के लिये नसबंदी कार्यक्रम चलाए गए।
    • वर्ष 1990 के दशक में वैश्वीकरण (Globalization) ने भारत को अप्रयुक्त क्षमता वाले एक विशाल बाज़ार के रूप में देखा, जिसने जनसंख्या की धारणा को एक लाभ के रूप में बदल दिया।
    • भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश ने मूल्यवान आर्थिक अवसर प्रदान किये हैं।
  • भारत में वर्तमान में दुनिया की 17.5% आबादी निवास करती है।
    • यह वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के समय भारत की जनसंख्या (34 करोड़) की लगभग चार गुनी है।
  • जनसंख्या की धीमी वृद्धि दर की अवधि (वर्ष 1891-1921):
    • वर्ष 1891 से 1921 के बीच भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर निम्न रही थी।
    • इन 30 वर्षों में जनसंख्या में महज 1.26 करोड़ की वृद्धि हुई।
    • ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि इन वर्षों में आपदाओं और महामारियों (जैसे अकाल, प्लेग, मलेरिया आदि) ने मानव जीवन के लिये भारी तबाही उत्पन्न की थी।
  • जनसंख्या की उच्च वृद्धि की अवधि (वर्ष 1921-51):
    • वर्ष 1921 के बाद से भारत की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है।
    • जनगणना आयुक्त (Census Commissioner) ने वर्ष 1921 को वृहत विभाजन का वर्ष (Year of Great Divide) बताया है।
  • जनसंख्या विस्फोट की अवधि (वर्ष 1951-1981):
    • वर्ष 1951-1961 के बीच जनसंख्या अत्यंत तेज़ी से बढ़ी। इसे ‘जनसंख्या विस्फोट की अवधि’ (period of population explosion) कहा जाता है।
  • वर्ष 1981 के बाद से गिरावट के निश्चित संकेतों के साथ उच्च वृद्धि की अवधि:
    • वर्ष 1981-91 के दौरान दशकीय विकास दर पिछले दशक (1971-81) के 24.66 प्रतिशत की तुलना में 23.87 प्रतिशत दर्ज की गई थी।
    • यह एक स्वस्थ और निश्चित संकेत था जो भारत के जनसांख्यिकीय इतिहास में एक नए युग की शुरुआत का संकेत दे रहा था।
  • जनसंख्या वृद्धि के हाल के रुझान:
    • यद्यपि भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन भारत की जनसंख्या वृद्धि दर भी धीमी हो रही है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के अनुसार, देश में पहली बार कुल प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर (Replacement Level) से नीचे है।
    • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2100 में 1.53 बिलियन पर स्थिर होने से पहले वर्ष 2050 में भारत की जनसंख्या 1.67 बिलियन तक पहुँच जाएगी।

जनसांख्यिकीय संक्रमण क्या है?

  • जनसांख्यिकी संक्रमण (Demographic Transition) समय के साथ आबादी की जन्म एवं मृत्यु दर और पैटर्न में परिवर्तन की एक प्रक्रिया को संदर्भित करता है, क्योंकि कोई समाज उच्च-प्रजनन दर एवं उच्च मृत्यु दर की स्थिति से निम्न प्रजनन दर एवं निम्न मृत्यु दर की ओर आगे बढ़ता है। इस संक्रमण को सामान्यतः चार चरणों में बाँटा गया है।
  • भारत जनसांख्यिकीय संक्रमण के चार-चरणीय मॉडल में अभी तृतीय चरण में है जहाँ उच्च मृत्यु दर एवं उच्च प्रजनन दर वाली स्थिर जनसंख्या से निम्न मृत्यु दर एवं निम्न प्रजनन दर वाली स्थिर जनसंख्या की ओर आगे बढ़ रहा है, जबकि इसके कुछ राज्य/केंद्रशासित प्रदेश चतुर्थ चरण में पहुँच चुके हैं।
  • जनसांख्यिकीय संक्रमण के चरण:
    • प्रथम चरण:
      • कई अल्प विकसित देश प्रथम चरण में हैं जहाँ उच्च जन्म दर, उच्च मृत्य दर (निवारण योग्य कारणों से), स्थिर जनसंख्या आदि विशेषता देखी जाती है। उदाहरण के लिये, दक्षिण सूडान, चाड, माली आदि।
    • द्वितीय चरण:
      • द्वितीय चरण में शामिल देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के कारण मृत्यु दर में गिरावट आई है लेकिन स्वास्थ्य एवं गर्भनिरोधक सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण उच्च प्रजनन दर, जनसंख्या में तीव्र वृद्धि की स्थिति है। जैसे- अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बोलीविया, उप-सहारा देश (नाइजर, युगांडा आदि)।
    • तृतीय चरण:
      • मृत्यु दर के ही साथ जन्म दर में भी गिरावट, लेकिन प्रजनन आयु वर्ग के लोगों की बड़ी संख्या के कारण जनसंख्या बढ़ती रहती है। जैसे- कोलंबिया, भारत, जमैका, बोत्सवाना, मैक्सिको, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात।
    • चतुर्थ चरण:
      • स्थिर जनसंख्या लेकिन आरंभिक से उच्च स्तर, निम्न जन्म एवं मृत्यु दर, सामाजिक एवं आर्थिक विकास का उच्च स्तर। जैसे- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, ब्राजील, अधिकांश यूरोप, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और अमेरिका।

जनसंख्या में गिरावट की प्रवृत्ति के कौन-से कारण हैं?

  • जनसंख्या वृद्धि में गिरावट:
    • अखिल भारतीय स्तर पर जनसंख्या की प्रतिशत दशकीय वृद्धि दर वर्ष 1971-81 से घट रही है।
      • EAG राज्यों (Empowered action group states: उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और उड़ीसा) के मामले में उल्लेखनीय गिरावट पहली बार वर्ष 2011 की जनगणना के दौरान देखी गई।
  • भारत के TFR में गिरावट:
    • NFHS 4 और NFHS 5 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है।
      • भारत में केवल पाँच राज्य ऐसे हैं जो 2.1 के प्रजनन स्तर के प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर हैं। ये राज्य हैं- बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर।
      • प्रजनन का प्रतिस्थापन स्तर कुल प्रजनन दर को इंगित करता है, अर्थात् प्रति महिला जन्म लेने वाले बच्चों की वह औसत संख्या जिस पर एक आबादी (बिना किसी पलायन या प्रवास के) एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वयं को प्रतिस्थापित कर लेती है।
  • मृत्यु दर संकेतकों में सुधार:
    • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (Life expectancy at birth) में उल्लेखनीय सुधार आया है जो वर्ष 1947 में 32 वर्ष से बढ़कर वर्ष 2019 में 70 वर्ष हो गया।
    • NFHS 5 के अनुसार शिशु मृत्यु दर 32 प्रति 1,000 जीवित जन्म है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 36 और शहरी क्षेत्रों में 23 शिशु मृत्यु शामिल हैं।
  • परिवार नियोजन में वृद्धि:
    • NFHS 5 के अनुसार, समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (Contraceptive Prevalence Rate- CPR) अखिल भारतीय स्तर पर 54% से बढ़कर 67% हो गई है और पंजाब के अपवाद के साथ लगभग सभी द्वितीय चरण के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में यह स्थिति दर्ज की गई है।
  • जलवायु परिवर्तन और प्रवासन:
    • अतीत में जनसंख्या संबंधी विमर्श में जलवायु संकट और इस तथ्य पर विचार नहीं किया जाता था कि कई प्रवासी स्थायी अप्रवासी बनते जा रहे हैं।
    • वर्ष 2011 के बाद से 1.6 मिलियन से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है, जिसमें केवल वर्ष 2022 में ही 225,000 से अधिक लोग शामिल थे।

जनसंख्या वृद्धि का क्या महत्त्व है?

  • बेहतर मानव पूंजी:
    • एक बड़ी आबादी को वृहत मानव पूंजी, उच्च आर्थिक विकास और बेहतर जीवन स्तर के संदर्भ में देखा जाता है।
    • हालाँकि, यदि इसे ठीक से प्रबंधित नहीं किया गया तो यह युद्ध, आंतरिक संघर्ष और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने का कारण भी बन सकता है।
  • बेहतर आर्थिक विकास:
    • उच्च कार्यशील आयु आबादी और निम्न आश्रित आबादी के कारण बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों से बेहतर आर्थिक विकास की स्थिति बनती है।
  • उच्च कार्यशील आयु जनसंख्या:
    • पिछले सात दशकों में कार्यशील आयु जनसंख्या की हिस्सेदारी 50% से बढ़कर 65% हो गई है।
    • इसके परिणामस्वरूप निर्भरता अनुपात (dependency ratio: कार्यशील आयु जनसंख्या में बच्चों और बुजुर्गों की संख्या) में गिरावट आई है।
    • अगले 25 वर्षों में प्रति पाँच कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्तियों में से एक भारत में रह रहा होगा।

जनसांख्यिकीय लाभांश से संबद्ध चुनौतियाँ

  • असममित जनसांख्यिकी:
    • कार्यशील आयु अनुपात में वृद्धि भारत के कुछ सबसे गरीब राज्यों में केंद्रित होने की संभावना है और जनसांख्यिकीय लाभांश पूरी तरह से तभी साकार हो सकेगा जब भारत इस कार्यशील आयु आबादी के लिये लाभकारी रोज़गार के अवसर पैदा करने में सक्षम होगा।
  • कौशल की कमी:
    • भविष्य में सृजित अधिकांश नए रोज़गार अवसर अत्यधिक कौशल की मांग रखेंगे, जबकि भारतीय कार्यबल में कौशल की कमी एक बड़ी चुनौती है।
    • निम्न मानव पूंजी आधार और कौशल की कमी के कारण भारत अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम नहीं हो सकेगा।
  • निम्न मानव विकास मापदंड:
    • UNDP के मानव विकास सूचकांक 2023 में भारत 191 देशों के बीच 132वें स्थान पर है, जो चिंताजनक स्थिति है।
    • इस परिदृश्य में, भारतीय कार्यबल को दक्ष और कुशल बनाने के लिये स्वास्थ्य एवं शिक्षा के मापदंडों में वृहत सुधार की आवश्यकता है।
  • अर्थव्यवस्था की अनौपचारिक प्रकृति:
    • यह भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण के लाभों को प्राप्त कर सकने में एक अन्य बाधा है।

आगे की राह

  • आर्थिक अवसरों का सृजन करना:
    • भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश से पूरी तरह लाभान्वित होने के लिये अधिकाधिक आर्थिक अवसरों के सृजन की आवश्यकता है।
    • उद्यमिता को बढ़ावा देना:
      • कर प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता के माध्यम से लघु एवं मध्यम आकार के व्यवसायों के विकास का समर्थन किया जाना चाहिये।
    • निवेश बढ़ाना:
      • कारोबार सुगमता में सुधार, नौकरशाही बाधाओं को कम करने और अवसंरचना के विस्तार के साथ अधिकाधिक विदेशी निवेश को आकर्षित किया जाना आवश्यक है।
    • डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना:
      • नए आर्थिक अवसरों का पता लगाने और अधिक कुशल एवं उत्पादक व्यवसाय का सृजन करने के लिये डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना चाहिये।
      • व्यवसायों और व्यक्तियों को सहयोग प्रदान करने के लिये हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल अवसंरचना में निवेश किया जाना चाहिये।
  • आर्थिक असमानता को संबोधित करना:
    • शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना:
      • भारत को सभी के लिये, विशेष रूप से वंचित पृष्ठभूमि के लोगों के लिये, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना:
      • भारत को वृद्ध जनों, विकलांगों और बच्चों जैसे कमज़ोर समूहों के लिये सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
      • इसमें पेंशन, विकलांगता लाभ और बाल सहायता जैसे कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
  • आर्थिक अवसर पर केंद्रित होना:
    • अवसंरचना विकास, विदेशी निवेश, नवाचार प्रोत्साहन आदि आर्थिक अवसर पैदा करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश और अर्थव्यवस्था पर इसके संभावित प्रभाव का विश्लेषण करें।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

मुख्य परीक्षा

प्र. बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है।समालोचनात्मक परीक्षण करें। (वर्ष 2015)


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